सपनों के विश्लेषण के संबंध में ‘सिगमंड फ्रायड’ का कथन है कि ‘सपने उन दमित इच्छाओं को व्यक्त करते हैं जो मस्तिष्क के अंधेरे कोने में घर किये रहते हैं’ परंतु आधुनिक विज्ञान एवं आधुनिक वैज्ञानिकों के मत फ्रायड के मत से एकदम भिन्न हैं। इससे पूर्व कि स्वप्नों के विषय में वैज्ञानिकों का मत जाना जाय, यहां यह जान लेना उचित होगा कि वैज्ञानिकों को सपनों के विषय में जानकारी जुटाने की आवश्यकता क्यों हुई? बिना इसे जाने स्वप्नों के विषय में फलित ज्योतिष का मत ही जान सकते हैं। परंतु आधुनिक वैज्ञानिकों एवं ऋषि-महर्षि रूपी वैज्ञानिकों में कितनी समानता है, इसे नहीं जान पायेंगे। फलतः स्वप्न एवं उनके फलों के विषय में स्पष्टता नहीं आ पायेगी।
ब्रितानी मनोवैज्ञानिक एवं कम्प्यूटर मनोवैज्ञानिक क्रिस्टोफर इवांस ने मानव मस्तिष्क की तुलना कम्प्यूटर से की थी। स्वप्न एवं उनके फल दोनों ही अलग-अलग प्रकार के नेटवर्क हैं जो विद्युतीय संकेतों को लाने ले जाने का कार्य करते हैं। दोनों में ही ये संकेत विभिन्न स्विचों और फाटकों से गुजरते हुए अंत में एक सार्थक रूप ले लेते हैं। स्वप्नों के विषय में विगत पांच हजार वर्षों से बराबर शोध हो रहा है और अभी तक अधिकांश गुत्थियां ज्यों की त्यों उलझी हुई हंै कि ‘क्या स्वप्नों का वास्तविक जीवन में कोई महत्व है भी या नहीं। कुछ लोगों की यह धारणा है कि स्वप्न वास्तव में भविष्य के पथ प्रदर्शक हैं और जब व्यक्ति उलझ जाता है व जहां उसे कोई रास्ता दिखाई नहीं देता, वहां स्वप्न उसकी बराबर मदद करते हैं। इस संबंध में आधुनिक वैज्ञानिकों का कथन है कि, हमारे मस्तिष्क के आसपास चैबीस करोड़ रक्त वाहनियों और शिराओं की मोटी पट्टी बनी हुई है जो मानव चेतन और अचेतन व दृष्य और अदृष्य बिंबों को लेकर उस पट्टी पर सुरक्षित जमा रखते हैं और समय आने पर वे बिंब ही स्वप्न का आकार लेकर व्यक्ति के सामने प्रकट होते हैं।
रूसी वैज्ञानिकों का भी मत है कि, ‘स्वप्न को व्यर्थ का समझ कर टाला नहीं जा सकता। वास्तव में स्वप्न पूर्ण रूप से यथार्थ और वास्तविक होते हैं। यह अलग बात है कि हम इसके समीकरण सिद्धांत व अर्थों को समझ नहीं पाते।’ दूसरी बात यह है कि ‘स्वप्न कुछ क्षणों के लिए आते हैं और अदृश्य हो जाते हैं, जिससे कि व्यक्ति प्रातःकाल तक उन स्वप्नों को भूल जाता है। परंतु यह निश्चित है कि एक स्वस्थ व्यक्ति, प्रत्येक रात्रि में तीन से सात स्वप्न अवश्य देखता है।
अमेरिका के प्रसिद्ध स्वप्न विशेषज्ञ ‘जाॅर्ज हिच’ ने पुस्तक ड्रीम में प्रमाणों सहित यह स्पष्ट किया है कि, ”व्यक्ति स्वप्नों के माध्यम से ही अपने जीवन में पूर्णता प्राप्त कर सकता है, प्रकृति ने मानव शरीर की रचना इस प्रकार से की है कि, “जहां मानव के जीवन में गुत्थियां और परेशानियां हैं, बाधायें और उलझनें हैं, वहीं उन उलझनों या समस्याओं का हल भी प्रकृति स्वप्नों के माध्यम से दे देती है। मानव शरीर के अंदर दो प्रकार की स्थितियां होती हैं चेतन व अवचेतन मन जैसा कि सर्व विदित है। चेतन मन जहां बाहरी दृश्य और परिवेश को स्वीकार कर जमा करता रहता है, वहीं आंतरिक मन हमारे पूर्व जन्मों की घटनाओं से पूर्ण रूप से संबंधित रहता है। इसमें अब तो कोई दो राय नहीं है कि व्यक्ति का बार-बार जन्म और बार-बार मृत्यु होेती है।
हमारे आर्ष ऋषि आदि जगद्गुरु शंकराचार्य ने भी ‘चर्पटपंजरिका’ में कहा है ”पुनरपि जननं, पुनरपि मरणं, पुनरपि जननी जठरे शयनं“ पिछले जीवन के कार्यों, दृष्यों और घटनाओं का प्रभाव भी वह जीवन में प्राप्त करता रहता है, उसे वहन करता रहता है। यह अचेतन मन ही स्वप्नों का वास्तविक आधार है और इस अचेतन मन के पास अपनी बात को बताने या समझाने का और कोई रास्ता नहीं है, फलस्वरूप वह निद्राकाल में मानव को चेतावनी भी देता है, उन दृष्यों को स्पष्ट भी करता है और उसका पथ प्रदर्शन भी करता है।
इस दृष्टि से अचेतन मन व्यक्ति के लिए ज्यादा सहयोगी और जीवन निर्माण में सहायक होता है। स्वप्न एक पूर्ण विज्ञान है हमारे जीवन की कोई भी घटना व्यर्थ नहीं है, सावधान और सतर्क व्यक्ति प्रत्येक घटना से लाभ उठाता है, वह उसको व्यर्थ समझकर नहीं छोड़ता। यदि जीवन में सफलता और पूर्णता प्राप्त करनी है तो जहां चेतन अवस्था में उसके जीवन के कार्य प्रयत्न तो सफल व सहायक हो हीे जाते हैं, इसके अलावा स्वप्नों के माध्यम से भी वह अपनी समस्याओं का निराकरण कर सकता है। संसार में देखा जाय तो स्वप्नों ने व्यक्ति के जीवन में बहुत बड़े-बड़े परिवर्तन किये हैं और वैज्ञानिक शोधों में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
फ्रांस के दार्शनिक डी. मार्गिस की आदत थी कि वे बराबर काम में जुटे रहते थे और काम करते ही जब गणित के किसी समीकरण या विज्ञान की किसी समस्या का समाधान नहीं मिलता था तो वे वहीं काम करते-करते सो जाते, तब ‘स्वप्न’ में उन समस्याओं का समाधान उन्हें मिल जाता था। इससे यह सिद्ध होता है कि वास्तव में ही स्वप्न अपने आपमें एक अलग विज्ञान है। उसको उसी प्रकार से ही समझना होगा। कभी-कभी स्वप्न सीधे और स्पष्ट रूप से नहीं आते अपितु वे गूढ़ रहस्य के रूप में निद्राकाल में आते हैं और वे स्वप्न उन्हें स्मरण रहते हैं।
व्यक्ति को चाहिए कि वह उस स्वप्न का अर्थ समझे व स्वप्न विशेषज्ञ से सलाह लें और उसके अनुसार अपनी समस्याओं का समाधान प्राप्त करें। स्वप्नों के स्वरूप: फलित ज्योतिष में स्वप्नों को विश्लेषणों के आधार पर सात भागों में बांटा गया है:- 1. दृष्ट स्वप्न, 2. श्रृत स्वप्न, 3. अनुभूत स्वप्न, 4. प्रार्थित स्वप्न, 5. सम्मोहन स्वप्न, 6. काल्पनिक स्वप्न एवं 7. भावित स्वप्न। इनमें से उपरोक्त छः प्रकार के स्वप्न निष्फल होते हैं क्योंकि ये सभी छः प्रकार के सवप्न असंयमित जीवन जीने वाले व्यक्तियों के स्वप्न होते हैं। विश्व में आज 99.99 प्रतिशत लोग असंयमित जीवन ही अधिक जीते हैं। यही कारण है कि ये असंयमित जीवन जीने वाले लोग स्वप्नों की भाषा न समझकर स्वप्न विज्ञान की खिल्लियां उड़ाते रहते हैं।
स्वप्नों के बारे में इनकी धारणायें नकारात्मक सोच वाली ही होती है ऐसे लोग स्वप्न ज्योतिष की खिल्ली उड़ाते हुए कहते देखे जाते हैं कि कहीं सपने भी सच होते हैं। सातवें प्रकार के भावित स्वप्न ही सच होते हैं जो संयमित जीवन जीने वालों को ही अधिक दिखाई देते हैं ये स्वप्न कुछ अजीबो गरीब भी होते हैं, जो कभी देखे न गये हों, सुने न गये हो जो भविष्य में घटित घटनाओं का पूर्वाभास कराये वे ही स्वप्न भाविक स्वप्न होते हैं और वे फलदायी स्वप्न होते हैं।
पाप रहित, मां स्वप्नेश्वरी साधना द्वारा देखे गये मंत्र घटनाओं का पूर्वाभास कराते हैं मानव का प्रयोजन इसी प्रकार के भाविक स्वप्नों से ही है। सपनों के आधार पर फलकथन का इतिहास भी अत्यंत प्राचीन है। तुलसीकृत ‘रामचरितमानस’ में त्रेतायुग की महान विदुषी ‘त्रिजटा’ नाम की राक्षसी एक राक्षसी होते हुए भी एक महान विदुषी थीं। वे स्वयं के द्वारा देखे गए स्वप्न के आधार पर रावण एवं उनकी लंकापुरी का भविष्य भगवती मां सीता को बताते हुए कहती है
- सपने बावर लंका जारी। जातुधान सेवा सब मारी।। खर आरूढ़ नगन दससीसा। मुण्डित सिर खंडित भुज बीसा।। एहि विधि सो दच्छिन दिसि जाई। लंका मनहुं विभीषण पाई।। नगर फिरी रघुबीर दुहाई। तब प्रभु सीता बोलि पठाई।। सह सपना मैं कहऊं पुकारी। होइहिं सत्य गये दिन चारी।। सुंदरकांड जैन धर्म के चैबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी के जन्म से पूर्व उनकी माताओं को सोलह स्वप्नों को माध्यम से गर्भस्थ जीव के पुण्यात्मा होने का आभास होता था।
जैन पुराणों में इसका विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। प्रायः यह माना जाता है कि प्रातःकाल देखे गये सभी स्वप्न सत्य सिद्ध होते हैं यह मिथ्या भ्रम है। इस भ्रम की पृष्ठभूमि में सूर्योदय से पूर्व ब्रह्म मुहूर्त में देखे गए स्वप्नों का अतिशीघ्र फलदायी होता है न कि सूर्योदय के बाद का। सूर्योदय के बाद आठ-दस बजे तक सोते हुए स्वप्न देखने वालों के सभी स्वप्न व्यर्थ ही होते हैं जो असंयमित जीवन जीने वालों के होते हैं। इस भ्रम की पृष्ठभूमि में ही अत्यंत ही अशुभ व बुरे-बुरे स्वप्न अत्यंत ही अनिष्टकारी व अशुभ होते हैं। रात्रि के प्रथम प्रहर में देखे गए स्वप्न एक वर्ष में द्वितीय प्रहर में देखे गए स्वप्न आठ महीनों में, तृतीय प्रहर में देखे गए स्वप्न तीन महीनों में और चतुर्थ प्रहर में देखे गए स्वप्न एक माह में फल देते हैं और वे ही स्वप्न शुभ फल देते हैं जो सातवें प्रकार के भाविक स्वप्न होते हैं।
सपने कब आते हैं ? सपने कब आते हैं ? इस विषय पर आधुनिक वैज्ञानिकों ने जो शोध एवं अध्ययन किए हैं वे ‘साइंस जर्नल एनकार्टा तथा माइक्रोसाफ्ट की वेबसाइट एम. एस. एन. पर उपलब्ध हंै। इन रिपोर्टों के आधार पर नींद को दो स्थितियों में बांटा गया है। प्रथम स्थिति रैपिड आई मूवमेंट (आर. ई. एम.) है। अधिक तर स्वप्न नींद की इसी अवस्था में ही आते हैं। इस नींद की अवधि में शरीर की मांस पेशियां बिल्कुल शिथिल रहती हैं लेकिन आंखें बंद पलकों के अंदर तेजी से हिलती-डुलती रहती हैं। मस्तिष्क तरंगों की मानीटरिंग से पता चलता है कि जाग्रत अवस्था की अपेक्षा इस स्थिति में मस्तिष्क अधिक क्रियाशील रहता है।
प्रत्येक व्यक्ति एक रात में चार से सात बार तक आर.ई.एम. प्रकार की नींद लेता है। आर.ई.एम. नींद की अवधि दस से बीस मिनट तक की होती है और आर. ई. एम. नींद की स्थिति नींद आने के लगभग 90 मिनट के पश्चात् प्रारंभ होती है। यदि कोई व्यक्ति रात्रि में लगभग दस बजे सोता है तो सामान्य रूप से यह रात्रि के द्वितीय प्रहर का आरंभ होगा। यदि आधुनिक वैज्ञानिकों द्वारा बतायी गई उक्त समयावधि से गणना करें अर्थात् 10$3=13 या रात्रि एक बजे से आर. ई. एम. निद्रा आना प्रारंभ होगा तो 1$3=4 बजे रात्रि के अंतिम प्रहर ही आर. ई. एम. निद्रा का समय होगा। इसी निद्रा अवधि में स्वप्न आते हैं यह वैज्ञानिक भी सिद्ध कर चुके हैं। स्पष्ट है कि आर्ष ऋषि महर्षियों का गहन मनन चिंतन कल्पनाओं से अधिक गहन एवं गंभीर था। इससे यह भी सिद्ध होता है
कि विभिन्न तिथियों, ग्रहों, नक्षत्रों की गतियों, महादशांतर्दशाओं में देखे गए स्वप्नों के फलों में अनादिकाल से ज्योतिषीय अध्ययनों द्वारा स्वप्न विज्ञान के गूढ़ से गूढ़तम ज्ञान हमारे महान ऋषि महर्षियों द्वारा शास्त्रों व पुराणों में वर्णित किये गए हैं। जो आधुनिक ऋषि-महर्षियों एवं भौतिक विज्ञानियों के शोधों से भी मेल खाता है। कुछ उदाहरण प्रस्तुत है।
1. जब सांप ने अपने आपको काट लिया: जर्मनी का फ्रैड्रिक कैक्मूल अणुओं की संरचना संबंधी शोध में व्यस्त था और अणुओं को एक सीधी पट्टियों में प्रवाहित करके अपनी समस्या का हल ढूंढ रहा था परंतु वह दो महीनों के अथक प्रयासों के बाद भी अपने प्रयास में सफलता प्राप्त नहीं कर पा रहा था। एक दिन वह इसी प्रकार की अणुओं की रचना प्रक्रिया को सुलझाते सुलझाते प्रयोगशाला में ही सो गया। स्वप्न में उसने देखा कि एक सांप गोल गोल घूम रहा है और वह लंबा सांप अंगूठी के आकार में होकर अपनी पूंछ को मुंह में दबाकर निगल गया और तत्क्षण वह सांप सोने की अंगूठी के रूप में बदल गया। यह देख ‘फ्रेडरिक कैक्यूल’ की आंख तुरंत खुल गई उसे अपनी समस्या का हल मिल गया, उसने समझ लिया अणुओं को सीधी पट्टी पर प्रवाहित कर मनोवांछित परिणाम नहीं प्राप्त किया जा सकता इसकी अपेक्षा उसे अंगूठी के आकार में वर्तुल देते हुए अणुओं को प्रवाहित किया जाय और उसने ऐसा ही किया और इसकी उस शोध के परिणाम स्वरूप ही उसे नोबल प्राईज मिला। उक्त वैज्ञानिक के शोध और स्वप्न को हम यदि ध्यानपूर्वक चिंतन मनन करें तब समझ में आता है कि स्वप्न के अर्थ को ज्यों का त्यों स्वीकार न करके उसे अपने तरीके से समझना होता है तभी उसमें सफलता प्राप्त होती है।
2. जब सिर में माला ठोंका: सिलाई मशीन के आविष्कारक इलिहास होव अपनी सिलाई मशीन बनाने में व्यस्त थे और दो साल के परिश्रम के बाद भी उन्हें सफलता नहीं मिल रही थी। वे साइड में धागा डाल रहे थे पर उससे सिलाई नहीं हो पा रही थी। एक दिन इलिहास होव दुखी होकर वहीं सो गये। उसी रात उन्होंने सपने देखा कि एक राक्षस आया है और उन्हें एक वृक्ष से बांध दिया है और फिर उस राक्षस ने अपने अनुचरों को आज्ञा दी कि इसके सिर के बीचोंबीच भाला घोंपा जाय। अनुचर ने ऐसा ही किया। तभी इलिहास होव की नींद खुल गई। भय के मारे उसका शरीर थर-थर कांप रहा था और सारा शरीर पसीने-पसीने हो गया था। इससे उसे अपनी समस्या का हक मिल गया था। फिर उसकी समझ में आ गया कि साइड में धागा डालने की अपेक्षा यदि कोई सुई के बीच में छेद किया जाय और धागा पिरोया जाय तो उसे सफलता मिल सकती है। उन्होंने प्रातःकाल उठकर वैसा ही किया और उनहें सफलता मिल गई। संसार को सिलाई मशीन सुलभ हो गई।
3. अमेरिका के एक परामनोवैज्ञानिक की शोध: अमेरिका के परामनोवैज्ञानिक मि. डब्ल्यू लोहवी नाड़ी संस्थान के संवेगों के अध्ययन में जुटे हुए थे और उस समस्या का समाधान उन्हें नहीं मिल रहा था। एक रात उनहोंने सपने में देखा कि कोई उनके शरीर को भालों से छेद रहा है। लोहवी की आंखें खुल गई। उन्हें अपनी समस्या का समाधान मिल गया कि संवेगों का प्रवाह बराबर वर्तुल दबाव की वजह से ही संभव है। उन्होंने इसी पद्धति को अपनाकर काम को आगे बढ़ाया और उन्हें अपने क्षेत्र में पूर्ण सफलता मिली। आगे चलकर लोहवी को भी इसी शोध से नोबल प्राईज मिला।
4. वह साधिका: अमेरिका में रहने वाली मिस ‘डोशेथी’ को एक स्वप्न बार-बार आता था कि, ”उसने भगवे कपड़े पहन लिये हैं और वह बराबर पहाड़ों पर चढ़ रही है और वह बर्फ के ऊपर आसानी से चल रही है, पहाड़ के नीचे हजारों लोग बाहें फैलाये उसकी जय-जयकार कर रहे हैं। मिस डोशेथी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था। उसके साथ एक भव्य तेजस्वी सन्यासी भी भगवे कपड़े पहने हुए पथ प्रदर्शन करता हुआ चल रहा है और तभी उसकी आंखें खुल गई पूर्ण भौतिकता और विलासिता की चकाचैंध में रहने वाली करोड़पति बाप की बेटी के लिए यह अजीब सा स्वप्न था। वह इसका अर्थ नहीं समझ पा रही थी। पर वह स्वप्न बार-बार आता और एक दिन वह भारत की टिकट कटाकर दिल्ली आ ही गई। उसने छः महीने तक भारत की महत्वपूर्ण तीर्थस्थलों की यात्रा की पर उसे उस सन्यासी के दर्शन नहीं हुए जिसे उसने स्वप्न में देखा था।
वह उस अज्ञात, अनाथ, अपरिचित सन्यासी की खोज में बराबर घूमती रही और एक दिन सन 1983 अप्रैल में एक साधना शिविर में उसने किसी के कहने पर भाग लेने का निश्चिय किया और उसने देखा कि जो सन्यासी बार-बार उसके स्वप्न में आ रहा था वह तो सामने खड़ा है वही चेहरा, वही मुस्कुराहट, वही चलने का ढंग, वह उसके चरणों में गिर पड़ी। उसके बाद डोरोथी ने उस सन्यासी के साथ हिमालय के विभिन्न स्थानों की यात्रा की उसे ऐसा लगा कि सभी स्थान एवं दृष्य वह सपने में पहले से ही देख चुकी है। सन्यासी के आगे-आगे वह चलती और बताती रहती कि बाईं तरफ एक गुफा है जिसे मैंने स्वप्न में देखा है और वास्तव में ही थोड़ी ही दूरी पर हुबहू वही गुफा दिखाई दे जाती। आज वह पाश्चात्य जगत की श्रेष्ठ साधिका डोरोथी सेवा भावती है जिसे दीन दुखियों की सेवा करने के बदले मैगसेसे पुरस्कार हो चुका है और सन 1988 के नोबेल प्राईज के लिए भी उसका नाम प्रस्तावित हुआ था। यदि वह स्वप्न के अर्थ को न समझकर भौतिकता में ही डूबी रहती तो वह केवल दो बच्चों की मां और बिलासिनी बनकर ही रह जाती, उसका नाम गली - मोहल्ले से आगे नहीं पहुचता। पर वह आज लाखों लोगों की जुबान पर है। इसी प्रकार भारतवर्ष के भी सैकड़ों उदाहरण हैं।
5. धन लाभ सूचक स्वप्न: कुछ स्वप्न व्यक्ति के धन लाभ कराने वाले होते हैं हाथी, घोड़े, बैल, सिंह की सवारी, शत्रुओं के विनाश, वृक्ष तथा किसी दूसरे के घर पर चढ़कर दही छत्र, फूल, चंवर, अन्न, वस्त्र, दीपक, तांबूल, सूर्य, चंद्र देवपूजा, वीणा, आदि स्वप्न धन लाभ प्राप्त कराने वाले होते हैं।
6. मृत्यु सूचक स्वप्न: स्वप्न में झूला झूलना, गीत गाना, खेलना, हंसना, नदी में पानी के अंदर चले जाना, सूर्य, चंद्र ग्रहादि नक्षत्रों को गिरते हुए देखना, विवाह, गृह प्रवेशादि उत्सव देखना, भूमि लाभ, दाढ़ी मूंछ, बाल बनवाना, घी, लाख देखना, मुर्गा, बिलाव, गीदड़, नेवला, बिच्छू, मक्खी शरीर पर तेल मलकर नंगे बदन, भैंसे, गधे, उंट, काले बैल या काले घोड़े पर सवार होकर दक्षिण दिशा की यात्रादि करना आदि मृत्यु सूचक स्वप्न है।
7. कुछ अनुभूत स्वप्न: एक महिला का पुत्र बरी तरह से बीमार व दिल्ली के एक अस्पताल में दाखिल था। महिला स्वयं भी बीमारी के कारण बिस्तर पर थीं एक रात उसे स्वप्न दिखाई दिया कि, उसके गले की मोती की माला टूट गई है नींद खुली तो उसने देखा कि उसकी माला टूटी हुई थी ठीक उसी समय उसके पुत्र ने अपने प्राण त्याग दिए थे। जालंधर के एक व्यक्ति की पत्नी की छाती कैंसर आॅपरेशन हो रहा था उसे स्वप्न में दिखाई दिया कि कुछ लोग उन्हे मारने दौड़ रहे हैं, अचानक वह अस्पताल के फ्लाई ओवर में चढ़ जाती है फिर वह स्वयं घर अंदर पहुंचकर छुपने की कोशिश करती है और नींद टूट जाती है स्वप्न के फल से तो उसकी तो जान बच गई किंतु उसके पति की हृदय की गति रूकने से मृत्यु हो गई। इस तरह स्पष्ट है कि मनुष्य के जीवन में आनेवाली दुर्घटनाओं उन्नति और शुभ समय के आगमन से संबंधित स्वप्न कई बार सच्चे साबित होते हैं। इस प्रकार स्वप्न वास्तव में पूर्ण रूप से विज्ञान है जिसको भली प्रकार से समझने की आवश्यकता है।
इसके गूढ़ रहस्यों और उसमें निहित हलों को समझने की हमें आवश्यकता है। पश्चिमी देशों में तो स्वप्नों पर इतनी अधिक पुस्तकें लिखी जा चुकी है कि यदि उन्हें एकत्र किया जाय तो बहुत बड़ा पुस्तकालय भर सकता है। वहां पर सैकड़ों संस्थाएं हैं जहां स्वप्नों का विश्लेषण होता है। भारतवर्ष में भी कुछ इक्की-दुक्की संस्थायें ही जुटी हुई हैं जो यदा-कदा देखने को मिलती हैं किंतु हमारे आर्ष ऋषि महर्षियों के शोध अग्रगण्य हैं।