मंत्र एवं तंत्र का तात्विक रूप अभिन्न है !
मंत्र एवं तंत्र का तात्विक रूप अभिन्न है !

मंत्र एवं तंत्र का तात्विक रूप अभिन्न है !  

आर. के. शर्मा
व्यूस : 4521 | अकतूबर 2017

मंत्र शब्द मंत्रि गुप्त भीषणे धातु से धम् प्रत्यय द्वारा निष्पन्न होता है। मंत्र शब्द अच् प्रत्यय से भी सिद्ध होता है पर उसका अर्थ होता है सलाह (यथा मंत्री-मंत्रणा-सलाह)। पर इस मंत्र का अर्थ है रहस्य। मंत्र सदा से गोप्य रहा है।

तांत्रिक परिभाषा: तंत्र शास्त्रानुसार मंत्र वह शब्दावलि है जो किसी देवता को प्रसन्न करने के लिये जप का विषय बनती है। मुख्यतः मंत्र व्यक्ति की शक्ति का उद्दीपन करते हैं अथवा किसी गुरुतर शक्ति से याचना करते हैं। मनु महाराज कहते हैं कि जिसका गर्भाधान से लेकर श्मशान तक का संस्कार मंत्रों से होता है वही मंत्र का अधिकारी है। यह बात उस जमाने की है जब वर्ण व्यवस्था बड़ी कड़ाई के साथ लागू थी। फिर भी शास्त्रीय मर्यादा के रूप में यह पालनीय अवश्य है। इस मर्यादा के कारण द्विज से इतर जातियों के लिये मंत्र उपयोगी नहीं है- यह बात नहीं है।

सिद्ध संप्रदाय ने, शक्ति की उपासना करने वाले ‘वाम-मार्गियों’ ने तथा मंत्र-शास्त्रज्ञों ने, ऐसे सरल-सुगम रूप में मंत्र-शास्त्र को वर्ण-मर्यादा से ऊपर उठाकर सर्वजनोपयोगी रूप दे दिया है। मंत्र, तंत्र और यंत्र तात्विक रूप से भिन्न वस्तु नहीं है बल्कि एक शक्ति के तीन रूप हंै, मंत्र का चित्रात्मक रूप यंत्र है तो मंत्र के भौतिक उपकरणों का अनुपान एवं स्थूल-पदार्थाश्रयता तंत्र है। मंत्र जो कार्य ध्वनि और भावना के माध्यम से करता है वही तंत्रों में औषधों व इतर द्रव्यों से संपन्न हो सकता है। औषधियां देह की व्याधियों में काम करती है, वे ही जब सूक्ष्म शरीर पर प्रभाव डालने के लिये काम में लाई जाती हैं तो वशीकरण अथवा उच्चाटन जैसा काम करती हैं। यह उन पदार्थों के उपयोग और विधि का परिणाम है।

मंत्र और देवता: मीमांसा दर्शन के अनुसार मंत्र देवता का ही स्वरूप है। जिस देवता का जो मंत्र है वही उसका स्वरूप है। मंत्र से पृथक देवता का अस्तित्व नहीं है। मंत्र स्वतंत्र और पूर्ण वस्तु है, उनसे भिन्न स्वरूप का देवता अस्तित्व में नहीं है। इसी दृष्टिकोण से आह्विक तत्व कहता है- मनन से त्राण करता है इसलिए मंत्र कहा जाता है, आराध्य देवता की पूजा मंत्र के पाठ से ही संभव है, स्तुति गीत से नहीं। स्तुति तो देवता के प्रतीक का खंड ज्ञान होगी, मंत्र संपूर्ण ज्ञान होगा। वेद इसीलिए पृथक-पृथक देवताओं के भिन्न-भिन्न मंत्र बतलाता है। मंत्रोपासना ही सगुणोपासना है - सगुणोपासना का अर्थ मूर्ति पूजन मात्र ही नहीं होता है। सगुणोपासना का वास्तविक अर्थ है - मंत्रोपासना क्योंकि मंत्र में आकाश की शुद्ध गुणकता है और वह आकाश है विराट का प्रतीक, पूर्ण पुरूष का अरूप रूप।

श्रुति, स्मृति, पुराण, तंत्र आदि सारे शास्त्रों में मंत्रों का उल्लेख है, उनके अपने मंत्र हैं। तांत्रिक मंत्र श्रेष्ठ हैं - मंत्रों का मूल उद्गम वेद है। वेद आज के युग में इतने दुरूह हो गये हैं कि उन मंत्रों का अर्थ ही समझ में नहीं आता। दूसरी बात यह है कि वेद मंत्र जितने अधिक शक्ति संपन्न और पवित्र हैं, उनकी साधना भी उतनी ही कष्टकर है। त्रिकाल द्रष्टा ऋषियों ने इस युग की कल्पना करके कलियुग के वेद मंत्रों पर कील ठोंक दी थी। आज वेदोक्त मंत्रों के स्थान पर तंत्र शास्त्र के मंत्र ही अधिक प्रचलित हैं, वे ही युगानुरूप हैं। तनु विस्तारे धातु से निष्पन्न तंत्र शब्द का अर्थ है विस्तार, तकनीक। सामान्य भाषा में तंत्र का अर्थ शरीर की रक्षा (तन $त्रै), मंत्र का अर्थ मन की रक्षा (मन $ त्रै) और यंत्र का अर्थ है- साधन, उपकरण- इस तरह तंत्र की व्यापकता में प्रत्यक्ष रूप से मंत्र, यंत्र और योग तो आते ही हैं।

जिन अर्थों में ‘‘तंत्र’’ शब्द आज प्रयुक्त होता है और जनसाधारण में बहुधा समझा भी जाता है- जैसे - यंत्र, मंत्र, तंत्र, जादू-टोना, वशीकरण, मारण, उच्चाटन, सिद्धि प्राप्ति आदि जो कि मध्ययुगीन तांत्रिक-साधना की विशेषता है, तंत्र शब्द के वेदों से लेकर शंकर तक उपयोग और व्यवहार में कहीं भी अभिव्यक्ति नहीं होती। मंत्र के संबंध में एक आम धारणा बनी हुई है कि इसका संबंध केवल शैव व शाक्त संप्रदायों से है। लेकिन यह उचित नहीं है, क्योंकि प्रत्येक धर्म और संप्रदाय की अपनी तांत्रिक दृष्टि मनोवांछित फल प्राप्ति की कामना रहती थीं। अथर्ववेद में ढेर सारे मंत्र हैं जिनसे यथेच्छित फल प्राप्त किये जा सकते हैं। बौद्धों की तांत्रिक प्रणाली जो वज्रयान में विकसित हुई है, वही हिंदू तंत्रों की आधारशिला है। तंत्रों की व्यावहारिकता इसका महत्वपूर्ण योगदान है। व्यक्तिगत या सामूहिक जीवन में मनुष्य को कई प्रकार के कष्ट आते हैं, इनको दूर करने के लिए तंत्र-मंत्र-यंत्र की सहायता ली जाती है।

ज्वर उतारने, चेचक, नजर, विष उतारने, मन्नत, विजय प्राप्ति, कार्य में सफलता, कोई रोग दूर करने, वशीकरण, उच्चाटन, मारण, स्तंभन आदि मंत्रों का प्रयोग अनेक बार किया जाता है। पुत्र प्राप्ति, व्यापार-वृद्धि, भूत-प्रेत भय, हरण, लक्ष्मीप्रद, सुख प्राप्ति, प्रसव पीड़ा को हरने आदि के लिए अलग-अलग मंत्र व यंत्र और देवियां हैं। जब जीवन में साधारण् ातया अपने रोग-शोक से मुक्ति के अवसर दिखाई नहीं देते हैं तब तंत्र-मंत्र का सहारा लिया जाता है। इसमें तांत्रिकों ($मांत्रिकों) के सिद्ध होने और मंत्र-तंत्र-यंत्र की शक्ति में विश्वास होना अनिवार्य है। जन-साधारण के अलावा राजनेता भी एक न एक तांत्रिक को अपना गुरु बनाये हुये हैं। यह वास्तव में सत्य है कि तंत्र का आधार मंत्र एवं यंत्र भी है। इनको अलग करके देखना संभव ही नहीं है।



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