आचार्य वराह मिहिर ने निम्न ग्रह योग में जातक का जन्म शुभ माना है: शुभं वर्गोत्तमे जन्म वेशिस्थाने च सद्ग्रहे अशून्येषु च केन्द्रेषु कारकारव्य ग्रहेषु च’’ (बृहत जातक 22.4) अर्थात लग्न वर्गोत्तम नवमांश में हो। सूर्य जिस राशि में स्थित हो, उससे अगली राशि में शुभ ग्रह (बुध, बृहस्पति या शुक्र) स्थित होकर ‘‘वेशि’’ योग का निर्माण करे।
चारों केंद्र ग्रहों से भरे हों। कुंडली में कारक ग्रह स्थित हों। कारक ग्रहों की व्याख्या करते हुए आचार्य वराह मिहिर कहते हैं:
स्वक्र्षतुंगमूलत्रिकोण कण्केषु यावन्त आध्रिताः।
सर्व एव तेऽन्योन्यकारकाः कर्मगस्तु तेषां विशेषतः।। (बृ. जा., 22.1)
अर्थात् जो ग्रह स्वस्थान, स्वोच्च तथा स्वमूलत्रिकोण में होकर लग्नादि केंद्र में स्थित हो, और ऐसे ही स्वस्थान आदि में स्थित अन्य ग्रह भी केंद्र में स्थित हो, तो दोनों परस्पर कारक संज्ञक होते हैं। जो ग्रह किसी दूसरे ग्रह से दशम स्थान में स्थित होता है वह उसकी अपेक्षा विशेष बलकारक होता है। कारक योग (संबंध) का उदाहरण देते हुए वह कहते हैं:
कर्कटोदयगते यथोडुपे स्वोच्चगाः कुजयमार्क सूरयः।
कारका निगदिताः परस्परं लग्नस्थ सकलोऽम्बरांबुगः।।
अर्थात् कर्क लग्न की कुंडली में जन्म लग्न में चंद्र और बृहस्पति, शनि चतुर्थ (तुला) में, मंगल सप्तम (मकर) में और सूर्य दशम (मेष) में उच्च स्थित होकर परस्पर कारक बनकर परम सहयोग करते हैं। सारावली ग्रंथ में दी गई उदाहरण कुंडली इस प्रकार है:
रवितनयो जूकस्थः कुलीर लग्ने बृहस्पति हिमांशु।
मेषे कुजो रवियुत ः परस्परं कारका ऐव।
इस कुंडली में मंगल उच्च का न होकर स्वक्षेत्री तथा दिग्बली है। अन्य ग्रह पहले की तरह ही स्थित हैं।
भावार्थ रत्नाकर ग्रंथ के अनुसार:
मेषे रवि कर्कटस्थौ जीव चंद्रौ तुला शनि।
मकरस्थो भवैत्भौमो राजयोग उदीरितः।। (भा. रत्न., 9.22)
अर्थात् यदि सूर्य मेष लग्न में हो, और चंद्र तथा बृहस्पति कर्क राशि में, शनि तुला में और मंगल मकर राशि में हो, तो राजयोग की प्राप्ति होती है। यह ग्रहों द्वारा बने कारक योग का फल है।
ऊपर वर्णित तीनों उदाहरण कुंडलियों में 5 ग्रहों के परस्पर केंद्र स्थान में स्वक्षेत्री अथवा उच्च के होने के कारण कारक योग का निर्माण हुआ, जिसके फलस्वरूप परस्पर वैरी ग्रह (सूर्य-शनि, मंगल-शनि) भी परस्पर कारक बनकर सहयोग करते हैं। कारक योग एक श्रेष्ठ राजयोग है।
सारावली ग्रंथ के अनुसार:
नीचकुले संभूतः कारकविहगैः प्रधनतां याति।
क्षितिपति वंश समुत्यो भवति नरेन्द्रो न सन्देहः।
अर्थात् कुंडली में कारक योग होने पर जातक उच्च पद प्राप्त करता है। राजकुल में जन्म होने पर वह राजा होता है। महर्षि पराशर ने ग्रहों के लग्न से केंद्र में स्थित होने के अतिरिक्त उनके परस्पर केंद्र में होने पर भी कारक योग का निर्माण माना है।
आज के युग में कुंडली में कारक योग होने पर जातक राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल या मंत्री पद पा सकता है अथवा अपने कार्यक्षेत्र में प्रधान पद प्राप्त कर सकता है। उदाहरण कुंडलियां जन्म लग्न कर्क है जिसमें स्वक्षेत्री चंद्र स्थित है। चतुर्थ भाव में स्वक्षेत्री श् ा ु क्र ह ै । द ा े स्वक्षेत्री शुभ ग्रहों के परस्पर केंद्र में होने से शुभकारक योग का निर्माण हुआ।
नेहरू जी ने स्वतंत्रता संग्राम में संघर्ष के पश्चात 15/8/1947 को स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री का पद ग्रहण किया और मृत्युपर्यंत उस पद पर बने रहे। शाहरूख खान का लग्न सिंह है। चतुर्थ केंद्र में मंगल तथा सप्तम केंद्र में शनि दोनों स्वक्षेत्री होकर कारक योग का निर्माण कर रहे हैं। पंचमेश बृहस्पति की पंचम स्थित शुक्र पर, लग्नेश सूर्य पर तथा सप्तमेश शनि पर दृष्टि है।
कुंडली में वेशि, शश, मालव्य और रुचक योग भी हैं। पंचम स्थित दशमेश शुक्र पर बृहस्पति की दृष्टि ने उन्हें फिल्म लाइन में प्रवेश दिलाया और कारक योग ने उन्हें अपने कार्य क्षेत्र में पूर्ण सफलता दिलाई। वह बाॅलीवुड के बादशाह कहे जाते हैं और अत्यंत लोकप्रिय हैं।
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