हृदय रोग से संबंधित योग एवं कुंडलियां
हृदय रोग से संबंधित योग एवं कुंडलियां

हृदय रोग से संबंधित योग एवं कुंडलियां  

आर. के. शर्मा
व्यूस : 4027 | जुलाई 2017

‘‘साधवो हृदयं मह्यं साधूनां हृदयं त्वहम्। मदन्यते न जानन्ति नाहं तेन्यो मनागपि।।’’ ‘‘सज्जन मेरा हृदय हैं, मैं उनका हृदय हूं। वह मेरे सिवाय किसी को नहीं जानते और मैं उनके सिवाय किसी को नहीं जानता।। ‘‘श्रीमद्भागवत् - 9ः4/68 हृदय रोग, आधुनिक जीवन शैली का सर्वसामान्य सार्वलौकिक कष्ट है। आधुनिक समय में मानसिक तनाव, व्यावसायिक स्पर्धा, अखाद्य-अपाच्य भोजन, व्यायाम की कमी, शरीर की कम क्रियाशीलता, धूम्रपान आदि इस रोग की ओर उन्मुख करते हैं। ज्योतिषीय दृष्टिकोण: चतुर्थ भाव जातक के वक्ष स्थल का सूचक है। पंचम भाव कालपुरुष के हृदय को सूचित करता है। सूर्य हृदय का कारक है।

यदि चतुर्थेश/पंचमेश 6, 8 या 12वें भाव में स्थित हो, चंद्र व सूर्य निर्बल हो, चतुर्थेश/पंचमेश क्रूर ग्रहों से दृष्ट या युत हो तो जातक हृदय रोग से पीड़ित होता है, यदि ये शुभ नवांशों में हों तो रोग की गंभीरता कम हो जाती है। यदि चतुर्थ /पंचम भाव में सूर्य-चंद्र तथा चतुर्थेश पर मंगल की दृष्टि हो तो जातक को हार्ट अटैक (दौरा) पड़ते हैं जो लाइलाज होते हैं।


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शनि ग्रह की दृष्टि हृदय को कमजोर बना देती है तथा जातक लंबे समय तक हृदय रोग से ग्रस्त रहता है जिससे उसकी आयु कम हो जाती है। आयुर्वेदिक दृष्टिकोण: हृदय (सूर्य) द्वारा रक्त (मंगल) फेफड़ों (चंद्रमा) तक भेजा जाता है जहां रक्त में आॅक्सीजन घुल जाती है और रक्त में विद्यमान अनुपयोगी वायु के अंश फेफड़ों में आकर श्वांस द्वारा शरीर से बाहर निकल जाते हैं। आॅक्सीजन युक्त रक्त फिर हृदय में चला जाता है और हृदय उसे संपूर्ण शरीर में भेज देता है।

एक बार श्वांस लेने पर 1200 मि.ली. आॅक्सीजन रक्त में घुल जाता है, जिसका शरीर पांच मिनट में ही उपयोग कर लेता है। इस सारी प्रणाली को ‘काॅर्डियो वैस्क्यूलर सिस्टम’ कहते हैं। जब यह प्रणाली अपने नियमित रूप में कार्य करने में अक्षम होने लगती है तो ‘हृदय रोग’ के लक्षण शुरू हो जाते हैं। हृदय रोग के ज्योतिषीय उदाहरण

उदाहरण 1: काडियोमायोपैथी-हृदय रोग लग्न कुंडली यह स्त्री Cardiomyopathy रोग से पीड़ित है, जो धीरे-धीरे बढ़ने वाला ‘हृदय की मांसपेशी’ का एक वंशानुगत रोग है। इसके ठीक होने की संभावना कम होती है। लग्न में वक्री गुरु, लग्नेश शनि अष्टम में, षष्ठेश बुध तथा अष्टमेश सूर्य के साथ स्थित है। सप्तम में नीच का मंगल लग्न (स्वास्थ्य तन का) को देखता है।

अष्टम में स्थित सूर्य के एक ओर शनि तथा दूसरी ओर बुध है। पंचमेश नीच का शुक्र राहु-केतु के अक्ष पर है। पंचम तथा पंचमेश शुक्र, वक्री गुरु से तथा पंचम भाव शनि से दृष्ट है। चतुर्थेश + पंचमेश नीच के हैं। सूर्य + चंद्र पीड़ित हैं। नवांश कुंडली: पंचम भाव शनि तथा मंगल से दृष्ट है जबकि पंचमेश शुक्र मंगल-शनि तथा राहु-केतु अक्ष के प्रभाव में है। सूर्य उच्चस्थ है परंतु पंचम भाव अधिक पीड़ित है। द्रेष्काण कुंडली: सूर्य अष्टम भाव में है। पंचम भाव राहु-केतु के अक्ष (5-11में) पर तथा पंचमेश मंगल तथा शनि से दृष्ट है। सूर्य से चतुर्थ तथा पंचम भाव क्रमशः राहु और शनि से पीड़ित हैं। द्वादशांश कुंडली: षष्ठेश पंचम में है तथा पंचमेश को देखता है जो मंगल से भी दृष्ट है। सूर्य से चतुर्थ तथा पंचम भाव पीड़ित है।

उदाहरण -2: ‘‘काॅरोनरी आर्टरी डिजीज’’ (Balloon Angioplasty) से जातक पीड़ित है जिसे ‘‘बाईपास शल्यक्रिया’’ से नियंत्रित किया गया। पंचमेश सूर्य षष्ठेश बुध एवं राहु के साथ है परंतु गुरु के समीप (अंशों में) है। पंचम भाव जहां सिंह राशि भी है, शनि तथा गुरु से दृष्ट है। सूर्य से पंचम भाव शनि, गुरु तथा मंगल से दृष्ट है। लग्न तथा सूर्य से चतुर्थ भाव पीड़ा रहित है। नवमांश कुंडली: नवमांश कुंडली में पंचमेश सूर्य दो नैसर्गिक शुभ ग्रहों के साथ है तथा तीसरे चंद्र से दृष्ट है, जबकि शनि से भी दृष्ट है, पंचम भाव पीड़ा रहित है जबकि सूर्य से चतुर्थ तथा पंचम भाव पीड़ित है।

द्रेष्काण कुंडली: सूर्य पुनः पंचमेश होकर उच्च राशि में है तथा गुरु, शुक्र व मंगल के प्रभाव में है। पंचम भाव, अष्टम भाव में स्थित शनि से दृष्ट है।

उदाहरण 3: इस जातक की ‘‘कोरोनरी बाइपास सर्जरी’’ 25 जुलाई 1990 को हुई और आॅपरेशन असफल रहा तथा रोग के लक्षणों से राहत नहीं मिली। लग्न कुंडली: सूर्य चतुर्थ भाव में षष्ठेश मंगल तथा वक्री शनि से पीड़ित है। लग्न से चतुर्थ भाव तथा सूर्य से चतुर्थ भाव पीड़ित है। पाप ग्रह सिंह राशि को पीड़ित कर रहे हैं।

पंचमेश गुरु नीच है तथा अष्टमेश बुध के साथ है। नवमांश कुंडली: सूर्य पंचम भाव में राहु-केतु अक्ष पर है जबकि पंचमेश षष्ठ भाव में, नीच अष्टमेश चंद्र द्वादश भाव से पंचमेश मंगल को देख रहा है। सूर्य से पंचम जो सिंह राशि भी है शनि तथा मंगल से दृष्ट है। द्रेष्काण कुंडली: सूर्य अष्टम भाव में नीच राशि में है तथा राहु-केतु के अक्ष (युति) पर होकर शनि और मंगल से पीड़ित है तथा शुभ दृष्ट नहीं है। सूर्य से पंचम भाव (द्वादश) शनि से पीड़ित है। द्वादशांश कुंडली: सूर्य पुनः पंचम भाव में नीच है। सूर्य से पंचमेश शनि, षष्ठेश मंगल तथा केतु से पीड़ित है।

उदाहरण 4: इस जातक को ‘सायनोटिक जन्मजात हृदय रोग’ (Cyanotic Congenital Heart disease) है जिसे आॅपरेशन के बाद आंशिक रूप से सुधारा जा सका था। लग्न कुंडली: वक्री गुरु लग्नेश होकर लग्न में ही स्थित है। सूर्य अष्टम भाव में षष्ठेश शुक्र तथा शनि से पीड़ित है।

सूर्य से चतुर्थ भाव भी मंगल-शनि से पीड़ित है। सूर्य नवमांश, द्रेष्काण एवं द्वादशांश कुंडलियों में भी पीड़ित है। इन कुंडलियों में पंचम भाव तथा पंचमेश पर विभिन्न प्रकार के पाप प्रभाव हैं। विंशोत्तरी दशा के अनुसार जातक का जन्म प्रतिकूल दशा में हुआ। वक्री लग्नेश जिसकी दशा जन्म के समय चल रही थी, लग्न में है।


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वर्ग कुंडलियों में लग्न तथा लग्नेश पर शुभ-प्रभाव के कारण शल्य क्रिया के बाद कुछ आंशिक राहत हुई। और अंत में ‘‘रोगों की उत्पत्ति व परिणाम का निर्णय करने के लिए ज्योतिष के सूक्ष्म नियमों, जैसे -बाइसवें द्रेष्काण, चैसठवें नवांश, सर्पद्रेष्काण, गुलिक आदि का प्रयोग करना चाहिए।



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