जीवन में स्वास्थ्य और मधुरता हेतु अंबर, किडनी स्टोन और ओपल विनय गर्ग अक्सर इस तरह के वाक्य हमें सुनने या पढ़ने को मिलते हैं- ''जान है तो जहान है'', ''पहला सुख निरोगी काया'', ''स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क रहता है।'' ''स्वास्थ्य ही धन है''। यह वास्तव में सच है। यदि किसी व्यक्ति को अच्छे स्वास्थ्य की कीमत या महत्व को जानना हो, तो किसी अस्पताल में जाकर देखे कि कोई मरीज जीवन पाने के लिए मौत से प्रत्येक क्षण किस प्रकार संघर्ष कर रहा होता है। कई बार ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है
कि डॉक्टर भी कह देते हैं कि बीमारी इलाज से आगे भाग रही है अर्थात जितना इलाज करते हैं, बीमारी उससे कहीं आगे बढ़ जाती है। ऐसी हालत में एहसास होता है कि किसी व्यक्ति का स्वास्थ्य यदि अच्छा है, तो वह दुनिया का सबसे धनी और समृद्ध व्यक्ति है। अतः इससे यह बात सिद्ध होती है कि अच्छा स्वास्थ्य ही सर्वश्रेष्ठ धन है। यदि आप निरोगी तथा स्वस्थ व्यक्ति हैं तो इस स्वास्थ्य को बनाए रखने की आवश्यकता होती है और यदि आप अस्वस्थ हैं तो इलाज की आवश्यकता होती है। अतः हमें दोनों ही स्थितियों में स्वास्थ्य के प्रति सजग रहने की आवश्यकता है। अक्सर लोग इलाज करवाने के लिए सबसे पहले अंग्रेजी दवाइयों की तरफ जाते हैं, परंतु उनसे जब सुधार नहीं होता है या उनके कुप्रभाव बढ़ जाते हैं, तो आयुर्वेदिक या होम्योपैथिक इलाज की तरफ जाते हैं। जब वहां भी कोई आराम नहीं मिलता है तो घरेलू या प्राकृतिक चिकित्सा की ओर जाते हैं।
जब यहां भी आराम नहीं मिलता है, तो हार थककर बैठ जाते हैं और मान लेते हैं कि यह बीमारी तो अब शरीर के साथ ही जाएगी या इसका इलाज संभव नहीं है तथा स्थिति से समझौता करके जीना शुरू कर देते हैं। लेकिन हमारे ऋषि मुनियों ने एक और पद्धति की खोज की है और अपने ज्ञान और अनुभव के आधार पर चिकित्सा पद्धति बनाई है और वह है 'रत्न चिकित्सा'। रत्न और उपरत्न हमारे भविष्य को सजाने-संवारने और हमें सुख, शांति तथा समृद्धि देने के साथ-साथ ग्रहों के अनिष्ट प्रभावों को तो दूर करते ही हैं, साथ ही हमारे स्वास्थ्य की रक्षा तथा बीमारी के इलाज के लिए भी उपयोग में आते हैं।
चिकित्सा हेतु आजकल सर्वाधिक प्रचलित और प्रसिद्ध उपरत्न हैं - अंबर, किडनी स्टोन (जेड) तथा ओपल। अंबर स्टोन : यह एक बहुत ही हल्का रत्न है। यह पीले, भूरे या शहद के रंग का होता है। इस रत्न में पृथ्वी के टुकड़ों, पत्तियों, कीड़े-मकोड़ों आदि के चित्र-से दिखाई देते हैं। यह रत्न शरीर तथा मन दोनों को स्वस्थ रखता है। इसे पहनने से व्यक्ति में उत्तेजना की भावना पर नियंत्रण होता है। कई बार व्यक्ति चाहे अनचाहे उत्तेजना में या जल्दबाजी में गलत कार्य कर बैठता है, जिससे बड़ी-बड़ी दुर्घटनाएं हो जाती हैं। ऐसी स्थिति में उसका रक्तचाप बढ़ जाता है या आवश्यकता से अधिक घट जाता है। अंबर स्टोन हमारे रक्तचाप को नियंत्रित करता है तथा मानिसक उद्वेग को नियंत्रित करते हुए हमारी ऊर्जा को सही मार्ग पर लगाता है, जिससे हम पूरी मानसिक तन्मयता के साथ सफलतापूर्वक कार्य कर सकते हैं।
इस रत्न को धारण करने से मन में अनिश्चितता की भावना समाप्त होती है। हमारे जीवन के उतार-चढ़ाव के कारण जो मानसिक दबाव बनता है, उसे नियंत्रित करके यह रत्न हमारे मस्तिष्क को संतुलित बनाए रखता है। यह हमारे शरीर में छिपी शक्ति को उजागर करने में सक्षम है, क्योंकि इसमें ऋणात्मक विद्युत शक्ति होती है। जिस तरह चुंबक का एक सिरा उसके दूसरे सिरे को अपनी ओर आकर्षित करता है, उसी प्रकार अंबर स्टोन व्यक्ति में धनात्मक ऊर्जा को उभारकर उसे ऊर्जावान, शक्तिशाली तथा क्रियाशील बनाता है। उपयोग विधि अंबर रत्न को अन्य रत्नों की भांति लॉकेट या अंगूठी में धारण किया जा सकता है।
इसे शास्त्रों के अनुसार गुरु ग्रह का उपरत्न माना गया है। अतः गुरुवार को, गुरु की होरा में प्रातः काल गंगाजल और कच्चे दूध से शुद्ध करके गुरु के निम्नलिखित मंत्र के उच्चारण के साथ तर्जनी में धारण करना चाहिए। गुरु का मंत्र -क्क ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरुवे नमः। यह रत्न सोने या चांदी की अंगूठी में धारण करना चाहिए। यदि अंगूठी धारण नहीं करना चाहें, तो लॉकेट के रूप में भी धारण कर सकते हैं। इसे हमेशा धारण करने से रक्तचाप हमेशा नियंत्रित रहता है तथा रक्तचाप की अनियमितता से होने वाली दिल की बीमारी जैसे गंभीर रोगों से भी बचा जा सकता है।
इस रत्न को धारण करने के अतिरिक्त इसे जल में, विशेषकर गुलाब जल में, डालकर उस जल का सेवन करने से इस रत्न का प्रभाव सौ गुना तक बढ़ जाता है। यदि संभव हो, तो आधे गिलास पानी में पांच अंबर रत्न को डालकर रात भर छोड़ दें और सुबह खाली पेट उस पानी को पीएं। संभव हो, तो दिन में भी उसी में से पानी लें, ऊपर वर्णित सभी रोगों से मुक्ति मिलेगी तथा आपका शरीर स्वस्थ, कांतिवान तथा ऊर्जावान बनेगा और आपका मानसिक संतुलन बना रहेगा। सभी कार्यों में आपका मन लगेगा तथा हर कार्य में अभूतपूर्व सफलता भी मिलेगी। यह रत्न वृष राशि वालों अर्थात 20 अप्रैल से 20 मई के बीच जन्मे लोगों के लिए जीवन रत्न के रूप में और सिंह राशि वालों अर्थात 23 जुलाई से 22 अगस्त के बीच जन्मे लोगों के लिए भाग्य रत्न के रूप में भी कार्य करता है। किडनी स्टोन (जेड) यह गहरे हरे रंग का अपारदर्शी रत्न होता है।
इसकी ऊपरी सतह पर किडनी की आकृति दिखाई देती है। यह रत्न हेपेटाइट की किस्म का रत्न है। जैसा कि नाम से ही पता चलता है, यह रत्न किडनी से संबंधित बीमारियों से मुक्ति के लिए प्रयोग में लाया जाता है। इसके अतिरिक्त यह रत्न हृदय, पेट आदि की बीमारी से बचाव के लिए भी प्रयोग में लाया जाता है। गुर्दे से संबंधित बीमारी और इसके फलस्वरूप डायलिसिस पर रखे गए रोगियों के लिए या फिर जिन्हें डॉक्टर ने गुर्दा बदलवाने की सलाह दी हो उनके यह रत्न अत्यंत लाभदायक व प्रभावी होता है। यह रत्न जितना देखने में साधारण होता है, इसके लाभ उतने ही चमत्कारी होते हैं।
जिनका स्वास्थ्य ऊपर वर्णित बीमारी के कारण ठीक नहीं रहता हो और जीवन दूभर हो गया हो, उन लोगों को यह रत्न अवश्य धारण करना चाहिए। उपयोग विधि : इस रत्न को अंबर रत्न के समान अंगूठी या लॉकेट में धारण किया जा सकता है। इसे बुध ग्रह से संबंधित रत्न माना जाता है। इसे बुधवार को बुध की होरा में बुध के निम्नलिखित मंत्र से अभिमंत्रित और गंगाजल व पंचामृत से शुद्ध करके सोने या चांदी की धातु में धारण करना चाहिए। बुध का मंत्र -क्क ब्रां ब्रीं ब्रौं सः बुधाय नमः। इस रत्न को धारण करने के साथ-साथ इसका जल ग्रहण किया जाए, तो इसका प्रभाव भी अंबर रत्न की तरह सौ गुना बढ़ जाता है। रात को कांच के एक गिलास में आधा गिलास पानी भरकर उसमें चार-पांच किडनी स्टोन डालकर छोड़ दें। सुबह खाली पेट वह पानी पी जाएं और फिर से ताजा पानी भर दें। यह क्रिया नियमित रूप से करते रहें, रत्न का प्रभाव धीरे-धीरे आपको रोगमुक्त कर देगा और आप स्वस्थ होकर आनंदमय जीवन व्यतीत कर सकेंगे। यह रत्न प्रेम आकर्षण, प्रेम वृद्धि, दुर्घटना से बचाव, धन वृद्धि और धन के सदुपयोग की शक्ति को भी बढ़ाता है।
ओपल : यह हीरे का उपरत्न है। हीरे के मूलतः दो उपरत्न हैं - जरकिन और ओपल। जरकिन का स्वभाव गर्म होता है, जबकि ओपल का स्वभाव ठंडा। जरकिन का स्वभाव गर्म होने के कारण यह कामुकता को बढ़ाता है, जबकि ओपल हमारे सुख, समृद्धि, प्रेम, माधुर्य एवं आपसी संबंधों को सुधारता है। जब व्यक्ति युवावस्था और वृद्धावस्था के बीच अर्थात 45 वर्ष के लगभग होता है, उस समय हीरे के स्थान पर जरकिन की सलाह न देकर ओपल रत्न पहनने की सलाह दी जाती है, जो हीरे के समान ही कार्य करता है। परंतु व्यक्ति की कामशक्ति सामान्य ही रहती है। जब पति-पत्नी के बीच संबंधों में कड़वाहट या दरार आने लगे, तो ओपल रत्न धारण कर संबंधों को पुनर्जीवित करके आपसी माधुर्य को बढ़ाया जा सकता है। इसके अतिरिक्त यह रत्न मानसिक स्तर की भी वृद्धि करता है।
जब व्यक्ति अपने आप को मानसिक तौर पर निराश और थका हुआ महसूस करता है, उस समय ओपल मन को पुनः ऊर्जावान करके नए जोश और उमंग के साथ जीने की ऊर्जा प्रदान करता है और मंद और बुझा हुआ मन पुनः रोमांच और उत्साह से भर उठता है। इस तरह इसे धारण करने से व्यक्ति मानसिक अवसाद की स्थिति से बच सकता है। उपयोग विधि : यह सफेद रंग का हल्का रत्न होता है। इसकी सतह से सतरंगी प्रकाश निकलते रहते हैं। देखने से ऐसा प्रतीत होता है मानो इसकी सतह पर जगह-जगह से आग की चिंगारियां निकल रही हों। इस उपरत्न को चांदी की अंगूठी और लॉकेट में धारण किया जाता है।
इसे शुक्रवार को शुक्र की होरा में शुक्र के निम्नलिखित मंत्र से अभिमंत्रित करके सीधे हाथ की अनामिका में धारण करना चाहिए। पहनने से पूर्व इसे कच्चे दूध और गंगाजल से शुद्ध अवश्य कर लेना चाहिए। शुक्र का मंत्र -क्क द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः । जन्मकुंडली में शुक्र जल तत्व राशि में स्थित हो, तो भी शुक्र के लिए ओपल पहनने की सलाह दी जाती है। जल तत्व राशियां हैं - कर्क, वृश्चिक और मीन। इस प्रकार ओपल रत्न धारण करके आप अपने जीवन को और अधिक सुखी, समृद्ध और मधुर बना सकते हैं। इसे यदि आप अपने प्रेमी या प्रेमिका को उपहार में अंगूठी या लॉकेट के रूप में भेंट स्वरूप देते हैं, तो आपके बीच परस्पर आकर्षण बढ़ेगा व प्रेम में वृद्धि होगी। ओपल को कड़े या चूड़ी में जड़वाकर या ब्रेसलेट में पहनने से भी समान लाभ की प्राप्ति होती है। ये सभी उपरत्न फ्यूचर पॉइंट के कार्यालय में उपलब्ध हैं।