रमल ज्योतिष : एक नजर में
रमल ज्योतिष : एक नजर में

रमल ज्योतिष : एक नजर में  

फ्यूचर समाचार
व्यूस : 10610 | मई 2007

रमल शब्द अरबी भाषा से संबंधित है, जिसका अर्थ है गोपनीय बात अथवा वस्तु को प्रकट करना। अरब देश के मुस्लिम ‘नबी’ द्व ारा आविष्कृत यह रमल भविष्य के गर्भ में छिपी हुई घटनाओं को उद्धृत करने वाली वह सटीक ज्योतिषीय विद्या है, जो गूढ़ से गूढ़ रहस्य खोलने का सामथ्र्य रखती है। इसलिए इस इल्म ज्याेि तष को ‘इल्म-नुक्तज’ तथा ‘इल्म-खत’ भी कहा और लिखा गया है।

रमल विद्या में भी बारह भावों -तन, धन, बंधु-बांधव, मां, पुत्र, विद्या, शत्रु, मामा, जाया, मृत्यु, कर्म, लाभ एवं व्ययादि के साथ अन्य प्रकार से फलादेश चमत्कारिक ढंग से किया जाता है। ‘रमल रहस्य‘ (लेखक: भय भंजन शर्मा) पुस्तक के अनुसार पार्वती के द्वारा प्रश्न विद्या के ज्ञान के बारे में सवाल किए जाने पर भगवान शिव के मस्तक पर स्थिर चंद्रमा से अमृत की चार बूंदें गिरीं, जो क्रमशः अग्नि, वायु, जल और पृथ्वी तत्त्व की प्रतीक थीं।

इन्हीं बिंदुओं पर आधारित इस रमल ज्योतिष में सोलह शक्लों के रूपक बने, जो इस विद्या के आधार रूप हैं। वैसे भी शास्त्र द्वारा प्रमाण् िात होता है कि यह विद्या ‘भारत‘ से ही अरब देशों में गई तथा वहां खूब प्रचलित हुई और भारत में विलुप्त सी हो गई, क्योंकि इसके आधार शास्त्र प्राचीन ‘प्राकृत‘ भाषा में थे और बाद में अरबी और फारसी में लिखे गए।

संस्कृत एवं हिंदी साहित्य में यह बहुत ही कम उपलब्ध है। कालांतर में यह विद्या, विलुप्त हो जाने के बाद, पुनः जब भारत में कुछ व्यक्तियों द्वारा लाई गई, तब यह विद्या पुनः प्रकाश में आई। आज भी देश में रमल शास्त्र क े गथ्ं्र ाा ंे एव ं ज्ञानिया ंे की कमी महससू होती है। इस विद्या में ज्योतिष ज्ञान के बारह भावों के अलावा चार - 13 से 16 शक्लें साक्षी भावों को प्रदर्शित करती हैं।

इस प्रकार 16 शक्लें रमल ज्योतिष की जान हैं। इनके बगैर रमल ज्योतिष का कोई चमत्कार नहीं है। इन सोलह शक्लों में कुल ‘‘बत्तीस जोज (-) लेटे डंडे की शक्ल‘‘ एवं ‘‘बत्तीस ही फर्द ( .) बिंदु की शक्ल‘‘ के रूप मंें चिह्न होते हैं। बिंदु को नुक्ता भी कहा जाता है। एक जोज दो बिंदुओं (नुक्तों) का जोड़ है।

इस प्रकार जोज के चैंसठ एवं फर्द के बत्तीस कुल 64$32=96 फर्द/नुक्ते/बिंदु हुए। रमल शास्त्र का स्वरूप एवं आवश्यक उपकरण परिचय: इसमें न कोई कुंडली की शक्ल बनाई जाती है और न ही उनके होरा, नवांश आदि का गणित करना पड़ता है। इसमें सबसे आवश्यक उपकरण का नाम ‘पाशा‘ है।

पासा (पाशक) का स्वरूप: पाशक अष्ट धातु (सोना, चांदी, लोहा, सीसा, पीतल, तांबा, जस्ता और पात) के बनाए जाते हैं, जो निम्न शक्लें बनाती हैं: चार पाशकों की दो जोड़ी बनती है। ये पासे सात तोले, सात माशा, सात रत्ती या बारह तोले, बारह रत्ती के बनाए जाते हैं। इनमें सोना, चांदी एक-एक रत्ती एवं शेष धातुएं इच्छानुसार डाली जा सकती हैं। इनमें पीतल सर्वाधिक वजन का होता है। ये धातुएं नवग्रहों की द्योतक हैं।

पाशक बनवाने का समय: जब सूर्य देव मेष राशि पर पधारें तथा चैत्र मास में दिन और रात्रि जब बराबर हों, उस दिन स्वर्णकार, स्नानादि कर, शुद्ध वस्त्र पहन कर, प्रातः दस बजे से पहले ये पासे तैयार करे। पासे तैयार करते वक्त स्वर्णकार पूर्व की तरफ मुंह कर के बैठे तथा गुग्गल की धूनी दे कर कार्य आरंभ करे।

पाशक का आकार एवं संख्या: ये पाशक चार पहलू वाले आकार के आठ बनते हैं और वजन तथा आकृति में समान होते हैं। इन्हें तांबे या लोहे के तारों (मोटे) में चार-चार के दो जोड़ों में पिरोते हैं, ताकि वे तारों में घूमते रहें। प्रत्येक पासे के चार पहलू होते हैं। इसके हर पहलू पर क्या-क्या चिह्न लगेंगे, यह पीछे बना कर दिखा दिया गया है। हर पाशक के पहलू पर ये क्रमानुसार बनाए जाएंगे। इस प्रकार दो जोडे़ (कुल आठ) पाशक तैयार हो गए।

रमल डालने का नियम और विधिः रम्माल (रमलज्ञ अथवा रमल विद्या के पंडित) तथा सायल (प्रश्नकत्र्ता) दोनों ही शुद्ध वस्त्र धारण करें। उनका शरीर भी शुद्ध हो। वे पवित्र और शुद्ध स्थान पर, शुद्ध आसन पर बैठंे। समय सूर्योदय के बाद का हो।

प्रश्नकत्र्ता मन को स्थिरता दे कर, प्रश्न को मन में पूर्णतः विचार कर, ¬ नमो भगवती कुष्मांडिनी सर्व कार्य प्रसाधिनी, सर्व निमित्त प्रकाशिनी एहि एहि त्वर त्वर वरं देहि, हिलि हिलि मातंगिनी सत्यं ब्रूहि, सत्यं ब्रूहि स्वाहा।

मंत्र का सात बार जप कर के दोनों पासों को (चार पाशक का एक तथा चार पाशक का दूसरा) हथेली में बार-बार घुमा कर रमलज्ञ के समक्ष रख दे। अब रमलज्ञ उसमें से 16 शक्लों का जायचा बनाएगा तथा प्रश्न का उत्तर देगा। प्रश्नकत्र्ता इस बात का ध्यान रखे कि खाली हाथ प्रश्न न करे।

यहां एक बात रमलज्ञ भी ध्यान में रखें, कि ‘पाशक‘ के जोड़े को प्रश्नकत्र्ता के हाथ में देने से पहले, (लह्यान) के रूप में अष्ट पाशकों को रख कर उपर्युक्त मंत्र से स्वयं भी उन्हें सात बार अभिमंत्रित करें। फिर उसे प्रश्नकत्र्ता के दाहिने हाथ में रखें और उपर्युक्त विधि से फेंकने को कहें। जब प्रश्नकत्र्ता उपर्युक्त विधि के बाद पाशक डाल दे, तब रमलज्ञ उसका निम्न विधि से जायचा बनाएं।

दोनों पाशक जोड़ियों को सीधा मिला कर (फेंकने के अनुसार) उनके बिंदुओं से चार मूल रूपी शक्लें बनाएं, जिन्हें हम मातृ गृह या उमाहांत कहते हैं।

फेंके पाशक जोड़े का चित्र - चार शक्लें उमाहांत की, उसके बाद चार शक्लें बनात की, उसके बाद चार शक्लें दौहित गृह की तथा चार शक्लें साक्षी गृह की बनेंगी। इन चार शक्लों से उमाहांत (मातृ) गृह की रूपियां बन गईं। अब आगे 5 से 8 रूपियां, 9 से 12 रूपियां एवं 13 से 16 रूपियां बनाएंगे।

1 से 4 की शक्लों में से ऊपर के पहले चारों चिह्नों को क्रमशः उतार कर पांचवीं, उसके बाद दूसरी लाइन की शक्लें उतार कर छठी, तीसरी लाइन उतार कर सातवीं, चैथी लाइन मातृ गृह: पाशक से उतारी गई (दायीं से बायीं तरफ) प्रथम चार रूपियांः दुहितृ (बनात) गृह: उल्टे क्रम से ही ऊपर से पहली लाइन के बिंदु एवं लाइनें उतार कर 5वीं शक्ल, फिर दूसरी लाइन के बिंदु और लाइनें उतार कर 6ठी शक्ल, फिर तीसरी लाइन के बिंदु एवं लाइनें उतार कर 7वीं शक्ल और इसी प्रकार चैथी लाइन के बिंदु एवं लाइनंे उतार कर 8 शक्लें ली गईं।

दौहित गृह: अब 1ग2 शक्लों का गुणा कर के (गणित के अनुसार (0)ग(0)=(-), (-)ग(-)=(-), (0)ग(-)=(0) तथा (-)ग(0) (0) तथा 3ग4 शक्लों का गुणा कर के 9 एवं 10 शक्लें प्राप्त हुईं और 5ग 6 एवं 7 ग 8 शक्लों का गुणा कर के 11 एंव 12 शक्लें प्राप्त हुईं। साक्षी गृह: अब 9 ग 10, 11 ग 12 का 13,14,15,16 गुणा कर के क्रमशः 13 एवं 14 की शक्लें प्राप्त हुईं। फिर 13 ग 14 का गुणा कर के 15वीं शक्ल आई तथा 15 ग 1 का गुणा कर के 16वीं शक्ल बनी।

इस प्रकार जायचा तैयार हो गया तथा इनमें से प्रश्नों के उत्तर दिए जाते हैं। रमल शास्त्र की वर्णमाला 16 15 14 13 जैसे 1 रूपी तो 7वीं रूपी हो जाती है। 2 रूपी 3 में हो जाती है। 4 रूपी 16 वें में से हो जाती है। 5 वीं 13 वीं में से इन 16 बिंदुओं पर आधारित है। 16 रूपियों के ग्रह स्थान हैं: 1. शकुन क्रम, 2. अ ब ज द क्रम, 3. वि ज द ह क्रम 4.संख्या क्रम, 5. अ ब द ह क्रम, 6. खेट क्रम 7. वर्ण क्रम । इनसे ये ग्रह स्थान भिन्न-भिन्न रूप में वर्णित हैं। चार तत्वों अग्नि, वायु, जल और पृथ्वी पर आधारित यह रमल शास्त्र चंद्रमा की 16 तिथियां भी दर्शाता है।

रमल शास्त्र में उपर्युक्त सात क्रमों में से शकुन क्रम को ज्यादा महत्ता दी गई है। इसके अनुसार ही रमल द्व ारा प्रश्नों के उत्तर दिए जाते हैं। 16 रूपियों में से 8 रूपियां 1, 2, 4, 5, 6, 8, 10,12 जिस शक्ल में होती हैं, दूसरी आठ रूपियां विलोम क्रम से हैं। रमल एक वृहद शास्त्र है। इसमें ज्योतिष की तरह गणित तो नहीं होता, परंतु जगह-जगह पर इसके विश्लेषण की आवश्यकता होती है। जैसे बंद जायचा बनता है, तो उसे दोबारा खोल कर बनाना पड़ता है।

इसमें भी गृह रूपी शक्लों का बलाबल देखना होता है। बारह भावों की 12 रूपियां हो गईं तथा 13 से 16 रूपियां साक्षी रूपियां हैं। इनमें से 13 को ‘रमल घट‘, 14 को ‘रमल दर्पण‘ 15 को ‘रमल तुला‘ (मीजान) तथा 16 को ‘रमल जिह्वा’ कहा गया है।

If you are facing any type of problems in your life you can Consult with Astrologer In Delhi



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.