‘‘होनहार बिरवान के होत चिकने पात’’ अर्थात देश काल व परिस्थितियों से जन्म लेते हैं- जनप्रिय राजनीतिज्ञ राजनेता। यही कारण हैं राजनीतिज्ञ बनने के। प्रजातांत्रिक समाज में लोगों की आम समस्याओं एवं उनके समाधान तथा जनहित के विकास कार्यों को शासन से आर्थिक पैकेज दिलाकर अधिकारियों के माध्यम से हल कराने का उŸारदायित्व चयनित राजनेता का होता है। राजनेता कुछ क्षेत्रों तथा जनता का प्रतिनिधित्व करते हैं। जनता की भावनाओं के अनुरूप क्षेत्र में विकास के कार्यांे के साथ-साथ उनमें एकता, भाईचारा, सौहार्द का वातावरण भी निर्मित करते हैं।
राजनेता जनता के हृदय में अपना स्थान बनाते हैं तथा उनके हित में विकास कार्य करते हुए शासन में विभिन्न राजपद प्राप्त करते हैं। इसी के कारण आज राजनेता बनना न केवल गौरव व प्रतिष्ठा की बात हो गई है, वरन् इन्हें सम्मानित दृष्टि से भी देखा जा रहा है। कुल मिलाकर आज वैभवशाली, ऐश्वर्य युक्त, शासन में राजपदों से सुशोभित, शासन में प्रतिष्ठित, जिम्मेदारी और जनता के बीच में, जनता केे लोगों द्वारा, हमेशा उच्च सम्मान से जगह-जगह सम्मानित होने के कारण ही राजनेताओं का कद, अब जनता का प्रतिनिधित्व करने वाला न रह जाकर एक प्रतिष्ठापूर्ण व्यवसाय होता जा रहा है।
ज्योतिष के परिदृश्य में यदि देखा जाय तो निश्चित ही हर व्यक्ति के कुंडली में न तो ऐसे ग्रह योग होते हैं, जो राजनेता बनकर प्रतिष्ठा दें। यह ग्रह योग तो बिरले ही लोगें की जन्म कुंडलियों में पाये जाते हैं। इसी का विश्लेषण यहां करने का प्रयास किया जा रहा है कि आखिर वे कौन से ग्रह योग, ग्रह भाव स्थित ग्रह, कारक ग्रह, ग्रह दृष्टियां, दशाएं, ग्रह गोचर तथा नक्षत्र होते हैं, जिनके कारण जातक राजनेता बनता है।
अतः जो योग अधिकतर उच्च राजनेताओं की कुंडलियों में कुछ मर्मज्ञ ज्योतिषियों द्वारा शोध कर पाये गये हैं और वर्तमान में अधिकांशतः देखे भी जा रहे हैं, उनके कुछ उदाहरण निम्नवत प्रस्तुत किये जा रहे हैं -
-सफल राजनीतिज्ञों की कुंडली में अधिकांशतः राहु भाव 6, 10, 11 में देखा गया है और यही राहु सर्वसम्मति से राजनीति का कारण भी माना गया है।
-राजनेता बनने का अर्थ है सŸाा में भागीदारी निभाना, अतः यदि कुंडली में दशमेश भाव 10 में हो या कोई भी ग्रह दशम भाव में उच्च का बैठे तथा नवम भाव में गुरु शुभ स्थिति में बैठे अथवा फिर दशम तथा दशमेश का संबंध सप्तम भाव से हो, तो जातक राजनीति में सफल राजनेता बन शासन में पद प्राप्त करता है।
- यदि दशम भाव में शनि हो अथवा दशमेश से संबंध करे और दशम भाव में मंगल भी हो, तो जातक दलित वर्ग की राजनीति कर राजनेता बनता है।
-राज्य कारक सूर्य यदि दशम भाव में उच्च या स्वराशि का हो तथा राजनीति कारक राहु षष्ठम, दशम या एकादश भाव में हो तथा वाणी भाव द्वितीय के स्वामी का दशमेश से किसी भी रूप में संबंध हो रहा हो, तो जातक अच्छा वक्ता एवं शासन में उच्च पदासीन राजनेता बन सकता है।
-कर्क लग्न की कुंडली में दशमेश मंगल द्वितीय भाव में, लग्न में शनि, षष्ठम भाव में राहु लाभेश शुक्र के साथ हो तथा लग्नेश की लग्न पर दृष्टि के साथ हो सूर्य-बुध पंचम या दशम भाव में हों तथा गुरु नवम या एकादश में हो, तो जातक उच्च राजनीतिज्ञ, प्रभावशील वक्ता, शत्रुओं को परास्त करने वाले राजनेता के रूप में यशस्वी होकर अनेक राजकीय पदों को सुशोभित करता है।
- नेतृत्व कारक सिंह राशि की लग्न में यदि सूर्य, चन्द्र, बुध, गुरु हो, धन भाव में कन्या राशिगत मंगल, लाभ भाव में मिथुन का शनि एवं व्यय भाव में राहु व षष्ठम भाव में केतु हो, तो ऐसे जातक को विरासत में राजनीति मिलती है, जिसके कारण जातक आजीवन शासन में विभिन्न पदों को प्राप्त कर जनता में लोकप्रिय व वैभवशाली व्यक्तित्व का राजनेता होता है।
- वृश्चिक लग्न की कुंडली में यदि लग्नेश मंगल पराक्रम भाव में उचस्थ गुरु से दृष्ट हो, दशमेश दशम में हो या दशम भाव को देखे, शनि एवं राहु की युति बुध की राशि कन्या में हो, साथ ही लाभेश लाभ भाव को देखे और भाग्येश चंद्रमा वाणी भाव द्वितीय में केतु के साथ विराजमान हो, तो जातक प्रभावशील व्यक्तित्व का जनप्रिय नेता बन जनहित के कार्यों को सम्पन्न कराने हेतु शासन में विभिन्न पदों पर आसीन होकर एक सफल राजनेता होता है।
- वृश्चिक लग्न की कुंडली में लग्नेश यदि व्यय भाव में गुरु से दृष्ट हो, शनि लाभ भाव में होकर लग्न को देखे, राहु-चंद्र जनता के भाव चतुर्थ में हो, स्वराशि का शुक्र सप्तम में लग्नेश से दृष्ट हो तथा राज्य कारक सूर्य लाभेश के साथ युति कर शुभ स्थान में हो और साथ ही गुरु की दशम व वाणी भाव पर दृष्टि हो, ता जातक शासकीय नीतियों की आलोचना कर प्रखर एवं तेज-तर्रार नेता के रूप में जनता की आवाज हर समय बुलंद करने हेतु प्रयासरत रहता है।
-कन्या लग्न हो और लग्नेश स्वयं द्वितीय भाव में राज्य कारक सूर्य के साथ हो, राहु भाग्य भाव में भाग्येश शुक्र, गुरु, केतु से दृष्ट हो, लाभ भाव में पंचमेश शनि, लाभेश चंद्रमा, पराक्रमेश मंगल हो और गुरु की इन पर दृष्टि पड़ रही हो, तो ऐसा जातक शासन में पद प्राप्त कर नाम और धन कमाता है, साथ ही उच्च राहु एवं बुध के कारण राजनीति में एक सफल राजनेता के साथ-साथ कुशल कूटनीतिज्ञ बन उच्च राजकीय पदों पर नाम व धन कमाता है।
- यदि वृश्चिक लग्न में लग्नेश मंगल, भाग्येश चंद्र के साथ होकर चंद्र-मंगल योग बना रहा हो, राजनीति कारक राहु उच्च का होकर अष्टम भाव में हो, लाभेश बुध कन्या का लाभ भाव में, गुरु वक्री होकर पंचम में स्वगृही हो, जनता का कारक शनि पराक्रम भाव में स्वगृही के साथ-साथ वक्री हो एवं दशमेश सूर्य सप्तमेश शुक्र के साथ युति में हो, तो जातक प्रबल मंगल के कारण मूल रूप सेे खिलाड़ी होते हुए भी अपनी ओजस्वी वाणी के कारण लोकप्रियता प्राप्त राजनेता बनने में सक्षम होता है।
-कुंभ लग्न की कुंडली में यदि जनता कारक शनि मित्र राशि का पंचम में हो, जनता के चतुर्थ भाव में उच्च के राहु के साथ स्वगृही शुक्र युति कर रहा हो, साथ ही दशमेश मंगल षष्ठम भाव में नीचगत हो एवं वाणी भाव का स्वामी गुरु द्वितीय भाव में स्थित बुध-चंद्र को दृष्टि द्वारा प्रभावित करने के साथ-साथ राज्य कारक सूर्य पराक्रम भाव में उच्च राशि मेष का हो, तो ऐसा जातक किसी उच्च प्रशासनिक सेवा में रहकर उच्च पद को प्राप्त करता है।
वृश्चिक लग्न की कुंडली में लग्नेश मंगल दशमेश सूर्य के साथ हो, राहु चतुर्थ में होकर सप्तमेश शुक्र को दशम भाव में देखे तथा गुरु पंचम भाव में स्वगृही होकर चतुर्थेश शनि व भाग्येश चंद्र की युति को लाभ भाव में पूर्ण दृष्टि दे एवं लाभेश बुध, भाग्य भाव में हो तो जातक दृढ़ इच्छाशक्ति का अतिमहत्वाकांक्षी, कूटनीतिज्ञ जनता में यश-नाम अर्जित करने वाला राजनेता होकर किसी पार्टी का नेतृत्व करने में सक्षम राजनीतिज्ञ हो सकता है।
-कर्क लग्न की कुंडली में यदि भाग्येश गुरु उच्च का लग्न में, लग्नेश चंद्र दशम में, लाभेश एवं चतुर्थेश शुक्र जनता के भाव चतुर्थ में, जनता कारक शनि वाणी भाव में रोग कारक मंगल पराक्रम भाव में और गुरु की दृष्टि, पंचम भाव में बुध, सूर्य, राहु हो, तो ऐसा जताक अध्ययनशील, गंभीर प्रवृŸिा का, प्रभावशील, साहसी, बुद्धिमान, कूटनीतिज्ञ राजनेता होकर, उच्च राजकीय पद प्राप्त करता है।
-कर्क लग्न की कुंडली में ही यदि भाग्येश गुरु उच्च का लग्न में हो, कर्मेश मंगल मित्र राशि का वाणी भाव में हो, लग्नेश चंद्रमा जनता के भाव चतुर्थ में, नवमस्थ राहु से दृष्ट हो, साथ ही जनता के घर का स्वामी शुक्र स्वगृही लाभ भाव में हो एवं सूर्य, बुध की युति शनि की दृष्टि पर हो, तो ऐसे ग्रह योगों वाला जातक एक गंभीर सोच वाला तार्किक वक्ता, जन मानस का हितैषी, नई सोच के कार्य करने वाला, शांत व्यक्तित्व का सफल राजनीतिक राजनेता होकर अति उच्च राजकीय पद की प्राप्ति करता है।
-यदि कन्या लग्न हो और लग्नेश बुध भाग्येश शुक्र के साथ लाभ भाव में लाभेश चंद्र व चतुर्थेश गुरु की युति से दृष्ट हो, जनता कारक शनि राज्य कारक सूर्य के साथ दशम में हो तथा पराक्रमेश मंगल के साथ केतु होकर, षष्ठम भाव में राहु हो, तो जातक सर्वहारा वर्ग में समान विचार धारा का कम्युनिस्ट विचारों से परिपूर्ण दीर्घकाल तक राज्यपद प्राप्त कर लोकप्रियता प्राप्त करने वाला राजनेता होता है।
-कर्क लग्न की कुंडली में यदि लग्नेश चंद्रमा भाग्येश गुरु के साथ भाग्य भाव में गजकेसरी योग बना रहा हो, दशमेश मंगल राहु से दृष्ट होकर अष्टम में हो, जनता कारक शनि राहु और केतु से संबंध कर दशम भाव में हो, लाभेश व जनता के चतुर्थ भाव का स्वामी शुक्र धनेश व पराक्रमेश के साथ पंचम में हो, तो ऐसा जातक काफी निम्न स्तर से जनता के मध्य राजनीति करते हुए, वर्ग विशेष के सहयोग से उच्च कूटनीतिज्ञ, महत्वाकांक्षी, जनता के बीच का उच्च राजनीतिज्ञ होकर उच्च राजकीय पदों को हासिल करता है।
-यदि कुंडली में राजनीति कारक राहु पराक्रमेश सूर्य, जनता के घर के स्वामी चतुर्थ व लग्नेश बुध, संबंधों के घर सप्तम के स्वामी व दशमेश गुरु के साथ युति कर भाग्य भाव में हो तथा भाग्येश व जनता कारक शनि जनता के घर चतुर्थ में हो, साथ ही लाभेश मंगल की पंचमेश शुक्र से युति दशम भाव में हो, तो इन सब ग्रह जनित योगों संबंधों एवं प्रभावों के कारण ही जातक जनता में लोकप्रियता प्राप्त कर जन हितैषी होते हुए, सदैव जनता के हित में उनकी मांगों की आपूर्ति हेतु आवाज उठाने वाला एवं अन्याय के विरुद्ध सदा लड़ने को तत्पर, उच्च राजनीतिक सफलता प्राप्त राजनेता बनता है। संक्षेेप में कहना है
कि राजनीतिक बनने के ज्योतिषीय कारण उपरोक्त दर्शाये गये योगों के अतिरिक्त एक सफल राजनेता बनने के लिए वैसे तो समस्त नौ ग्रहों का शक्तिशाली होना अनिवार्य है, किंतु फिर भी सूर्य, मंगल, गुरु और राहु में चार ग्रह मुख्य रूप से राजनीति में सफलता प्रदान करने में सशक्त भूमिका अदा करते हैं साथ ही चंद्रमा का शुभ व पक्ष बली होना भी आवश्यक है। इसमें संदेह नहीं कि सूर्य ग्रह होने के साथ ही साथ मंगल से कुशल नेतृत्व तथा पराक्रम की प्राप्ति होती है।
गुरु पारदर्शी, निर्णय क्षमता एवं ज्ञान-शक्ति प्रदान करता है तथा राहु को ज्योतिष में शक्ति, साहस, शौर्य, पराक्रम, छल-कपट और राजनीति का कारक माना गया है। अतएव कुंडली में यदि ये चारों ग्रह शक्तिशाली एवं शुभ स्थिति में होंगे, तो ये एक सशक्त, प्रभावी, कर्मठ, जुझारू तथा प्रतिभाशाली व्यक्तित्व की बुनियाद पर एक सम्पूर्ण सरल एवं सशक्त राजनेता रूपी भवन का निर्माण करेंगे जिस पर राष्ट्र हमेशा गौरवान्वित रहेगा।