चेहरा पढ़कर भविष्य बताएं किसी व्यक्ति के चेहरे पर विभिन्न बाह्य तथा आंतरिक तत्वों के कारण, उसके व्यक्तित्व की झलक दिखाई दे जाती है। चेहरे की आकृति को पढ़ने का ज्ञान मुखाकृति विज्ञान और सामुद्रिक विज्ञान के अध्ययन से प्राप्त होता है, आइए जानें।
कभी भी किसी व्यक्ति की मुखाकृति देखकर भविष्य कथन किया जा सकता है लेकिन किसी एक लक्षण के आधार पर तुरंत किसी निर्णय पर नहीं पहुंच जाना चाहिए, क्योंकि चेहरे का कोई एक लक्षण संपूर्ण भविष्य का सूचक नहीं होता। अतः शुभाशुभ लक्षणों के सूक्ष्म विश्लेषण के बाद ही किसी निर्णय पर पहुंचना उचित होता है।
‘‘सामुद्रिक शास्त्र वह कला अथवा विज्ञान ह,ै जिसम ंे मानव की मख्ु ााकृति या संपूर्ण शरीराकृति के बाह्य चिह्नों या लक्षणों के संयोग से उसके व्यक्तित्व की प्रधान चारित्रिक विशेषताओं का अध्ययन किया जाता है।’’
दूसरे शब्दों में, ‘‘सामुद्रिक शास्त्र वह कला तथा विज्ञान है जिसमें मानव शरीर के प्रमुख चैदह आंतरिक तथा बाह्य तत्वों की पृष्ठभूमि में ग्रह पर्वतों, रेखाओं (विशेष) एवं अन्य छोटे-बड़े चिह्नों के सांकेतिक लक्षणों के आधार पर उसके जीवन के सभी कालों का अध्ययन किया जाता है।’’
पाश्चात्य देशों में सामुद्रिक शास्त्र को फिजियोनाॅमी कहते हैं। चेहरा जहां एक ओर व्यक्ति का स्वभाव बताता है, वहीं दूसरी ओर उसके भाग्य, समस्या, आरोग्य आदि की बातें भी बताता है। इसलिए मानव के चेहरे को एक प्रदर्शक दर्पण भी कहा जाता है। चेहरे से व्यवसाय अथवा नौकरी के भविष्य कथन करने की दो प्रणालियां हंै-
अनुमान प्रणाली और अनुभव प्रणाली। प्रथम प्रणाली के अनुसार जहां एक ज्ञान से दूसरा ज्ञान प्राप्त कर सामान्य से विशेष की ओर जाया जाता है, वहां द्वितीय प्रणाली के अनुसार परीक्षण से परिणाम पर पहुंच कर विशेष से सामान्य की ओर जाया जाता है। सामुद्रिक शास्त्र के अध्ययन से हम यह जान सकते हैं कि व्यक्ति को किस प्रकार के व्यापार अथवा किस प्रकार की नौकरी से लाभ होगा।
प्रत्येक व्यक्ति के मन में यह जानने की इच्छा रहती है कि उसे व्यवसाय से लाभ होगा अथवा नौकरी से। हम मन में जिस काम को करने की इच्छा रखते हैं, अगर शारीरिक रूप से समर्थ न हों, तो वह काम नहीं कर सकते। किसी के मन में व्यवसाय करने की इच्छा हो, लेकिन उसमें इसकी क्षमता न हो अथवा वह शारीरिक रूप से असमर्थ हो, तो व्यवसाय नहीं कर सकता।
सामुद्रिक शास्त्र के आधार पर हम पता लगा सकते हैं कि किसी व्यक्ति में किस कार्य के गुण हैं। अलग-अलग व्यक्ति की मुखाकृति अलग-अलग होती है। फलकथन मुखाकृति के अनुरूप ही करना चाहिए। यहां उल्लेख कर देना जरूरी है कि व्यवसाय या नौकरी तभी लाभप्रद होगी जब व्यक्ति खुद परिश्रम करे। जिन लोगों की आकृति कुत्ते, बैल या घोड़े से मिलती हो, वे सरल और नीतिवान होते हैं। व्यवसाय के प्रति कौन से गुणों का होना जरूरी है, यह जानना बहुत आवश्यक है।
सामुद्रिक शास्त्र हमें व्यक्ति में व्यवसाय के गुण हैं या नहीं, इससे अवगत कराता है। अगर किसी व्यक्ति का चेहरा वायुतत्व प्रधान हो, तो वह कभी स्थिर, कभी अस्थिर, कभी सौम्य और कभी उच्छृंखल हो सकता है। कभी बुद्धि मत्तापूर्ण तो कभी मूर्खतापूर्ण क्रियाएं करता है। उसका स्वभाव कभी आशावादी तो कभी निराशावादी हो सकता है। वह संगीत, हास्य व व्यंग्य का प्रेमी, मनमौजी, उथले स्वभाव का एवं पर्यटन पे्रमी हो सकता है।
उसमें काम वासना के प्रति आकर्षण, असत्यवादिता, चिड़चिड़ापन आदि भरे होते हैं। वह अक्सर बीमार रहता है। आवाज के द्वारा भी हम पता लगा सकते हैं कि व्यक्ति का चेहरा किन गुणों से युक्त है। जो लोग कला के क्षेत्र से जुड़े होते हैं, उनकी आवाज में एक बुलंदी होती है। यह गूंज, गंभीरता या नाद ऐसा प्रतीत होता है मानो दुंदुभि, मृदंग, मेघ या सिंह गर्जन हुआ हो।
इस स्वर का आदि, मध्य और अंत तीनों संतुलित होते हैं। जो लोग गायन, संगीत आदि से जुड़े होते हंै, उनका चेहरा स्नायुतत्व प्रधान होता है। लेकिन उनकी प्रतिभा में फर्क होता है। जिन लोगों का अपना व्यवसाय होता है उनकी आकृति सामान्यतः गोल तथा ललाट उठा हुआ होता है। कनपटी के पास का मार्ग चैड़ा, आंखें बड़ी तथा भूरी, भौंहें पतली, मुंह छोटा, होंठ भरे हुए तथा कुछ खुले, दांत बड़े व कुछ पीले, ठोड़ी गोल किंतु पीछे को हटी हुई, नाक छोटी और वाणी धीमी होती है।
जिन जातकों में ये गुण पाए जाते हैं वे सामान्यतः कल्पज्ञ, सौंदर्यप्रेमी, स्वप्नदर्शी, मनमौजी, संवेदनशील, निराश, चंचल, एकांतप्रेमी एवं सहृदय होते हैं। उन्हें साहित्य एवं संगीत से विशेष प्रेम होता है। जो लोग नाट्यकला से जुड़े होते हैं, उनका चेहरा शुक्र ग्रह से प्रभावित रहता है। उनका चेहरा लंबा, कुछ वर्तंुल, कम उभरा हुआ एवं स्निग्ध होता है।
आंखें श्वेत, दांत सुंदर, साफ एवं पंक्तिबद्ध, भौंहें हल्की, रंग साफ, बाल काले एवं वाणी कोमल होती है। ऐसे जातक सहिष्णु, एकांतप्रिय, भावुक, प्रशंसाप्रिय, कामुक, संगीत या नाटकप्रेमी, रेशमी वस्त्रों और गुलाबी या पीले रंग के शौकीन होते हैं। कलाकारों के कानों के ऊपर का भाग वर्तुल, स्निग्ध, स्वच्छ एवं सामान्य होता है। कान के बाहरी स्वरूप एवं स्थिति का कान के छिद्रों, ग्रंथियांे एवं नाड़ी तंतुओं पर अत्यधिक प्रभाव होता है। ये सभी गुण मनुष्य के स्वभाव एवं चरित्र के निर्धारक होते हैं।
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