जन्मकुंडली का पंचम भाव बुद्धि, ज्ञान, कल्पना, अतीन्द्रिय ज्ञान, रचनात्मक कार्य, याददाश्त एवं पूर्वजन्म के संचित कर्मों को दर्शाता है। यह शिक्षा के संकाय का स्तर तय करता है। जन्मकुंडली का चतुर्थ भाव मन का होता है। यह इस बात का निर्धारण करता है कि आपकी मानसिक योग्यता किस प्रकार की शिक्षा में होगी। जब भी चतुर्थ भाव का स्वामी छठे, आठवें या बारहवें भाव में हो अथवा नीच राशि में बैठा हो और कारक ग्रह (चंद्रमा) पीड़ित हो तो शिक्षा में मन नहीं लगता है।
कार्य क्षेत्र और शिक्षा का चयन शिक्षा उपयोगी रहेगी अथवा नहीं जन्मकंुडली का द्वितीय भाव वाणी, धन संचय और व्यक्ति की मानसिक स्थिति को व्यक्त करता है कि जो शिक्षा आपने ग्रहण की है, वह आपके लिए उपयोगी है अथवा नहीं। यदि इस भाव पर पाप ग्रहों का प्रभाव हो, तो व्यक्ति शिक्षा का उपयोग नहीं कर पाता है। जातक को 20 से 40 वर्ष की अवस्था के मध्य की ग्रह दशा के सूक्ष्म अध्ययन द्वारा यह समझना चाहिए कि दशा और दिशा किस प्रकार के कार्यक्षेत्र का संकेत दे रही है।
मुख्य रूप से अधिकतर विद्यार्थी गणित, विज्ञान, कला अथवा वाणिज्य विषय से ही शिक्षा ग्रहण करते हैं। यदि जन्मपत्रिका में पहले इनसे संबंधित योगों को देख लिया जाए तो इनमें से किसी एक विषय के चयन में आसानी रहती है। इन विषयों के चयन से संबंधित प्रमुख स्थितियां निम्नलिखित हैं:
1. गणित: गणित के कारक ग्रह बुध का संबंध यदि जातक के लग्न, लग्नेश अथवा लग्न नक्षत्र से होता है तो वह गणित विषय में सफल होता है। यदि लग्न, लग्नेश अथवा बुध बली और शुभ दृष्ट हों तो उसके गणित विषय में पारंगत होने की संभावना बढ़ जाती है। शनि तथा मंगल किसी भी प्रकार से संबंध बनाए तो जातक मशीनरी कार्य में दक्ष होता है। इसके अतिरिक्त मंगल और राहु की युति, दशमस्थ बुध और सूर्य पर बली मंगल की दृष्टि, बली शनि राहु का संबंध, चंद्रमा तथा बुध का संबंध, दशमस्थ राहु और षष्ठस्थ यूरेनस आदि योग तकनीकी शिक्षा के कारक होते हैं।
2. जीव विज्ञान: सूर्य का जल तत्व की राशि में स्थित होना, षष्ठ और दशम भाव भावेश के बीच संबंध, सूर्य और मंगल का संबंध आदि जीव विज्ञान या चिकित्सा क्षेत्र में पढ़ाई के कारक होते हैं। लग्न-लग्नेश और दशम-दशमेश का संबंध अश्विनी, मघा अथवा मूल नक्षत्र से हो तो चिकित्सा क्षेत्र में सफलता मिलती है।
3. कला: पंचम-पंचमेश और इस भाव के कारक गुरु का पीड़ित होना कला के क्षेत्र में पढ़ाई में बाधक होता है। इन पर शुभ ग्रहों की दृष्टि पढ़ाई पूरी करवाने में सक्षम होती है। पापी ग्रहों की दृष्टि-युति संबंध कला के क्षेत्र में पढ़ाई में अवरोध उत्पन्न करती है। लग्न और दशम का शनि और राहु से संबंध राजनीतिक क्षेत्र में सफलता प्रदान करता है। दशम भाव का संबंध राजनीतिक क्षेत्र में सफलता प्रदान करता है। दशम भाव का संबंध सूर्य, मंगल, गुरु अथवा शुक्र से हो, तो जातक न्यायाधीश बनता है।
4. वाणिज्य: लग्न-लग्नेश का संबंध बुध के साथ-साथ गुरु से भी हो तो जातक वाणिज्य विषय की पढ़ाई सफलतापूर्वक करता है। वैज्ञानिक और औद्योगिक प्रगति के कारण व्यवसायों तथा शैक्षणिक विषयों की संख्या में उत्तरोत्तर वृद्धि होती जा रही है। अतः ज्योतिषीय सिद्धांतों के आधार पर ग्रहों के पारस्परिक संबंधों को ध्यान में रखते हुए विचार किया जा सकता है।
5. इंजीनियरिंग के योग
1. जन्म नवांश अथवा चंद्र लग्न से मंगल चतुर्थ स्थान में हो अथवा चतुर्थेश मंगल की राशि में स्थित हो।
2. मंगल की चतुर्थ भाव अथवा चतुर्थेश पर दृष्टि हो अथवा चतुर्थेश के साथ युति हो।
3. मंगल और बुध का पारस्परिक परिवर्तन योग हो अर्थात मंगल बुध की राशि में हो और बुध मंगल की राशि में स्थित हो।
6. न्यायाधीश बनने के योग:
1. यदि जन्मकुंडली के किसी भाव में बुध, गुरु अथवा राहु बुध की युति हो।
2. यदि गुरु, शुक्र तथा धनेश तीनों अपने मूलत्रिकोण अथवा उच्च राशि में केंद्रस्थ अथवा त्रिकोणस्थ हो तथा सूर्य, मंगल द्वारा दृष्ट हो तो जातक न्याय शास्त्र का ज्ञाता होता है।
3. यदि गुरु और पंचमेश उच्च अथवा स्वराशि के हों और शनि तथा बुध से दृष्ट हों।
4. यदि लग्न, द्वितीय, तृतीय, नवम, एकादश अथवा केंद्र में वृश्चिक अथवा मकर राशि का शनि हो अथवा नवम भाव में गुरु चंद्रमा की परस्पर दृष्टि हो।
5. यदि शनि से सप्तम भाव में गुरु हो।
6. यदि सूर्य आत्मकारक ग्रह के साथ या उसकी राशि अथवा नवमांश में स्थित हो।
7. यदि सप्तमेश नवम भाव में हो तथा नवमेश सप्तम भाव में स्थित हो।
8. यदि तृतीयेश, षष्ठेश, गुरु तथा दशम भाव बलवान हो।
9. चिकित्सा के योग जैमिनी सूत्र के अनुसार चिकित्सा से संबंधित ग्रहों में चंद्र और शुक्र का विशेष महत्व है। यदि कारकांश में चंद्रमा हो और उस पर शुक्र की दृष्टि हो तो जातक रसायन शास्त्र को जानने और समझने वाला होता है। यदि कारकांश में चंद्रमा हो और उस पर बुध की दृष्टि हो तो वह वैद्य होता है।
1. जातक परिजात के अनुसार यदि लग्न अथवा चंद्रमा से दशम स्थान का स्वामी सूर्य के नवांश में स्थित हो तो जातक औषधि अथवा दवा से धन कमाता है। यदि चंद्रमा से दशम भाव में शुक्र, शनि हो तो जातक वैद्य होता है।
बृहद्जातक के अनुसार लग्न, चंद्रमा और सूर्य से दशम स्थान का स्वामी जिस नवांश में हो, उसका स्वामी सूर्य हो, तो जातक को औषधि के व्यवसाय में धन की प्राप्ति होती है।
2. फलदीपिका के अनुसार सूर्य औषधि अथवा औषधि संबंधी कार्यों से आजीविका का सूचक है। यदि दशम भाव में सूर्य हो तो जातक लक्ष्मीवान, बुद्धिमान और यशस्वी होता है। ज्योतिष के आधुनिक ग्रंथों में अधिकांश ने चिकित्सा को सूर्य के अधिकार क्षेत्र में माना है और अन्य ग्रहों के योग से चिकित्सा, शिक्षा अथवा व्यवसाय के ग्रह योग इस प्रकार बताए गए है:
सूर्य$गुरु = फिजिशियन सूर्य $ बुध = परामर्श देने वाला फिजिशियन सूर्य $ मंगल = फिजिशियन सूर्य $ शुक्र $ गुरु = मैटरनिटी सूर्य $ शुक्र $ मंगल $ शनि = वेनेरल सूर्य $ शनि = हड्डी तथा दांत संबंधी सूर्य $ शुक्र $ बुध = कान, नाक तथा गला सूर्य $ शुक्र $ राहु $ यूरेनस = एक्स-रे सूर्य $ यूरेनस = शोध चिकित्सक सूर्य $ चंद्रमा $ बुध = उदर चिकित्सा पाचन तंत्र सूर्य $ चंद्रमा $ गुरु = हर्निया अपेन्डिसाइट, गैस्ट्रोएन्ट्रोलाॅजी सूर्य $ शनि (चतुर्थ कारक) फेफड़े, टी. बीअस्थमा ः सूर्य $शनि (पंचम कारक) = फिजिशियन शिक्षक बनने के कुछ योग
1. यदि चंद्र लग्न और जन्म लग्न से पंचमेश बुध, गुरु या शुक्र के साथ लग्न, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम अथवा दशम भाव में स्थित हो।
2. यदि चतुर्थेश चतुर्थ भाव में हो अथवा चतुर्थ भाव पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो अथवा चतुर्थ भाव में शुभ ग्रह स्थित हो।
3. यदि पंचमेश स्वगृही, मित्रगृही, उच्च राशिस्थ अथवा बली होकर चतुर्थ, पंचम, सप्तम/ नवम अथवा दशम भाव में स्थित हो और दशमेश का एकादशेश से संबंध हो।
4. यदि पंचमेश बुध-शुक्र से युत अथवा दृष्ट हो अथवा पंचमेश जिस भाव में हो- उस भाव के स्वामी पर शुभ ग्रह की दृष्टि हो अथवा उसके दोनों ओर शुभ ग्रह बैठे हों।
5. यदि पंचम भाव में सूर्य-मंगल की युति हो अथवा राहु, शुक्र तथा शनि में से कोई एक ग्रह पंचम भाव में बैठा हो और उस पर पाप ग्रह की दृष्टि भी हो, तो जातक अंग्रेजी भाषा का विद्वान अथवा अध्यापक होता है।
6. यदि बुध पंचम भाव में अपनी स्वराशि अथवा उच्च राशि में स्थित हो।
7. यदि द्वितीय भाव में गुरु अथवा उच्चस्थ सूर्य, बुध अथवा शनि हो तो जातक विद्वान और सुवक्ता होता है।
8. यदि गुरु चंद्रमा, बुध अथवा शुक्र के साथ शुभ स्थान में स्थित होकर पंचम तथा दशम भाव से संबंध बनाता है।
9. सूर्य, चंद्रमा और लग्न मिथुन, कन्या अथवा धनु राशि में हो और पंचम एवं नवम भाव शुभ तथा बली ग्रहों से युक्त हो।
9. उत्तम शैक्षणिक योग्यता के योग
1. गुरु केंद्र या त्रिकोण भाव में स्थित हो।
2. पंचम भाव में बुध की स्थिति अथवा दृष्टि हो या गुरु और शुक्र की युति हो।
3. पंचमेश की पंचम भाव में गुरु अथवा शुक्र के साथ युति हो।
4. गुरु शुक्र और बुध में से कोई एक केंद्र अथवा त्रिकोण भाव में हो।
10. शिक्षा के अभाव या न्यून शैक्षणिक योग्यता के योग
1. पंचम भाव में शनि की स्थिति और उसकी लग्नेश पर दृष्टि हो।
2. पंचम भाव पर अशुभ ग्रहांे की दृष्टि अथवा अशुभ ग्रहों की युति हो।
3. पंचमेश नीच राशि में स्थित हो और अशुभ ग्रहों से दृष्ट हो। ज्योतिष ग्रंथों में सरस्वती योग, शारदा योग, कलानिधि योग, चामर योग, भास्कर योग, मत्स्य योग आदि विशिष्ट योगों का उल्लेख है।
अगर जातक की कुंडली में इनमें से कोई भी योग होता है तो वह व्यक्ति विद्वान, अनेक शास्त्रों का ज्ञाता, यशस्वी और धनी होता है।