आयुर्वेदिक दृष्टिकोण दांतों की जड़ों में मवाद पड़ जाता है जिससे मसूड़े और जड़ें कमजोर हो जाती हैं। दांत ढीले होकर गिरने लगते हैं। जबड़े में मवाद लगातार बनता और बहता रहता है जिसके कारण खाने के साथ वह पेट में जाता रहता है, जिसके कारण समस्त स्वास्थ्य पर बहुत ही बुरा असर पड़ता है।
पायरिया रोग के कारण
1. सफाई का अभाव: खाने-पीने के उपरांत दांतों के बीच खाली स्थान पर भोजन का कुछ अंश फंसा रहता है जो बाद में सड़ने लगता है। इसके कारण दांतों पर मैला जमना, दांत पीले या काले पड़ना, दांतों से मवाद आना, मुंह से दुर्गन्ध आना आदि कष्ट उत्पन्न होता है। दांतों में कीड़ा लगता है और दंात खोखले होकर, हिलने लगते हैं और गिर जाते हैं। खाने-पीने की अनियमितता खाने-पीने की अनियमितता के कारण भी दंातों में रोग उत्पन्न होते हैं। भोजन में कैल्शियम फ्लोराइड तथा विटामिन ‘सी’ और ‘डी’ की कमी से दांत कमजोर पड़ने लगते हैं। दांतों में डेंटीन और एनामेल कमजोर हो जाते हैं। जो तंबाकू आदि का सेवन करते हैं, उनके दांतों पर एक पीली सी पपड़ी पड़ जाती है
जिसे ‘टार्टर’ कहते हैं। इससे दांतों का एनामेल कमजोर पड़कर नष्ट हो जाता है। गर्म खाना खाने के तुरंत बाद बर्फ जैसा ठंडा पानी पीने से दांतों के डेंटीन और एनामेल में दरारें पैदा हो जाती हैं जिससे कीट कीटाणु पैदा होने लगते हैं। दांतों के खराब होने तथा पायरिया रोग होने में पानी की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। पानी में थोड़ी मात्रा में फ्लोरायड होना लाभदायक है, किंतु इसकी अधिक मात्रा दांतों को भुरभुरा बना देती है, जिससे वे आसानी से टूटने लगते हैं। कब्ज तथा दांतों के रोगों का भी सीधा संबंध है।पेट खराब होने से दांत खराब तथा दांत खराब होने से पेट खराब हो जाता है।
पायरिया रोग से बचाव एवं उपचार
- प्रतिदिन प्रातःकाल और रात्रि सोने से पहले दांतों की सफाई आवश्यक है। सफाई के लिए अच्छा दंतमंजन या पेस्ट अच्छे ब्रश या अंगुली का इस्तेमाल करना चाहिए जिससे मसूड़ों की मालिश भी हो।
- लौंग और नमक को पीसकर चूर्ण बनाकर दांतों पर अंगुली से मलने से दांतों का हिलना रूक जाता है।
- नीला थोथा और सफेद कत्था दोनों को बराबर मात्रा में लें और इन्हें तवे पर भूनकर अच्छी तरह मिलाकर महीन चूर्ण बना लें। इससे दिन में 2-3 बार अंगुली से मसूड़ों की मालिश करें और बाद में कुल्ला कर मुंह साफ करने से मसूड़ों की सूजन, उनमें दर्द या दुर्गन्ध आना समाप्त हो जाता है।
- पीपल की छाल का चूर्ण बनाकर दांतांे और मसूड़ों की मालिश करने से दांतों का हिलना तथा दर्द ठीक हो जाता है।
- जले हुए आंवले में थोड़ा सेंधा नमक मिलाकर, सरसों के तेल के साथ मसूड़ों और दांतों की मालिश से पायरिया रोग दूर हो जाता है।
- नीम की पत्तियां, काली मिर्च, काले नमक का रोजाना सेवन करना चाहिए। इससे रक्त साफ होता है और पायरिया में आने वाले मवाद समाप्त हो जाते हैं।
-फिटकरी को तवे पर फैलाकर चूर्ण करें और बराबर मात्रा में नमक और थोड़ा सा खाने वाला सोडा (सोडियम बाई कार्बोनेट) मिला लें। यह एक मंजन बन जाता है। रात्रि सोने से पहले मसूड़ों की इस मंजन से मालिश करें। इससे पायरिया ठीक होकर दांत और मसूड़े मजबूत होते हैं।
ज्योतिषीय दृष्टिकोण: ज्योतिष में काल पुरूष की कुडली में द्वितीय भाव मुख का है। इसी से दांतांे की सुंदरता का अनुमान लगाया जाता है। द्वितीय भाव के दुष्प्रभावों में रहने से भी दांत संबंधी रोग उत्पन्न होते हैं।
दांतों के मुख्य तीन भाग होते हैं। पहला और दूसरा भाग एनामेल और डेंटीन का है जो ठोस एवं हड्डीनुमा है इसका नेतृत्व सूर्य करता है। तीसरे भाग में रक्त शिराएं होती हैं। इसका नेतृत्व चंद्र और मंगल करते हैं। पायरिया में मवाद का महत्व अधिक होता है जो रक्त के दूषित होने से होता है। सूर्य, चंद्र, मंगल, द्वितीय भाव व द्वितीयेश जब दुष्प्रभावों में आते हैं तो पायरिया रोग उत्पन्न होता है।
विभिन्न लग्नों में पायरिया रोग के ज्योतिषीय योग
मेष: लग्नेश मंगल षष्ठ भाव या अष्टम भाव में चंद्रयुक्त हो, द्वितीयेश शुक्र और बुध द्वितीय भाव में राहु से युक्त या दृष्ट हो तो दांत संबंधी रोग उत्पन्न करता है।
वृष: गुरु व चंद्र द्वितीय भाव में, राहु केतु से युक्त दृष्ट हो, लग्नेश शुक्र अस्त हो, सूर्य-शनि से युक्त हो और मंगल अष्टम भाव में हो तो जातक को पायरिया होता है।
मिथुन: लग्नेश बुध सूर्य से अस्त होकर षष्ठ भाव में, राहु से या केतु से युक्त या दृष्ट हो, गुरु दशम भाव में वक्री हो तो जातक को पायरिया रोग देता है। कर्क: लग्नेश चंद्र द्वितीय भाव में सूर्य एवं बुध से युक्त हो और राहु-केतु से दृष्ट या युक्त हो। मंगल सप्तम, अष्टम या एकादश भाव में शनि से ही दृष्ट या युक्त हो तो पायरिया हो सकता है।
सिंह: लग्नेश सूर्य, राहु-केतु से युक्त होकर किसी भी भाव में हो, मंगल वक्री हो और शनि की दृष्टि चंद्र या द्वितीय भाव में हो तो जातक को पायरिया हो सकता है।
कन्या: सूर्य द्वितीय भाव में चंद्र युक्त एवं राहु-केतु से दृष्ट हो, मंगल अष्टम भाव या एकादश भाव में हो, गुरु षष्ठ, अष्टम या दशम भाव में शनि से युक्त या दृष्ट हो तो जातक को पायरिया होता है।
तुला: गुरु द्वितीय भाव में राहु व केतु से युक्त या दृष्ट हो, सूर्य अष्टम भाव में, चंद्र से युक्त हो, मंगल शनि से युक्त होकर एकादश भाव में हो तो पायरिया होता है।
वृश्चिक: लग्नेश गुरु षष्ठ या अष्टम भाव में शनि से युक्त या दृष्ट हो, सूर्य, शुक्र द्वितीय भाव में राहु-केतु से युक्त या दृष्ट हो, चंद्र, मंगल से युक्त होकर किसी भी भाव में हो तो पायरिया होता है।
धनु: लग्नेश गुरु षष्ठ या अष्टम भाव में शनि से युक्त या दृष्ट हो, सूर्य-शुक्र द्वितीय भाव में राहु-केतु से युक्त या दृष्ट हो और चंद्र मंगल से युक्त होकर किसी भी भाव में हो तो पायरिया होता है।
मकर: गुरु द्वितीय भाव में चंद्र मंगल एवं राहु-केतु से दृष्ट या युक्त हो, सूर्य शनि से युक्त या दृष्ट होकर किसी भी भाव में हो तो पायरिया होता है।
कुंभ: चंद्र-मंगल द्वितीय भाव में राहु-केतु से युक्त हो, लग्नेश शनि वक्री हो और गुरु से दृष्ट या युक्त हो तो जातक को पायरिया रोग हो सकता है।
मीन: द्वितीय मंगल चंद्र से युक्त होकर षष्ठ या अष्टम भाव में हो, शुक्र-शनि से युक्त होकर द्वितीय भाव में राहु या केतु से दृष्ट या युक्त हो तो जातक को पायरिया हो सकता है।