प्रत्येक धर्म में गुरुओं का अति विषिष्ठ स्थान है, उन्हें देवतुल्य माना जाता है। उन्होंने धर्म की उचित व्याख्या कर उसके अनुयायियों को अनुकूल मार्गदर्षन कर कभी न समाप्त होने वाले अद्भुत व अलौकिक संस्कार प्रदान किए। हजारों वर्षों के धर्म इतिहास व पुराणों में प्रमुख रुप से गुरुओं का उल्लेख पढ़ने में आता है फिर वो गुरु बृहस्पति हो या गुरु षुक्राचार्य या गुरु द्रोणाचार्य और यह भी सत्य है कि गुरु आज्ञा का पालन नहीं करने पर अपयष भी झेलना पड़ता है, फिर वो देवताओं के राजा इंद्र ही क्यों न हों।
गुरु गोविंद सिंह जी ने सिख संप्रदाय के गुरु बनकर संपूर्ण सिख समाज को गौरवपूर्ण प्रतिष्ठा प्रदान की। श्री जिनदत्तसूरी जी, श्री जिनकुषलसूरी जी एवं श्री हीरविजयसूरी जी ने जैन धर्मावलंबियों को गुरु ज्ञान प्रदान कर सात्विक जीवन का ज्ञान कराया, साईंबाबा के गुरुत्व ने सभी धर्मों को समानता का अहसास कराया, तात्पर्य यह है कि हजारों वर्षों से और आने वाले हजारों वर्षों तक गुरुओं का प्रताप अनमोल ही बना रहेगा। आपने ऊपर के षब्दों में गुरु की महिमा को तो समझा किंतु आज के समाज में, आज के जीवन में गुरु कौन? मूल प्रष्न का उत्तर ढूंढना अभी बाकी है।
आप जिन्हें गुरु मानते हैं क्या वो वाकई में गुरु कहलाने की योग्यता रखते हैं? स्वयं के गुरु का आकलन आप नहीं कर सकते क्यांेकि आप मानव योनि का साधन मात्र हैं किंतु स्वविवेक से, अपनी मानसिक षक्ति से, अपने खुले नेत्रों से इतना तो अवष्य ही देख सकते हैं कि आपके द्वारा गुरु की पूजा, उनके प्रति आपका मान-सम्मान, आपकी श्रद्धा आपको उनके कितना समीप ले जा पाता है? क्या वस्त्रों का रंग बदल लेने से या फिर पुराणों की कथा को सुना देने से या फिर थोड़ा सा भक्ति संगीत कर लेने से व्यक्ति गुरु हो सकता है? षास्त्रानुसार भी जन्म, विवाह, मृत्यु आदि संस्कार कराने वाले पंडित जी कहलाते हंै।
पौराणिक कथाओं को सुनाने वाले ‘कथा वाचक’ कहलाते हैं। अच्छी और ज्ञान की बातों को मधुर वाणी में सार्वजनिक रुप से कहने वाले प्रवचनकार कहलाते हैं, मंदिर में भगवान का शृंगार करने, पूजा, आरती करने वाले पुजारी कहे जाते हैं तो मूल प्रष्न फिर वही है, कि आपके लिए, आपके जीवन के व्यक्तिगत गुरु कौन? क्या जिसे आप गुरु मानते हैं वही गुरु है? चलिए, देखते हैं कि गुरु में अति विषिष्ट गुण कौन-कौन से होने चाहिए?
1. व्यक्तिगत स्तर पर उचित मार्गदर्षन।
2. आध्यात्मिक ज्ञान का विकास करना।
3. समय-समय पर सही गलत के बारे में मार्गदर्षन करना।
4. सुख-दुःख में आपका सहभागी बनकर आपको स्थिति- परिस्थितियों में ढालना अथवा उनसे निकलने/सुलझने के उपाय बताना।
5. धार्मिक एवं आध्यात्मिक स्तर पर गुरु मंत्र अथवा आवष्यकतानुसार मंत्रों का ज्ञान देकर आपके व्यक्तित्व का उचित विकास कर कीर्ति व मान सम्मान की रक्षा करना। षिष्य को गुरु का स्नेह, कृपा व मार्ग दर्षन प्राप्त करना चाहिए तभी गुरु विपरीत परिस्थितियों में भी षिष्य का पतन नहीं होने देंगे।