सली प्राचीन सिद्ध शाबर विद्या की शक्तियां। इनकी सहायता से आप क्या-क्या कर सकते हैं ?
1. इन मंत्रों की सबसे मुख्य विशेषता यह है कि ये मंत्र खुद सिद्ध होते हैं। इनके लिये साधक को कठिन अनुष्ठान करने की आवश्यकता नहीं होती है। बस जो आसान सी विधियां दी गयी हैं वो करें और मंत्रों के प्रभाव का खुद साक्षात्कार करें।
2. सिद्धि कर्म (देवता, पीर पैगम्बर, वीर, जिन्न आदि प्रकट करना) - अगर आप अत्यधिक जिज्ञासु साधक हंै और अपने देवी देवता, पीर पैगंबर, वीर, जिन्न, भूत, परी आदि से साक्षात् होना चाहते हैं या उनसे अपना काम करवाना चाहते हैं तो इन शाबर मन्त्रों से बढ़कर कोई दूसरा सहायक नहीं हो सकता।
3. शांति कर्म (तांत्रिक कर्म, काला जादू , या किये कराये कि काट ) - अगर आपको लगता है कि आप पर कोई तांत्रिक कर्म, काला जादू, या किये कराये का प्रभाव है तो आपको किसी तांत्रिक या औघड़ बाबा के चक्कर में आने की जरूरत नहीं है। सिद्ध शाबर मंत्रों से आप अपना व अपने परिवार का सुरक्षा चक्र बना सकते हैं, जिससे वो सारा प्रभाव खत्म हो जायेगा। इसके अलावा आप दूसरों को भी झाड़-भूंककर उनको ठीक कर सकते है।
4. विद्वेषण कर्म (गलत प्रेम या बुरी लड़की या लड़के को दूर करना ) - अगर आपको लगता है कि आपका लड़का या लड़की या भाई-बहन किसी गलत या किसी बुरी लड़की या लड़के के साथ प्रेम में पड़ गए हैं, बच्चे ऐसे मामलों में बड़ांे की नहीं सुनते बल्कि अगर बोलो और टोको तो वो या तो खुदकुशी कर लेते हैं या उनके साथ भाग जाते हैं और दोनों ही मामलों में घर की इज्जत और मानहानि पर बन जाती है, उनको प्यार से समझाओ और विद्वेषण सिद्ध मंत्र प्रयोग करो, वो गलत लड़की या लड़का खुद आपके बच्चों का पीछा छोड़ देगा और कभी बात करना भी पसंद नहीं करेगा। आप भी खुश और बच्चे भी।
5. रोगनाशक कर्म (बीमारी या रोग दूर करना)- आप सिद्ध शाबर मन्त्रों से विभिन्न प्रकार के रोग भी मिटा सकते हैं बिल्कुल जड़ से। लेकिन यहाँ कुछ मेहनत ज्यादा करनी पड़ती है।
6. वशीकरण प्रयोग (शोषण के खिलाफ और धर्म के लिए) - आजकल चारों ओर भ्रष्टाचार और कालाबाजारी फैल गयी है और प्राइवेट जॉब्स में भी बॉस अपने इम्प्लाइज को सैलरी कम देते हैं और काम ज्यादा करवाते हैं। यहां हम अपने हक के लिए वशीकरण कर्म का प्रयोग करेंगे क्योंकि अपने हक के लिए लड़ना भी धर्म है। अगर प्रेम के लिए वशीकरण प्रयोग करो तो ध्यान रहे प्रेम निःस्वार्थ और सच्चा होना चाहिए। वशीकरण का गलत प्रयोग करना मानवता का निरादर करना है और भगवान् उसको कभी माफ नहीं करते। इसीलिए इसको हमेशा मानवता की भलाई के लिए ही प्रयोग करें।
7. स्तम्भन कर्म (शत्रु को रोकना)- अगर आपका कोई शत्रु आपको परेशान कर रहा है, तो उसको रोकने के लिए आप स्तम्भन प्रयोग कर सकते हैं।
8. उच्चाटन कर्म (शत्रु को भगाना)- किसी भी तरह की कोई भी समस्या हो इस तरह के मन्त्रों से दूर की जा सकती है। जैसे कोई आपकी सम्पत्ति और किसी भी वस्तु को जबर्दस्ती हथियाना चाहता है या आपको आपके घर में ही आकर परेशान करता है तो इस तरह के मंत्रों से परेशान करने वालों को भगाया जा सकता है।
सावधान - सिद्ध शाबर मंत्र 100 प्रतिशत कार्य करते हैं और कभी भी निष्फल नहीं होते इसीलिए अच्छी तरह और कई बार सोच समझ कर ही इनका प्रयोग करना चाहिए। Bhupendra Thakur 9827197716 गृह निर्माण गृह निर्माण कार्य आरंभ करने से पहले वास्तु पुरुष की स्थिति का पता कर लेना चाहिए, इस संबंध में महर्षि पराशर की गणनानुसार तिथि में 4 मिलाकर उस संख्या को दोगुना कर लें, फिर उसमें गृहस्वामी के नाम के अक्षरों की संख्या जोड़कर उसे तीन से भाग देने पर यदि एक शेष रहता है
तो स्वर्ग में, दो शेष रहे तो पाताल में और यदि कुछ भी शेष न बचे तो मृत्युलोक में स्थित है, वास्तुपुरुष की पाताल की स्थिति पर निरंतर लक्ष्मी प्राप्ति होती है, वास्तु पुरुष की शून्य की स्थिति पर मृत्युलोक में वास्तुपुरुष के रहने से मृत्यु की या मृत्यु समान कष्ट की प्राप्ति होती है।
वास्तुपुरुष की प्रतिष्ठा का फल
- वास्तुपुरुष की सोमवार को की गई प्रतिष्ठा कल्याणकारी होती है।
- मंगलवार को की गई प्रतिष्ठा, अग्नि दाह्कारिणी होती है।
- बुधवार को की गई प्रतिष्ठा, धनदायिनी होती है।
- गुरुवार को की गई प्रतिष्ठा बलदायिनी होती है।
- शुक्रवार को की गई प्रतिष्ठा आनंददायिनी होती है।
- शनिवार को की गई प्रतिष्ठा कल्पविनाशिनी होती है।
- रविवार को की गई प्रतिष्ठा तेजस्विनी होती है।
DDudeja 9310184653 नाड़ी ज्योतिष राशि तुल्य नवमांश एवं नवमांश तुल्य राशि भ्रमण जो कि 360 डिग्री का है उसके शुरूआत तथा अंत की कोई जानकारी नहीं होती जिससे कि उसे मापा जा सके। इसलिए इसे 12 भागों में बांटा गया और प्रत्येक भाग 30 डिग्री का बना जिससे कि प्रारंभिक तथा अंतिम भाग को जाना जा सके। इसका प्रारंभिक बिंदु मेष राशि अर्थात अश्विनी नक्षत्र तथा अंतिम बिंदु मीन राशि अर्थात रेवती नक्षत्र है।
आगे चलकर एक राशि जो कि 30 डिग्री की है को फिर 9 भागों में बांटा गया जिसका प्रत्येक भाग अर्थात खंड 3 डिग्री 20 मिनट का बना जिसे नक्षत्र के चरण, पाद, अक्षर आदि नामों से जाना गया तथा इसे ही एक नवमांश का भाग कहा जाता है।
किसी भी जातक के जीवन में घटने वाली घटनाओं को जानने के लिए नवमांश की पद्धति के बारे में अनेक ग्रंथों में योग आदि तथा गोचर के नियम मिलते हैं जैसे होरा शास्त्र, जातक पारिजात, जातक देशमार्ग आदि तथा अन्य पद्धतियां भी नाड़ी ग्रंथों जैसे चंद्रकला नाडी, ध्रुव नाड़ी देव केरलम आदि में मिलती है जिसे भाव सूचक नवमांश कहा गया है। इसका अर्थ यह है कि जो भी ग्रह जिन नवमांश राशियों में स्थित हैं उन राशियों को लग्न में देखें कि किन भावों में पडती हैं।
जिन भावों में ग्रह स्थित होते हैं उन भावों के फल वे ग्रह अपनी दशा अंतर्दशा में देगा। जो नवमांश में उन राशि में बैठा है जैसे पंचम भाव की राशि में कोई ग्रह नवमांश में है तो वह पुत्रांश कहलायेगा। इसी प्रकार यदि कोई ग्रह नवमांश में लग्न के चतुर्थ भाव में पड़ने वाली राशि में स्थित है तो उसे सुखांश कहते हैं। ध्रुव नाड़ी मेष लग्न अर्थात शुक्र जिस नवांश राशि में हो वह यदि लग्न से केंद्र में पड़े तो राजयोग होता है।
इस प्रकार देखेंगे कि ज्यादातर ग्रह नवमांश में उन राशियों में बैठे हैं जो लग्न से केंद्र, त्रिकोण, द्वितीय एवं एकादश भाव में पड़ते हो तो जातक का जीवन खुशहाल, ऐश्वर्ययुक्त, संघर्षरहित जीवन होगा परंतु इसके विपरीत 6, 8, 12, भावों की राशियों में हो तो जातक के जीवन में संघर्ष, रोग, शोक आदि फल होंगे। शनि का गोचर यदि किसी भी भाव से जिसका आप विचार कर रहे हैं। अष्टमेश को देखें कि वह किस नवमांश राशि में बैठा है
यदि उस राशि तथा उससे त्रिकोण में जब गोचर में शनि उस भावेश की डिग्री पर आता है तब उस भाव के शुभ फलों का नाश होता है लग्नेश जिस नवांश राशि में स्थित हो उस राशि तथा उससे त्रिकोण की राशियों पर जब शनि गोचर में आता है तब जातक के मामा तथा नानी मानसिक रुप से परेशान रहती हैं। इसके अतिरिक्त जातक के पिता अपने भाई-बहनों के शोक से पीड़ित हों, मित्रों की मृत्यु हो, चोरों से डर हो, दुर्घटना ऑपरेशन आदि एवं साला साली की मृत्यु आदि फल मिलते हैं।
धनेश जिस नवांश राशि में हो उसमें तथा उस त्रिकोण में जब शनि उन राशियों की डिग्रियों के ऊपर गोचरवश आता है तब जातक की पत्नी की मृत्यु अथवा घर परिवार में किसी की हानि या धन-संपत्ति का नाश होता है। इसके अतिरिक्त उन्नति में अवरोध, पत्नी के परिवार में किसी की मृत्यु, व्यवसाय में घाटा, पत्नी को शारीरिक एवं मानसिक परेशानियां आदि फल होते हैं।
चतुर्थेश जिस नवांश राशि में हो उस राशि में तथा उस त्रिकोण में जब शनि गोचरवश उस राशि स्वामी के अंशों पर आता है, तब जातक का पिता बीमार होता है तथा चतुर्थेश जिस राशि को देखे उस राशि पर शनि का गोचर पिता के लिए घातक होता है। इसके अतिरिक्त मां को शोक, पिता को पत्नी की मृत्यु का शोक, पिता के भाइयों, बहनों की मृत्यु, पिता को शारीरिक निर्बलता या पिता की मृत्यु जैसे फल भी प्राप्त होते हैं।
पंचमेश जिस नवांश राशि में हो उसमें तथा उस त्रिकोण में जब शनि उस राशि स्वामी के अंशों पर गोचरवश आता है तब जातक के भाई-बहनों के बच्चों के साथ कोई न कोई अशुभ दुर्घटना होती है। इसके अतिरिक्त अत्यधिक कठिनाइयां, जन्म स्थान को छोड़ना, विपत्ति, गरीबी, बड़े भाई-बहनों की मृत्यु, स्थान हानि, मानसिक परेशानियां, ताऊ अर्थात पिता के भाइयों की मृत्यु आदि फल होते हैं।
सप्तमेश जिस नवांश राशि में हो उसपर तथा उससे त्रिकोण में जब शनि उस राशि स्वामी के अंशों पर गोचरवश आता है तब तथा सप्तमेश जिस राशि को देखे उस पर जब आये तब जातक के नाना को जीवन हानि का डर होता है। इसके अतिरिक्त यदि सप्तमेश की दशा भी हो तो उस समय दादी की मृत्यु हो, अचानक धन हानि हो, मामा की मृत्यु हो, मौसी की मृत्यु हो या उन्हें परेशानियां हों।
अष्टमेश जिस नवांश राशि में हो उस राशि तथा उस त्रिकोण राशि तथा अष्टमेश से दृष्ट राशि पर जब गोचर में शनि आए तब जातक के पुरुष संबंधी, रिश्तेदार के साथ कोई भयानक घटना घटे। इसके अतिरिक्त जातक का स्वास्थ्य खराब हो, पिता तथा बड़े लोगों को मानसिक परेशानी हो, अपने मृत्यु का भय हो, स्वयं की मृत्यु, धनहानि, परिवार में कोई अशुभ घटना, बच्चों को लेकर परेशानी, किसी नजदीकी मित्र की मृत्यु, जातक को हॉस्पिटल में भर्ती होना और विरोधियों का डर होता है।
नवमेश जिस नवमांश राशि में हो, उस पर तथा उसके त्रिकोण में जब उन राशि स्वामियों के अंशों पर गोचर में शनि आता है तब जातक की माता की बहनों के बच्चों को नष्ट करता है। इसके अतिरिक्त झगड़े हांे, गले एवं आंखों में रोग हो, धन हानि हो, व मानसिक अवसाद रहे। दशमेश जिस नवांश राशि में हो उस पर तथा उस त्रिकोण की राशियों पर, उन राशि स्वामियों के अंशों पर जब गोचर में शनि आता है
तब जातक के ससुर के लिए घातक अथवा परेशानी देता है। इसके अतिरिक्त जातक के भाइयों के बच्चों तथा परिवार में रोग, शोक, मानसिक अवसाद, भाई बहनों को दर्द और स्वयं भी हॉस्पिटल में भर्ती हो आदि फल मिलते हैं। एकादशेश जिस नवांश राशि में हो उस राशि पर तथा उस त्रिकोण में उन राशि स्वामियों के अंशों पर जब गोचर में शनि आता है
तब जातक के ननिहाल में कष्ट तथा स्वयं भी मानसिक रुप से परेशान होता है, माताजी को कष्ट हो क्योंकि उसके भाई-बहन देश छोड़कर बाहर चले जाते हैं तथा जातक की रिश्तेदारी में घटनाएं घटे। माता की मृत्यु तड़पकर हो, स्थान त्याग हो और प्रॉपर्टी को लेकर झगड़े हों। द्वादशेश जिस नवांश राशि में हो उस पर तथा उस त्रिकोण में तथा द्वादशेश से दृष्ट राशि पर जब गोचर में शनि आता है,
तब जातक के बच्चों के साथ अशुभ घटनाएं घटती हैं। इसके अतिरिक्त दादाजी को कष्ट, परीक्षा में असफलता, बड़ी बहन के पति को कष्ट, बड़े भाई की पत्नी को कष्ट, धन-हानि, बच्चों की मृत्यु का शोक, व्यवसाय में शत्रुता और चाचा के साथ कोई दुर्घटना घटे आदि फल मिलते हैं। यदि उपरोक्त राशियों पर से बृहस्पति का गोचर हो तो जातक को शुभ परिणाम प्राप्त होते हैं। इस प्रकार बृहस्पति के बारे में समझना चाहिए।
Ashok Kumar Sharma 9871923215 रंगों से ग्रहों को ठीक करें ... सूर्य कमजोर हो तो नारंगी रंग का प्रयोग करें। कुपित हो तो नारंगी रंग से परहेज करें। चंद्रमा कमजोर हो तो सफेद रंग का प्रयोग करें। कुपित हो तो सफेद से परहेज करें। मंगल कमजोर हो तो लाल रंग का प्रयोग करें। कुपित हो तो लाल से परहेज करें। बुध कमजोर हो तो हरे रंग का प्रयोग करें, कुपित हो तो हरे से परहेज करें। गुरु कमजोर हो तो पीले रंग का प्रयोग करें।
कुपित हो तो पीले से परहेज करें। शुक्र कमजोर हो तो चटकीले यानि मिक्स कलर का प्रयोग करें, कुपित हो तो सफेद का प्रयोग करें। शनि कमजोर हो तो काले रंग का प्रयोग करें, कुपित हो तो काले का प्रयोग नहीं करें। राहु कमजोर हो तो नीले रंग का प्रयोग करें कुपित हो तो परहेज करें। केतु कमजोर हो तो ग्रे रंग का प्रयोग करें, कुपित हो तो ग्रे रंग से परहेज करें।
Mukesh Kumar 9334913911 भाग्य और भाग्येश किसी भी व्यक्ति के लिए उसका भाग्य बली होना बहुत जरूरी है, तभी वो जीवन में ऊंचाईयों को छू पाने में सफल रहता है। जब भाग्य ही निर्बल होगा तो लाख कोशिशों के बावजूद भी उसे संतोषजनक परिणाम नहीं मिलेंगे।
- लग्न कुंडली का नवम भाव, भाग्य स्थान होता है और इस भाव में जो राशि होती है उस राशि का प्रतिनिधित्व करने वाले ग्रह को भाग्येश कहा जाता है।
- अगर भाग्येश या भाग्य भाव, अशुभ ग्रहों से पीड़ित हो या निर्बल या अशुभ भाव में स्थित हो तो उस जातक का जीवन बहुत कठिनाइयों से व्यतीत होता है।
उसका भाग्येश या भाग्य भाव पीड़ित है या निर्बल है वो ग्रह 100 प्रतिशत फल देने में असमर्थ है तो किसी भी कार्य में आपका भाग्य उतना ही साथ देगा जितना बल वो आपकी कुंडली में लेकर बैठा है। अब आपको करना क्या है ? सबसे पहले ये पता कीजिए कि आपकी कुंडली के नवम भाव में कौन सी राशि है। उस राशि का प्रतिनिधितत्व करने वाला ग्रह आपका भाग्येश है। आपको आपके भाग्येश को बल देना है।
उपाय:-
- अगर आपका भाग्येश कुंडली में शुभ भाव में स्थित है तो आप उसका रत्न पहन लीजिये।
- अगर भाग्येश अशुभ भाव में या नीच राशि में स्थित है तो आपको उसका रत्न नहीं पहनना है क्योंकि रत्न पहनने से उस अशुभ भाव को भी बल मिल जायेगा और फिर उससे सम्बंधित अशुभ परिणाम आपको मिलने लगेंगे।
- आप भाग्येश से संबंधित ग्रह के मंत्र का जप भी कर सकते हैं।
- भाग्येश से सम्बंधित दान जीवन में मत करियेगा ...भाग्येश का दान करना मतलब अपने भाग्य को दान करना।
- भाग्येश ग्रह से संबंधित देवी देवताओं की उपासना कीजिये।
- अगर आपने अपने भाग्येश को मजबूत कर लिया तो आपको कभी भी अपने जीवन में यह नहीं कहना पड़ेगा कि मेरा तो भाग्य ही खराब है ....साथ नहीं देता ..आदि जीवन के हर कार्य में आपको सफलता मिलेगी। Payal Jha 9408478516 राहु अचानक से चैंकाने वाली खबर लाता है राहु-केतु ग्रह अचानक से परिवर्तन करते हैं।
राहु अपनी शुभ अवस्था में अचानक से लाभ करवाता है। वहीं राहु या केतु के अशुभ स्थिति में होने पर अचानक से कोई बुरी घटना की खबर लग सकती है। कैसा होता है राहु और केतु का कुंडली में स्वभाव राहु और केतु राक्षस ग्रह होने के कारण तामसिक ग्रह हैं। राक्षस ग्रह होने के कारण ही ये स्वभाव से चालाक, धूर्त और आलस देने वाले ग्रह हैं। राहु के जन्मपत्रिका के प्रथम भाव में बैठने पर यह व्यक्ति को आलसी बनाता है। ऐसा व्यक्ति चतुर होता है। लेकिन अपने कामों में आलसी होता है।
दूसरों को शक की निगाह से देखना इनकी आदत होती है। कुंडली के पहले घर में राहु के स्थित होने पर व्यक्ति स्वयं के कार्य रुक-रुककर करेगा। ऐसा ये जानबूझकर नहीं करते हैं बल्कि कार्य करने की गति ही धीमी होती है। दूसरे घर का राहु होने पर पुश्तैनी जमीन-जायदाद में परेशानी खड़ी करता है। तीसरे घर का राहु बहुत शुभ होता है। व्यक्ति अपने कार्यो में जबर्दस्त साहस दिखाता है। चैथे घर का राहु बहुत ही अध् िाक कष्टदायक होता है। घर से संबंधित मामलों में रुकावटें खड़ी करता है।
अपनी महादशा में घर में भयंकर झगड़े करवा सकता है। ऐसे राहु के कुप्रभाव से बचने के लिए हर शनिवार को बहते पानी में एक नारियल बहाना चाहिए। साथ ही शनिवार के दिन घर में गुग्गुल जलाना चाहिए। पांचवें स्थान का राहु पितृदोष बनाता है। संतान के जन्म होने में परेशानी खड़ी करता है। अधिक आयु में संतान का जन्म होता है। भगवान शिव का पूजन करने से इस दोष से मुक्ति मिलती है। छठे घर का राहु होने से व्यक्ति के शत्रु अपने आप ही रास्ता बदल लेते हैं। सातवें घर का राहु वैवाहिक जीवन में काफी उतार-चढ़ाव लाता है। आठवें घर का राहु अच्छा नहीं माना गया है।
ज्योतिष में आठवें घर के राहु के लिए कहा गया है कि किसी बीमारी या एक्सीडेंट की वजह से शरीर को कष्ट मिलता है। ऐसे राहु के कष्ट से बचने के लिए अष्टधातु का कड़ा अपने हाथ में पहनना चाहिए। साथ ही एक नारियल हर शनिवार नदी में बहाना चाहिए। हर शनिवार को शिव मंदिर में दीपक जलाएं। ऊँ जूं सः मंत्र का जप 108 बार करें। नवें घर का राहु भाग्योदय में दिक्कतें खड़ी करता है। दसवें घर का राहु राजनीति और खेल जीवन में जबर्दस्त सफलता देता है। ग्यारहवें घर का राहु होने पर व्यक्ति की आय के कई साधन हो सकते हैं। ऐसा व्यक्ति पैसा जल्दी कमाने की तकनीक लगाता है।
बारहवें घर के राहु के लिए शास्त्रों में कहा गया है कि यह व्यक्ति को खर्चीली जीवनशैली प्रदान करता है। अपने पैसों को लाॅटरी, जुआ, सट्टा जैसे कार्य में लगाता है जिससे पैसे का दुरुपयोग होता है। इस दोष से बचने के लिए हनुमान जी के मंदिर में हर मंगलवार और शनिवार को चमेली के तेल का दीपक जलाएं। जितनी श्रद्धा व शक्ति हो उस तरीके से पूजन मंदिर में करें। Bhushan Sambh 9422268596 नाड़ी दोष चंद्रमा के निम्नलिखित नक्षत्रों में स्थित होने से कुंडली धारक की आदि नाड़ी होती है: अश्विनी, आर्द्रा, पुनर्वसु, उत्तर फाल्गुनी, हस्त, ज्येष्ठा, मूल, शतभिषा तथा पूर्व भाद्रपद।
चन्द्रमा के निम्नलिखित नक्षत्रों में स्थित होने से कुंडली धारक की मध्य नाड़ी होती है: भरणी, मृगशिरा, पुष्य, पूर्व फाल्गुनी, चित्रा, अनुराधा, पूर्वाषाढ़ा, धनिष्ठा तथा उत्तर भाद्रपद। चन्द्रमा के निम्नलिखित नक्षत्रों में स्थित होने से कुंडली धारक की अंत नाड़ी होती है: कृत्तिका, रोहिणी, अश्लेषा, मघा, स्वाती, विशाखा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण तथा रेवती। गुण मिलान करते समय यदि वर और वधू की नाड़ी अलग-अलग हो तो उन्हें नाड़ी मिलान के 8 में से 8 अंक प्राप्त होते हैं, जैसे कि वर की आदि नाड़ी तथा वधू की नाड़ी मध्य अथवा अंत।
किन्तु यदि वर और वधू की नाड़ी एक ही हो तो उन्हें नाड़ी मिलान के 8 में से 0 अंक प्राप्त होते हैं तथा इसे नाड़ी दोष का नाम दिया जाता है। नाड़ी दोष की प्रचलित धारणा के अनुसार वर-वधू दोनों की नाड़ी आदि होने की स्थिति में तलाक या अलगाव की प्रबल संभावना बनती है तथा वर-वधू दोनों की नाड़ी मध्य या अंत होने से वर-वधू में से किसी एक या दोनों की मृत्यु की प्रबल संभावना बनती है। नाड़ी दोष को निम्नलिखित स्थितियों में निरस्त माना जाता है अथवा ऐसी स्थिति मंे नाड़ी दोष का परिहार हो जाता है:
1. यदि वर-वधू दोनों का जन्म एक ही नक्षत्र के अलग-अलग चरणों में हुआ हो तो, वर-वधू की नाड़ी एक होने के बावजूद भी नाड़ी दोष नहीं लगता।
2 यदि वर-वधू दोनों की जन्म राशि एक ही हो किन्तु नक्षत्र अलग-अलग हों तो वर-वधू की नाड़ी एक होने के बावजूद भी नाड़ी दोष नहीं लगता।
3 यदि वर-वधू दोनों का जन्म नक्षत्र एक ही हो किन्तु जन्म राशियां अलग-अलग हों तो, वर-वधू की नाड़ी एक होने के बावजूद भी नाड़ी दोष नहीं लगता। Bhushan Sambh 9422268596