‘‘बाबू मुशाय जिंदगी बड़ी होनी चाहिए, लंबी नहीं’’ - आनंद मूवी में राजेश खन्ना एक बहुत सुंदर और प्रेरक उद्धरण कह गए जिसका अर्थ है कि जीवन लंबा नहीं, बेहतर होना चाहिए। जीवन सभी मनुष्यों के लिए समान है। हम हमारे बाॅलीवुड सितारों के लिए हमेशा सोचते हैं कि चांदी की स्क्रीन पर अपने बेजोड़ अभिनय से भूमिकाओं को जीवंत करने वाले सितारों का जीवन बड़ा सुखद होता है, उन्हें कोई बीमारी होती ही नहीं होगी। वास्तव में इसका कारण उनकी काल्पनिकता से भरपूर भूमिकाएं होती हैं। हम फिल्मों में बहुत से हीरोज को लगभग अवतार के रूप में देखते हैं, जिनमें कभी वे ट्रेन पर चल रहे हैं, चट्टानों से कूद रहे हैं, खलनायकों की पूरी टोली से लड़ रहे हैं, देश की मदद कर रहे हैं। यह सब देख कर हम मानने लगते हंै कि वे सुपर इंसान हैं। हम यह स्वीकार नहीं करते हैं कि वे हमारे जैसे ही लोग हैं। उन्हें भी जीवन में पीड़ा, दर्द, दुःख और आखिर में मृत्यु से गुजरना पड़ता है।
मौत हर किसी की नियति है, जो पैदा होगा वह मर जाएगा। कुछ फिल्मी हस्तियां ऐसी हैं कि कल तक जो सफलता और शोहरत के आसमान में सितारा बन कर चमक रहे थे, अचानक से उन्हें हृदयाघात हुआ और सितारा टूटकर मृत्यु का ग्रास बन गया। आज हम यहां हमारे पसंदीदा बाॅलीवुड अभिनेताओं/ सितारों में से कुछ सितारों की चर्चा करने जा रहे हैं, जिनकी मृत्यु का कारण हृदय रोग बना। आईये जानें ऐसा कैसे हुआ - विनोद मेहरा 13 फरवरी 1945 को लाहौर में जन्मे विनोद मेहरा ने फिल्म ‘रागिनी’ से अपने करियर का आगाज किया। फिल्म ‘‘रागिनी’’ में किशोर कुमार के बचपन का रोल उन्होंने निभाया था। 30 साल से ज्यादा के अपने अभिनय करियर में मेहरा ने 90 से अधिक फिल्में दीं। अभिनेता के रूप में बहुत कुछ करने के बाद विनोद मेहरा निर्देशन के मैदान में उतरे। ‘गुरुदेव’ को बनने में लंबा वक्त लगा और फिल्म पूरी भी न हो पाई थी कि फिल्म के रिलीज होने से पूर्व ही ये चल बसे।
30 अक्तूबर 1990 को तमाम बातों पर विनोद की मौत ने फुलस्टाॅप लगा दिया। अचानक दिल का दौरा पड़ने से ये असमय मात्र 45 वर्ष की उम्र में ही विदा हो गए। संजीव कुमार संजीव कुमार की यह खासियत थी कि वे किसी भी फिल्म को किसी भी रूप में अपनाकर उसे जीवंत बना देते थे। ‘शोले’ में ठाकुर की भूमिका को भला कौन भूल सकता है। इसमें संजीव कुमार एक अपाहिज की भूमिका में थे। उन्होंने इस किरदार में जो जान फूंकी वह आज भी एक यादगार है। इसके अलावा संजीव कुमार ‘कोशिश’ में एक गूंगे की भूमिका हो, या फिर नया दिन नई रात में अकेले नौ-नौ भूमिकाएं निभाकर मंत्रमुग्ध कर दिया था। संजीव कुमार दो बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किए गये। यह पुरस्कार उन्हें फिल्म ‘आंधी’ और ‘अर्जुन पंडित’ में उनके बेमिसाल अभिनय के लिए मिला। 6 नवंबर 1985 को संजीव कुमार को दिल का दौरा पड़ा और उन्हें इस दुनिया से हमेशा के लिए विदा लेनी पड़ी।
मधुबाला मधुबाला, एक ऐसी अदाकारा जिसकी अदा का कायल आज का दौर भी है। मुस्कुराहटों और खूबसूरती का पैगाम लिये एक ऐसी परी 14 फरवरी 1933 को दिल्ली की जमीं पर आई जिसका वजूद राजकुमारी जैसा था लेकिन हकीकत में उसका जन्म एक गरीब मुसलमान परिवार में हुआ। बचपन से ही काम में खुद को खपा देने वाली मधुबाला वक्त से पहले बड़ी हो गई थी। गौरतलब है कि मुगल-ए-आजम, महल, हाफ टिकट, चलती का नाम गाड़ी और हावड़ा ब्रिज जैसी फिल्मों में अभिनय और सौंदर्य का जलवा बिखेरने वाली मधुबाला को जटिल हृदय रोग का सामना करना पड़ा जिसका उन दिनों ईलाज कराना मुमकिन नहीं था और अंत में यही उनकी मौत का कारण बना। देवेन वर्मा हिन्दी सिनेमा में जब भी मशहूर हास्य कलाकारों के नाम याद किए जाएंगे, तो देवेन वर्मा का नाम वहां जरूर लिया जाएगा। उन्होंने कई फिल्मों में अपनी प्रभावपूर्ण उपस्थिति दर्ज कराई, जिनमें ‘अंगूर’ ‘चोरी मेरा काम’, ‘अंदाज अपना अपना’, ‘बेमिसाल’, ‘जुदाई’, ‘दिल तो पागल है’ तथा ‘कोरा कागज’ जैसी फिल्में शामिल हैं।
उन्होंने अपने करियर की शुरूआत वर्ष 1961 में यश चोपड़ा निर्देशित फिल्म ‘धर्म पुत्र’ से की थी। लेकिन ‘अंगूर’ में निभाए उनके किरदार को लोग आज भी याद किया करते हैं। चरित्र अभिनेता के तौर पर अपनी खास जगह बनाने वाले देवेन वर्मा का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया है। फारूख शेख एक शानदार अभिनेता के रूप में फारूख शेख को सदैव याद किया जाता रहेगा। इन्होंने शतरंज के खिलाड़ी, ये जवानी है दीवानी, चश्मे बद्दूर जैसी कई उल्लेखनीय फिल्मों में काम किया। शेख को अपने टीवी शो ‘जीना इसी का नाम है’ से विशेष लोकप्रियता मिली जिसके ये मेजबान रहे, इसमें इन्होंने कई बाॅलीवुड हस्तियों का साक्षात्कार लिया। फारूख 27 दिसंबर 2013 को दुबई में दिल का दौरा पड़ने से नहीं रहे, जहां वे अपने परिवार के साथ छुट्टी पर गए थे। नवीन निश्चल 11 अप्रैल 1946 को जन्मे नवीन निश्चल का बाॅलीवुड में आगाज हुआ मोहन सहगल की फिल्म ‘‘सावन भादो’’ से।
इसी फिल्म से अभिनेत्री रेखा भी अपनी फिल्मी पारी की शुरूआत कर रही थी। खोंसला का घोंसला, आशिक बनाया आपने, आक्रोश, आ अब लौट चलें, आदि जैसी फिल्मों में उनकी भूमिका यादगार रही। जीवन के अंतिम समय में ये अपने निजी पारिवारिक जीवन की कलह के कारण मानसिक रूप से काफी प्रताड़ित थे। यही उनके हार्ट अटैक की वजह बनी। हृदय रोग के ज्योतिषीय योग और कारण आज न केवल फिल्मी हस्तियां हृदय रोग की शिकार होती रही हैं अपितु विश्वभर में ज्यादातर व्यक्ति हृदय संबंधी रोगों से परेशान हैं। ज्योतिष शास्त्र में भी स्वास्थ्य को महत्वपूर्ण माना गया है। इसलिए अनेक प्रकार के ज्योतिषीय योग बताए गए हैं, जिनसे पता किया जा सकता है कि व्यक्ति को कौन-से रोग होने की आशंका है। यदि समय रहते उन योगों के संबंध में जानकारी मिल जाए तो उन रोगों को कम करने के उपाय किए जा सकते हैं। ज्योतिष में कालपुरूष की कुंडली में हृदय का भाव चतुर्थ होता है तथा हृदय का कारक ग्रह सूर्य है।
ध्यान रहे, यदि कुंडली में सूर्य पीड़ित हो, चतुर्थ भाव पीड़ित हो या चतुर्थेश पीड़ित हो तो व्यक्ति को हृदय से संबंधित रोगों की संभावना रहती है। चतुर्थ भाव से इसका विचार किया जाता है। छठा स्थान रोग स्थान है। इसलिए सूर्य तथा चतुर्थ भाव में पाप ग्रह हों, पाप ग्रहों की दृष्टि हो तो हृदय रोग होने की आशंका रहती है।
1. चतुर्थ या पंचम भाव में पाप ग्रह हों या इन पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो तो हृदय रोग होता है।
2. पंचम तथा द्वादश भाव के स्वामी एक साथ छठे, आठवें या 12वें भाव में हों।
3. चैथे भाव में सूर्य, शनि, गुरु एक साथ हों तो गंभीर हृदय रोग होता है।
4. सप्तम या चतुर्थ भाव में मंगल, गुरु एवं शनि एक साथ हों।
5. तृतीय, चतुर्थ और पंचम इन तीनों स्थानों पर पाप ग्रह हों।
उपरोक्त फिल्मी हस्तियों की कुंडलियों का बारीकी से अध्ययन करने पर हमने पाया कि एक असंतुलित जीवन शैली और कुंडली में बन रहे अशुभ योग सेहत में कमी कर हृदय रोग देते हैं और अंततः मृत्यु की गोद में गहरी नींद भी सुला देते हैं। इसलिए सावधानी ही बचाव है।