अनादि काल से ही हिंदू धर्म में अनेक प्रकार की मान्यताओं का समावेश रहा है। विचारों की प्रखरता एवं विद्वानों के निरंतर चिंतन से मान्यताओं व आस्थाओं में भी परिवर्तन हुआ। क्या इन मान्यताओं व आस्थाओं का कुछ वैज्ञानिक आधार भी है? यह प्रश्न बारंबार बुद्धिजीवी पाठकों के मन को कचोटता है। धर्मग्रंथों को उद्धृत करके‘ ‘बाबावाक्य प्रमाणम्’ कहने का युग अब समाप्त हो गया है। धार्मिक मान्यताओं पर सम्यक् चिंतन करना आज के युग की अत्यंत आवश्यक पुकार हो चुकी है।
प्रश्न: ब्रह्म मुहूर्त में क्यों उठना चाहिए।
उत्तर: वर्ण कीर्तिं मतिं लक्ष्मीं, स्वास्थ्यमायुश्च विंदति। ब्राह्मे मुहूर्ते संजाग्रछियं वा पंकजं यथा।। अर्थात ब्रह्ममुहूर्त में उठने से पुरुष को सौंदर्य, लक्ष्मी, बुद्धि, स्वास्थ्य आयु आदि की प्राप्ति होती है तथा उसका शरीर कमल के सदृश सुंदर हो जाता है। प्रातः काल में बहने वाली वायु के एक-एक कण में संजीवनी शक्ति का अपूर्व सम्मिश्रण रहता है। आयुर्वेद के अनुसार रात्रि में चंद्रमा द्वारा पृथ्वी पर बरसाये हुये अमृत बिंदुओं को अपने साथ लेकर बहती है। ज्ञानतन्तु रात्रि में विश्राम के बाद नव-शक्ति युत होते हैं तथा प्रातः कालीन एकांत व सर्वथा शांत वायुमंडल में मस्तिष्क सक्रिय हो जाता है। यह स्थिति शारीरिक स्वास्थ्य, बुद्धि, आत्मा, मन, नेत्र-शक्ति एवं स्मरण-शक्ति को बढ़ाने में विशेष रूप से सहायक है। वैज्ञानिक शोध के अनुसार प्रातःकाल ब्रह्ममुहूर्त मंे आॅक्सीजन (प्राणवायु) की मात्रा अधिक होती है। जैसे-जैसे सूर्य उदय होता है सड़कों पर वाहन चलते हैं, पृथ्वी का गर्म वाष्प ऊपर उठता है। कार्बन डाईआॅक्साइड की मात्रा अत्यधिक बढ़ जाती है, जो मनुष्य की आयु के लिए घातक है।
प्रश्न: प्रातःकाल कर (हाथ) दर्शन क्यों करना चाहिये?
उत्तर: प्रातः काल उठते ही भगवतस्मरण करते हुए कर (हाथ) दर्शन का शास्त्रीय विधान है। कराग्रे वसति लक्ष्मीः, करमध्ये सरस्वती। करमूले तु गोविन्द, प्रभाते करदर्शनम्।। हाथ के अग्र भाग में लक्ष्मी का निवास है, हाथ के मध्य भाग में सरस्वती रहती हैं और हाथ के मूलभाग में गोविंद भगवान रहते हैं, इसलिये प्रातःकाल कर का दर्शन करना चाहिये। मानव-जीवन की सफलता के लिये तीन वस्तुएं आवश्यक हैं- धन, ज्ञान, और ईश्वर। ये तीनों वस्तुएं प्राप्त करना मनुष्य के हाथ में है। यही भाव कर-दर्शन में सन्निहित है।
प्रश्न: प्रातःकाल उठते ही दर्शनीय पदार्थों के ही दर्शन क्यों करने चाहिए?
उत्तर: प्रातःकाल पापी पुरूष, दुराचारिणी स्त्री, शराब, नंगा, और नकटे व्यक्ति, अमंगलकारी वस्तुओं के दर्शन नहीं करने चाहिये। प्रभातकाल में दर्शनीय और अदर्शनीय पदार्थों का वर्गीकरण सर्वथा मनोविज्ञान की भावनाओं पर अवलम्बित है। मनोविज्ञान बतलाता है कि मन की निश्चल व शांत अवस्था में जो वस्तु मन के संपर्क में आयेगी उसका मन पर स्थाई रूप से प्रभावोत्पादक संस्कार बनता है और यह संस्कार पूरे दिन भर तक चिरस्थाई रूप से काम करता है। व्यावहारिक जीवन में कई लोग कहा करते हैं कि - ‘आज तो ऐसे का मुंह देखा कि रोटी भी नसीब न हुई।’ यह धारणा भ्रांति नहीं है। सैकड़ों वर्षों के लगातार अनुसंधान एवं परीक्षण से ये बातें सत्य होती रहीं, तब ही जनश्रुतियांे व लोकोक्तियों के रूप में प्रचलित हुईं।