भगवान श्रीकृष्ण
भगवान श्रीकृष्ण

भगवान श्रीकृष्ण  

रमेश सेमवाल
व्यूस : 6588 | आगस्त 2016

भगवान श्री कृष्ण का अवतार धर्म रक्षा के लिए हुआ। भगवान भक्तों की पीड़ा नष्ट करने व धर्म की स्थापना हेतु अवतार ग्रहण करते हैं, भक्तों की रक्षा करते हैं, दुष्टों का दमन करते हैं। भगवान श्रीकृष्ण साक्षात धर्ममूर्ति ही हैं और इसमें यह भी कि भगवान ने सबके साथ धर्म के अनुसार व्यवहार किया और अपने अमृतरूपी उपदेशों से ही नहीं प्रत्युत अपने आदर्श आचरणों से भी हम लोगों को धर्म का स्वरूप दिखलाया और पथ प्रदर्शन किया है। -माता पिता के प्रति श्री भगवान ने अपनी सवा ग्यारह वर्ष की अवस्था में कंस को मारकर श्री देवकी जी तथा श्री वासुदेव जी को कारागृह से छुड़ाया और उनसे हाथ जोड़कर प्रणाम किया। भगवान ने पालक माता-पिता श्री यशोदा जी और श्री नंद गोप जी के साथ प्रेमपूर्ण लीलाएं कीं तथा नम्रता पूर्वक व्यवहार किया।

ज्येष्ठ भ्राता श्री बलराम जी की इच्छा का हमेशा सम्मान किया। अपने गुरु श्री सन्दीपिनि जी की बड़ी सेवा की, ब्राह्मणों के प्रति हमेशा श्री कृष्ण जी ने श्रद्धा रखी तथा उन्हें भूलोक का देवता मानकर उनकी सेवा की। भगवान श्री कृष्ण जी ने गोमाता की सेवा बचपन से की। गोमाता के प्रति उनका प्रेम महान था, श्री कृष्ण जी की गौ सेवा प्रसिद्ध है। नंगे पांव गो चराने भगवान जंगल में गये। भगवान श्री कृष्ण ने भक्तों के प्रति प्रेम सदैव रखा श्री भगवान ने श्री वेदव्यास, उद्धव, विदुर आदि भक्तजनों के साथ अच्छा और प्रेम का व्यवहार किया। भगवान श्री कृष्ण पूर्णावतार थे। वे ईश्वर की पूर्ण कला अथवा शक्ति को लेकर वतीर्ण हुए थे। वे एक उच्च श्रेणी के राजनीति विशारद, योगी व ज्ञानी थे। भगवान श्री कृष्ण को मुरली मनोहर भी कहते हैं।

जब भगवान श्री कृष्ण वंशी बजाते थे तब उसकी ध्वनि गोपियों के कानों को केवल मधुर ही नहीं लगती थी बल्कि एक विलक्षण प्रकार का दिव्य संदेश मिलता था। ‘क्लीं भगवान श्री कृष्ण का बीजाक्षर है। इस मंत्र में बड़ी शक्ति है। इससे मनस्तत्त्व में जोर का स्पन्दन होता है जिससे मन की राजसी वृत्ति बदल जाती है। इससे चित में एक प्रकार की प्रबल आध्यात्मिक कल्पना उत्पन्न होती है जिससे उसकी शुद्धि, एकाग्रता तथा ध्यान में बड़ी सहायता मिलती है। इससे वैराग्य और अंतर्मुखी वृत्ति जागृत होती है, वासनाएं एवं काम, क्रोध नष्ट होते हैं। भगवान श्री कृष्ण का यह महामत है, गोपालतापनी उपनिषद में इसका उल्लेख है। श्रद्धा पूर्वक 1800000 अठारह लाख जप करें यह अष्टादशाक्षर मंत्र इस प्रकार है।

ऊँ क्लीं कृष्णाय गोविन्दाय गोपीजनवल्लभाय स्वाहा। श्री कृष्ण का ‘ऊँ’ नमो भगवते वासुदेवाय यह दूसरा मंत्र है। ध्रुव ने इसी मंत्र का जप करके भगवान का दर्शन प्राप्त किया था। इस मंत्र का 12 लाख जप करने की विधि है। हमारा हृदय ही असली वृंदावन है। भगवान हमारे हृदय में हैं। हमें अपने हृदय में वृन्दावन ढूंढ़ना चाहिए। रूक्मिणी और राधा ये भगवान श्री कृष्ण की दो शक्तियां (क्रिया शक्ति और ज्ञान शक्ति) हैं। अर्जुन जीवात्मा हैं और भगवान श्री कृष्ण परमात्मा। हमारा मन कुरूक्षेत्र है, मन, इन्द्रिय, विषय-संस्कार-काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार से युद्ध करना ही वास्तविक युद्ध है।

द्रौपदी मन है, पांचों पांडव पांच ज्ञानेन्द्रियां हैं। जन्मान्ध धृतराष्ट्र मूल अविद्या है, गोपियां नाड़ी हंै। भिन्न-भिन्न नाड़ियों को वश में करके आत्मानन्द का अनुभव ही गोपियों के साथ विहार है, यही महाभारत युद्ध का अभिप्राय है। गीता में भी भगवान ज्ञान योग, भक्तियोग, कर्म योग, के बारे में बताते हैं जिससे मनुष्य ईश्वर को प्राप्त करें। भगवान श्री कृष्ण यादवेन्द्र थे। श्री कृष्ण चंद्रवंशीय थे। इनका जन्म भाद्र कृष्ण अष्टमी की मध्यरात्रि को ठीक 12 बजे हुआ था। भगवान श्री कृष्ण की कुंडली में चंद्रमा उच्च का था। भगवान श्री कृष्ण ने संसार का कल्याण किया व भक्तों की रक्षा की, धर्म की मर्यादा स्थापित की।



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