ईश्वर की जटिल कारीगरी का एक अनोखा नमूना है ‘मानव शरीर’। यह अनगिनत छोटी-छोटी कोशिकाओं से बना है। ये कोशिकाएं शरीर में रक्त, त्वचा, मांसपेशियों, हड्डियों तथा अन्य अंगों का निर्माण करती है। अस्थि तंत्र शरीर का विशेष अंग है, जिसकी प्रत्येक हड्डी की उसके कार्य के अनुरूप एक विशिष्ट आकृति होती है। आयुर्वेदिक दृष्टिकोण: 206 विभिन्न हड्डियां होती हैं, एक मानव शरीर में। शरीर का पूरी तरह से परीक्षण करने पर मालूम होता है कि मानव शरीर में दृढ़ और कठोर हड्डियां होती हैं। अगर शरीर में हड्डिया न होतीं, तो शरीर का कोई आकार भी न होता। श
रीर के पीछे के भाग में रीढ़ की हड्डी होती है, जो लगभग 33 छोटी-छोटी हड्डियों से मिलकर बनी होती है। हर एक दो हड्डियों के बीच कार्टिलेज, अर्थात् मांस की तह गद्दी की तरह स्थित होती है। यह लचीली तह रीढ़ में लचीलापन बनाए रखती है, आपस में टकराती नहीं है अर्थात् आपसी रगड़ से बची रहती है। गिरने पर, झटका लगने पर, चलते-फिरते, कूदने पर यही गद्दियां या डिस्क शरीर को सुरक्षा प्रदान करती हैं। रीढ़ की हड्डी के बीच में ही विभिन्न तंत्र नलिकाएं गुजरती हंै। अतः कार्टिलेज उन्हें भी सुरक्षित रखकर मस्तिष्क पर या शरीर के अंगों पर कोई हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ने देती है। रेशों से बना कार्टिलेज का बाहरी भाग कुछ सख्त होता है, जबकि इसका भीतरी भाग जेली की तरह मुलायम होता है।
अचानक झटका लगने, चोट लगने या भारी वजन आदि उठाने पर रीढ़ की हड्डी के निचले भाग पर विशेष जोर पड़ता है जिससे कार्टिलेज का एनूलस फाइब्रोरस फट जाता है और जेली वाला भाग फूलकर बाहर आ जाता है, उसे ‘स्लिप डिस्क’ कहते हैं। डिस्क के फूलने के साथ-साथ ही वहां से गुजरने वाली तंत्र नलिकाएं, जो शरीर के निचले भाग और पैरों तक मस्तिष्क के संकेत पहुंचाती हैं प्रभावित हो जाती हैं। उनमें दर्द होने लगता है। यही दर्द साइटिका कहलाता है। अतः यह स्पष्ट है कि कार्टिलेज पर दबाव या जोर पड़ने से ‘स्लिप डिस्क’ और ‘साइटिका’ का दर्द हो जाता है। स्लिप डिस्क होने पर पीठ के निचले भाग में तेज दर्द महसूस होता है। यह प्रायः एक ओर के सिरे पर होता है।
कभी-कभी यह दर्द एक तरफ के पूरे पैर पर फैल जाता है। कभी यह घुटनों के नीचे और कभी सामने की तरफ जांघ में भी होने लगता है। दर्द की शुरूआत कहां होगी, यह कौन सी स्लिप डिस्क है, इस पर निर्भर है। स्लिप-डिस्क होने के कारण: यह रोग स्त्री-पुरुष दोनों को हो सकता है। अधिक आयु में गर्भ धारण करने पर, बच्चे के भार के कारण, एकाएक वजन उठाने पर या मोटापा इसका कारण होते हैं। कुदरत ने हर जोड़ को मशीन की तरह बनाया है और इस मशीन पर एक निश्चित वजन ही पड़ना चाहिए।
वजन बढ़ने से कमर की हड्डियों के बीच की डिस्क धीरे-धीरे घिसकर कमजोर हो जाती है और नीचे झुककर उठने, झुक कर काम करने पर ‘साइटिका’ स्लिप डिस्क कहते हैं। जो लोग लगातार सड़कों पर स्कूटर, साइकिल या मोटर से चलते हैं, सड़कों के गड्ढे, स्पीड ब्रेकर पर झटकों को झेलते हैं, उनको सारा दबाव कमर के निचले भाग पर सहन करना पड़ता है, जिससे ‘स्लिप-डिस्क’ हो सकता है।
उपचार एवं सावधानियां:
- स्लिप-डिस्क होने पर कुछ दिनों के लिए जमीन पर या तख्त पर करवट लेकर दोनों पैर मोड़कर लेटना चाहिए।
- किसी योग विशेषज्ञ की देख-रेख में योगाभ्यास करें।
- यदि आवश्यक हो तो डाॅक्टर की सलाह से आॅपरेशन करवाकर ‘डिस्क’ का इलाज करवाएं।
- योग विशेषज्ञ, डाॅक्टर, वैद्य के परामर्श के अनुसार जरूरी सावधानियां बरतें। - तैराकी स्लिप डिस्क का सर्वोत्तम व्यायाम है।
नियमित तौर पर तैराकी करने वाले को स्लिप-डिस्क नहीं होता। ज्योतिषीय दृष्टिकोण: ज्योतिष अनुसार काल पुरूष की कुंडली में सप्तम भाव रीढ़ की हड्डी का है जहां डिस्क स्लिप होती है। सप्तम भाव का कारक ग्रह शुक्र है। डिस्क जो स्लिप होता है, उसका बाहरी भाग रेशे से बना कुछ सख्त और भीतर का भाग जेली, अर्थात् चर्बी की तरह होता है जिसका कारक ग्रह गुरु है।
इसलिए जब कुंडली में लग्न, लग्नेश, सप्तम भाव, सप्तमेश, शुक्र, गुरु, दुष्प्रभावों में रहते हैं तो ‘स्लिप डिस्क’ होता है।
विभिन्न लग्नों में स्लिप/डिस्क:
मेष लग्न: सप्तम भाव में बुध, गुरु से युक्त हो, लग्नेश मंगल वक्री होकर किसी भी भाव में हो या अस्त होकर षष्ठ या अष्टम भाव में हो, शुक्र शनि से युक्त होकर पंचम, षष्ठ, अष्टम या नवम भाव में हो तो जातक को स्लिप डिस्क या रीढ़ की हड्डी से कष्ट होता है।
वृष लग्न: लग्नेश शुक्र गुरु से युक्त षष्ठ, सप्तम या अष्टम भाव में हो और राहु-केतु से दृष्ट या युक्त हो और सप्तमेश मंगल वक्री होकर लग्न या द्वादश भाव में हो तो जातक को स्लिप-डिस्क का सामना जीवन भर करना पड़ता है।
मिथुन लग्न: गुरु और मंगल दोनों वक्री होकर सप्तम भाव में हों या सप्तम भाव पर दृष्टि दें। लग्नेश बुध एवं शुक्र दोनों अस्त होकर कहीं भी स्थित हांे तो जातक को स्लिप डिस्क होता है।
कर्क लग्न: बुध शुक्र वक्री होकर सप्तम भाव में हो, चंद्र राहु से युक्त या दृष्ट षष्ठ या अष्टम् भाव में हो, शनि गुरु से युक्त होकर लग्न में हो तो जातक को स्लिप-डिस्क हो सकता है।
सिंह लग्न: राहु-केतु सप्तम भाव में या सप्तम भाव पर दृष्टि दे, लग्नेश सूर्य एवं शनि दोनों एक दूसरे के सामने होकर कुंडली में किसी भी भाव में हो। गुरु षष्ठ और शुक्र अष्टम भाव में हो तो जातक को स्लिप-डिस्क हो सकता है।
कन्या लग्न: गुरु-लग्न में, मंगल सप्तम् भाव में वक्री हो, बुध शुक्र अस्त होकर तृतीय या एकादश भाव में हो, राहु-केतु सप्तम् भाव पर दृष्टि दे तो जातक को स्लिप डिस्क का सामना एक बार करना होता है।
तुला लग्न: सप्तमेश एवं लग्नेश दोनों अस्त होकर किसी भी भाव में हो, गुरु सप्तम भाव में वक्री हो और राहु-केतु से दृष्ट या युक्त हो तो जातक को स्लिप डिस्क’ होता है।
वृश्चिक लग्न: सप्तमेश अस्त होकर सप्तम भाव में ही हो, गुरु लग्न में हो और राहु या केतु से दृष्ट हो। लग्नेश मंगल षष्ठ या अष्टम भाव में हो तो जातक को स्लिप-डिस्क हो सकता है।
धनु लग्न: शुक्र सप्तम भाव में वक्री हो और गुरु षष्ठ या अष्टम भाव में सूर्य से अस्त हो, सप्तमेश भी अस्त हो तो जातक को स्लिप डिस्क हो सकता है।
मकर लग्न: राहु युक्त गुरु सप्तम में हो, शुक्र अस्त हो, सप्तमेश चंद्र अष्टम भाव में, लग्नेश शनि षष्ठ भाव में हो तो जातक को स्लिप-डिस्क होता है।
कुंभ लग्न: सप्तमेश सूर्य राहु से युक्त होकर षष्ठ, सप्तम या अष्टम भाव में हो, गुरु लग्न मंे हो, शुक्र अस्त हो, लग्नेश शनि वक्री हो तो जातक को स्लिप डिस्क हो सकता है।
मीन लग्न: सप्तमेश बुध अस्त होकर षष्ठ या अष्टम् भाव में हो, शुक्र एवं शनि दोनों सप्तम भाव में हो, लग्नेश गुरु वक्री हो तो जातक को स्लिप डिस्क का जीवन में एक बार सामना करना पड़ता है।