प्राकृतिक चिकित्सा सिर्फ औषधि रहित पद्धति ही नहीं अपितु स्वस्थ जीवन जीने की एक कला है। यह सबसे पुरानी चिकित्सा प्रणाली है। महात्मा गांधी के अनुसार प्राकृतिक चिकित्सा ही एक ऐसी पद्ध ति है जो किसी को भी स्वस्थ रखने में सक्षम है। भारत की भौगोलिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक स्थिति के मद्देनजर प्राकृतिक चिकित्सा ही सर्वोत्तम एवं आदर्श चिकित्सा प्रणाली है। दुर्भाग्य वश इस उत्कृष्ट चिकित्सा का समुचित प्रचार-प्रसार नहीं हो सका है।
प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति एक तरह से प्राकृतिक जीवन जीने की कला है। इस पद्धति के माध्यम से उपचार कराकर मनुष्य अपने शरीर के विषों को, शरीर के विजातीय द्रव्यों को तथा अन्य गंदे पदार्थों को, जो गलत खान पान, अंग्रेजी औषधियों के सेवन, कृत्रिम जीवन शैली तथा मानसिक तनाव के कारण उत्पन्न हो जाते हैं, बाहर निकाल कर शरीर की शुद्धि करता है और सभी अवयवों को सुचारु रूप से कार्य करने योग्य बनाता है।
शरीर के अंदर के सभी अंग जब अपना कार्य प्राकृतिक रूप में करने लगते हैं तो वह नीरोग हो जाता है। ऐलोपैथी की औषधियां ठीक उसी प्रकार कार्य करती हैं जैसे कोई बड़ा पौधा सूखने लगे, तो उस पर पानी छिड़कने से ऊपर से हरा भरा दिखाई देने लगे परंतु भीतर से सूखता जाए क्योंकि जड़ में तो पानी डाला नहीं। लेकिन प्राकृतिक उपचार पौधे की जड़ में पानी देने के समान है।
जड़ में पानी मिलते रहने से पौधा तुरंत हरा तो नहीं होगा, पर कुछ समय पश्चात जब हरा होगा तो अपने जीवन पर्यंत हरा भरा रहेगा। हालांकि प्राकृतिक चिकित्सा पद्ध ति को हम अपने रोजमर्रा के जीवन में आसानी से उतार सकते हैं परंतु चूंकि हम सभी इस मशीनी जिंदगी के आदी हो चुके हैं और कृत्रिम उपकरण् ाों एवं दवाइयों के सेवन में अधिक विश्वास रखते हैं इसलिए यदि हम अपनी शारीरिक जरूरत के अनुरूप चिकित्सा लें तो निश्चित रूप से आशातीत लाभ मिलेगा।
विभिन्न पुस्तकों में वर्णित वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों के सिद्धांतांे को अपनाने के साथ-साथ यदि उनका व्यावहारिक प्रशिक्षण भी मिल जाए तो उन्हें अपने जीवन में उतारना अधिक सरल हो जाएगा। इसके लिए वैसे तो विभिन्न शहरों में अनेक प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र खुले हुए हैं जहां प्राकृतिक रूप से रोगों का निदान किया जाता है, परंतु मैंने स्वयं जिस प्राकृतिक जीवन केंद्र में स्वास्थ लाभ लिया और वहां कुछ दिन रह कर वहां के वातावरण का आनंद उठाया उसका उल्लेख अपने पाठकों के लिए अवश्य करना चाहूंगी।
गांधी स्मारक निधि द्वारा संचालित पट्टी कल्याण, जिला पानीपत हरियाणा में प्राकृतिक जीवन केंद्र आश्रम स्थित है। इसकी स्थापना वयोवृद्ध तपस्वी दम्पति श्री ओम प्रकाश जी त्रिखा एवं माता लक्ष्मी दवे ी त्रिखा न े सन ् 1955 मंे की थी। प्राकृतिक जीवन केंद्र आश्रम हरे भरे खेतों, अमरूद, अनार, पपीते, आंवला, आड़ू, आम आदि के पेड़ों एवं महकती फुलवारियों से सुसज्जित है तथा प्राकृतिक चिकित्सा के लिए जिस खुले एवं स्वच्छ वातावरण की आवश्यकता होती है वह यहां चारों तरफ व्याप्त है यहां चारों ओर शांति एवं हरियाली का साम्राज्य है।
रोगियों के निवास की पूर्ण व्यवस्था है और उन्हें डाॅक्टर के परामर्श के अनुसार भोजन की व्यवस्था भी यहां के भोजनालय द्वारा की जाती है। यहां पर किसी भी प्रकार की दवा का पय्र ागे नही ं हाते ा। दवाआ ंे क े स्थान पर सर्व सुलभ प्रकृति प्रदत्त पंच महाभूत हवा, पानी, धूप, मिट्टी और आकाश के अतिरिक्त आहार में उचित संयम, योगासन, व्यायाम, मालिश तथा अल्प मात्रा में सेंक आदि के लिए विद्युत लैंप आदि के द्वारा रोग का उपचार किया जाता है। इसके अतिरिक्त, पानी, मिट्टी, वाष्प द्वारा भी रोगों का उपचार होता है।
मिट्टी, पानी, धूप, हवा सभी रोगों की यही दवा पानी: रोग के अनुसार विविध प्रकार के स्नान जैसे कटि स्नान, रीढ़ स्नान, पैर स्नान, गर्म व ठंडा टब स्नान, पूरे शरीर का उष्ण टब स्नान आदि कराए जाते हंै। पानी के अंदर शरीर से विकार को दूर करने की अद्भुत शक्ति होती है। मिट्टी: रोग के अनुसार शरीर के वि.ि भन्न अंगों पर मिट्टी का लेप किया जाता है। मिट्टी की पट्टी पेट पर तथा आंखों पर रखी जाती है। पूरे शरीर पर गीली मिट्टी का लेप लगाकर मिट्टी स्नान कराया जाता ह ै क्यांिे क शरीर के अंदर से विजातीय द्रव्य को खींचकर दूर करने का सर्वश्रेष्ठ साधन मिट्टी है।
वाष्प स्नान: त्वचा द्वारा प्रकृति पसीने के रूप में शरीर से संचित विषाक्त तत्वों को बाहर निकालती है। वाष्प स्नान से त्वचा की कार्य क्षमता का बढ़ाया जाता है ताकि विषाक्त तत्व अधिक से अधिक मात्रा में शरीर से बाहर निकल सकें।
व्यायाम: शरीर के विभिन्न अवयवों को शक्ति देने के लिए रोगी की दशा के अनुसार विभिन्न प्रकार के योगासन सिखाए जाते हैं जिनसे शरीर की जीवनी शक्ति बढ़ती है।
मालिश: वैज्ञानिक पद्धति से की गई मालिश से शरीर की क्षमता का विकास होता है और शरीर के अंदर हर कोषाणु में आक्सीजन पहुंच कर विजातीय द्रव्यों को भस्म कर देती है इसके अतिरिक्त मालिश से मांसपेशियों को भी शक्ति मिलती है।
खर्च: यहां के शुल्क में निवास शुल्क के अतिरिक्त प्राकृतिक उपचार एवं भोजन शुल्क भी शामिल है। प्रतिदिन लगभग 100/- रुपये का खर्च आता है। जो रोगी स्पेशल कमरा केवल अपने लिए लेना चाहें, उनके लिए 150/- रुपये प्रतिदिन अन्यथा सामूहिक निवास में यह खर्च केवल 70-80 रुपये प्रतिदिन ही आता है। आश्रम में मुंबई, कोलकाता, इंदौर, पंजाब, दिल्ली के अतिरिक्त देश के दूरस्थ क्षेत्रों से भी रोगी स्वास्थ्य लाभ के लिए आते हैं। विशेषकर महिलाओं के लिए आश्रम अत्यंत ही लाभदायक है जहां वे अच्छी सेहत का लाभ ले सकती हैं और अपने शरीर का संतुलन बनाए रख सकती हैं।
डाॅ. सुमेर चंद गुप्ता एवं उनकी धर्मपत्नी डाॅ. स्नेहलता गुप्ता दोनों पूरी निष्ठा से अपने रोगियों की देखभाल करते हुए आश्रम में ही निवास करते हैं। यहां के अन्य कर्मचारी भी अत्यंत परिश्रमी, एवं कर्तव्यनिष्ठ हैं और दिन भर कार्य में जुटे रहते हैं। यहां पर शहर के कोलाहल से दूर कुछ समय शांति से बिता कर हम निश्चित रूप से अपने शरीर एवं मस्तिष्क के तनाव को मिटा कर नई ऊर्जा एवं शक्ति का विकास कर सकते हंै।
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