हृदय रोग
हृदय रोग

हृदय रोग  

वीरेन्द्र अग्रवाल
व्यूस : 3862 | जुलाई 2017

हृदय एक पम्‍प की भांति कार्य करता है। फेफडों से शुद्ध होकर आये रक्‍त को शरीर के प्रत्‍येक अंग तक पहुंचाने का कार्य हृदय का होता है। जब हृदय की मांसपेशियों को ऑक्‍सीजन युक्‍त रक्‍त की आपूर्ति करने वाली किसी भी रक्‍त वाहिनी (Coronary Artery) में अवरोध आने पर हृदय में रक्‍त की आपूर्ति घट जाती है तब हृदयाघात की सम्‍भावना बनती है । ‘‘वास्‍तव में हार्टअटैक हृदय की मांसपेशियों को आॅक्‍सीजन की आपूर्ति एवं आवश्‍यकता के बीच होने वाला असंतुलन है’’ हृदयाघात हृदय की सहधमनियों में अवरोध (ठसवबांहम) आने पर आता है ।


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लक्षण:- हृदयाघात के अधिकतर रोगियों को सीने में बाईं ओर दर्द का अनुभव होता है और यह दर्द बाईं बाजू तक पहुंच जाता है जबकि कुछ रोगियों को दर्द की जगह श्‍वांस में कठिनाई, जलन, घबराहट व पसीने का अनुभव होता है ।

1. एन्‍जाइना:- इस अवस्‍था में हृदय की मांसपेशियों को हृदय धमनियों द्व ारा होने वाली रक्‍त की आपूर्ति कम हो जाती है। श्रम की स्थिति में लक्षण उभरते हंै, विश्राम व शवासन की स्थिति में लक्षण प्रायः लुप्‍त रहते हैं ।

2. मायो कार्डियल इन्‍फेक्‍शन: - इससे हृदय धमनियों में अधिक अवरोध के कारण हृदय की मांसपेशियों को रक्‍त की आपूर्ति लगभग समाप्‍त हो जाती है जिससे इनकी कोशिकायें निर्जीव होने लगती हैं।

इस अवस्‍था में ब्‍लडप्रेशर कम होने लगता है और रोगी कोमा, लकवा व मौत का शिकार हो सकता है। निदान - चिकित्‍सकीय विज्ञान में हृदयाघात के अनेकों उपचार हंै जिनमें बाईपास सर्जरी, औषधीय उपचार, एंजियोंप्‍लास्‍टी, ई.ई.सी.पीआदि। हार्ट अटैक का सिर्फ एक ही कारण है

हृदय को ऑक्‍सीजन व रक्‍त की आपूर्ति में बाधा। जब कारण एक है तो इसका उपचार भी सिर्फ एक है, वह है रक्‍त व ऑक्‍सीजन की आपूर्ति करना। रक्‍त व ऑक्‍सीजन की आपूर्ति निम्‍न माध्‍यमों द्वारा प्राकृतिक तरीकों से भी की जा सकती है:


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प्राणायाम - पूरक रेचक कुचक्र के साथ किये गये प्राणायाम फेफडों में आॅक्‍सीजन का अनुपात बढ़ा देते हंै। जब फेफडों के पास ऑक्‍सीजन अधिक मात्रा में होती है

तो खून साफ करने की प्रक्रिया अच्‍छी और व्‍यवस्थित रूप से होती है। प्राणायाम का नियमित अभ्‍यास खून में पैदा होने वाले अवरोधों को 60 प्रतिशत तक निकालने की क्षमता रखता है। नाड़ी शोधन, सूर्य मेदी, अनुलोम विलोम, भ्रामरी प्राणायाम किये जा सकते हैं ।

2. हृदय का कोल्‍ड एण्ड हाॅट पैक: हृदय व पीठ का ठंडा एवं गर्म पैक चिकित्‍सक के सलाहानुसार दिया जाता है तो हृदय तेजी से खून को नीचे की तरफ फेंकता है। यदि इस समय धमनियों में कोलेस्‍ट्राॅल की वजह से कोई अवरोध या क्‍लॉट है तो वह वहां से खिसककर छोटी सह-ध् ामनियों में आ जाता है परिणामस्‍वरूप हृदय को मिलने वाले रक्‍त की आपूर्ति में व्‍यवधान नहीं आने पाता है।

3. आसन व सूक्ष्‍म यौगिक व्‍यायाम शरीर के लिए आसन व सूक्ष्‍म यौगिक व्‍यायाम अत्‍यन्‍त आवश्‍यक हैं। आसनों को करने से शरीर के प्रत्‍येक अंग का खिंचाव हो जाता है, परिणामस्‍वरूप खून के प्रवाह में वृद्धि होती है व मांसपेशियों में लचीलापन पैदा होता है। मांसपेशियां जितनी लचीली होंगी अवरोध बनने की सम्भावना उतनी ही कम होती है। हृदय रोगियों को बकरासन, धनुरासन, उत्‍तानपादासन, नौकासन, गोमुखासन पश्चिमोतानासन व सूर्य नमस्‍कार आदि हैं।

4. एक्‍यूप्रेशर मसाज व धूपस्‍नान हृदय रोगियों को जब एक्‍यूप्रेशर दबाव के साथ हृदय की दिशा में मालिश दी जाती है तो हृदय की मांसपेशियों के खून संचार में वृद्धि होती है एवं हृदय ऑक्‍सीजन की मांग कम करता है। इसके साथ ही दबाव के प्रभाव से हृदय धमनियों व सहध् ामनियों की झिल्‍ली में एक प्रकार का बैसोएक्टिव पेप्‍टाइड बनता है

जिससे धमनियों का आकार बढ़ जाता है और धमनियों में होने वाले रक्‍त प्रवाह में वृद्धि हो जाती है। हृदय रोगियों को जब एक्‍यूप्रेशर दबाव के साथ हृदय की दिशा में मालिश दी जाती है तो मांसपेशियों के खून संचार में वृद्धि होती है एवं ऑक्‍सीजन की मांग कम करता है। इसके साथ ही दबाव प्रभाव से हृदय धमनियों व सहधमनियों की किली में एक प्रकार का बैसोएक्टिव पेप्‍टाइड बनता है जिससे धमनियों का आकार बढ़ जाता है और ध् ामनियों में होने वाले रक्‍त प्रवाह में वृद्धि हो जाती है।

हृदय में दबाव के इस उतार-चढ़ाव के कारण मृतप्राय ऊतकों में रक्‍त आपूर्ति की वृद्धि हो जाती है फलस्‍वरूप मृतप्राय कोशिकाएं पुनः अपना कार्य शुरू कर हृदय के रक्‍त आपूर्ति में हो रहे व्‍यवधान को दूर करती हैं। इस कारण धूप स्‍नान व मालिश के प्रभाव स्‍थाई व लंबे हंै। हृदय रोगों को पूरी तरह ठीक किया जा सकता है बस परहेज और जागरूकता की जरूरत है । हृदय रोग से छुटकारा: हृदय मुद्रा हृदय का आकार पान के पत्‍ते की तरह होता है। हृदय का काम फेफड़ों से आये शुद्ध रक्‍त को अपने पम्‍प की सहायता से धमनियों द्वारा रक्‍त को प्रत्‍येक अंग, कोशिका व मांसपेशियों तक पहुंचाना है।

जब इन धमनियों में किसी भी प्रकार का अवरोध पैदा होने लगता है तो एन्‍जाइनापेन, हृदयाघात, सीने में दर्द, अधिक पसीना आना, ब्‍लडप्रेशर बढ़ जाना या कम हो जाना जैसी समस्‍यायें आने लगती हैं। जब हृदय मुद्रा का अभ्‍यास किया जाता है तो फेफड़ों की ऑक्‍सीजन आपूर्ति बढ़ जाती है फलस्‍वरूप हृदय अच्‍छे व प्रभावी ढंग से कार्य करना शुरू कर देता है। इसके नियमित अभ्‍यास से समस्‍त प्रकार के हृदय रोगों पर काबू पाया जा सकता है। विधि: तर्जनी अंगुली को मोड़कर अंगूठे की गद्दी से तर्जनी अंगुली के नाखून से लगा लें, मध्‍यमा व अनामिका को अंगूठे से स्‍पर्श करा दें, कनिष्‍ठा को एकदम सीधा रखें। अंगूठे का ऊपरी दबाव मध्‍यमा व अनामिका पर तथा तर्जनी का पूरा ख्ंिाचाव अंगूठे की गद्दी पर बराबर बना रहना चाहिए।

जब हृदय मुद्रा का अभ्‍यास किया जाता है तब तर्जनी का दबाव अंगूठे की गद्दी पर पड़ता है। अंगूठे की गद्दी पर सह धमनियां होती हैं जो सीधे नाड़ी स्‍पन्‍दन के द्वारा हृदय की मुख्‍य धमनियों से जुड़ी रहती हैं। जब दबाव इन सहधमनियों पर पड़ता है तो सहधमनी बंद वाॅल्‍व का काम शुरू कर देती है और मुख्‍य धमनी तेजी से खून को नीचे फेंकती है फलस्‍वरूप इस मुख्‍य धमनी में जो भी अवरोध होते हैं वह तेज खून के साथ मुख्‍य धमनी से निकलकर छोटी-छोटी धमनियों में आ जाते हैं

जो कि किसी भी प्रकार से हृदयाघात का कारण नहीं बन पाते हैं। जब दोनों हाथों से इस मुद्रा का अभ्‍यास किया जाता है तो हृदय की दोनों मुख्‍य धमनियां अवरोधों से दूर स्‍वस्‍थ व सही तरीके से प्रवाहमान रहती हैं। Blockage स्थिति कारण 30 प्रतिशत सामान्‍य जीवन व भाग दौड़ व्‍यायाम की कमी, घी, मक्‍खन, विश्राम 50 प्रतिशत चलने पर श्‍वास फूलना व जल्‍दी थक जाना रक्‍त चाप का उतार चढाव,आरामदेह जीवन 60 प्रतिशत कभी-कभी सीने में दर्द,अधिक पसीना मोटापा, डायबिटीज 80 प्रतिशत हृदयघात की सम्‍भावना कोलेस्‍ट्राॅल का बढ़ना, श्रम का अभाव


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