पर्व व्रत प्रश्नोत्तरी
पर्व व्रत प्रश्नोत्तरी

पर्व व्रत प्रश्नोत्तरी  

डॉ. अरुण बंसल
व्यूस : 27826 | दिसम्बर 2013

हमारे धर्मशास्त्रों में व्रत किसको कैसे करना चाहिए, इस बारे में विस्तृत जानकारी दी गई है। किसी पर्व पर व्रत का विशेष महत्व बताया गया है क्योंकि उस दिन व्रत करने से कई गुणा फल प्राप्त होते हैं। हर व्रत का विशेष लाभ होता है व कष्टों से छुटकारा मिलता है। धर्मशास्त्र क्या कहते हैं, आइए जानें -

पर्व किसे कहते है:

देवताओं के आविर्भाव, अवतार तथा किसी विशेष धार्मिक घटना से सम्बद्ध तिथियां एवं सूर्य संक्रांति, ग्रहण, पूर्णिमा, अमावस्या आदि तिथियांे को पर्व कहते हैं। धर्मशास्त्रकारों द्वारा पर्वकाल में व्रत, दान, जप, यज्ञ, स्नानादि का विशेष महत्व बताया गया है।

व्रत किसे कहते है

पवित्राचरण एवं आत्मसंयम को ही व्रत कहते हैं। साधारण भाषा में भोजन के रूप में जिव्हा पर नियंत्रण को व्रत कहते हैं। ये चार प्रकार के होते हैं -

उपवास: वार के पूरे काल में (सूर्याेदय से अगले सूर्योदय तक) कुछ भी न खाना-पीना।

एक नक्त: दिन में केवल एक बार ही मध्याह्न के समय अन्नग्रहण करना।

नक्त: दिन में केवल एक बार ही प्रदोष के समय भोजन करना।

अयाचित: दिन में केवल एक बार बिना मांगे दूसरे द्वारा दिया अन्न ग्रहण करना।

कर्मकाल क्या होता है

जिस काल में दान, स्नान, जप अथवा पूजादि का विधान लिखा है उसे कर्मकाल कहते हैं। जैसे गणेश पूजा गणेश चतुर्थी को चंद्रोदय के समय करनी चाहिए। अतः कर्मकाल चंद्रोदय काल हुआ। प्रमुख कर्मकाल निम्न हैं -

1. प्रातः काल 2. सगंव काल 3. मध्याह्न काल 4. अपराह्न काल 5. सायाह्न काल 6. प्रदोष काल 7. अरुणोदय काल 8. निशीथ काल 9. सूर्योदय काल 10. सूर्यास्त काल 11. चंद्रोदय काल

व्रती के लिए नियम: व्रती को दूसरे का अन्न, दोबारा भोजन, कई बार जलपान, धूम्रपान, पान या तम्बाकू सेवन, मांस मदिरा, मसूर, नींबू आदि वर्जित हैं। साथ ही दिन में शयन, तेल मालिश, व्यायाम, ईष्र्या, क्रोध, लोभ, झूठ, चोरी आदि का सर्वथा त्याग करना चाहिए। क्षमा, सत्य, दया, दान, देवपूजा आदि सत्कर्म व्रत के विशेष अंग हैं। औषधि व गुरु की अनुमति से सेवित पदार्थ से व्रत भंग नहीं होता।

व्रत में प्रतिनिधि:

रोग अथवा किसी कारणवश यदि व्यक्ति स्वयं व्रत न कर सके तो वह अपने प्रतिनिधि - पत्नी, पुत्र, भ्राता, माता, बहन, पिता, माता, पति, पुरोहित, मित्र, शिष्य आदि द्वारा भी व्रत करवा सकता है। व्रत के मध्य ज्वर, रजोदर्शन, सूतक या पातक आ पड़े तो व्रत स्वयं करें लेकिन अर्चनादि, दीपदानादि दूसरे से करवाएं।


अपनी कुंडली में राजयोगों की जानकारी पाएं बृहत कुंडली रिपोर्ट में


गृहस्थी के लिए वर्जित व्रत:

रविवार, संक्रांति, कृष्ण पक्ष की एकादशी और सूर्य-चंद्र ग्रहण के दिन का व्रत गृहस्थी को नहीं करना चाहिए- ऐसा धर्मशास्त्र कहते हैं।

उपवास में असामथ्र्य:

यदि अस्वस्थता, वृद्धावस्था या बाल्यावस्था के कारण पूरे दिन का उपवास करना संभव न हो तो एकभक्त, नक्त या अयाचित व्रत करना चाहिए। लेकिन व्रती को भूख का केवल तृतीयांश भोजन ही करना चाहिए। पूर्ण भोजन दूसरे दिन पारणा में ही किया जायेगा। इसमें भी फलाहार (फल, दूध, सावां, बाथू आदि का भोजन) ही करना चाहिए, अन्नाहार नहीं।

स्त्रियों को व्रत का अधिकार:

धर्मशास्त्र स्त्री को पति की आज्ञा बिना व्रत करने का अधिकार नहीं देते। पति की सेवा एवं मानसिक, वाचिक एवं कायिक संयम द्वारा ही उसे व्रत का फल मिल जाता है।

पतिरूपो हिताचारैः मनोवाक्कायसंयमैः। व्रतैराराध्यते स्त्रीभिः वासुदेवो दयानिधिः।।

स्कन्दपुराण।।

रजस्वला का व्रत:

रजस्वला को व्रत नहीं करना चाहिए। जप-पाठादि स्वयं करते हुए व्रतदेव की पूजार्चना प्रतिनिधि से करवानी चाहिए। 5वें दिन स्नानादि से निवृŸा होकर उसे व्रतदेव पूजा, ब्राह्मण भोजन व दानादि करना चाहिए। यदि व्रतारंभ पश्चात् रजस्वला हो तो व्रत त्याग नहीं करना चाहिए लेकिन पूजार्चना प्रतिनिधि से करवानी चाहिए।

सूतक-पातक में व्रत:

सूतक (बच्चे के जन्म) पर और पातक (परिवार में मृत्यु) पर व्रत नहीं रखना चाहिए। यदि व्रत के आरंभ के पश्चात् सूतक या पातक आ पड़े तो व्रत का त्याग नहीं करना चाहिए लेकिन पूजार्चना स्वयं नहीं करनी चाहिए।

व्रत में भक्ष्य-अभक्ष्य:

व्रती को स्थानीय परंपरा अनुसार ही भक्ष्य-अभक्ष्य का निर्णय करना चाहिए। व्रती के लिए दूध - फल एवं श्यामाक (सावां) नीवार, तिल, सेंधा नमक भक्ष्य हैं। गो-दूध के अतिरिक्त दूध, मसूर, जम्बीर, सिरका, मांस, बैंगन, पेठा, मटर, द्विदल दालें तथा कांस्यपात्र का प्रयोग एवं परान्न व्रत में वर्जित हैं।

व्रत-ग्रहण सन्निपात:

व्रत वाले दिन यदि ग्रहण पड़ जाए तो कोई दोष नहीं है क्योंकि ग्रहण के सूतक या ग्रहण के समय सभी पूजा-अर्चना की जा सकती हंै। लेकिन यदि व्रत के पारण वाले दिन ग्रहण पड़ जाए तो ग्रहण समाप्त होने पर ही अगले दिन प्रातः स्नान ध्यान कर पारणा करनी चाहिए।


अपनी कुंडली में सभी दोष की जानकारी पाएं कम्पलीट दोष रिपोर्ट में


व्रत का उद्यापन:

कुछ व्रतों का उद्यापन निम्न काल पश्चात ही करना चाहिए।

व्रत उद्यापनकाल व्रत उद्यापनकाल
रम्भाव्रत 5 वर्ष पश्चात् नृसिंह चतुर्दशी 14 वर्ष
प्रदोष व्रत 1 वर्ष अनन्त चतुर्दशी 14 वर्ष
सोमवती अमा. व्रत 12 वर्ष अथवा 1 वर्ष शिवरात्रि व्रत 14 वर्ष
संकष्ट चतुर्थी 21 वर्ष महालक्ष्मी व्रत 16 वर्ष
ऋषि पंचमी 7 वर्ष एकादशी व्रत 80 वर्ष की आयु पश्चात

अन्य व्रतों का कम से कम 1 वर्ष पर्यंत ही उद्यापन करना चाहिए। व्रत पश्चात पारणा वाले दिन उद्यापन का संकल्प करें। तत्पश्चात व्रतदेव प्रतिमा को विसर्जित करें। दूसरी व्रतदेव प्रतिमा के साथ ब्राह्मण भोज कराकर शय्या दान करें। व्रत उद्यापन के बाद भी व्रत तिथि वाले दिन संयमपूर्वक आचरण करें।

व्रत सन्निपात (दो व्रतांे का मिश्रण):

यदि एक ही दिन दो व्रत पड़ जाएं तो जो कर्म, अनुष्ठान स्वयं कर सकते हैं उन्हें खुद करें, अन्य किसी प्रतिनिधि से करवाएं। यदि किसी व्रत की पारणा के दिन दूसरा व्रत आ पड़े तो भोजन को सूंघकर छोड़ देना चाहिए। बिना पारणा के व्रत सम्पन्न नहीं होता है।

व्रत भंग का प्रायश्चित:

यदि किसी कारण व्रत भंग हो जाता है या क्रोध, लोभ आदि के उद्वेग से व्रत भंग होता है तो प्रायश्चित के लिए 3 दिन अनशन करना चाहिए या सिर मुण्डवाना चाहिए।

व्रत-श्राद्ध सन्निपात:

व्रत के दिन श्राद्ध आ पड़े तो तर्पण, पिण्ड दानादि करके ब्राह्मण भोजन कराकर श्राद्ध के लिए पकाए पदार्थों को संूघकर गाय को खिला दें। श्राद्ध के लिए पकाए पदार्थों का सेवन पितर तृप्ति के लिए आवश्यक है। सूंघकर व्रत भंग नहीं होता और भोजन ग्रहण भी हो जाता है।

पारणा:

व्रत के अंत में किया जाने वाला भोजन ‘पारणा’ कहलाता है। इसके बिना व्रत पूर्ण नहीं होता। व्रत दिन से दूसरे दिन पूर्वाह्न में पारणा की जाती है। यदि पारणा के दिन दूसरा व्रत आ पड़े तो जल या भोजन को सूंघकर ही पारणा करनी चाहिए। पारणा में फल, दूध, शाकाहार ही ग्रहण करना चाहिए, अन्नाहार नहीं। परान्न ग्रहण नहीं करना चाहिए।

पूजा पाठ में पुष्प का क्या महत्व है?

पूजा में पुष्प का बड़ा महत्व है। पूजा का अर्थ ही पुष्प अर्पित करना है। पुष्पार्पण एक प्रतीक है कि जिस तरह कोई फूल अपनी सारी पंखुड़ियों को खोलकर विकसित होता, मुस्कराता है, उसी तरह साधक का हृदय भी अपने ईश के समक्ष खुल जाए। एक प्रतीक यह भी है कि जिस तरह नान प्रकार के फूल प्रकृति में हंसते मुस्कराते हैं, उसी तरह ईश्वर हमारे जीवन को रंग, महक और खुशियों से भर दें।

क्या मूर्तियों में देवी देवता का वास होता है?

पूजा के समय हम ईश्वर का आवाहन करते हैं ताकि वे हमारे समीप रहें। इसलिए जब किसी मूर्ति में किसी देवी या देवता विशेष का आवाहन किया जाता है तब उसमें उस देवी या देवता का वास हो जाता है।


To Get Your Personalized Solutions, Talk To An Astrologer Now!




Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.