वास्तु शास्त्र: ओल्ड इज गोल्ड
वास्तु शास्त्र: ओल्ड इज गोल्ड

वास्तु शास्त्र: ओल्ड इज गोल्ड  

अविनाश कुलकर्णी
व्यूस : 3803 | आगस्त 2016

भारतीय ऋषि-मुनियों ने वास्तुशास्त्र की खोज कर संपूर्ण मानव जाति को जिन ग्रंथों के माध्यम से उपकृत किया है, उन ग्रंथों का अध्ययन करना अति आवश्यक है। आधुनिक वास्तुशास्त्र के नाम पर मूल वास्तुशास्त्र को विस्मृत कर देना कतई ठीक नहीं है। आजकल की नई किताबें अगर आप पढ़ें तो उनमें दक्षिण दिशा के द्वार को अशुभ लिखा हुआ पाएंगे। ऐसी कई बाते हैं। हालांकि विश्वकर्माजी, मानासरजी, मयासूरजी आदि वास्तुशास्त्र के महान प्रवर्तकों ने कभी भी दक्षिण दिशा के द्वार को अशुभ नहीं कहा है। मत्स्यपुराण अ. 255 याम्यं च वितयं चैव देक्षिणेन विदुर्बधा।। 8।।

(बुद्धिवान लोग दक्षिण दिशा के यम/वितथ वास्तुपदों में प्रवेशद्वार रखते हैं।) समरांगण सूत्रधार अ. 31 विप्राणां प्राइमुखंवास्तु गृहंस्याद दक्षिणामुखम् वर्धते धनधान्येन पुत्र पौत्रस्य नित्यशः। (पूर्वाभिमुखी वास्तु तथा दक्षिणाभिमुखी भवन धन, धान्य, पुत्र, पौत्र वृद्धिकारी होते हैं।) नारदसंहिता, बृहद्संहिता, गर्ग, नंदीऋषि ने भी दक्षिण द्वार को लेकर यही बातें स्पष्ट की हंै। फिर भी आजकल दक्षिण द्वार को अशुभ बताया जाता है। दुनिया की जानी मानी बिल्डिंग के मुख्य द्वार दक्षिण दिशा में हैं।

दुनिया के सबसे शक्तिशाली समझे जाने वाले अमेरिका के राष्ट्रपति जहां रहते हैं वह व्हाईट हाउस, दुनिया की सबसे समृद्ध समझी जाने वाली मायक्रोसाॅफ्ट कंपनी की एंपायर स्टेट बिल्डिंग का भी उस लिस्ट में शुमार है जिनके द्वार दक्षिण दिशा की ओर हैं। श्री विश्वकर्मा द्वारा रचित वास्तुशास्त्र के मुख्य गं्रथ विश्वकर्मा प्रकाश में वे लिखते हैं- वास्तुशास्त्रं प्रवक्ष्यामि। लोकाना हितकाम्मया।। 5।।

इससे यह स्पष्ट होता है कि वास्तुशास्त्र का उद्देश्य लोककल्याण, जगतकल्याण है। वास्तु ग्रंथों के महान अनुवादक डाॅश्रीकृष्ण जुगनू जी का हमें धन्यवाद करना चाहिए जिन्होंने 70 से ज्यादा वास्तुशास्त्र से संबंधित संस्कृत ग्रंथों को हिंदी में अनुवादित किया। इस बात के लिए उन्हें राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया है।

उनके अनुवादित ग्रंथ हमारी भारतीय ज्ञान परंपरा को आज भी दीपस्तंभ साबित कर रहे हैं। वास्तुशास्त्र से संबंधित सौ से अधिक ग्रंथ इस बात के प्रमाण हंै कि यह शास्त्र विज्ञानवादी एवं सभी के कल्याण हेतु रचा गया। इसके तथ्य आज भी वही निर्णय देते हैं, जैसे ग्रंथों में कहा गया है।

इसलिए पुराने ग्रंथों का अभ्यास किये बिना हम कभी भी उत्तम स्थापति (वास्तु विशेषज्ञ) नहीं बन सकते। आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में सैकड़ों किताबंे पढ़ना सभी के लिए संभव नहीं है। ऐसे वक्त हम अच्छे वर्कशाॅप्स तथा सेमिनार्स के माध्यम से स्वयं को अपडेट रख सकते हैं। वास्तु आरोग्यम् एवं ज्योतिष प्रबोधिनी के द्वारा वास्तुशास्त्र के विषय में अनेक वर्कशाॅप्स का आयोजन किया जाता है।

प्राचीन ग्रंथसंपदा इन सेमिनार एवं वर्कशाॅप्स के मुख्य स्रोत तथा आधार होते हैं। ग्रंथों में लिखे इस ज्ञान के माध्यम से दोषयुक्त वास्तु का दोषमुक्त करना संभव है। वास्तु आरोग्यम् एवं ज्योतिष प्रबोधिनी कई सालों से यही प्रयास कर रही है कि जो प्राचीन एवं दुर्लभ ग्रंथों में दिया है, उस ज्ञान का प्रसार सर्वत्र हो। तो चलिए, हम इन्हीं प्राचीन ग्रंथों को रिडिस्कवर करते हैं। वास्तु शास्त्र सीखें, जो सच्चा है और शाश्वत है। समस्त लोकाः सुखिनो भवन्तु ।

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