अंकों का संसार बहुत ही विचित्र एवं रहस्यमय है। हम अपने जन्म से लेकर मृत्यु तक इन अंकों के मायाजाल में उलझे रहते हैं। जैसे-जैसे जीवन गुजरता है इन अंकों का संबंध हमसे और भी अधिक गहरा होता चला जाता है। अंकों के बिना हम जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते। काल गणना में भी हमारे ऋषियों ने अंकों का सहारा लिया। भगवत गीता में 18 अध्याय, महाभारत में 18 पर्व, पुराणों की संखया 18 ही क्यों? आइए जानें अंकशास्त्र के पीछे छिपे वैज्ञानिक आधार को इस लेख द्वारा....
अंक विद्या ज्योतिषशास्त्र का एक महत्वपूर्ण अंग है। ज्योतिष तो संपूर्ण ज्योतिष शास्त्र ही अंकों पर आधारित है तथा प्राचीन भारतीय ऋषि-मुनियों ने इसे सर्वांगपूर्ण बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है फिर भी प्रचलित अंक विद्या को आधुनिक युग के पाश्चात्य ज्योतिषियों की अद्भुत देन के रूप में स्वीकार किया जाता है। अंक विद्या मनुष्य के चरित्रगत लक्षण तथा जीवन में होने वाली शुभ अशुभ घटनाओं की जानकारी का सबसे सरलतम साधन है।
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ज्योतिषशास्त्र अगम अथाह सागर है। उसमें सामान्य ज्ञान वाले व्यक्ति की गति नहीं हो पाती। परंतु अंक विद्या इतनी सुगम है कि साधारण पढ़ा लिखा व्यक्ति भी इसके नियमों को सरलतापूर्वक समझ सकता है तथा इसके द्वारा लाभ उठा सकता है। अंकों के महत्व को अत्यंत प्राचीन काल से स्वीकार किया जाता रहा है। भारतीय ऋषि मुनियों ने अपनी आध्यात्मिक तथा यौगिक शक्तियों के बल पर इस रहस्य को भली-भांति ज्ञात कर लिया था कि जीवन के किस क्षेत्र में, किस प्राणी अथवा पदार्थ पर किस अंक का क्या-क्या प्रभाव पड़ता है।
अंकों की चमत्कारी शक्ति का गंभीर अध्ययन तथा विश्लेषण करने के उपरांत ही उन्होंने विभिन्न प्रकार के यंत्रों का निर्माण किया था, जो विभिन्न परिस्थितियों के विभिन्न कार्यों का संपादन करने के लिए उपयोगी सिद्ध होते हैं। अंकों की संख्याओं पर गहन मनन चिंतन, अनुसंधान तथा अनुभव प्राप्त करने के उपरांत भारतीय ऋषि मुनियों ने प्रत्येक विषय से संबंधित अंकों की विभिन्न संख्याओं को निश्चित करने का महत्वपूर्ण कार्य संपादित किया। जप की माला में 108 दानों का ही होना अथवा किसी अनुष्ठान अथवा कार्य को किन्हीं निश्चित तिथियों में ही करने का सिद्धांत आदि बातें उन्हीं के द्वारा मानव कल्याण के हेतु की गई खोजों का सुपरिणाम है।
संपूर्ण विश्व ब्रह्मांड की उत्पत्ति पांच तत्वों से मानी जाती है। 1. आकाश, 2. अग्नि, 3. जल, 4. वायु और 5. पृथ्वी। इनमें आकाश तत्व सबसे प्रमुख, सबका मूलाधार एवं सबका जनक है। आकाश ‘शून्य’ रूप में सर्वत्र व्याप्त है। इस प्रकार हम जो कुछ भी देखते सुनते अथवा कहते हैं। संसार में जहां, कहीं जो कुछ भी है, उस सबकी उत्पत्ति आकाश से ही हुई है। शून्य आकाश का ही प्रतिरूप तथा अन्य सभी अंकों को जन्म देने वाला है। अतः शून्य सर्वव्याप्त है। अंक ज्योतिष में शून्य का स्थान: संख्या और क्रिया का घनिष्ठ संबंध है। शून्य संख्या (0), निष्क्रिय, निराकार, निर्विकार, ‘ब्रह्म’ का द्योतक है और ‘1’ पूर्ण ब्रह्मा की उस स्थिति का द्योतक है,
जब वह अद्वैत रूप से रहता है। कहने का तात्पर्य यह कि ‘शब्द’ और ‘संख्या’ में संबंध होने के कारण समस्त पदार्थों के मूल में जैसे ‘शब्द’ हैं वैसे ही ‘अंक’ भी है। शब्द के मूल आकाश को ‘शून्य’ कहते हैं और अंक के मूल के भी ‘शून्य’। ‘शून्य’ से ही शब्द और अंक का प्रादुर्भाव होता है। यदि ‘अंक’ का किसी वस्तु या क्रिया से संबंध नहीं होता तो हमारे शास्त्र 108 मणियों की माला बनाने का विधान नहीं करते। प्रत्येक संख्या का एक महत्व है। 25 मणियों की माला पर जप करने से मोक्ष, 30 की माला से धन सिद्धि, 27 की माला से सर्वार्थ सिद्धि, 54 से सर्वकामावाप्ति और 108 से सर्व प्रकार की सिद्धियां प्राप्त हो सकती है।
किंतु अभिचार कर्म में 15 मणियों की माला प्रशस्त है। अंकों का महत्व: यह अद्भुत अंक सदैव हमारा पीछा करते रहते हैं। हम अपने पूरे जीवन में इनसे पीछा नहीं छुड़ा पाते। आपको अपने जन्मदिन की तारीख तो याद होगी। जब आप बच्चे थे तो आपके माता-पिता उस दिन खुशियां मनाते थे, दावत देते थे। आप जब सर्वप्रथम स्कूल गये तब भी आपको पूछा गया कि आपकी जन्म तारीख क्या है, आप कितने वर्ष के हैं।
जब शिक्षा पूरी कर आप जब अए तब भी आपके प्रमाण पत्र पर वह दिन अंकित किया गया। आपको नौकरी मिली तो आपकी जन्म तिथि ना जाने किन-किन कागजों पर लिखी गई, आपने कोई व्यवसाय प्रारंभ किया तो वह दिनांक भी आपने याद रखी। जब आपका विवाह हुआ तब भी पूछा गया कि आपकी जन्म तारीख क्या है। शादी के बाद आपकी पत्नी ने भी आपके जन्म की तारीख पर खुशियां मनाई। जब आपकी शादी की सालगिरह आई तब भी आपने खुशियां मनाई, उस तिथि को भी आपने और आपकी पत्नी ने याद रखा। आपके बच्चे हुए, उस दिन क्या तिथि थी, आपने उसे भी अपनी डायरी में दर्ज किया।
उन्हें पढ़ने भेजा तो भी जन्म दिनांक बतानी पड़ी। कुल मिलाकर जीवन के प्रत्येक कदम पर हम इन अंकों के प्रभाव में है। आप ही सोचिए जब आप विदेश गए, किसी से झगड़ा हुआ, नौकरी लगी, व्यवसाय प्रारंभ किया, विवाह हुआ, कोई मौत हुई, कोई मुकदमा लड़ना पड़ा, पेशी पर जाना पड़ा, कोई खुशी मिली, लाॅटरी लगी ऐसी अनेकों घटनाएं जीवन में घटती हैं जिन्हें हम केवल और केवल अंकों के आधार पर, दिनांक के आधार पर याद रख पाते हैं। तभी तो कहा गया है कि हमारा जीवन इन अंकों का कर्जदार है, हम अपने जीवन में इन अंकों को एक क्षण के लिए भी नहीं भूल पाते। इनका हमारे जीवन में अत्यधिक महत्व है। निश्चित रूप से हम इन अंकों से प्रभावित होते हैं और होते रहेंगे। अंकों से हमारा संबंध कैसे: इन अंकों का हमारे जीवन में प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है।
जिस प्रकार एक खास संख्या पर सूई स्थिर करने से रेडियो में से आवाज आने लगती है, जबकि सूई और आवाज का संबंध दिखाई नहीं देता। उदाहरण के तौर पर जुगनू को ही लीजिए। मादा जुगनू के पर (पंख) नहीं होते किंतु मादा जुगनू के शरीर से अधिक तेज रोशनी निकलती है और इस चमक से आकृष्ट होकर नर जुगनू उसके पास खींचा चला आता है। भिन्न-भिन्न व्यक्तियों में परस्पर क्यों आकर्षण या घृणा का प्रादुर्भाव होता है। यह स्थूल दृष्टि से नहीं जाना जा सकता। जंगल में दाना डाल दीजिए, चिड़िया और कबूतर आ जाएंगे। चीनी फैला दीजिए, चीटियां इकट्ठी हो जाएंगे। कहीं रात्रि में बकरा बांध दीजिए तो शेर शिकार करने के लिए आ जाएगा। किंतु देखिए चीनी के लिए शेर नहीं आता, बंधे हुए बकरे की सुगंध से चीटियां नहीं आती।
इसी प्रकार ‘1’ द्योतक संख्या या वस्तु या व्यक्ति की ओर ‘9’ के सहधर्मी आकृष्ट होंगे, अन्य वर्ग के नहीं। एक बच्चा यह नहीं समझता कि भिन्न-भिन्न ऋतुओं का भिन्न-भिन्न वस्तुओं और व्यक्तियों से क्या संबंध है, परंतु जानने वाले जानते ही हैं कि आम गर्मी में पकते है और संतरे जाड़े में। कहने का तात्पर्य यह है कि जैसे एक बच्चे की दृष्टि में डाकिये के हाथ की सभी चिट्ठियां एक सी मालूम होती है परंतु डाकिया उन्हें मकान के नंबर और नाम के क्रम से बांट देता है। उसी प्रकार हमारा जीवन, भिन्न-भिन्न ‘अंकों’ के क्रम से चलता है और जब वह संख्या यानी संख्या का द्योतक वर्ष या दिन आता है तो हमारे जीवन में महत्वपूर्ण घटना घटती है।
इस अंक विद्या का पूरी तरह वर्णन करना तो संभव नहीं। भगवत् गीता में 18 अध्याय ही क्यो? महाभारत में 18 पर्व ही क्यो ? 18 पुराणों का वैज्ञानिक आधार क्या है? इस 18 की योग संख्या 1$8=9 है। यह क्यों? सूर्य की उपासना के लिए 7 हजार जप का विधान है तो चंद्र के लिए 11 हजार, मंगल के लिए 10 हजार, बुध के लिए 9 हजार, गुरु के लिए 19 हजार, शुक्र के लिए 16 हजार व शनि के लिए 23 हजार। इसी तरह राहु व केतु के लिए क्रमशः 18 व 17 हजार जप का विधान महर्षियों ने निर्धारित किया है। ऐसा क्यों ? किस आधार पर ये संख्याएं निर्धारित की गई है, हम नहीं जानते। काल गणना में भी हमारे ऋषियों ने अंकों का सहारा लिया। सूर्य जीवन का आधार है अतः उसे प्रधान पद दिया व शासक माना। मन मस्तिष्क पर चंद्र का नियंत्रण अक्षुण्ण है।
मंगल जहां युद्ध का देवता है वहीं बुध तर्क का, गुरु शिक्षा संतान तो शुक्र भोगप्रिय व शनि को यम माना। सूर्य 1 महीने में अपना एक वृत पूरा कर लेता है। संपूर्ण खगोल वृत्त 360 डिग्री पर आधारभूत है और उसकी कलाएं 360 ग 60$21600 स्पष्ट होती है। सूर्य 6 माह तक उत्तरायन व 6 माह दक्षिणायन रहता है। इस प्रकार एक वर्ष में 2 अयन और एक अयन मान 21600/2 = 10800 ही तो सिद्ध होता है। तंत्र मंत्र यंत्र में अंकों का महत्व: भारतीय ज्योतिष तथा तंत्र मंत्र यंत्र और हस्तरेखा विज्ञान में भी अंकों का महत्व किसी से छिपा नहीं है। अंकों के योगदान के बिना इनमें से किसी का भी काम नहीं चल सकता। ज्योतिष का आधार गणित है तथा हस्तरेखाओं में भी घटनाओं का समय और तारीख निश्चित करने के लिए अंकों की ही सहायता ली जाती है।
अंक किस प्रकार हमारे जीवन पर प्रभाव डालते हैं, इस बात का विवेचन विभिन्न पाश्चात्य विद्वानों ने किया है, क्योंकि वहां विभिन्न व्यक्ति विभिन्न विषयों के विशेषज्ञ बनने का यत्न करते हैं। भारत में अभी यह परिपाटी बहुत नवीन है। यदि कोई व्यक्ति अपने जीवन की विशिष्ट घटनाओं का विवरण तैयार करे तो उसे उनमें एक तारतम्य मिलेगा। या तो वे घटनाएं किसी विशेष तारीख को हुई होगी या उन तारीखों का मूल/संयुक्त अंक मिलता होगा अथवा वे घटनाएं किसी निश्चित अंतराल अथवा समय के व्यवधान के बाद घटित हुई होंगी। घटना एक क्रिया है और संख्या का अंकों या क्रिया से घनिष्ठ संबंध है। इसी प्रकार शब्दों और अंकों का भी आपस में संबंध है। शब्दों को भी अंकों में परिवर्तित किया जा सकता है।
व्यक्ति के नाम को अंकों में परिवर्तित करके उनके योग से जो मूल अंक प्राप्त होता है, वह उसकी ज्ञात-अज्ञात शक्तियों, रहस्यों और उसके गुण-अवगुणों का भेद उजागर कर सकता है। अंकों की माया: वस्तुतः देखा जाए तो अंकों की माया बहुत ही विचित्र है। इनका आरंभ शून्य से होता है और ये शून्य में ही विलीन हो जाते हैं। उनका प्रतिनिधि अंक 10 है। यदि हम उन्हें उनके क्रम में लिखें और आदि को अंत से जोड़ें तो 10 का अंक ही प्राप्त होता है। 1 2 3 4 5 6 7 8 9 1 और 9 को जोड़ = 10 2 और 8 को जोड़ = 10 3 और 7 को जोड़ = 10 4 और 6 को जोड़ = 10 अब बाकी रह जाता है 5 का अंक। यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण अंक है।
यह पंच तत्वों का प्रतिनिधित्व करता है। प्राचीन जातियां इस अंक को बहुत ही आदर से देखती थी। भारतीय संस्कृति में भी पांच के अंक को बहुत सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है और इसे पंच परमेश्वर के रूप में माना गया है। ईश्वर ने भी पांच के अंक को बहुत महत्ता प्रदान की है तभी तो उसने हमारे हाथों में पांच अंगुलियां, हमारे पांव में पांच अंगुलियां दी है। आचरण के सिद्धांत भी पांच ही है। पांच ही प्रकार के दंड हैं। जीवन में पांच ही तत्व हैं-पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश। संसार में पांच ही मुख्य द्रव्य हैं - मिट्टी, लकड़ी, धातु, अग्नि और जल। पांच का अंक बहुत ही महत्वपूर्ण अंक है। उपरोक्त तथ्यों से यह स्पष्ट हो जाता है
कि वास्तव में इन अंकों का संसार बहुत ही विचित्र और रहस्यमय है। हम अपने जन्म से लेकर मृत्यु तक इन अंकों के माया जाल में उलझे रहते हैं, जैसे - जैसे जीवन गुजरता है इन अंकों का संबंध हमसे और भी अधिक गहरा होता चला जाता है। अंकों के बिना हम जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते। आपका अंक और पंच तत्वों का प्रभाव प्रकृति का मानव जीवन से गहरा संबंध है। मनुष्य शरीर को वस्तुतः दो भागों में विभक्त किया जा सकता है, एक वह शरीर जो हमें दिखता है यानि दृश्य ‘भौतिक शरीर’ व दूसरा अदृश्य ‘ ईथरिक तंत्र’ जो प्रकृति से ऊर्जा ग्रहण करता है व शरीर के बाहर ऊर्जा विसर्जन करता है। भौतिक शरीर व वातावरण के बीच यह ईथरिक तंत्र कार्य करता है। मानव शरीर पांच तत्वों - पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु तथा आकाश से मिलकर बना है।
जब तक मनुष्य जीवित रहता है, जब तक पंच तत्व उसमें समाहित होते हैं। लेकिन जब उसकी मृत्यु हो जाती है तो मनुष्य इनमें समा जाता है अर्थात् मृत्यु के पश्चात् भी मनुष्य का संबंध पंच तत्वों से बना रहता है। शास्त्रों के अनुसार, भगवान ने संपूर्ण सृष्टि की रचना इन पांच तत्वों से की है। तात्पर्य यह है कि सृष्टि निर्माण का आधार पंच तत्व ही है। इन पंच तत्वों का सीधा असर हमारे जीवन पर पड़ता है। यह पंच तत्व हमारी राशियों पर जहां सीधा प्रभाव डालते हैं वहीं हमारे अंक भी इनसे सीधे रूप में प्रभावित होते हैं। आइए देखते हैं पंच तत्वों का अंक ज्योतिष से क्या संबंध है। शरीर के समस्त कठोर हिस्से जैसे हड्डी ‘पृथ्वी’ का भाग है। शरीर के समस्त तरल पदार्थ जैसे रक्त व अन्य द्रव ‘जल’ का हिस्सा है।
शरीर के समस्त गर्भ भाग जैसे पेट आदि ‘अग्नि’ के हिस्से है। शरीर का फैलना, सिकुड़ना, सांस लेना ‘वायु’ का हिस्सा है। क्रोध, भावनाएं, स्पर्श आदि संवेदनाएं ‘आकाश’ के भाग है। वास्तव में आकाश तत्व स्फूर्ति है, वायु तत्व संवेग है, अग्नि तत्व पथ प्रदर्शक है, जल तत्व श्रम है व पृथ्वी तत्व प्रसन्नता ग्रहण करने वाला तत्व है। इन पंच तत्वों के अलग-अलग प्रभाव एवं गुण हैं जो इस प्रकार है- आकाश तत्व का गुण ‘शब्द’ वायु तत्व का गुण ‘स्पर्श’ अग्नि तत्व का गुण ‘ओज या तेज’ जल तत्व का गुण ‘रस’ और पृथ्वी तत्व का गुण ‘गंध’ है। आकाश तत्व की प्रधानता के अनुसार यही कहा जा सकता है कि संपूर्ण जीवों व पदार्थों की उत्पत्ति आकाश से हुई है। आकाश तत्व का गुण शब्द है अतः यह कहा जा सकता है
कि शब्द ही पदार्थों तथा जीवों के जन्म का मूल है। शब्द महत्ता के कारण उसे शब्द ब्रह्म की उपाधि दी गई है या ‘शब्द’ को परमेश्वर का प्रतीक माना गया है। नाम अंक का उच्चारण भी शब्द द्वारा ही होता है। वर्ण तथा शब्द अर्थात् परम परमात्मा परमेश्वर के स्वरूप है। यही कारण है कि प्रत्येक प्राणी के जीवन पर शब्दोत्पन्न वर्ण व अंकों का प्रधान प्रभुत्व है। अंक शास्त्र में इसी ‘शब्द’ महत्ता को अंगीकार करते हुए अंक विद्या का आविष्कार किया गया है। भिन्न-भिन्न तत्वों के अंक निर्धारित किए गए हैं। किन अंकों पर किन तत्वों का विशेष प्रभाव पड़ता है
इसे आप निम्न तालिका से समझ सकते हैं। तत्व अग्नि पृथ्वी वायु जल आकाश अंक 1, 3, 9 5, 6, 8 4, 5, 6 2, 7, 9 सभी समान यहां राशिनुसार भी प्रमुख तत्त्वों को समझा जाना अति आवश्यक है। क्र. सं. राशि तत्त्व प्रधानता 1. मेष अग्नि तत्त्व - जल तत्त्व 2. वृष पृथ्वी तत्त्व - वायु तत्त्व 3. मिथुन पृथ्वी तत्त्व - वायु तत्त्व 4. कर्क जल तत्त्व 5. सिंह अग्नि तत्त्व 6. कन्या पृथ्वी तत्त्व- वायु तत्त्व 7. तुला पृथ्वी तत्त्व - वायु तत्त्व 8. वृश्चिक अग्नि तत्त्व- जल तत्त्व 9. धनु अग्नि तत्त्व 10. मकर पृथ्वी तत्त्व 11. कुंभ वायु तत्त्व 12. मीन जल तत्त्व तत्व और उनका प्रभाव पृथ्वी तत्त्व: ऐसा प्राणी जो पृथ्वी तत्त्व के अंतर्गत है अथवा वृष, कन्या, तुला, मिथुन, मकर राशि के जीव हैं, ऐसे जातक अपने जीवन में अच्छे, व्यवहारकुशल एवं ऐश्वर्य धन, भोग सुख, नौकर-चाकर, भूमि-भवन, सुख-संपदा और स्वस्थ मनोरंजन की लालसा सदैव रखते हैं। व्यक्तिगत सुख की आकांक्षा ऐसे जातकों में प्रधानतः होती है। नौकरी की अपेक्षा यदि व्यवसाय की ओर उन्मुख हो तो सर्वाधिक उन्नतिकर यशोपार्जन कर सकते हैं। मनमाना लाभ उपार्जित कर सभी सुख प्राप्त करते हैं। जीवन में ऐश्वर्य संपन्न व समाज में धनी गिने जाते हैं। अपने जीवन में भूल कर भी स्वार्थ से परे नहीं जा सकते। किसी व्यक्ति से इसी कारण स्थायी संबंध नहीं बनते।
संबंध तभी तक है तब तक स्वार्थपूर्ति न हो जाये। जल तत्त्व: कर्क, मेष, मीन, वृश्चिक राशि के प्राणी जल प्रधान होने के कारण भावुक होते हैं। संवेदनशील होकर भी सदैव अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखने में कुशल व दक्ष होते हैं। हृदय प्रधान व्यक्ति होने के कारण मस्तिष्क तक का संचालन हृदय करता है। या कहें हृदय नियामक है आपके जीवन क्षेत्र का। त्यागी, परोपकारी, दयालु, जनहितैषी, समाज सुधारक व विनम्र, दानवीर, निःस्वार्थ व्यक्तित्व के धनी आपको कहा जा सकता है।
स्वयं हानि, कष्ट विपत्ति उठाकर शरणागत की रक्षा करते हैं या अपनों का हित चाहते हैं। प्रेम करना व प्रेम को निभाना आप भली प्रकार जानते हैं, आप पर, आपकी बात पर पूरा-पूरा विश्वास किया जा सकता है। वायु तत्त्व: मिथुन, कन्या, वृष, तुला व कुंभ राशि में उत्पन्न व्यक्तियों पर वायु तत्त्व की प्रधानता रहती है और इस तत्व से प्रभावी व्यक्ति बुद्धि सागर, ज्ञान गरिमा युक्त, विद्वान व विदुषी, परिश्रमी, अध्यवसायी, लेखन कार्य में दक्ष, संगीत पक्ष में चतुर, चित्रकार, कलाकार, गणितज्ञ, स्वकार्य दक्ष तथा अच्छे प्लानर, विचारक, सहृदयी तथा सिद्धांतों और आदर्शों पर मर मिटने वाले, निष्ठावान होते हैं। समाज देश जाति में अपना एक विशेष स्थान बनये रखते हैं। भाषण देने, उपदेश देने, जन समुदाय को अनुकूल बनाने, लिखने, विचार प्रकट करने की अद्भुत क्षमता आप में है।
बौद्धिक खेल खेलने में खूब दक्ष रहते हैं। यथा, ताश शतरंज तथा निर्णय शक्ति की प्रमुखता के कारण गंभीरतम समस्याओं का हल सहज में ढूंढ लेते हैं। अग्नि तत्व: मेष, सिंह और धनु राशि अग्नि तत्व प्रधान है। इस तत्व से प्रभावित व्यक्ति वीर, उत्साही, हिम्मत के धनी, निडर, निर्भीक, नेतृत्व दक्ष, शरीर सौष्ठव सबलता युक्त और शक्तियुक्त होते हें। शासन विभाग में सदैव प्रधान पद पाने की इच्छा रहती है और सफल भी होते हैं। उत्तरदायित्व का पालन शानदार ढंग से करते हैं। आकाश तत्व: आकाश तत्व के लिए सभी एक समान हैं। वह सभी राशियों एवं सभी अंकों को समान रूप से प्रभावित करता है। अंक ज्योतिष के अनुसार कैसा हो आपका रोमांस और जीवनसाथी ज्योतिष के क्षेत्र में जितना महत्व फलित ज्योतिष और हस्तरेखा शास्त्र का है, उतना ही महत्व अंक ज्योतिष शास्त्र का भी है।
अंकों के बिना हम अपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते, कारण कि हम पैदा होने से लेकर मृत्यु को प्राप्त करने तक लगभग अंकों पर ही निर्भर रहते हैं। हमें स्वयं को नहीं मालूम कि दिन भर में ना जाने कितनी बार हम इन अंकों का प्रयोग करते हैं। अंकों से हमारा बहुत गहरा नाता है। इन अंकों पर हमारा जीवन पूर्णतः निर्भर करता है। यहां तक कि हमारा विवाह, हमारा प्रेम और भी बहुत कुछ हमारे अंकों पर निर्भर करता है। हमें अपने मूल अंक का उपयोग करते हुए ही जीवन के सभी कार्य संपन्न करने चाहिए, इससे हमें जहां सफलता की प्राप्ति होगी वहीं हमारा जीवन सुखमय बन रहेगा। इस लेख में आपको यही बाताया जा रहा है
कि आप अपने अंकों के आधार पर अपने लिए उचित जीवन साथी की तलाश किस प्रकार कर सकते हैं। आईए डालें एक नजर हम अपने अंकों पर ........!
मूलांक 1 (जन्म की तारीख 1, 10, 19, 28) जिनका मूलांक 1, 4, 7 है वह आपके लिए अच्छे जीवन साथी या मित्र सिद्ध हो सकते हैं। इन मूलांक वालों के साथ आप सहज रूप से प्रेम, विवाह, रोमांस स्थापित कर सकते हैं।
मूलांक 2 (जन्म की तारीख 2, 11, 20, 29) जिन पुरूषों/स्त्रियों का जन्म 20 जून से 20 जुलाई के मध्य हुआ है, वे आपके रहस्य के राजदार होते हैं, प्रेम, रोमांस, विवाह, मित्रता के भागीदार हो सकते हैं। इनसे आपको जीवन में लाभ मिलता है और सदा प्रेम बना रहता है।
मूलांक 3 (जन्म की तारीख 3, 12, 21, 30) जिनका जन्म 19 फरवरी से 21 मार्च एवं 21 नवंबर से 21 दिसंबर के बीच हुआ है तथा जिनका मूलांक 3 हो, ऐसे पुरुष, स्त्रियां आपके भाग्योदय में सहायक हो सकते हैं। ऐसे लोगों के साथ आपका रोमांस भी लंबे समय तक चल सकता है। यदि विवाह करें तो भी दाम्पत्य जीवन सफल रहेगा।
मूलांक 4 (जन्म की तारीख 4, 13, 22, 31) जिनका जन्म 21 मार्च से 28 अप्रैल तथा 10 जुलाई से 20 अगस्त के बीच हुआ है तथा जिनका मूलांक 4 हैं, ऐसे स्त्री, पुरूष आपके लिए वरदान सिद्ध होंगे। विवाह, प्रेम, मित्रता, विशेष सफलता उपर्युक्त मूलांकों द्वारा मिल सकती है। अतः अपने अंक अनुरूप ही जीवन साथी का चुनाव करें।
मूलांक 5 (जन्म की तारीख 5, 14, 23) प्रेम, विवाह आदि के मामले में आप, जिनका जन्म 5, 14, 23 तारीख को हुआ हो तथा 21 मई से 20 जून तथा 21 अगस्त से 20 सितंबर के बीच हो, यदि ऐसा सहयोग आपको मिले तो आपको अपने जीवन में सर्वस्व की प्राप्ति होगी। अर्थात् यश, समृद्धि, लक्ष्मी, भूमि भवन आपको सब कुछ प्राप्त हो सकता है।
मूलांक 6 (जन्म की तारीख 6, 15, 24) वे सभी स्त्री, पुरूष आपके अच्छे मित्र साबित होंगे जिनका मूलांक 8, 17, 26 हो तथा जिनका जन्म वार बुध, शनि तथा 26 मार्च से 26 अप्रैल के मध्य हुआ हो, ऐसे शख्स रोमांस, विवाह आदि कार्यों के लिए निश्चित ही सहायक और मददगार सिद्ध होंगे।
मूलांक 7 (जन्म की तारीख 7, 16, 25) जिन स्त्रियों/पुरुषों का मूलांक 1 तथा 7 हो तथा 25 फरवरी से 25 अप्रैल के बीच जन्म हुआ हो वे आपके लिए निःसंदेह मनोकामना सिद्धि में साधक होंगे।
मूलांक 8 (जन्म की तारीख 8, 17, 26) वे सभी स्त्री, पुरुश आपके अच्छे मित्र साबित होंगे, जिनका मूलांक 8, 17, 26 हो तथा जिनका जन्म वार बुध, शनि तथा 26 मार्च से 26 अप्रैल के मध्य हुआ हो, ऐसे शख्स रोमांस और विवाह आदि कार्यों के लिए निश्चिय ही सहायक और मददगार सिद्ध होंगे। मूलांक 9 (जन्म की तारीख 9, 18, 27) आपको अपनों ने ही धोखा दिया है। समय पड़ने पर मित्र शत्रु बन जाते हैं। इसलिए सावधानी बरतें। ऐसे स्त्री-पुरूष जिनका जन्म 6, 8, 27 तारीख को हुआ हो तथा 21 मार्च से 27 अप्रैल के मध्य काल में जन्में हों, के साथ मित्रता, रोमांस तथा विवाह आदि का कार्य करें। त