भविष्यवाणी सुनने में हम सब रूचि दिखाते हैं। क्या भविष्यवाणी जानने का कोई फायदा है? क्या आपके जीवन में भविष्य के बारे में जानकर- बदलाव आ सकते हैं? जी हां बिल्कुल सत्य है। एक ज्योतिषी एवम् भविष्य वक्ता होते हुये हम इस बात का समर्थन करते हैं। भविष्य वाचन आने वाली कई मुसीबतों से बचाता है, आगाह करता है।
लेकिन कोई भी प्रभु की लिखी जिसे हम होनी कह्ते हैं को नहीं बदल सकता। कहा जाता है कि व्यास मुनि ने महाभारत के घटित होने से पहले ही उसे लिख डाला था और ये सभी घटनाएं उसके बाद हुईं। यह भी कहा जाता है कि भविष्यवाणी ने कंस से कहा था कि कृष्ण आकर उसका वध करेंगे। तो क्या हमारे जीवन का कुछ हिस्सा पहले से तय होता है और यदि ऐसा है तो हमारी कोशिशों का मतलब क्या है? यह श्री कृष्ण प्रसंग यही सिद्ध करता है।
धर्मयुद्ध नाम से प्रसिद्ध कुरुक्षेत्र युद्ध सबसे भीषण युद्ध था जिसमें कोई भी निष्पक्ष नहीं रह सकता था। हर कोई या तो कौरवों के पक्ष में हो सकता था या पांडवों के पक्ष में। सैकड़ों राजा एक या दूसरी ओर से लड़ाई में शामिल हो गए। उडुपी के राजा ने कृष्ण से कहा, ‘हर कोई लड़ाई में शामिल है। युद्ध लड़ने वालों को भोजन की जरूरत होती है। मैं कुरुक्षेत्र युद्ध के लिए खान-पान की व्यवस्था करूंगा।’
मगध राज्य के शक्तिशाली राजा जरासंध की मृत्यु हो चुकी थी, तो उसके पौत्र अलग-अलग हो गए। ज्यादातर मागधों ने कौरवों की सेना में शामिल होना पसंद किया और कुछ पांडवों की ओर चले गए। लगभग पूरा आर्यावर्त दो हिस्सों में बंट चुका था। सिर्फ एक ने निष्पक्ष रहने का फैसला किया, वह था उडुपी का राजा। आप जानते होंगे कि उडुपी के व्यंजन काफी मशहूर हैं। उडुपी के बहुत से लोग आज भी इसी पेशे में हैं।
कृष्ण बोले, ‘ठीक है, किसी न किसी को तो खाना बनाना और परोसना है ही, तो आप यह काम कर लें। उडुपी के राजा ने दोनों पक्षों के लिए भोजन तैयार करने का जिम्मा लिया। कहा जाता है कि करीब 5 लाख सैनिक इस लड़ाई के लिए इकट्ठे हुए थे। लड़ाई अठारह दिन चली और रोजाना हजारों लोग मर रहे थे। उस स्थिति में खानपान की व्यवस्था करना एक चुनौती थी।
पांच लाख लोगों के लिए लगातार भोजन पकाते रहने से बहुत सारा भोजन बर्बाद हो जाता। अगर वह कम भोजन पकाते, तो सैनिक भूखे रह जाते। यह भी कोई अच्छी बात नहीं थी। तो क्या आप जानते हैं कि भविष्यवाणी सुनकर खाना बनता था कुरुक्षेत्र में..... लेकिन उडुपी के राजा ने भोजन का प्रबंध बहुत अच्छी तरह से किया। गजब की बात यह थी कि हर दिन पकाया गया भोजन सभी सैनिकों के लिए पूरा हो जाता और भोजन की कोई बर्बादी भी नहीं होती थी।
हैरान होने लगे कि वे बिल्कुल सटीक मात्रा में भोजन कैसे पका पा रहे हैं क्योंकि कोई नहीं बता सकता था कि किसी दिन कितने लोगों की मृत्यु हुई या होगी। इन चीजों का सटीक हिसाब लगाने में बहुत देर हो जाती। निश्चित रूप से रसोइए के पास यह पता लगाने का कोई तरीका नहीं था कि हर दिन कितने लोगों की मृत्यु हुई, लेकिन हर दिन वह ठीक उतना ही भोजन पकाता जो बाकी बचे सैनिकों के लिए काफी होता।
जब किसी ने उडुपी के राजा से पूछा कि वे ऐसी व्यवस्था कैसे कर पाते हैं, तो उन्होंने जवाब दिया, ‘कृष्ण हर रात को उबली हुई मूंगफलियां खाना पसंद करते हैं। मैं उन्हें छील कर एक बरतन में रख देता हूं। वह उनमें से कुछ मूंगफली खाते हैं। उनके खाने के बाद मैं गिनती करता हूं कि उन्होंने कितनी मूंगफलियां खाईं।
अगर उन्होंने 10 मूंगफली खाईं, तो मुझे पता चल जाता है कि अगले दिन 10,000 लोग मर जाएंगे। इसलिए अगले दिन दोपहर के भोजन में मैं 10,000 लोगों का खाना कम कर देता हूं। हर दिन मैं इन मूंगफलियों को गिन कर उसी के मुताबिक खाना पकाता हूं और वह सही निकलता है।’ कृष्ण की स्थिति भी ऐसी ही थी। वह शुरुआत और अंत को जानते थे, मगर फिर भी उन्हें बीच में जीवन का खेल खेलना था।
उन्हें भविष्य पता था, मगर फिर भी वे वर्तमान में पूरी तरह भागीदारी करते थे। सो शुरुआत और अंत को जानते हुए भी आपको जीवन का खेल खेलना पड़ता है वरना कोई खेल होगा ही नहीं क्योंकि खेल सिर्फ इसी पल खेला जा सकता है।
आपको चाहे भविष्य के बारे में पता हो, तो भी आपको वर्तमान में खेलना चाहिए या फिर पूरे खेल से ही पीछे हट जाना चाहिए। मगर आप ऐसा कर नहीं सकते । आप को इसे खेलना ही होगा, आपको खेलना ही है, तो बेहतर है कि अच्छी तरह खेलें। आपको काम करना ही है, तो उसे बेमन से क्यों करें? उसे अच्छी तरह करना बेहतर होगा। जय श्री कृष्णा।