मध्य प्रदेश के शहडोल जिले की पुष्पराजगढ़ तहसील के दक्षिण- पूर्वी कोने में विंध्य की प्रमुख श्रेणी मेकल के पठार पर स्थित अमरकंटक भारत का सुविख्यात तीर्थ है। नर्मदा का उद्गम स्थान होने के कारण यह देश के कोने-कोने से श्रद्धालु यात्रियों को सदियों से आकर्षित करता आ रहा है। पुराणों में अमरकंटक को तीर्थरत्न कहा गया है।
दक्षिण भारत में प्रसिद्ध तीर्थ के रूप में यह समस्त तीर्थों का नायक माना जाता है। ऐतिहासिक पृष्ठभूमि अमरकंटक का पूर्व इतिहास अस्पष्ट है। पौराणिक कथाओं के अनुसार अमरकंटक के आस-पास के क्षेत्र पर अयोध्या के राजा राज्य करते थे। कहा जाता है कि कपिल मुनि और मार्कंडेय के आश्रम भी यहां अवस्थित थे।
यह क्षेत्र विराट नगर (शहडोल जिले का वर्तमान सोहागपुर) राज्य में शामिल कर लिया गया। एक लोक कथा यह भी है कि पांडव अपने अज्ञातवास के समय यहां आए थे। ऐसा विश्वास है कि कुछ काल तक यहां चेदि वंश ने भी राज्य किया था।
दसवीं और ग्यारहवीं शताब्दी से सन् 1857 तक की दीर्घ अवधि में अमरकंटक ने कल चुरि बछेला और भोसला राज्य परिवारों के शासन काल देखे हैं। इस तीर्थ का सौंदर्य वर्णनातीत है। इसकी ऊंचाई समुद्र तल से लगभग 3,500 फुट है। इतनी अधिक ऊंचाई पर तथा घाटी में स्थित होने के कारण अमरकंटक निकटवर्ती पहाड़ियों के अन्य ऊंचे स्थानों की अपेक्षा अधिक शीतल है।
नर्मदा कुंड: नर्मदा के उद्गम स्थल के रूप में नर्मदा कुंड का लहराता हुआ जल तथा उसके मध्य में स्थित नर्मदा माई का मंदिर दोनों, तीर्थ यात्रियों के लिए विशेष आकर्षण के केंद्र हैं। शिवरात्रि, माघ पूर्णिमा वैशाखी पूर्णिमा, संक्रांति और ग्रहण के अवसर पर विशेष रूप से बहुत बड़ी संख्या में यात्री पवित्र नर्मदा कुंड में डुबकी लगाते हैं।
अमरकंटक के मंदिर: अमरकंटक के मंदिर दसवीं-ग्यारहवीं शताब्दी में कलचुरि शासक कर्णदेव द्वारा बनवाए गए थे। वहां के कुछ अन्य पुराने मंदिर उनके भी पूर्व के माने जाते हैं। यहां का मुख्य मंदिर, जिसमें खुले पन्नों के आकार के गर्भगृह बने हैं, कलचुरि कालीन स्थापत्य कला के वैभव का सजीव प्रमाण है। मंदिर का शिखर खजुराहो के शिखर जैसा प्रतीत होता है।
कपिल धारा: उद्गम से निकल कर चार मील तक बहने के बाद नर्मदा की धारा एक बड़े ऊंचे और गहरे प्रपात का निर्माण करती है। यह प्रपात कपिल धारा के नाम से विख्यात है, जो 100 फुट की ऊंचाई से गर्जना के साथ गिरता है।
दुग्ध धारा: कपिल धारा से लगभग 200 गज की दूरी पर दुग्ध धारा नामक प्रपात है। यह प्रपात अधिक ऊंचा नहीं है, फिर भी अपने आप में अनूठा है। यह सुंदरता के कारण दर्शनीय है। कलकल की मधुर स्वर लहरी के साथ मंद गति से आगे बढ़ता हुआ यह प्रपात सामने की दुर्गम पहाड़ियों में खो जाता है।
सोनमूड़ा: नर्मदा के उद्गम स्थल के अतिरिक्त अमरकंटक का द्वितीय दर्शनीय स्थान सोनमूड़ा है। यह सोन नदी का उद्गम स्थान है। सघन वृक्षावली के बीच दलदली भूमि से पानी की एक पतली धारा बहकर लगभग 200 गज चलकर 400 फुट से अधिक ऊंचा प्रपात बनाती है। प्रपात की धारा नीचे पहुंचकर झाड़ियों में अदृश्य हो जाती है और मीलों दूर तक क्षीण प्रकाश रेखा की भांति दिखाई देती है।
माई की बगिया: अमरकंटक के दर्शनीय स्थलों में माई की बगिया एक विशेष दर्शनीय स्थल है। यहां वृक्षों और झाड़ियों से घिरी हुई ढलान में से पानी कलकल करता हुआ बहता है। इस स्थान में एक विशेष प्रकार का पौधा गुल बकावली पाया जाता है जिसके बारे में कहा जाता है कि यह केवल यहीं पैदा होता है।
गुल वकावली उर्दू साहित्य में बहुश्र्रुत है। इस पौधे के फूलों का उपयोग आंख की दवा के रूप में किया जाता है। ऊपर वर्णित प्रमुख मनोरम स्थानों के अतिरिक्त अमरकंटक के आसपास अन्य अनेक दर्शनीय स्थल हैं जिनमें माई का हाथी, जलेश्वर और कबीर चैरा विशेष उल्लेखनीय हैं। माई का हाथी नर्मदा कुंड के समीप एक अत्यंत मनोरम स्थल है।
जनश्रुति के अनुसार कबीर चैरा में महात्मा कबीर दास जी अपने शिष्यों के साथ कुछ ठहरने की व्यवस्था यात्रियों के ठहरने के लिए नगर में कई धर्मशालाएं हैं। इनके अतिरिक्त आधुनिक सुख-सुविधाओं से सज्जित दो डाक बंगले तथा एक सरकिट हाउस भी है। रेलवे स्टेशन पेंड्रा मंे भी ठहरने के लिए धर्मशालाएं तथा डाक बंगले हैं।
यात्रा के चार मार्ग हवाई मार्ग: प्रयाग, जबलपुर और सतना से हवाई जहाज की यात्रा की जा सकती है।
रेल: अमरकंटक रेलमार्ग से कोलकाता, मुंबई, प्रयाग तथा जबलपुर से जुड़ा हुआ है। इन शहरों से कटनी उतरकर वहां से गाड़ी द्वारा पेंड्रा या बुढार पहुंचा जा सकता है। जिसके समीप ही अमरकंटक स्थित है।
सड़क मार्ग: पेंड्रा रोड स्टेशन (28 मील) से अमरकंटक तक पहुंचने के लिए वर्षा के बाद बसें चलती हैं। इस सड़क को पक्का करने के लिए कार्य चालू है।
पैदल: पेंड्रा से अमरकंटक (96 मील) तक एक पैदल वन मार्ग भी है। पद यात्री इस मार्ग से भी दर्शन करने आते हैं।
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