एक साधारण परिवार में बिन मां के बच्चे को जीवन में जितने संघर्ष करने पड़ते हैं शिवाजी राव गायकवाड यानी रजनीकांत ने उन सबका सामना किया। बचपन से ही रजनीकांत को अभिनय का शौक था। कठिन से कठिन दौर में भी अपने जज्बे को बरकरार रखते हुए उन्होंने रंगमंच पर कई नाटक खेले। कुली, कारपेंटर, बस कंडक्टर और फिर सुपर स्टार के रूप में रजनीकांत के चमत्कारिक सफर को जानते हैं उनकी कुंडली के माध्यम से - इनकी कुंडली है सिंह लग्न की तथा लग्नेश सूर्य चतुर्थ भाव में मंगल की वृश्चिक राशि में धनेश व लाभेश बुध के नक्षत्र व पंचमेश तथा अष्टमेश बृहस्पति के उपनक्षत्र में हैं।
सूर्य अपने मित्र की राशि व मित्र नक्षत्र व उपनक्षत्र में विराजमान होकर पूर्णतः शुभ स्थिति में राहु व शनि की दृष्टि से युक्त हैं। नवांश में भी सूर्य पर शनि, राहु, बुध व बृहस्पति का किसी न किसी प्रकार प्रभाव पड़ रहा है। सूर्य के प्रभाववश जातक में राजसी आभा दिखाई पड़ती है। रजनीकांत आज सुपर स्टार हैं किंतु जब वे बस कंडक्टर थे तब भी उनका अलग अंदाज था। नवांश कुंडली के लग्नेश शुक्र अपनी स्वराशि वृष में कर्मेश चंद्रमा से युत होकर बैठे हैं जिनपर केतु और शनि की पूर्ण दृष्टि है। मंगल भी पूर्ण दृष्टि से शुक्र को देख रहे हैं। द्वितीय भाव वाणी व जिह्वा तथा खाने-पीने व भोजन आदि का भाव माना जाता है।
द्वितीय भाव पर शनि, राहु, केतु के प्रभाववश ही सिगरेट व शराब की लत से उन्हें दो चार होना पड़ा। एक समय ऐसा भी आया जब इन बुरी आदतों के कारण उन्हें कोई भी कमरा किराए पर नहीं देता था। उनके जन्म के समय दशा थी व्ययेश चंद्रमा की जो कि लगभग 7 वर्ष शेष थी। फिर मंगल की दशा 7 वर्ष चली। 1965 में प्रारंभ हुई राहु की महादशा। राहु अष्टम भावस्थ है। राहु बृहस्पति की राशि, बृहस्पति के ही नक्षत्र और योगकारक मंगल के उपनक्षत्र में हैं। लग्न पर अष्टमेश बृहस्पति व योगकारक मंगल का पूर्ण प्रभाव है। मंगल सुखेश व भाग्येश होकर अपनी उच्च राशि मकर में विराजमान है।
बृहस्पति पंचमेश व अष्टमेश होकर सप्तम भावस्थ हैं तथा सप्तम भाव से लग्न को पूर्ण दृष्टि प्रदान कर रहे हैं। राहु की महादशा में रजनीकांत ने प्रारंभिक वर्षों में काफी संघर्ष किया और फिर उन्हें अपने परिश्रम का शुभफल भी प्राप्त हुआ। चूंकि लग्नेश सूर्य धनेश व लाभेश बुध के नक्षत्र में हैं और कर्मेश शुक्र पर भी बुध का पूर्ण प्रभाव है इस कारण उन्हें अपने कर्मों का पूर्ण शुभ फल प्राप्त हुआ। दशमेश शुक्र चलचित्र के कारक ग्रह हैं साथ ही नवांश कुंडली के दशमेश चंद्रमा पर शुक्र का पूर्ण प्रभाव है इसी कारण उन्हें बचपन से ही अभिनय से लगाव था और इसे ही उन्होंने अपना कार्य क्षेत्र बनाया।
आइये अब बात करते हैं उनके पारिवारिक जीवन की सप्तम भाव जीवनसाथी का भाव है। पंचमेश बृहस्पति सप्तम में बैठकर लग्न पर पूर्ण दृष्टि डाल रहे हैं। सप्तम के कारक शुक्र पंचम में बैठे हैं। सप्तमेश शनि की पूर्ण दृष्टि लग्नेश सूर्य पर है। नवमेश मंगल की पूर्ण दृष्टि लग्न पर है। लग्न, पंचम, सप्तम, नवम का संबंध प्रेम विवाह का द्योतक है। रजनीकांत का कहना है कि ‘‘वे एक्टर बनना चाहते थे स्टार नहीं। उन्हें तीन चीजों की उम्मीद थी- कंडक्टर की नौकरी से थोड़ा ज्यादा पैसा, पसंद की लड़की से शादी और भरपूर नींद।’’ ऐसा हुआ भी, उन्होंने प्रेम विवाह किया। तमिलनाडु में रजनीकांत से जुड़े कई संयोजन है।
परिवार के साथ ही इस काम में उनकी पत्नी लता उनका पूरा सहयोग करती है। पंचम भाव के स्वामी बृहस्पति संतान के कारक स्वयं हैं। सप्तम में बैठकर बृहस्पति लग्न को देख रहे हैं। पूर्णतः शुभ बृहस्पति ने उन्हें संतान सुख भी प्रदान किया। रजनीकांत की कुंडली में कर्मेश व पराक्रमेश शुक्र तथा धनेश व लाभेश बुध दोनों ही पंचम भाव में बैठकर एकादश लाभ भाव को पूर्ण दृष्टि प्रदान कर रहे हैं। उन्होंने अथक परिश्रम करके खुद को सुपर स्टार की श्रेणी में पहुंचाया। 1999 में उन्हें भारत सरकार ने उनकी उपलब्धियों को देखते हुए पद्मभूषण से नवाजा। यह पुरस्कार उन्हें शनि की महादशा में मिला। वर्तमान समय में भी उनकी शनि की महादशा चल रही है।
शनि षष्ठेश व सप्तमेश हैं। शनि लग्नेश सूर्य के नक्षत्र और कर्मेश व पराक्रमेश शुक्र के उपनक्षत्र में द्वितीय भाव में मित्र बुध की कन्या राशि में उच्चाभिलाषी होकर विद्यमान हैं। शनि की पूर्ण दृष्टि लग्नेश सूर्य, अष्टम भाव व लाभ भाव पर है। षष्ठ भाव कर्म का भाग्य स्थान है। यही कारण है कि इसकी दशा में रजनीकांत को पर्याप्त धन व यश प्राप्त हुआ। वर्तमान में शनि/गुरु की दशा चल रही है। बृहस्पति राहु के नक्षत्र में है और अष्टमस्थ है तथा बृहस्पति सप्तमस्थ है। राहु पर शनि का पूर्ण प्रभाव है। स्वास्थ्य संबंधी कुछ समस्या हो सकती है परंतु उनका एक सफल अभिनेता के रूप में जादू लोगों पर आगे भी बरकरार रहेगा।