अधिक मास : कब और क्यों
अधिक मास : कब और क्यों

अधिक मास : कब और क्यों  

डॉ. अरुण बंसल
व्यूस : 8752 | मई 2007

इस वर्ष दो ज्येष्ठ होंगे। इन्हें प्रथम ज्येष्ठ व द्वितीय ज्येष्ठ के नाम से जाना जाता है। दो मास में चार पक्ष हो जाते हैं। प्रथम ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष से शुरू होता है। तदुपरांत प्रथम ज्येष्ठ का शुक्ल पक्ष, द्वितीय ज्येष्ठ का कृष्ण पक्ष और फिर द्वितीय ज्येष्ठ का शुक्ल पक्ष होता है। प्रथम मास के कृष्ण पक्ष एवं द्वितीय मास के शुक्ल पक्ष को शुद्ध ज्येष्ठ मास माना जाता है जबकि बीच के दो पक्ष - प्रथम मास का शुक्ल पक्ष एवं द्वितीय मास का कृष्ण पक्ष - को अधिक मास या मल मास कहा जाता है। इस समय में सभी शुभ कार्य वर्जित होते हैं। केवल पूजा पाठ व ध्यान आदि ही किए जा सकते हैं।

इस प्रकार का विधान उत्तर भारतीय चंद्र कैलेंडर में ही मिलता है। गुजराती कैलेंडर भी चंद्र की गति अनुसार चलता है लेकिन उसमें मास कृष्ण पक्ष से शुरू न होकर शुक्ल पक्ष से शुरू होता है। अतः गुजराती कैलेंडर में प्रथम मास ही मल या अधिक मास कहलाता है एवं द्वितीय मास शुद्ध मास होता है। मुस्लिम कैलेंडर भी चंद्र पर आधारित होते हैं लेकिन मुस्लिम कैलेंडर में अधिक मास या मल मास का उल्लेख नहीं मिलता है। इसी कारण कैलेंडर धीरे-धीरे पीछे खिसकता जाता है। अर्थात जो रमजान का महीना 2006 में अगस्त में था अब वह 2007 में सितंबर में शुरू होगा। सूर्य पर आधारित कैलेंडरों में इस प्रकार की कोई गणना नहीं होती।

अधिक मास की गणना का क्या आधार है और इसका क्या प्रभाव है, आइए देखें

पृथ्वी सूर्य के चारों ओर चक्कर लगा रही है। यह 365.2564 (365 दिन 6 घंटे 9 मिनट 12.96 सेकंड) दिनों में एक चक्कर पूर्ण कर लेती है जबकि चंद्रमा को अमावस्या से अमावस्या तक 29.5306 (29 दिन 12 घंटे 44 मिनट 3.84 सेकंड) दिन लगते हैं। अर्थात एक मास का मान हुआ 29.5306 दिन। 12 मास का मान = 29.5306 × 12 = 354.3672 दिन

पृथ्वी के एक वर्ष में और चंद्रमा के 12 मास में अंतर = 10.8992 दिन = 11 दिन

अतः प्रतिवर्ष च्रंद्र मास 11 दिन पहले आ जाता है लेकिन 3 वर्षों में यह अंतर 33 दिन अर्थात एक मास से भी अधिक हो जाता है, जिसे हम अधिक मास के रूप में जानते हैं।

प्रथम ज्येष्ठ कृष्ण शुद्ध द्वितीय ज्येष्ठ कृष्ण मल
प्रथम ज्येष्ठ कृष्ण मल द्वितीय ज्येष्ठ कृष्ण शुद्ध

अधिक मास प्रायः 2 वर्ष 4 मास, 2 वर्ष 9 मास, 2 वर्ष 10 मास, या 2 वर्ष 11 मास के अंतराल पर ही आता है। औसतन 2 वर्ष 8.5 मास में अधिक मास आता है। इसकी गणना मास अवधि 29.5 दिन को 10.9 से भाग करने पर आ जाती है। चंद्र वर्ष क्योंकि सौर वर्ष से लगभग 10.9 दिन छोटा होता है, अतः लगभग 29.53/10.9 = 2 वर्ष 8.5 मास में एक मास का अंतर पड़ जाता है जिसके लिए एक अधिक मास का नियोजन करना पड़ता है।


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वर्ष मास वर्ष मास वर्ष मास वर्ष मास
1966 श्रावण 2 9 1991 वैशाख 2 11
1969 आषाढ़ 2 11 1993 भाद्र 2 4
1972 वैशाख 2 10 1996 आषाढ़ 2 10
1974 भाद्र 2 4 1999 ज्येष्ठ 2 11
1977 श्रावण 2 11 2001 आश्विन 2 4
1980 ज्येष्ठ 2 10 2004 श्रावण 2 10
1982 आश्विन 2 4 2007 ज्येष्ठ 2 10
1985 श्रावण 2 10 2010 वैशाख 2 11
1988 ज्येष्ठ 2 10 2012 भाद्रपद 2 4
राशि मास संक्रांति की अवधि राशि मास संक्रांति की अवधि
दिन घंटा मिनट दिन घंटा मिनट
मेष वैशाख 30 11 25.2 तुला कार्तिक 30 8 58.2
वृष ज्येष्ठ 30 23 29.6 वृश्चिक अगहन 29 21 14.6
मिथुन आषाढ़ 31 8 10.1 धनु पौष 29 13 8.7
कर्क श्रावण 31 10 54.6 मकर माघ 29 10 38.6
सिंह भाद्र 31 6 53.1 कुंभ फाल्गुन 29 14 18.5
कन्या आश्विन 30 21 18.7 मीन चैत्र 29 23 18.9

पिछले कुछ वर्षों के अधिक मासों की गणना देखें तो वे निम्न प्रकार से हैं

दो संक्रांतियों के बीच प्रायः एक बार अमावस्या पड़ती है। अर्थात सूर्य व चंद्रमा एक ही अंश पर होते हैं क्योंकि दो संक्रांतियों का न्यूनतम मान 29 दिन 10 घंटे 48 मिनट व अधिकतम 31 दिन 10 घंटे 48 मिनट है जबकि दो अमावस्याओं का न्यूनतम मान 29 दिन 5 घंटे 54 मिनट 14 सेकंड से लेकर अधिकतम 29 दिन 19 घंटे 36 मिनट 29 सेकंड है।

अतः ऐसा बहुत ही कम होता है कि दो संक्रांतियों के बीच कोई भी अमावस्या नहीं पड़े। ऐसा केवल 19 वर्ष, या 141 वर्षों के बाद और कभी-कभी 65, 76 व 122 वर्षों के बाद ही होता है। ऐसी स्थिति को क्षय मास की संज्ञा दी गई है। ऐसा केवल छोटी राशियों वृश्चिक, धनु मकर के दौरान ही संभव है अर्थात क्षय मास केवल अगहन, पौष व माघ मास में ही हो सकता है क्योंकि अन्य सभी मासों में सूर्य संक्रांति की अवधि चंद्र मास से अधिक होती है।

जब भी क्षय मास होता है तो निश्चित रूप से दो अधिक मास होते हैं एक पहले व एक बाद में। पिछले एक हजार वर्षों में निम्न क्षय मास हुए हैं:

इस वर्ष 2007 में संक्रांति व अमावस्या की निम्न गणना के कारण ज्येष्ठ मास अधिक मास के रूप में स्थित है

अमावस्या 17.4.07 16.5.07 15.6.07 12.8.07 14.7.07 11.9.07
17:06 24:57 8:43 28:33 17:34 18:14
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संक्रांति मेष वृष मिथुन कर्क सिंह कन्या
14.4.07 15.5.07 15.6.07 16.7.07 17.8.07 17.9.07
12:28 9:19 15:53 26:44 11:10 11:07

क्योंकि वृष राशि में दो बार अमावस्या पड़ रही है अतः दो ज्येष्ठ मास की उत्पत्ति विदित है।


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