कैसे हो शनि की पीड़ा से बचाव?
कैसे हो शनि की पीड़ा से बचाव?

कैसे हो शनि की पीड़ा से बचाव?  

मनोहर शर्मा पुलस्त्य
व्यूस : 6120 | नवेम्बर 2006

ज्योतिष शास्त्र में शनि को शनैश्चर कहा गया है। यह सबसे धीमी गति से चलने वाला ग्रह है। यह बड़ा है इसलिए यह एक राशि का भ्रमण करने में ढाई वर्ष तथा 12 राशियों का भ्रमण करने में लगभग 30 वर्ष का समय लगाता है। यह जैसा दिखता है, वैसा नहीं है। इसे एक उदासीन, निराशावादी, ढीठ और जिद्दी ग्रह भी माना जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अष्टम स्थान में शनि अकाल मृत्यु का कारक है।

पुत्र जन्म का भारी उत्सव मनाने के बाद लंकापति रावण ने जब अपने पुत्र की जन्मकुंडली का निरीक्षण किया, तो चलित में शनि की अष्टम भाव स्थिति और चंद्र व गुरु की उच्चस्थ युति टूटने के कारण रावण को बड़ा क्रोध आया और उसने शनि को उलटा लटका दिया। कुछ विद्वानों का कथन है कि रावण ने शनि की उसी दायीं टांग को पकड़कर इतने जोर से पटकनी दी कि शनि लंगड़ा हो गया, जिससे उसकी चाल धीमी हो गई और उसी दिन से उसका नाम शनैश्चर पड़ा। किंतु यह बात उचित प्रतीत नहीं होती।

वास्तव में रावण एक अत्यंत ही उच्च कोटि का तांत्रिक, साधक, ज्योतिषी और विद्वान था। उसने अपनी उच्चतम कोटि की साधनाओं एवं क्रिया योग के बल पर शनि की गति को अत्यंत मंद कर दिया था, इसीलिए शनि की गति अत्यंत मंद है। शनि का नाम सुनते ही लोगों में भय की एक लहर सी दौड़ जाती है। किंतु शनि सदैव अशुभ फल ही देगा यह आवश्यक नहीं। वह जीवन में शुभ फल, लाभ, स्थिरता, आध्यात्मिक प्रगति भी देता है। वह मोक्षकारक भी है। 

शनि के प्रभाव से आर्थिक हानि, संतान कष्ट, दाम्पत्य जीवन में कष्ट, पारिवारिक परेशानी, भटकाव, मकान का बनते समय अधूरा रह जाना, बाल झड़ना, आग लगना, आकस्मिक विपत्तियांे आदि का सामना करना पड़ता है। शनि की साढे़साती जातक के जीवन में अधिक से अधिक चार बार ही आती है। ज्योतिष में शनि को क्रूर से क्रूरतम न कहकर क्रूरश्रेष्ठ कहा गया है, जैसे रावण को ‘‘उत्तम कुल पुलस्त्य कर नाती। शिव विरंचि पूजहि एहि भांती।’’ कहा जाता था अर्थात कुलश्रेष्ठ कहा जाता था।

जब किसी पर शनि की महादशा, अंतर्दशा, साढ़ेसाती, ढैया या गोचर दशा चलती है, तो उसे घोर कष्ट पहुंचता है। इसलिए इसे क्रूर कहा जाता है। अब प्रश्न यह उठता है कि क्या शनि वास्तव में क्रूर है? एक व्यक्ति का घाव सड़ जाता है और उसका जहर समस्त शरीर में फैलने का भय उत्पन्न हो जाता है। डाॅक्टर समस्त शरीर को बचान एवं उसकी प्राण रक्षा के लिए उस अंग को काट देता है तो क्या यह क्रूरता है? माता-पिता अपने बच्चों की शरारतों से तंग आकर उन्हें डांटते हैं और उन्हें दंड देते हैं।

क्या यह क्रूरता है? जज किसी अपराधी को अपराधों की गंभीरता को देखते हुए मृत्यु दंड देता है, क्या यह क्रूरता है? नहीं, यह क्रूरता नहीं है, इन सारी स्थितियों में कहीं न कहीं भलाई की भावना छिपी हुई है। ठीक उसी प्रकार शनि ग्रह भी एक सुधारक और कठोर शासक की भांति है। जिस प्रकार सुनार सोने को आग पर रखकर पिघलाकर उसमें से खोट निकालकर उसे कुंदन बनाता है, उसी प्रकार शनि ग्रह भी जातक को दुखों और कष्टों की आग में जलाकर उसमें से अभिमान और अहं को निकालता है।


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शनि को लेकर सर्वसाधारण में एक प्रकार का भय व्याप्त है, लेकिन यह ठीक नहीं है। शनि ही नहीं, कोई भी शुभ या अशुभ ग्रह जन्म राशि के अनुसार ही फल देता है। अधिकतर लोग जातक के प्रचलित नाम से ही शनि के प्रभावों का विचार करते हैं जबकि वास्तविकता यह है कि प्रचलित नाम से बनने वाली राशि वास्तविक राशि नहीं होती। जन्म राशि का ही विचार मुख्य होता है। यदि किसी को प्रचलित नाम से साढे़साती, ढैया व दशा-महादशा चल रही हो, तो उसे विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है।

इसका केवल शनि की ही नहीं, अन्य ग्रहों की दशा अंतर्दशाएं भी कारण हो सकती हैं। शनि और कैरियर: शनि कैरियर का कारक ग्रह है। यह कर्म से संबंधित है। यह यदि जन्मकुंडली में अनुकूल स्थिति में हो, तो व्यक्ति का कैरियर अच्छा और यदि प्रतिकूल स्थिति में हो तो खराब होता है। कर्मकारक शनि जब जन्मकुंडली में चंद्रमा के प्रभाव में होता है, तो व्यक्ति का कैरियर हमेशा एक सा नहीं होता, उसमें परिवर्तन अवश्य ही होता है। ऐसे जातकों को कैरियर में परिवर्तन करना पड़ता है। 

लिए यात्रा, कला अथवा लेखन का क्षेत्र उपयुक्त होता है। यदि कर्मकारक शनि जन्म के समय सूर्य के साथ हो, तो व्यक्ति को बहुत संघर्ष के बाद सफलता मिलती है। शनि से दूसरे या सातवें घर में स्थित सूर्य भी कर्म क्षेत्र में संघर्ष के बाद ही सफलता प्रदान करता है। ऐसे व्यक्ति को राज्य पक्ष व राजनीति से जुड़े कार्यों में लाभ प्राप्त होता है। यदि जन्मकुंडली में शनि सिंह राशि में हो तथा सूर्य से प्रभावित हो, तो ऐसा व्यक्ति गोचर में जब भी सूर्य स्थित राशि से भ्रमण करता है तो वह राज्य पक्ष से संबद्ध कार्य करता है।

उसे संघर्ष बहुत करना पड़ता है। यदि शनि मेष अर्थात मंगल की राशि (मेष एवं वृश्चिक) में गोचर करता है, तो जातक को मंगल व शनि दोना प्रभावित करते हैं ऐसा व्यक्ति मशीनरी से जुड़े कार्यों में संलग्न होता है। यह समय जातक के लिए कार्यक्षेत्र में सफलता दायक होता है। यदि शनि वृष या तुला राशि में गोचर करे अर्थात शुक्र की राशियों (वृष व तुला) में स्थित हो तथा शुक्र से उसका संबंध बन रहा हो, तो शनि के वृष या तुला राशि में गोचर के समय जातक को विलासिता की वस्तुओं एवं मनोरंजन से जुड़े कार्यों से लाभ होता है।

यदि शनि मिथुन अथवा कन्या राशि में गोचर करे तथा गोचर में उसका संबंध, युति एवं दृष्टि के द्वारा, बुध से बन जाए, तो जातक उक्त समय में कोई व्यवसाय प्रारंभ करता है। उस समय जातक व्यावसायिक संस्थानों, जनसंपर्क से जुड़ी गतिविधियों, लेखा कार्यों एवं मित्रों के सहयोग से कार्य करके लाभ प्राप्त करता है। यदि जन्मकुंडली में शनि गुरु की राशि (धनु या मीन) में हो तथा वह गुरु से परस्पर संबंधित हो तो गोचर में शनि जब भी धनु अथवा मीन राशि में आकर शनि से परस्पर संबंध करता है तो उक्त गोचर काल में जातक किसी महत्वपूर्ण एवं सम्माननीय कार्य में संलग्न होता है।

वह शिक्षक, उपदेशक, प्रबंधक या निर्देशक होता है अथवा धर्म से जुड़े कार्यों में भाग लेता है। धनु राशि में गुरु का गोचर जातक के कर्मक्षेत्र में कुछ व्यवधान भी डालता है। गोचर में शनि जब अपनी राशियों (मकर या कुंभ) में प्रवेश करता है, तो उसे नौकरी, अथवा रोजगार मिलता है। उसे यात्रा, जल, खाद्य पदार्थ, प्रबंधन, या शिक्षण से संबंधित कार्यों में लाभ मिलता है। वह मनोवैज्ञानिक सलाहकार एवं बुद्धिमत्तापूर्ण कार्यों में भी लाभ प्राप्त करता है। इस प्रकार शनि जब विभिन्न राशियों में गोचर करता है, तो जातक को विभिन्न क्षेत्रों में कार्य करने के लिए प्रेरित करता है।


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जन्मकुंडली में शनि की राशि एवं उसे प्रभावित करने वाले ग्रहों और शनि से द्वितीय भाव में स्थित ग्रहों के प्रभाव का अध्ययन करके गोचरस्थ शनि द्वारा कर्मक्षेत्र में आ रहे परिवर्तनों, उतार चढ़ावों को जाना जा सकता है। जिन व्यक्तियों को अथक प्रयास के बावजूद सफलता नहीं मिल पा रही हो, वे अपने लिए अनुकूल दिशा का अध्ययन कर अनुकूल क्षेत्र की जानकारी प्राप्त कर सकते हंै। शनि की साढे़साती: शनि बारह राशियों के भ्रमण लगभग 29 वर्ष, साढे़ दस माह अर्थात 30 वर्ष में पूर्ण कर लेता है, अर्थात शनि एक राशि में लगभग ढाई वर्ष रहता है।

ज्योतिष के अनुसार गोचर में भ्रमण करता हुआ शनि जब जातक की जन्मराशि से बारहवें भाव में आता है, तब वहां ढाई वर्ष रहता है। तब शनि की साढे़साती प्रारंभ हो जाती है। इसके बाद वह ढाई वर्ष तक जन्म राशि में रहता है तथा भ्रमण करता हुआ आगे बढ़ता है और दूसरे भाव में भी ढाई वर्ष रहता है। इस प्रकार शनि तीन राशियों (द्वादश, लग्न और द्वितीय) में साढ़े सात वर्ष तक भ्रमण करता है।

यही साढ़े सात वर्षीय दशा शनि की साढे़साती कहलाती है। साढ़ेसाती शनि के प्रभाव: ज्योतिष के अनुसार जातक के ये साढ़े सात वर्ष अत्यंत कष्ट एवं दुखदायी होते हैं तथा इन साढ़े सात वर्षों में जातक को दुर्भाग्यपूर्ण व अशांत जीवन जीना पड़ता है। सामान्यतः शनि की साढ़ेसाती अशुभ व कष्टप्रद समझी जाती है, लेकिन पूरे साढ़े सात वर्ष एक जैसे व्यतीत नहीं होते हैं। शनि के अशुभ फल का कारण यह है कि जब वह जन्मराशि से द्वादश स्थान में होता है, तो अपनी पूर्ण तृतीय दृष्टि से बुरा प्रभाव धन भाव (द्वितीय भाव) पर डालता है तथा अपनी पूर्ण दशम दृष्टि का प्रभाव जन्म राशि से भाग्य स्थान पर भी डालता है, जिससे स्पष्ट है कि धन एवं भाग्य नाश का प्रभाव मनुष्य के लिए बहुत कष्टप्रद होता है।

इसके अतिरिक्त शनि द्वादश भाव में होता है, तो द्वितीय पर दृष्टि डालता है और द्वादश व द्वितीय दोनों भावों को प्रभावित करता है। अतः साफ है कि साढ़ेसाती शनि लगने पर लग्न के दोनों ओर शनि के पाप प्रभाव पड़ते हैं। इस कारण लग्न को भी हानि पहुंचती है और लग्न की हानि का अर्थ है धन, मान और स्वास्थ्य की हानि। द्वादश भाव, कुंडली में अंतिम भाव होने से पांव में दर्द रहता है। यह भाव पुत्र स्थान से अष्टम पर पड़ता है, अतः पुत्र की आय व स्वास्थ्य पर इसका पूरा असर पड़ता है। द्वितीय भाव तथा लग्न धन व मान का द्योतक है अतः इनकी हानि होती है।

इसी प्रकार चतुर्थ और अष्टम शनि भी चंूकि लग्न और धन पर दृष्टि डालते हैं। अतः धन का नाश, रोग की उत्पत्ति, विदेश में वास तथा कर्जदार बना देता है। शनि और नक्षत्रीय प्रभाव: शनि के द्वादश भाव जन्म राशि से द्वितीय भाव में जो फल है, उसका अच्छा बुरा होना इन तीनों भावों में पड़ने वाले नक्षत्रों पर भी निर्भर करता है। किसी व्यक्ति, जिसकी जन्म राशि मेष है, के लिए जब शनि मीन में प्रवेश करेगा, तो उसके लिए साढे़साती प्रारंभ हो जाएगी।

ऐसे में यदि मीन राशि में पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र पड़े और शनि भ्रमण करता हुआ पूर्वा-भाद्रपद से गुजरे, तो उसका स्वामी गुरु के साथ सम व्यवहार करेगा, जिससे जातक को अधिक कष्ट सहन नहीं करने पड़ेंगे। लेकिन आगे चलकर यह उत्तरा भाद्रपद व रेवती नक्षत्र से गुजरते समय अपने व मित्र के नक्षत्रों के कारण बुरा फल नहीं देगा। इस प्रकार मेष लग्न के जातक के लिए द्वादश में आया हुआ शनि नुकसानदायक सिद्ध नहीं होगा। इसी प्रकार सूर्य व मंगल दोनों शनि के शत्रु हैं, अतः जन्म काल में ये ग्रह जिस राशि में होते हैं, गोचर में उस राशि में शनि के आने पर या उस पर उसकी पूर्ण दृष्टि पड़ने पर जातक का वह समय बहुत खराब होता है।

अधिक लंबी आयु वाले जातक के जीवन में साढ़ेसाती का प्रकोप बहुत तीव्र होता है, जिससे वह विचलित हो जाता है। दूसरे साढे़साती का प्रकोप कम होता है। उस समय जातक को दुख तो होता है, लेकिन अधिक नहीं। परंतु तीसरी साढ़ेसाती प्रायः मृत्यु को ही बुलाकर लाती है और देखा गया है कि ऐसे में कम ही जातक इसकी मार से बच पाते हैं।


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प्रायः देखा गया है कि तीसरी साढ़ेसाती में अधिकतर जातकों के कूल्हों या पैर की हड्डी टूट जाती है तथा वह जीवन भर ठीक नहीं होती। यह भी देखा गया है कि जब किसी बड़े परिवार में अनेक व्यक्तियों की एक राशि हो, तो उस परिवार के मुखिया को भी साढ़ेसाती के कष्टों को झेलना पड़ता है, चाहे उसकी साढे़साती हो या न हो। शनि चरण विचार: किसी जातक की जन्मकुंडली में गोचरवश शनि एक राशि को छोड़कर अगली राशि में जाए तथा उस समय जन्म चंद्र से यदि राशि में पहले, छठे या 11 वें स्थान में हो, तो सोने का चरण दूसरे, पांचवें या 9 वें में हो, तो तांबे का चरण और चैथे, आठवें या बारहवें भाव में हो, तो लोहे का पाया माना जाता है।

उदाहरणस्वरूप अगर शनि ने मिथुन राशि से कर्क राशि में प्रवेश किया है, तो विभिन्न जन्म राशियों वाले जातकों को शनि के निम्नानुसार फल मिलेंगे। ू मेष राशि: मेष के लिए शनि चतुर्थ पड़ेगा, अतः यह लोहे का पाया अर्थात घरेलू सुख में अशांति का कारक है। जातक का संबंधियों से मतभेद रहेगा, व्यापार-व्यवसाय में हानि होगी तथा स्वास्थ्य खराब रहेगा। पुरानी बीमारी भी बढ़ सकती है। ू वृष राशि: वृष राशि के लिए शनि तीसरा पड़ेगा। अतः यह तांबे का पाया अर्थात शुभ सूचक है।

जातक की आय बढ़ेगी और राजकार्य में लाभ होगा। राजकीय सम्मान भी प्राप्त हो सकता है। ू मिथुन राशि: मिथुन के लिए शनि दूसरा पड़ेगा, अतः यह चांदी का पाया होगा। जातक को जायदाद से संबंधित कार्यों में लाभ होगा। मित्रों से संबंध मधुर होंगे। राजकोष से लाभ तथा नौकरी मिलने की अत्यधिक संभावना रहेगी। ू कर्क राशि: कर्क के लिए शनि प्रथम है। यह सोने के पाये वाली स्थिति है।

अतः जातक को संबंधियों से मतभेद, झूठे अपराध में फंसने के डर, भय व आतंक की संभावना बनी रहेगी। ू सिंह राशि: सिंह राशि के लिए शनि बारहवें भाव में होगा। यह लोह के पाये की स्थिति है। इससे शत्रुओं से डर, स्त्री को कष्ट, धन की हानि तथा फिजूल की यात्राएं होने के योग बनते हैं। ू कन्या राशि: कन्या राशि के लिए ग्यारहवें भाव में होगा। यह सोने के पाये की स्थिति है। इस स्थिति में जातक की संतान को कष्ट, कार्यों के बिगड़ने, बाधाओं, स्वास्थ्य में खराबी आदि का भय रहेगा।

 तुला राशि: तुला को यह कर्क राशि का प्रवेश दशम भाव में पड़ेगा जो कि तांबा का पाया है जिसके फलस्वरूप शत्रु का नाश, कार्यों में वृद्धि, स्त्री से सुख मिलेगा। ू वृश्चिक राशि: वृश्चिक राशि के लिए यह नवम पड़ता है। अतः इसके लिए यह चांदी का पाया होगा। फलस्वरूप जातक की धर्म-कर्म में रुचि बढ़ेगी, व्यापार में वृद्धि होगी व संतान सुख की प्राप्ति होगी। ू धनु राशि: धनु राशि के लिए यह आठवां पड़ता है। अतः यह लोहे के पाये की स्थिति है। जातक को कार्यों में बाधा तथा धन एवं मान की हानि होगी।म

राशि: मकर राशि के लिए यह सातवां भाव पड़ता है। यह तांबे के पाये की स्थिति है। अतः जातक के मांगलिक कार्यों, धन, सुख, शांति व व्यापार में वृद्धि के भरपूर अवसर आएंगे। ू कुंभ राशि: कुंभ राशि के लिए यह छठा पड़ता है। सोने के पाये की इस स्थिति में शत्रुओं के भय, झगड़े, अपव्यय, धन एवं मान हानि की संभावना रहती है। ू मीन राशि: मीन राशि के लिए यह पांचवां पड़ता है। यह चांदी के पाये की स्थिति है। इसमें धन लाभ तथा संतान को सुख मिलता है एव मान प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि व्यक्ति के जीवन में आने वाली साढे़साती उसे अपने-पराये का ज्ञान कराती है। साथ ही विपरीत परिस्थितियों में किस प्रकार जीवित रहा जा सकता है। इसका ज्ञान भी करा देती है तथा स्वाभिमानी बनाती है।

जिस जातक की 18 से 25 वर्ष के बीच की आयु में पहली साढ़ेसाती आ जाती है, उसकी आयु का पता चल जाता है। ढैया शनि: साढे़साती शनि की भांति ही ढैया शनि भी अत्यंत कष्टकारी एवं दुखदायी होता है तथा उन ढाई वर्षों में जातक को दुर्भाग्यपूर्ण व अशांत जीवन जीने के लिए विवश करता है। सामान्यतः शनि की ढैया पूरे ढाई वर्ष अशुभ व कष्टप्रद समझी जाती है। लेकिन पूरे ढाई वर्षों की पूरी अवधिक एक जैसी नहीं होती है। साढे़साती और ढैया शनि में पहला फर्क यह होता है कि साढ़ेसाती शनि साढ़े सात वर्षों तक रहता है

जबकि ढैया केवल ढाई वर्षों तक। दूसरा अंतर यह है कि जब किसी राशि के जातक को शनि की साढे़साती चल रही होती है तो उन राशियों के क्रमशः पांचवें भावों के जातकों को शनि की ढैया चल रही होती है। उदाहरणार्थ जैसे शनि का भ्रमण यदि मिथुन राशि हो होता है, तो उस समय वृषभ मिथुन और कर्क राशि वालों को शनि की साढे़साती और वृश्चिक तथा मीन राशि वालों को लघु कल्याणी ढैया शनि चलती रहती है। व्यक्तियों को जन्म के शनि के अनुसार शनि का मुख्य फल मिलता है।


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जिसकी जन्म पत्रिका में ढैया शनि का संबंध शुभ प्रभावों से हो अथवा महादशा या अंतर्दशा शुभ हो, तो शनि का प्रभाव अशुभ नहीं होगा। यदि जातक को लघु कल्याणी शनि या साढे़साती शनि अशुभ हो और जन्मकुंडली में शनि अशुभ पाप पीड़ित हो, तो साढे़साती का फल बहुत ज्यादा शुभ होगा और ढैया शनि का फल उससे कुछ कम शुभ होगा। यह चिंता वृद्धि, अशांति, धन हानि, रोग, क्लेश करेगा। यदि जन्म का शनि उच्च का, स्वगृही, शुभ व वर्गोत्तमी हो, तो शुभ फल देगा।

शनि अष्टमेश या मारकेश हो, तो उसकी साढे़साती या ढैया दशा अशुभ फलदायक होगी। जन्म का शनि कुंडली में लग्नेश, पंचमेश, नवमेश या दशमेश होकर तीसरे, छठे या ग्यारहवें स्थान में हो, तो संपत्ति, सुख, व्यापार आदि में लाभकारी होता है। शनि के दुष्प्रभावों को दूर करने के उपाय: शनि के दुष्प्रभावों को कम करने के लिए कुछ उपाय, अलग-अलग ग्रंथों में अलग-अलग तरह से बताए गए हैं जिनमें से कुछ उपायों का विवरण निम्नानुसार है। ू शनि की महादशा, अंतर्दशा, साढे़साती या ढैया के दौरान मांस एवं मंदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए।

रंग के वस्त्र में 740 ग्राम काले उड़द और तांबे का सिक्का बांधकर बहते हुए पानी में बहाने से लाभ होता है। ू शनिवार को श्रद्धा एवं विश्वास पूर्वक व्रत करें। ू शनि से संबंधित वस्तुएं घर में स्थापित करें। ू लोहे की वस्तुएं दान करें। ू कर्क राशि वाले जातक तांबे का सिक्का मुख्य द्वारा के नीचे गाड़ें। ू शनि स्तोत्र का पाठ व जप करें। ू घर में भूरे पत्थर की शिला स्थापित करना शुभ है। ू शनि से संबंधित वस्तुएं (तेल, चमड़ा, तांबा, वस्त्र, लोहा, काले तिल आदि) दान में न लें। ू बड़े बूढ़ों का आशीर्वाद लें व उनकी सेवा करें। ू लोहे का बिना जोड़ वाला छल्ला दायें हाथ की बड़ी उंगली में पहनें

 ू शुक्रवार की रात 750 ग्राम काले तिल भिगोकर सुबह शनिवार को काले घोड़े को खिलाएं। ू अपने चरित्र का विशेष ध्यान रखें। ू पैतृक संपत्तियों का विक्रय किसी भी कीमत पर न करें। ू शनिवार को न तो लोहा खरीदें और न हीं बेचें। ू शनिवार को भी सूर्य को अघ्र्य दें। ू वृष राशि आदि में यदि साढ़ेसाती या ढैया हो, तो अमावस्या को किसी नाले में नीले फूल डालें। ू अपने मकान व बिस्तर के चारों कोनों पर लोहे की चार कीलें गाड़ें। ू घर के अंधेरे कमरों में लोहे के पात्रों में सरसों का तेल भरकर रखें। ू यदि संभव हो तो काला कुत्ता पालें। ू धन की रक्षा के लिए एक नारियल काले कपड़े में लपेट कर तिजोरी में रखें।

ू शनिवार को गुड़ में काले तिल के लड्डू बनाकर दान करें। ू शनिदोष निवारक यंत्र: किसी योग्य तांत्रिक या गुरु द्वारा प्रदत्त शनि दोष निवारक यंत्र प्राण प्रतिष्ठित कर घर में स्थापित करें या करवाएं। इसके अतिरिक्त इस यंत्र का विधिपूर्वक पूजन-अर्चन व साधना कर गले या बाजू में बांधने से शनि की कृपा दृष्टि सदैव बनी रहती है। ू शनि पीड़ा निवारक यंत्र को किसी पत्थर के चैकोर टुकड़े पर काली स्याही से लिखकर रोगी अथवा शनि से पीड़ित व्यक्ति के ऊपर से सात बार घुमाकर ‘‘¬ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः’’ मंत्रा का उच्चारण करते हुए किसी कुएं में डालने से शनि की दशा, अंतर्दशा, ढैया या साढ़ेसाती की पीड़ा का शमन होता है।

जो व्यक्ति यह प्रयोग करेगा उसे अपनी सुरक्षा के लिए बाद में सवा पाव मदिरा बहते पानी में प्रवाहित करनी पड़ेगी, अन्यथा उसे कष्ट होगा। ू संपूर्ण बाधा मुक्ति यंत्र प्राप्त कर पूजा स्थल पर प्राणप्रतिष्ठित कर रखें एवं वहां नित्यप्रति धूप एवं दीप जलाएं। ू लाभकारी महिमा मंडित पारद माला: किसी योग्य तांत्रिक गुरु द्वारा निर्मित व प्राण प्रतिष्ठित, महिमामंडित शुद्ध पारदमाला धारण करने से भी साढ़ेसाती, ढैया या शनि की दशा-अंतर्दशा के दोष निवारण में लाभ होता है। ू शनि दोष निवारक पिरामिड: किसी योग्य गुरु द्वारा निर्मित व प्राण-प्रतिष्ठित शनि पिरामिड का प्रयोग कर आप शनि की साढ़ेसाती या ढैया के दोष का निवारण कर सकते हैं।

ू शनि दोष निवारक पारद शिवलिंग के अचूक प्रयोग: शनि की महादशा, अंतर्दशा, ढैया एवं साढेसाती तथा पंचम शनि के दोष निवारण हेतु पारद शिवलिंग की पूजा-अर्चना करनी चाहिए। पारद शिवलिंग की उपासना व्यक्ति को निरोगी बनाती है। असाद्य रोगों से छुटकारा पाने के लिए यह एक अचूक उपाय है। जिस व्यक्ति को मारकेश की दशा चल रही हो, उसके लिए यह प्रयोग अत्यंत आवश्यक है। प्रयोग विधि: रोग से मुक्ति व शनि की साढे़साती तथा अन्य सभी दशाओं की पीड़ा से रक्षा के उद्देश्य से पारद शिवलिंग की अर्चना करने वाले साधकों को रात्रि में सवा नौ बजे के उपरांत सवा पाव दूध से पारद शिवलिंग का अभिषेक करना चाहिए।


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अभिषेक के समय निम्नलिखित मंत्र का जप करें। मंत्र: ‘‘¬ हौं ¬ जूं सः भूर्भुवः स्वः पारदेशंय्यजामहे, सुगंधिं पुष्टिवर्धनम्। ¬र्वारुकमिव बंधनान्मृत्यो र्मुक्षीय मा{मृतात् भूर्भुवः स्वः ¬ जूं सः हौं ¬।।’’ ू शनिदोष निवारण हेतु हनुमान प्रयोग: दीपावली या शनिपुष्य या किसी भी शनिवार को हनुमान जी के मंदिर में तिल का सवा किलो तेल चढ़ाएं तथा निम्नलिखित मंत्र का यथासंभव जप करें। मंत्र: ‘‘¬ ऐं ओं ह्रां ह्रीं ह्रौं ह्रः ¬ नमो भगवते महाबल पराक्रमाय भूत, प्रेत पिशाच, ब्रह्म राक्षस, शाकिनी डाकिनी, यक्षिणी, पूतना, मारी, महामारी राक्षस, भैरव, बेताल, ग्रह, राक्षसादि कान्, शिक्षय, महा माहेश्वर रुद्रावतार, ¬ ह्रं पफट् स्वाहा।’’ ू रत्न धारण द्वारा: किसी योग्य तांत्रिक गुरु या रत्न विशेषज्ञ से 5 से 9 मासा तक का शुद्ध नीलम प्राप्त कर किसी भी शनिवार को या शनि पुष्य नक्षत्र या शनि जयंती को धारण करना चाहिए।

यदि जन्मकुंडली में शनि प्रधान ग्रह हो अथवा, यदि सूर्य के साथ बैठा हो, अथवा यदि मेष आदि राशि में स्थित हो अथवा यदि अपने भाव से छठे या आठवें स्थान में स्थित हो अथवा यदि जातक का जन्म मेष, वृष, तुला, अथवा वृश्चिक लग्न में हुआ हो तो उस स्थिति में भी नीलम धारण किया जा सकता है। ू जड़ी-बूटी: किसी भी शनिवार को अथवा शनि पुष्य, रवि पुष्य, गुरु पुष्य, शनि जयंती, शनि पूर्णिमा या शनि अमावस्या को अथवा दशहरे, दीपावली, होली या किसी भी ग्रहण के समय शमी वृक्ष की जड़ तांत्रिक विधि विधान द्वारा प्राप्त कर तथा तांत्रोक्त विधि से ही पूजा-अर्चना कर गले या दायीं भुजा में शनि स्तोत्र का जप करते हुए धारण करने से सभी प्रकार की शनि पीड़ा में लाभ होता है। यह प्रयोग अनुभूत है।

आम धारणा है कि प्रत्येक व्यक्ति को शनि की साढ़ेसाती ढैया, दशा, अंतर्दशा आदि में अनेक दुख भोगने पड़ते हैं, किंतु वास्तव में ऐसा नहीं है। शनि एक ओर शुभ स्वगृही व मित्र राशियों में शुभ फल प्रदान करता है, तो दूसरी ओर क्रूर होने, वक्री होने, शत्रु ग्रह में एवं शत्रु राशि में होने पर अशुभ फल प्रदान करता है। यदि किसी जातक की शनि की महादशा अथवा अंतर्दशा चल रही हो और उस अवधि में जातक की राशि में ढैया या साढ़ेसाती शनि का प्रवेश हो जाए, तो जातक के लिए वह समय बहुत ही शुभ होता है।



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