दीपावली पर ‘श्री सूक्त’ का विशिष्ट अनुष्ठान
दीपावली पर ‘श्री सूक्त’ का विशिष्ट अनुष्ठान

दीपावली पर ‘श्री सूक्त’ का विशिष्ट अनुष्ठान  

सीताराम सिंह
व्यूस : 9495 | अकतूबर 2017

श्री महालक्ष्मी संसार के सभी भौतिक सुखों की स्वामिनी, धन, संपदा व सौभाग्य की प्रदायिनी देवी हैं। हर वर्ष कार्तिक मास, कृष्ण पक्ष की अमावस्या को दीपावली पर्व पर रात्रि के समय, स्थिर लग्न में, स्थायी सुख-समृद्धि पाने के लिए देवी महालक्ष्मी और श्री गणेश का षोडशोपचार द्वारा पूजन किया जाता है। व्यापारी वर्ग इस दिन से अपने नये वर्ष के बही खाते आरंभ करते हैं। वर्ष 2017 में दीपावली का शुभ पर्व 19 अक्तूबर को है। देवी महालक्ष्मी की सतत् कृपा प्राप्ति के लिए ‘श्री सूक्त’ स्तोत्र साधना अमोघ मानी गई है। इस विशेष अनुष्ठान को दीपावली से आरंभ किया जाता है। श्री गणेश लक्ष्मी पूजन के उपरांत विधिपूर्वक ‘श्री सूक्त’ का 11 बार पाठ करने के पश्चात महालक्ष्मी मंत्र: ‘‘ऊँ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद, ऊँ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्मयै नमः।’’ का (कमलगट्टे की माला पर) एक माला जाप करना चाहिए। उसके बाद प्रतिदिन सुबह निश्चित समय पर स्वच्छ होकर पूजित मूर्ति के समक्ष देशी घी का दीपक व सुगंधि जलाकर प्रसाद व जल रखकर शांति भाव से ‘श्री सूक्त’ स्तोत्र का एक पाठ तथा एक माला ‘महालक्ष्मी मंत्र’ का जाप पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ करना चाहिए। इस साधना में बहुत अधिक समय नहीं लगता परंतु आशातीत शुभ फल प्राप्त होते हैं। कुछ ही महिनों में देवी महालक्ष्मी की कृपा की अनुभूति होने लगती है। साधक की धन संबंधी कठिनाइयां कम होती हैं और वह सुख शांति का अनुभव करता है। साधना विधान: दीपावली की रात्रि को श्री लक्ष्मी गणेश का यथावत् स्थापना व पूजन करने के उपरांत दाहिने हाथ में आचमनी भर कर जल लें और निम्न मंत्र के उच्चारण द्वारा ‘श्री सूक्त’ का विनियोग करें:

1. ‘‘ ऊँ हिरण्यवर्णामिति पंचदशच्स्थि सूक्तस्य, श्री आनंद कर्दमचिक्लीत, इन्दिरासुता महाकृषयः। श्रीरग्निदेवता। आद्यस्तिस्तोऽ नुष्टभः चतुर्थी बृहती। पंचमीषष्ठ्यो। त्रिष्टुभो, ततो अष्टावनुष्टुभः अन्तयाः प्रस्तार पंक्तिः। हिरण्यवर्णामिति बीजं तामं आवह जातवेद इति शक्ति, कीर्ति कृद्धिं ददातु में इति कीलकम्। श्री महालक्ष्मी प्रसाद सिद्धयर्थे जपे विनियोगः।।’’

2. उसके बाद हाथ जोड़कर महालक्ष्मी का निम्न मंत्र के पाठ द्वारा ध्यान करें। ‘‘अरुण कमल संस्थां तडजः पुंजवर्णा कर कमल धृतेष्टाभीति युग्माम्बु च।। मणिमुकुट विचिलालंकृति पद्म माला भवतु भवुन माता श्री: श्रियै नः। कमलं कलशं धेनुं ज्ञानमंजलि मेव च पंचमुद्राः प्रदश्यार्थ श्री सूक्तं प्रजपेद् बुधः।।’’

फिर ‘श्री सूक्त’ का पाठ आरंभ करें। ‘‘श्री सूक्त’’(अर्थ सहित) ऊँ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम्। चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह।। (हे अग्नि स्वरूप हरि ! मेरे घर उन लक्ष्मी को लाओ जो स्वर्ण सी कान्तिमयी हैं, जो मन की दरिद्रता हरती हैं, जो स्वर्ण व रजत पुष्प मालाओं से सदैव सुसज्जित रहती हैं, जो आींादिनी और हिरण्यमयी हैं और सदा चंद्रमा सी दिव्य छटा बिखेरती हैं।) तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्। यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम्।। (हे सर्वयज्ञस्वरूपे हरि, आप मेरे घर में सुस्थिर लक्ष्मी को लायें जो मुझे कभी छोड़कर न जायें। उनकी कृपा से मैं वांछित स्वर्ण, रत्न, धन, गौ, अश्व व अच्छे मित्र प्राप्त कर सकूं।) अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रमोदिनीम्। श्रियं देवीमुप ह्नये श्रीर्मादेवीजुर्षताम्।। (हे अश्वों से जुड़े रथ पर विराजित देवि ! आप हाथियों के चिंघाड़ने से प्रसन्न होती हैं। हे दयामयी देवि ! मैं आपको पुकार रहा हूँ। आप अपनी स्नेह की कृपा सदैव मुझ पर बरसाती रहें।) कां सोस्मितां हिरण्यप्राकाशमाद्र्रां ज्वलन्ती तपतां तर्पयन्तीम्। पùेस्थितां पùवर्णां तामिहोप ह्नये श्रियम्।। (हे मां ! आपका मुखारविन्द सदा मंद-मंद मुस्कुराता है। आप स्वर्णमयी, दीप्ति तथा दयादि हैं, और सदा तृप्तिदायक हैं। हे कमलासन ! आपका रूप अनुरूप है। मैं आपको सादर पुकार रहा हूं। आप मेरे पास पधारें।)

चन्द्रां प्रभासां यषसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम्। तां पùिनीं शरणंमहं प्रपद्ये लक्ष्मीर्मे नष्यतां त्वां वृणे।। ( हे देवि ! आप चंद्रमा से भी सुंदर व शीतल प्रकाशवान हैं। देव और असुर नित्य आपकी सेवा में तत्पर हैं। हे पद्मा! मैं भी आपकी शरण में आया हूं। मेरी सारी दरिद्रता दूर कीजिए।) आदित्यवर्णे तपसोऽधि जातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः। तस्य फलानि तपसा नुदन्तु या अन्तरायाश्च बाह्या अलक्ष्मीः।। (हे सूर्य के समान कान्तिमयी देवि ! आपके तेज से वन-पादप का प्रादुर्भाव हुआ है। हे कमले ! आपके हाथों से प्रकट बिल्व वृक्ष बिना फूले ही फल देता है। माता लक्ष्मी ! आप मेरे यहां वास कर उस दारूण दरिद्रता का समूल नाश करें जो हमेशा खटपट मचाये रहती है।) उपैतु मां देवसरवः कीर्तिश्च मणिना सह। प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन् कीर्तिमृद्धिं ददातु मे।। (हे धन की देवि ! मेरे यहां पधारें। कंचन, रत्न, मणि, आदि भी साथ लायें तथा कीर्ति -समृद्धि प्रदान कर मुझे इस राष्ट्र में गौरवान्वित करें।) क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाषयाम्यहम्। अभूतिमसमृद्धिं च सर्वां निर्णुद मे गृहात्।। (हे पद्मनिवासिनी ! आप भूख, प्यास, उपवास, दीनता, वैभवहीनता, ऋद्धिविहीनता रूपी महादुखों को अपनी कृपा से शीघ्र दूर करें।)

गंधद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम्। ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोप ह्नये श्रियम।। (मैं गंध, पुष्प, हार, उपहार द्वारा आपका स्वागत करता हूं। आप ही श्री हैं, चराचर की स्वामिनी भी और सकल गुणाधिका भी हैं। यह सेवक आपकी सेवा के लिए उत्सुक है।) मनसः काममाकूतिं वाचःसत्यमषीमहि। पषूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यषः।। ( हे मां ! आपके दिव्य प्रभाव से मेरी मनोकामनायें पूर्ण हों। चित्त की सारी कल्पनायें भी पूर्ण हों और मैं सत्य का अनुभव करूं। मुझे दूध, दही, नवनीत आदि नाना प्रकार के खाद्यों का आनंद मिले और मैं संपदा और सुकीर्ति कमाऊँ।) कर्दमेन प्रजाभूता मयि सम्भव कर्दम। श्रियं वासय मे कुले मातरं पùमालिनीम्।। (हे कमला के सुपुत्र, कर्दम ! आप मेरे सन्निधि हो। नित्य मेरे घर में वास करो और माता लक्ष्मी को भी यहां बुलाओ। पंकज मालिका से सुसज्जित सिंधुजा का दर्शन कराओ। हे देव ! आप सदा मेरे वंश में वास करो तथा अपनी जननी को भी बसाओ।) आपः सृजंतु स्निग्धानि चिक्लीत वस मे गृहे। नि च देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले।। (हे जल के शुभ देवता। कृपया स्निग्ध पदार्थ यहां उपजाओ। हे रमा सुत चिंक्लित ! आप मेरे निकेतन में सदा के लिए वास करो। दयामयी माता लक्ष्मी को भी बुलाओ और सदा उनका मेरे वंश में शुभ वास कराओ।)

आद्र्रां पुष्करिणीं पुष्टिं पिंगलां पùमालिनीम्। चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह।। (हे जातवेद अग्निदेव ! आप तीनों काल के ज्ञाता हैं। मेरी विनय प्रार्थना सुनें। कृपा कर गज शुंड में अवस्थित कलश के द्वारा नहाती, आर्द्र अंगवाली पद्ममाला से अलंकृत और कल्याणकारी, उन देवी लक्ष्मी को मेरे यहां वास हेतु बुलाओ।) आद्र्रां यः करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेम मालिनीम्। सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह।। (हे अग्निदेव ! जो सज्जनों की रक्षा के लिए सदा दयार्द रहती हैं और दुष्टों को दंड देती हैं, जो अपने सेवकों को सदा धन समृद्धि प्रदान करती हैं, जो सदैव सुवर्ण पुष्प माला धारण किये रहती हैं, उन हिरण्मयी माता लक्ष्मी को मेरे यहां लायें।) तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्। यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान् विन्देयं पुरुषानहम्।। (हे जातवेद अग्नि ! मेरे घर स्थिर लक्ष्मी को लाओ, जिसके शुभागमन से मैं स्वर्ण, गायें, घोड़े, दास-दासी, मित्र आदि सब पा सकूं।) यः शुचिः प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम्। सूक्तं पंचदषर्चं च श्रीकामः सततं जपेत्।। (जो व्यक्ति पूर्ण आस्था, श्रद्धा और स्वच्छतापूर्वक शुद्ध घी का दीपक जलाकर (व हवन द्वारा) इस सूक्त की पंद्रह ऋचाओं का नित्यप्रति पाठ करता है, उस पर देवी महालक्ष्मी प्रसन्न होकर धन समृद्धि प्रदान करती हैं।) ।। इति ऋगवेदेरिवलसूक्तेषु श्री सूक्तम्।। ‘‘श्री सूक्त’ के पाठ के बाद एक माला श्री महालक्ष्मी मंत्र का जाप अवश्य करें। अंत में आरती करके चरणामृत व प्रसाद ग्रहण करें।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.