कहा जाता है, हम सब ईश्वर के हाथों की कठपुतलियां हैं। वो जब जैसी डोरी घुमाता है हम भी वैसा ही करने लगते हैं। ईश्वर की इच्छा के बिना पत्ता भी नहीं हिलता। कई बार हम करना कुछ चाहते हैं और होता कुछ और है।
ऐसा ही हुआ, कुमुदलाल गांगुली के जीवन में। हम बात कर रहे हैं फिल्मी पर्दे के पहले सुपर स्टार कहे जाने वाले अशोक कुमार जी की। अशोक नाम उन्हें फिल्म इंडस्ट्री से मिला था। उन्हें लोग दादा मुनि भी कहते थे। उन्होंने इलाहाबाद से बी. एस सी व कलकत्ता से वकालत की पढ़ाई पूरी की। टेक्नोलाॅजी में उनकी काफी रूचि थी। इसमें जर्मनी ने काफी प्रगति की थी। अशोक कुमार का सपना था जर्मनी जाकर टेक्नोलाॅजी के क्षेत्र में नाम कमाना। पर जैसा कि हमने पहले कहा- हमेशा वो नहीं होता जो हम चाहते हैं।
आइए जानते हैं अशोक कुमार जी की कुंडली से कि कैसे जर्मन टेक्नोलाॅजी के क्षेत्र में सफलता के सपने देखने वाला इंसान फिल्मी दुनिया का सुपर स्टार बन गया-
अशोक कुमार का लग्न है कुंभ। नवांश लग्न धनु है। जन्म लग्नेश शनि तृतीय भाव में, मंगल की मेष राशि में, शुक्र के नक्षत्र व केतु के उप नक्षत्र में राहु से युत और वक्री है। शनि पर बृहस्पति व केतु के नवम भाव से दृष्टि भी पड़ रही है। शनि अपनी नीच राशि मेष में हैं किंतु शनि का नीच भंग होने के कारण नीच भंग राजयोग निर्मित हो गया है।
नीचे यस्तस्य नीचोच्चभेशौ द्वावेक एव वा।
केन्द्रस्थश्चेच्चक्रवर्ती भूपः स्पादभूपर्वान्दितः।।
फलदीपिका, अध्याय-सात, श्लोक-30 यदि कोई ग्रह नीच राशि में हैं, तो उसका नीच नाथ व उच्च नाथ दोनों अथवा दोनों में से एक भी लग्न से केंद्र में हो तो नीच भंग राजयोग होता है। शनि के नीच नाथ मंगल तथा उच्च अशोक कुमार जीवन की कहानी ग्रहों की जुबानी नाथ शुक्र दोनों ही अशोक कुमार की कुंडली में क्रमशः चतुर्थ व सप्तम भाव में बैठकर नीच भंग राजयोग निर्मित कर रहे हैं।
लग्न, लग्नेश, चंद्रमा, पंचम भाव आदि पर गुरु ग्रह बृहस्पति का पूर्ण प्रभाव है यही कारण है कि अशोक कुमार विलक्षण प्रतिभा संपन्न और आकर्षक व्यक्तित्व के मालिक थे। चंद्रमा मन का कारक ग्रह है। बृहस्पति की दृष्टि के प्रभाववश चंद्रमा शुभ प्रभाव में है। षड्बल में भी चंद्रमा प्रथम स्थान पर है। नवांश में चंद्रमा वृश्चिक राशि में स्थित है जो कि उनकी नीच राशि है किंतु उनके नीचस्थ मंगल सप्तम भाव में लग्न से केंद्र में बैठे हैं और नीच भंग राजयोग का निर्माण कर रहे हैं। नवांश लग्न में भी चंद्रमा पर बृहस्पति की दृष्टि का शुभ प्रभाव है। अशोक कुमार बहुत मिलनसार और उदार हृदय के व्यक्ति थे। अध्ययन में उनकी गहन रूचि थी। वे साइंस ग्रेजुएट थे, उन्होंने कानून की पढ़ाई की, फिल्म लाइन में भी वे फिल्म तकनीक के लगभग सभी विषयों में पारंगत थे। इलेक्ट्राॅनिक का भी उन्हें गजब का ज्ञान था।
वे गजब की पेंटिंग भी करते थे। एस्ट्रोलाॅजी का उन्होंने 10 वर्ष तक गहन अध्ययन किया। होम्योपैथी का विधिवत अध्ययन कर उन्होंने डिग्री प्राप्त की और डाॅ. अशोक कुमार बन गए। फिल्म इंडस्ट्री में कई लोग उनके सहयोग से सफलता प्राप्त कर पाए। उनका स्वभाव अत्यंत सहयोगी था। देवानंद, लता मंगेशकर, आशा भोंसले, बी. आर. चोपड़ा आदि अनेक नाम ऐसे हैं जिन्हें अशोक कुमार जी ने ही आगे बढ़ने में मदद की। यही कारण था कि उन्हें फिल्म इन्डस्ट्री में अत्यंत सम्मानजनक स्थान प्राप्त हुआ। सभी उनका सम्मान करते थे। फिल्म इंडस्ट्री में वे दादा मुनि के नाम से प्रसिद्ध हुए। द्वितीयेश व लाभेश बृहस्पति हैं। बृहस्पति नवम भाग्य भाव में बैठे हैं। धन भाव व लाभ भाव के स्वामी का भाग्य भाव में बैठना शुभ योग है। यही कारण है कि वे संपन्न परिवार में जन्मे और स्वयं भी धन व यश कमाया। पराक्रमेश मंगल चतुर्थ भाव में बैठकर दशम को देख रहे हैं। लग्नेश शनि तृतीय में बैठे हैं।
फिल्म लाइन से अशोक कुमार का पहले कोई संबंध नहीं था। इस क्षेत्र में न तो उनकी दिलचस्पी थी और न ही उनका कोई अनुभव था। तृतीय भाव का लग्न व दशम स संबंध ही उन्हें इस क्षेत्र में लाया। साथ ही सप्तम में स्थित शुक्र जो कि कुंभ लग्न के लिए योगकारक ग्रह है लग्न को पूर्ण दृष्टि से देख रहे हैं और फिल्म लाइन के कारक ग्रह हैं। शुक्र अपने ही नक्षत्र और लाभेश बृहस्पति के उपनक्षत्र में हैं। बृहस्पति भाग्य भाव में स्थित होकर लग्न, लग्नेश, पंचम पर पूर्ण दृष्टि प्रभाव बनाए हुए हैं। कहने का तात्पर्य शुक्र से संबंधित क्षेत्र से लाभ का स्पष्ट संकेत मिल रहा है। शनि व मंगल का संबंध तकनीकी ज्ञान प्रदाता है। लग्न व नवमांश दोनों में ही शनि जो कि लग्नेश हैं मंगल की ही राशि में बैठे हैं। मंगल की पूर्ण दृष्टि दशम भाव पर लग्न कुंडली में और नवांश कुंडली में लग्न पर है। यही कारण है कि अशोक कुमार की रूचि टेक्नोलाॅजी में थी।
अशोक कुमार को कैमरा से लेकर फ्लोर मैनेजमेंट, साउंड, लाइट्स, प्रोडक्शन लैब, एडिटिंग, स्क्रिप्ट आदि सभी फिल्म निर्माण से जुड़े तकनीकी पहलुओं की अच्छी जानकारी थी। जन्म के समय अशोक कुमार जी की मंगल की दशा थी जो लगभग 9 माह चली। फिर राहु की महादशा में उनकी शिक्षा संपन्न हुई। राहु नीचभंग योगकारी शनि से युत है। केतु और बृहस्पति के नक्षत्र व उपनक्षत्र में दोनों से ही दृष्ट भी है। राहु उनके लिए शुभफलप्रद रहे। उनकी शिक्षा बिना किसी बाधा के संपन्न हुई। फिर प्रारंभ हुई लाभेश व धनेश बृहस्पति की महादशा। बृहस्पति अपने नक्षत्र में बुध के उपनक्षत्र में होकर नवमस्थ है। अशोक कुमार की कुंडली में शनि व बृहस्पति का पूर्ण दृष्टि संबंध है। यह संबंध केवल लग्न कुंडली में ही नहीं वरन् नवांश व दशमेश कुंडली में भी बना हुआ है। बृहस्पति गुरु ग्रह कहे जाते हैं। बृहस्पति अत्यंत शुभ ग्रह है। उनकी शुभता का प्रभाव अशोक कुमार के संपूर्ण जीवन में देखा जा सकता है।
वे अच्छे पुत्र, भाई, पति, पिता, दोस्त सभी कुछ थे। पर्दे पर जिन भूमिकाओं को निभाकर वे फिल्मी दुनिया के सुपर स्टार बने वे सभी भूमिकाएं उन्होंने अपनी रियल लाइफ में भी कीं और पर्दे की तरह रियल लाइफ में भी वे सबके हीरो थे। वे हंसमुख व्यक्तित्व वाले थे। उनका विवाह उनकी मां की पसंद की लड़की से हुआ। उन्होंने 50 साल तक सुखमय वैवाहिक जीवन व्यतीत किया। वे अपनी पत्नी का अत्यंत सम्मान करते थे। पारिवारिक जीवन की सभी जिम्मेदारियां उन्होंने बखूबी निभाई। सप्तम भाव में बैठे शुक्र यद्यपि सप्तम भाव के सुख को न्यून करते हैं किंतु शुक्र अपने ही नक्षत्र और गुरु के उप नक्षत्र में स्थित हैं। यहां शुक्र सुखेश और भाग्येश होकर योगकारी शुभ प्रभाव दर्शा रहे हैं। पंचम भाव पर पंचम के कारक ग्रह बृहस्पति का शुभ प्रभाव है जिसके परिणामस्वरूप उन्हें संतान सुख भी प्राप्त हुआ। पंचम में चंद्रमा की उपस्थिति के परिणामस्वरूप कन्या संतति अधिक थी।
उनके एक बेटा और तीन बेटियां थीं। बृहस्पति की महादशा में उनका विवाह हुआ, संतानें हुईं और उनके करियर को ऊंचाई मिली। उन्होंने धन व शोहरत सब कुछ हासिल किया। बृहस्पति के बाद लग्नेश शनि की महादशा प्रारंभ हुई। शनि की दशा भी काफी शुभ फल प्रदाता रही। फिल्मी दुनिया के सुपरस्टार तो वे बन ही चुके थे। इस अवधि में उन्होंने एस्ट्रोलाॅजी, शतरंज, होम्योपैथी आदि अनेक विषय जिनमें उनकी रूचि थी का गहन अध्ययन करके अपने ज्ञान को बढ़ाया। उन्हें अनेक अवार्ड मिले जिनमें, संगीत नाटक अकादमी, फिल्मफेयर अवार्ड, दादा साहब फाल्के व पद्म भूषण विशेष उल्लेखनीय हैं। उनकी मृत्यु हुई 10-12-2001 को, उस समय उनकी आयु थी 90 वर्ष। आखिरी समय तक उनकी याददाश्त बहुत तेज थी। उनकी कुंडली में चंद्रमा जो कि मन का कारक ग्रह है सर्वाधिक बली व शुभ प्रभाव में है। चंद्रमा पराक्रमेश मंगल के नक्षत्र और मंगल चंद्रमा के नक्षत्र में है।
लग्नेश शनि भी तृतीय भाव में बैठे हैं। शनि भी शुभ प्रभाव में है। इसी कारण उन्हें दीर्घायु प्राप्त हुई। चंद्रमा के पंचमस्थ होने के कारण उन्होंने जिस विषय का ज्ञान प्राप्त करना चाहा वह पाया क्योंकि चंद्रमा पंचम के लाभ भाव अर्थात तृतीय भाव के स्वामी मंगल के नक्षत्र में है। उनकी मृत्यु के समय दशा चल रही थी शुक्र/गुरु की। लग्न कुंडली में शुक्र सप्तम मारक भाव में बैठे हैं। बृहस्पति द्वितीय भाव के स्वामी होकर मारकेश हैं और एकादशेश भी हैं जो कि छठे से छठा भाव है। गोचर में चंद्रमा अष्टम में, शुक्र वृश्चिक और गुरु मिथुन में गोचर करते हुए एक दूसरे से षडाष्टक योग बना रहे थे। सदाबहार, मस्तमौला, मानवीय मूल्यों और संस्कारों व संवेदनाओं से युक्त, इतनी ढेर सारी शख्सियतों वाला जमीन से जुड़ा सुपर स्टार न तो बाॅलीवुड में हुआ और न ही होगा। अशोक कुमार कभी न भुलाए जाने वाले लोगों में सदैव शामिल रहेंगे।