गुरु पूर्णिमा भारतवर्ष में समय-समय पर अलग-अलग देवी-देवताओं की पूजा का विधान है। उन विधानों में गुरु पूजा भी प्रमुख है। इस वर्ष गुरु पूर्णिमा पर्व 22 जुलाई 2013 को मनाया गया। लोग अपने-अपने गुरुओं के स्थानों पर जाते हैं और गुरु पूजा करते हैं। दाहिने पैर के अंगूठे को धोकर माथे पर तिलक, चावल लगाकर पुष्प माला अर्पित कर, यथाशक्ति फल, वस्त्र, दक्षिणा भेंट के रूप में देकर गुरु चरणों में प्रणाम करते हैं। भारत में भगवान के जितने भी अवतार हुए उनके भी गुरु हुए। जैसे- श्रीराम के गुरु वशिष्ठ और श्रीकृष्ण के संदीपन गुरु थे। क्या गुरु का होना जरूरी है? हां, गुरु मार्गदर्शक का कार्य करता है। पहले गुरु माता, दूसरे पिता, तीसरे विद्या गुरु (स्कूल, कालेज), चैथे गुरु कला सिखाने वाले और पांचवें मोक्ष गुरु हैं। इस तरह बहुत से गुरुओं को हम समय-समय पर धारण करते हैं। जो गुरु परमात्मा संबंधी ज्ञान देते हं, भारत वर्ष में उनको ही गुरु माना जाता है। शेष गुरुओं को भुला दिया जाता है या उनको पूजा ही नहीं जाता। वैसे तो हर वस्तु, जीवन, वृक्ष, पृथ्वी, सूर्य, चंद्र, हवा हमें कोई न कोई सीख देते हैं। जैसे वृक्ष का जो कुछ भी है वह सब मनुष्य के लिए है। फल, फूल, लकड़ी, छाया ये सब जीव-जंतु और मनुष्य के काम आते हैं। इससे यह पता चलता है कि वृक्षों की तरह जो मनुष्य अपना जीवन दूसरों के लिए दे जाता है, वह महान है। इस तरह जो रास्ता दिखाता है वह हमारे गुरु समान है। द के 21 गुरु थे। जैसे मत्स्य, मछली, कन्या आदि। गुरु धारण की हमें क्यों जरूरत पड़ती है इसके लिए किसी महापुरुष ने लिखा है- गुरु विन ज्ञान नहीं, ज्ञान विन प्रतीती नहीं। प्रतीती विन, परीती नहीं। अर्थात् गुरु बिना ग्रंथों का ज्ञान नहीं होता, ज्ञान विना विश्वास नहीं होता, विश्वास बिना प्रेम जागृत नहीं होता। ग्रंथों के अनुसार नारदजी विष्णु भगवान से मिलने गये। जब वापस लौटे तो जिस स्थान पर नारद जी बैठे थे, उस स्थान की मिट्टी को लक्ष्मी जी ने उठा लिया था। इस बात की खबर जब नारद जी को मिली, तो नारद जी वापस श्रीविष्णु जी के पास पहुंचे और पूछने लगे कि भगवान लक्ष्मी जी ने ऐसा क्यों किया? क्या मैं इतना बुरा हूँ? विष्णु जी ने उर दिया कि इस बात का जवाब तो लक्ष्मी जी ही दे सकती हैं। नारद जी ने लक्ष्मी जी से कारण पूछा तो उन्होंने उर दिया कि आप अभी तक गुरु वाले नहीं हैं, आपके बैठने से जमीन अपवित्र हो गई है अर्थात् परमाणु गंदे हो गये हैं। इसलिए जमीन को खुदवाकर इन गंदे परमाण्ओं को दूर फिकवा रही हूं, क्योंकि जमीन के जैसे- परमाणु होते हैं, वैसे ही गंदे संस्कारों का प्रभाव मनुष्य पर पड़ता है। लिखा है- निगुरो दर्शनं कृत्वाहतपुण्यो भवेन्न्र गुरोः सवोविधिं शिक्ष्येत श्रीकृष्ण परमात्मनः। अर्थात् शास्त्रों में बताया गया है कि जिसका कोई गुरु न हो, तो उसके दर्शन मात्र से पाप लगता है और दर्शन करने वाले के समस्त पुण्य नष्ट हो जाते हैं। गुरु के लिए यहां तक लिखा है- गुरुब्र्रह्मा गुरुर्विष्णुः, गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरु साक्षात्परंब्रह्म, तस्मै श्री गुरुवे नमः।। अर्थात् गुरु ब्रह्मा, विष्णु और शिव के समान हैं। आज भारत वर्ष में गुरुओं की बड़ी भरमार है। किसी को मंत्र दे देते हैं- उसका रटन करते रहो, उनकी मैगजीन खरीदा, दशमांश धन उनको देते रहो। ज्यादातर वैसा ही है। आज के गुरु लोगों की भावनाओं से खेल रहे हैं। आश्रम पर आश्रम वनाये जा रहे हैं। योग्य गुरु को ही गुरु बनाएं। बातों में आकर गुरु न बनाएं। जो गुरु परमात्मा के साक्षात् दर्शन कर ले और आत्म ज्ञान का बोध कराने में सक्षम हों, लालची न हों। जैसे- युद्ध के मैदान में श्रीकृष्ण ने, तत्क्षण अर्जुन को परमात्मा का ज्ञान कराया, ऐसे गुरु कर तलाश रहं। भले ही आपको कई गुरुओं के पास जाना पड़े। विवेकानंद के 51 गुरु हुए हैं। अंत में उन्हें स्वामी विरजानंद से ठीक ज्ञान हुआ। जो गुरु बना लिया जाता है उदाहरण देकर डराता-धमकाता है कि अगर आपने कोई गुरु बनाया या किसी देवी-देवता को ध्याया तो आपका नरक में वास होगा। ब्रह्मा, विष्णु, शिव, राम, कृष्ण, मां दुर्गा, श्रीराधा, सीता माता की आराधना से दूर कर देता है। खुद का नाम जपाते हैं जो कि नाशवान शरीर लेकर पैदा हुए हैं। मैं एक उदाहरण देकर स्पष्ट करना यहां प्रासंगिक होगा कि गुरु की हमारे जीवन में जितनी आवश्यकता है उतनी समझें- अधिक नहीं। असल में जीवन और परमात्मा का मिलन जीवन का असली ध्येय है। मेले में किसी औरत का पति गुरु हो गया। विवाहित औरत अब अपने पति के लिए बड़ी परेशान है। मेले में अपने गुरु हुए पति के बारे घोषण करवाती है, कि मेरा पति इस तरह के कपड़े पहने, इस तरह के रंग का, इतने कद का, यदि किसी को मिले या पता चले, जल्द से जल्द घोषणा स्थान पर आकर में बतायं। उस तरह का व्यक्ति किसी को मिल जाता है। वह उसका बाजू पकड़कर घोषणा वाले स्थान पर ले आता है। औरत का वही पति होता है। औरत पति को पाकर संतुष्ट होती है। जिस व्यक्ति ने उसके पति की तलाश बताई उसका धन्यवाद करती है। औरत अपने पति को लेकर खुशी-खुशी अपने घर चली जाती है। मान लो औरत जीव-आत्मा, पति-परमात्मा, पति के बारे में बताने वाला गुरु। आप बताओ अब गुरु का धन्यवाद करने के अलावा गुरु का क्या करें। गुरु सबकुछ नहीं होते। गुरु धन्यवाद का ही योग्य होता है। आज गुरु परमात्मा का जाप कराने की बजाय खुद का जाप करा रहे हैं- अपने आपको राम और कृष्ण का अवतार जनता को बताते हैं। सावधान होकर चलें, नहीं तो जीवन व्यर्थ में जायेगा। देखा गया है कि गुरु अपनी तस्वीर का लाकेट श्रद्धालुओं के गले में डालने को मजबूर करते हैं परमात्मा के अवतारों के नहीं डलवाते। ये आज के गुरु हैं- जितना हो सके बचें- परमात्मा के अवतारों की भक्ति साकार या निराकार रूप में करें।