शक्ति पीठों की शक्ति का रहस्य यह सर्वविदि है कि सती के शरीर के 5 1 टुकड़े हुए; जहां-जहां एक टुकड़ा गिरा, वहां-वहां एक मंदिर, एक श.ि क्तपीठ बना। मन में बार-बार यह प्रश्न उठता है कि सती के शरीर के टुकड़े होने का अभिप्राय क्या है? विष्ण् ाु ने चक्र से सती का शव काट दिया, ऐसा उन्होंने क्यों किया? पार्वती का शव शिव ले जाते हैं, उनके दुख से पृथ्वी नष्ट हो जाती है- इन बातों का क्या अभिपा्र य ह?ै यह घटना किस तत्व की, किस सिद्धांत की द्योतक है? शिव का अपमान होने से सती मर गईं, यह क्यों? क्या लज्जा से? सती कौन हैं? उनकी मृत्यु किस तत्व के नष्ट हो जाने की द्योतक है?
उपर्युक्त विषयों पर कहना यही है कि अनंत शक्तियों की केंद्रभूता महाशक्ति ही सती हैं, अनंतब्रह्मांडाधीश्वर शुद्ध ब्रह्म ही शंकर हैं। ब्रह्म से ही माया संबंध के द्वारा सृष्टि हुई। ब्रह्मा ने दक्षादि प्रजापतियों को निर्माण कर सृष्टि के लिये नियुक्त किया। दक्ष ने भी मानसी सृष्टि शक्ति से बहुत सी संतानें उत्पन्न कीं। परंतु वे सब-की-सब श्री नारद के उपदेश से विरक्त हो गईं। ब्रह्मादि सभी चिंतित थे। किसी समय ब्रह्मा से एक परम मनोरम पुरुष उत्पन्न हुआ।
उसके सौंदर्यादि गुणों पर सभी लोग मोहित हो उठे। ब्रह्मा ने उसे काम, कंदर्प, पुष्पधन्वा आदि नामों से संबोधित किया। दक्ष कन्या रति के साथ उसका उद्वाह हुआ। बसंत, मलय, कोकिला, प्रमदा आदि उसको सहायक मिले। ब्रह्मा ने उसे वरदान दिया कि ‘तुम्हारे हर्षण, मोहन, मादन, शोषण आदि पुष्पबाण अमोघ होंगे। मैं, विष्णु, रुद्र, ऋषि, मुनि सभी तुम्हारे वशीभूत होंगे।
तुम राग उत्पन्न कर प्राणियों को सृष्टि बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करो।’ काम ने वर प्राप्त कर वहीं उसकी परीक्षा करनी चाही। उसी क्षण दैवात ब्रह्मा से एक अत्यंत लावण्यवती संध्या नाम की कन्या उत्पन्न हुई। काम ने अपने पुष्पमय धनुष को तानकर ब्रह्मा पर बाण चलाया। ब्रह्मा का मन विचलित हो उठा और वे संध्या पर मोहित हो गए। संध्या में भी काम के वेग से हाव-भाव आदि प्रकट हुए।
श्री शंकर भगवान ने इन सबकी चेष्टाओं को देखकर इन्हें प्रबोध कराया। ब्रह्मा लज्जित हो गए। उन्होंने काम को शाप दिया- ‘तुम शंकर की कोपाग्नि से भस्म हो जाओगे।’काम ने कहा-‘महाराज ! आपने ही तो मुझे ऐसा वरदान दिया है, फिर मेरा क्या दोष है !’ ब्रह्मा ने कहा- ‘कन्या जैसे अयोग्य स्थान में मुझे तुमने मोहित किया, इसीलिए तुम्हें शाप हुआ। अस्तु, अब तुम शिव को वशीभूत करो।’
काम ने कहा- ’शिव शृंगार योग्य, उन्ह ंे माेि हत करन े वाली स्त्री ससं ार मंे कहा है। ब्रह्मा ने दक्ष को आज्ञा दी- ‘तुम महामाया भगवती योगनिद्रा की आराधना करो। वह तुम्हारी पुत्रीरूप से अवतीर्ण होकर शंकर को मोहित करे।’ दक्ष भगवती की आराधना में लग गए। ब्रह्मा भी भगवती की स्तुति में संलग्न हुए। भगवती प्रकट हुईं और बोलीं- ‘वरदान मांगो !’
ब्रह्मा ने कहा ‘देवि ! भगवान शिव अत्यंत निर्मोह एवं अंतर्मुख हैं। हम सब कामवश हैं, एक उन्हीं पर काम का प्रभाव नहीं है। बिना उनके मोहित हुए सृष्टि का काम नहीं चल सकता। मैं उत्पादक, विष्णु पालक और वे संहारक हैं। तीनों के सहयोग के बिना सृष्टि कार्य असंभव है। सृष्टि के विघ्नरूप दैत्यों के हनन में भी कभी विष्णु का, कभी शिव का प्रयोजन होगा, कभी शक्ति से यह काम होगा।
अतः उनका कामासक्त होना आवश्यक है।’ देवी ने कहा-‘ठीक है, मेरा विचार भी उन्हें मोहने का था; परंतु अब तुम्हारे प्रोत्साहन से मैं अधिक प्रयत्नशील होऊंगी। मेरे बिना शंकर को कोई मोहित नहीं कर सकता। मैं दक्ष के यहां जन्म लेकर जब अपने दिव्यरूप से शंकर को मोहित करूंगी, तभी सृष्टि ठीक चलेगी।’ यह कहकर देवी ने दक्ष के यहां जाकर उन्हें वर दिया और उनके यहां सतीरूप से प्रकट हुईं।
किंचित बड़ी होते ही शिवप्राप्ति के लिए तप करने लग गईं। इतने में ही ब्रह्मा, विष्णु आदि देवताओं ने जाकर शंकर की स्तुति की और उन्हें विवाह के लिए राजी किया। उधर सती की आराधना से शंकर प्रसन्न हुए और उन्होंने सती को वर दिया कि ‘हम तुम्हारे पति होंगे।’ फिर उनका सानंद विवाह संपन्न हुआ और सहस्रों वर्ष तक सती और शिव का शृंगार हुआ।
उधर दक्ष के यज्ञ में शिव का निमंत्रण न होने से उनका अपमान जानकर सती ने उस देह को त्यागकर हिमवत्पुत्री पार्वती के रूप में शिवपत्नी होने का निश्चय किया और योगबल से देह का त्याग किया। समाचार विदित होने पर शिवजी को बड़ा क्षोभ और मोह हुआ।
दक्षयज्ञ को नष्ट करके सती के शव को लेकर शिवजी घूमते रहे। सभी देवताओं और विष्णु ने मोह मिटाने के लिए उस देह को शिव से वियुक्त करना चाहा और सभी साधकों की सिद्धि आदि कल्याण के लिए शव के भिन्न-भिन्न अंगों को भिन्न-भिन्न स्थलों में गिरा दिया; वे ही 51 पीठ हुए।
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