यत्रराज श्री यंत्र की महत्ता यंत्रों की साधना में सर्वोपरि मानी गई है। इसकी साधना यंत्र एवं मंत्र के द्वारा संयुक्त रूप से की जाती है। इसे श्री विद्या के नाम से जाना जाता है। आदि शंकराचार्य भी इस विद्या के महान उपासक थे। आज भी इसके उपासक हैं जो देश विदेश में धन, यश, ख्याति प्राप्त कर रहे हैं।
इस यंत्र की साधना से आर्थिक संकट दूर हो जाता है और आजीविका, व्यवसाय आदि में उन्नति और घर परिवार में सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है। संपूर्ण श्री यंत्र में बारह अन्य यंत्रों को क्रमशः संपुटित किया गया है। श्री यंत्र के चारों ओर इन यंत्रों का समायोजन किया जाता है, जिस कारण यह यंत्र अधिक प्रभावशाली होता है।
भारत वर्ष के अनेक मठ मंदिरों में श्री यंत्र स्थापित हैं, जिनके दर्शन मात्र से ही मनुष्य की मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। इस संपूर्ण श्री यंत्र की घर में स्थापना, प्राण प्रतिष्ठा और पूजा उचित शास्त्रीय विधि से करने से व्यक्ति की सभी मनोभिलाषाएं पूर्ण होती हैं।
उत्तम फल की प्राप्ति के लिए इसकी स्थापना किसी सुयोग्य कर्मकांडी ब्राह्मण से करवानी चाहिए। स्थापना विधि के अनुरूप किसी शुभ मुहूर्त में अथवा शुक्ल पक्ष में सोमवार, बृहस्पतिवार या शुक्रवार को करनी चाहिए, केशर मिश्रित दूध से अभिषिक्त करके महालक्ष्मी बीज मंत्र श्रीं नमः से प्राण प्रतिष्ठा करके षोडषोपचार अथवा पंचोपचार पूजा करके स्थापना करनी चाहिए।
यंत्र से लाभ: जिन लोगों की आर्थिक स्थिति कमजोर हो गई हो, धन प्राप्ति का कोई भी रास्ता नजर न आ रहा हो, उन्हें अपने घर में श्री यंत्र की स्थापना करके नित्य उसके सम्मुख बैठकर धूप, दीप जलाकर श्रद्धा भाव से ‘कनकधारा स्तोत्र’ का पाठ करना चाहिए। इससे आर्थिक संकट दूर हो जाता है।
जिन लोगों की आमदनी अच्छी होने के बावजूद धन नहीं टिकता हो, लाख कोशिश करने पर भी बचत नहीं होती हो, उन्हें अपने घर में अथवा व्यवसाय स्थल में संपूर्ण श्री यंत्र की स्थापना करके उसकी नित्य धूप, दीप, गंध, पुष्प, नैवेद्य से पूजा करके उसके सम्मुख बैठकर श्री सूक्त और लक्ष्मी सूक्त का पाठ अथवा जप करना चाहिए, लाभ प्राप्त होगा।
सामान्य आर्थिक स्थिति जो लोग अपना आर्थिक पक्ष और मजबूत करना चाहते हों, उन्हें संपूर्ण श्री यंत्र को किसी शुभ मुहूर्त में अपने घर में स्थापित करके उसकी गंध, अक्षत, बिल्वपत्र धूप, दीप से नित्य पूजन करके उसके सम्मुख बैठकर महालक्ष्मी मंत्र का जप करना चाहिए।
महालक्ष्मी मंत्र: ¬ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ¬ महालक्ष्म्यै नमः।
महालक्ष्मी लघु बीजमंत्र: श्रीं महालक्ष्म्यै नमः।
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