जो जातक नवग्रह की पीड़ा से मुक्ति पाना चाहते हैं, उनके लिये नवग्रह शांति हेतु औषधि स्नान भी हमारे शास्त्रीय विधान में वर्णित हैं। सामग्री: 100-100 ग्राम प्रत्येक सामग्री- जैसे चावल, नागरमोथा, सूखा आंवला, सरसों तथा दूब इसके अतिरिक्त 51 तुलसी के पत्ते, 21 पत्ते बेलपत्र, 10 ग्राम पिसी हल्दी, 21 हरी इलायची, थोड़ा गोमूत्र, 10 ग्राम लाल चंदन, 10 ग्राम गोरोचन, 50 ग्राम काले तिल, 5 ग्राम लौंग, 10 ग्राम गुग्गुल और 5 ग्राम हींग। विधि: यह स्नान शुक्ल पक्ष के प्रथम सोमवार से किया जाता है, इस लिये रविवार की रात्रि में किसी मिट्टी की हांडी में सारी सामग्री को शुद्ध जल में भिगो दें।
सोमवार को प्रातः काल सारी सामग्री को हाथ से मसल कर मिला दें। एक घंटे के बाद इसमें लगभग एक सामान्य माप के गिलास जितना जल निकाल कर स्नान वाले जल में मिला दें तथा हांड़ी में पुनः एक गिलास शुद्ध जल मिला दंे। हांडी वाले जल का प्रयोग आप लगभग तीन बार कर सकते हैं। तीसरे दिन की रात को पुनः यह औषधि जल तैयार कर लें। प्रतिदिन एक गिलास औषधि युक्त जल निकाल कर पुनः एक गिलास शुद्ध जल मिला दें। अब आप इस जल से नवग्रह का स्मरण कर स्नान करें। आपको लगातार 43 दिन तक स्नान करना है। इसके बाद यदि हांडी में कोई सामग्री बचे, तो उसे किसी भी वृक्ष की जड़ में डाल दें। इस औषधि स्नान के द्वारा व्यक्ति के नवग्रह तथा नवग्रह पीड़ा शांत होती है और नवग्रहों का शुभ फल प्राप्त होता है।
ग्रह दोष निवारण तंत्र साधना ग्रह जनित पीड़ा के निवारण एवं सर्व ग्रहों की शांति के लिए हमारे शास्त्रों में सर्वग्रह निवारण तंत्र साधना का भी विधान हैं।
विधि: सबसे पहले आक, धतूरा, चिरचिरा (चिरचिरा को अपामार्ग, लटजीरा, उन्दाकाता, औंगा नामों से भी जाना जाता है), दूध, बरगद, पीपल इन छः की जड़ें; शमी (शीशम), आम, गूलर इन तीन के पत्ते, एक मिट्टी के नए पात्र (कलश) में रखकर गाय का दूध, घी, मट्ठा (छाछ) और गोमूत्र डालें।
फिर चावल, चना, मंूग, गेहूं, काले एवं सफेद तिल, सफेद सरसों, लाल एवं सफेद चंदन का टुकड़ा (पीसकर नहीं), शहद डालकर मिट्टी के पात्र (कलश) को मिट्टी के ही ढक्कन से ढक कर, शनिवार की संध्या-काल में पीपल वृक्ष की जड़ के पास लकड़ी या हाथ से गड्ढा खोदकर पृथ्वी के एक फुट नीचे गाड़ दें। फिर उसी पीपल वृक्ष के नीचे बैठकर गाय के घृत का एक दीपक एवं अगरबत्ती जलाकर नीचे लिखे मंत्र का केवल 108 बार (एक माला) जप करें। अमुक के स्थान पर ग्रह पीड़ित व्यक्ति का नाम लें या फिर अपना नाम लें (यदि आप ग्रह पीड़ित है तो)। मंत्र: ऊँ नमो भास्कराय (अमुक) सर्व ग्रहणां पीड़ा नाश कुरू-कुरू स्वाहा।
इस क्रिया को करते समय निम्नलिखित बातों का अवश्य ध्यान रखें।
- इस क्रिया को केवल शनिवार के दिन संध्या काल में ही करें।
- वृक्ष की जड़ों को इक्ट्ठा करते समय जड़ें केवल हाथ से ही तोड़ें या किसी अन्य व्यक्ति से भी तुड़वाकर मंगा सकते हैं।
- कटे-फटे पृथ्वी पर पड़े हुए पत्ते न लें।
- संपूर्ण क्रिया को गोपनीय रखें।
- इस क्रिया से समस्त ग्रहों का उपद्रव नष्ट हो जाता है, महादरिद्रता का नाश होता है, रोग, कष्ट- असफलताएं भाग जाती हैं तथा जीवन भर व्यक्ति को ग्रह पीड़ा का भय नहीं रहता।