भविष्योत्तर पुराण के अनुसार रक्षा बंधन का परम पवित्र त्योहार श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को मनाया जाता है। इसमें पराह्नव्यापिनी तिथि ली जाती है। यदि यह दो दिन हो, या दोनों ही दिन न हो, तो पूर्वा लेनी चाहिए। यदि उस दिन भद्रा हो, तो उसका त्याग करना चाहिए। श्रद्धा में श्रावणी वर्जित है, क्योंकि यह राजा का अनिष्ट करती है। भारतीय संस्कृति इतनी विशाल एवं लचीली है कि इसमें हर संस्कृति समाहित होती चली जाती है। कश्मीर से कन्याकुमारी तक, सौराष्ट्र से असम तक देखें तो यहां के लोग लगभग प्रतिदिन कोई न कोई त्योहार मनाते मिलेंगे। इन त्योहारों के मूल में आपसी रिश्तों के बीच मधुरता घोलने एवं सरसता लाने की भावना गहनता से रची-बसी है। भाई-बहन के बीच प्यार, मनुहार व तकरार होना एक सामान्य सी बात है। लेकिन रक्षा बंधन के दिन बहन द्वारा भाई के हाथ में बांधे जाने वाले रक्षा सूत्र में भाई के प्रति बहन के असीम स्नेह और बहन के प्रति भाई के कर्तव्यबोध को पिरोया गया है। प्रेम व कर्तव्य का यही भाव भाई-बहन के संबंधों को आजीवन मजबूती देता है। इस दिन बहन अपने भाई के माथे पर तिलक लगाती है कलाई पर रक्षा सूत्र बांध उसकी आरती कर उसके दीर्घ जीवन की कामना करती है। भाई भी बहन की झोली उपहारों से भरते हुए संकट की हर घड़ी में सहायता के लिए तत्पर रहने का वचन देता है। शायद राखी की इसी भावना से प्रभावित होकर चित्तौड़ की रानी कर्णावती ने बहादुर शाह से अपनी रक्षा के लिए मुगल शासक हुमायूं को राखी भेज कर मदद की गुहार की होगी। इतिहास साक्षी है जब दुःशासन भरी सभा में द्रौपदी का चीरहरण कर रहा था तब द्रौपदी ने कृष्ण को अपनी रक्षा के लिए पुकारा तो वे नंगे पांव दौड़े चले आए और भरी सभा में उसकी लाज बचाई। भले ही कृष्ण और दौपदी के बीच सखा भाव का संबंध हो परंतु कहा जाता है कि द्रौपदी व कृष्ण पूर्व जन्म में भाई-बहन थे। उसकी राखी के प्रति अपनी वचनबद्धता को कृष्ण कैसे भूल सकते थे। भारतीय संस्कृति में कथा, पूजा एवं विभिन्न संस्कारों के समय रक्षा सूत्र बांधने का विशेष महत्व है। रक्षा के तीन सूत्र होते हैं जिन्हें तीन बार लपेट कर अधोलिखित मंत्र के साथ बांधा जाता है। ‘येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः। तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल।। इस का भावार्थ है कि जिस प्रकार लक्ष्मी जी ने राजा बली के हाथ में रक्षा सूत्र बांध कर अपने वचन से उन्हें बांध लिया उसी तरह मैं भी आपको अपनी रक्षा के लिए बांधती हूं। इस रक्षा मंत्र के मूल में जो कथा आती है वह इस प्रकार है- दैत्यराज राजा बली विष्णु का अनन्य भक्त था। एक बार देवराज इंद्र जब युद्ध में बली को नहीं हरा पाए तो वे मदद के लिए विष्णु भगवान के पास गए। विष्णु ने इंद्र व बली के बीच समझौता कराते हुए बली को इंद्र की ही तरह पाताल लोक का एकछत्र राज्य सौंपा और उसे अमरता का वरदान देते हुए पाताल लोक में उसके राज्य की रक्षा करने के लिए अपने वैकुंठ के राजपाट को छोड़कर स्वयं आने का वचन दिया। माता लक्ष्मी चाहती थीं कि विष्णु वैकुंठ वापस आ जाएं। इसी मंशा को लेकर माता लक्ष्मी भी एक ब्राह्मणी का वेश बनाकर राजा बली के पास गईं और उनसे अनुरोध किया कि मेरे पति किसी जरूरी काम से बाहर देश की यात्रा पर गए हैं। जब तक वह लौट नहीं आते, मैं आपकी शरण में रहना चाहती हूं। बली ने ब्राह्मणी का प्रस्ताव खुशी-खुशी स्वीकार कर लिया। श्रावण पूर्णिमा के अवसर पर लक्ष्मी जी ने बली की सुख समृद्धि की कामना के लिए उसकी कलाई में राखी बांधी। ब्राह्मणी का आत्मीय व्यवहार बली के अंतर्मन को छू गया और उसने मन से ब्राह्मणी को अपनी बहन स्वीकार कर लिया तथा राखी के बदले में उपहार स्वरूप कुछ मांगने को कहा। तब माता लक्ष्मी ने अपनी असली पहचान बताई और अपने वहां रुकने का कारण बताते हुए कहा कि वह अपने पति के साथ वैकुंठ वापस जाना चाहती है। बली ने उसी समय विष्णु से वैकुंठ जाने का अनुरोध कर अपनी बहन को दिए वायदे को पूरा किया। कहा जाता है कि इसी दिन से श्रावण पूर्णिमा के दिन बहनों को घर में आमंत्रित कर राखी बंधवाने का प्रचलन चल पड़ा। रक्षा बंधन की पावनता से यमलोक भी अछूता नहीं है। इस दिन मृत्यु के देवता यम को उनकी बहन यमुना ने राखी बांधी और अमर होने का वरदान दिया। यम ने इस पावन दिन के महत्व को अक्षुण्ण रखते हुए घोषणा की कि जो भाई इस दिन अपनी बहन से राखी बंधवाएगा और उसे रक्षा का वचन देगा वह हमेशा अमर रहेगा। महारानी कर्णावती की गाथा इतिहास में विख्यात है। जब गुजरात के शासक बहादुर शाह ने उसके राज्य पर आक्रमण किया, तो इस राजपूत रमणी ने तत्कालीन शासक हुमायूं को राखी भेज कर अपनी सहायता के लिए पुकारा था। यह एक कठिन परीक्षा थी, जब उसकी सेनाएं अफगानों पर विजय प्राप्ति में लगी थीं और करुणावती की सहायता करने पर उसे लड़ना भी अपने ही भाई मुस्लिम शासक से था। परंतु हुमायूं का मानव हृदय, कच्चे धागों (राखी) को प्राप्त कर, सजग हो गया था। हुमायूं एक हिंदू बहन द्वारा भेजी गयी राखी की मर्यादा की रक्षा करने के लिए सेना सजा कर मारवाड़ पहुंच कर ही रहा। यह एकता का मूल महामंत्र एवं संगठन शक्ति का प्रतीक है। यह जीवन को स्फूर्ति देने वाला, रोम-रोम में नवीनता का संचार करने वाला है। एक दूसरे को स्नेह, सद्भावना एवं कर्तव्य के सूत्र में पिरोने वाले इस त्योहार के पीछे यह भाव है कि समाज में रहने वाले लोग एक दूसरे के साथ मिलजुल कर रहें और जरूरत पड़ने पर एक दूसरे की रक्षा के लिए आगे आएं। यह त्योहार भाइयों को शक्तिशाली होने का बोध कराता है। कारगिल के युद्ध के समय देश भर से कई महिलाओं ने युद्ध के मोर्चे पर तैनात सैनिकों की मंगल कामना के लिए उन्हें राखियां भेजीं। यह त्योहार सर्वधर्म सम भाव का भी प्रतीक है। देश भर के हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सभी बहनें राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री व अपने मित्र बंधुओं को राखी बांधती हैं। जिन भाइयों की बहनें नहीं होतीं वे भी मुंहबोली बहन, चाहे वह किसी भी धर्म की हो, से बड़े प्रेम से राखी बंधवाते हैं। आज फ्रेंडशिप बैंड के रूप में राखी का आधुनिक स्वरूप भी नजर आ रहा है। फ्रेंडशिप बैंड को बांधने का अर्थ है एक-दूसरे के साथ भाई-बहन का सा बर्ताव कर आपसी रिश्तों की पावनता बनाए रखना। कुल मिलाकर इस त्योहार में भारतीय संस्कृति की अनूठी छवि के दर्शन होते हैं। सभी विश्व संस्कृतियों में केवल भारतीय संस्कृति ही ऐसी है जो पुरुषों को अपने विपरीतलिंगियों को मां और बहन की नजर से देखने की दृष्टि प्रदान करती है। इस भाव को सभी को नमन करना चाहिए।भविष्योत्तर पुराण के अनुसार रक्षा बंधन का परम पवित्र त्योहार श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को मनाया जाता है। इसमें पराह्नव्यापिनी तिथि ली जाती है। यदि यह दो दिन हो, या दोनों ही दिन न हो, तो पूर्वा लेनी चाहिए। यदि उस दिन भद्रा हो, तो उसका त्याग करना चाहिए। श्रद्धा में श्रावणी वर्जित है, क्योंकि यह राजा का अनिष्ट करती है। भारतीय संस्कृति इतनी विशाल एवं लचीली है कि इसमें हर संस्कृति समाहित होती चली जाती है। कश्मीर से कन्याकुमारी तक, सौराष्ट्र से असम तक देखें तो यहां के लोग लगभग प्रतिदिन कोई न कोई त्योहार मनाते मिलेंगे। इन त्योहारों के मूल में आपसी रिश्तों के बीच मधुरता घोलने एवं सरसता लाने की भावना गहनता से रची-बसी है। भाई-बहन के बीच प्यार, मनुहार व तकरार होना एक सामान्य सी बात है। लेकिन रक्षा बंधन के दिन बहन द्वारा भाई के हाथ में बांधे जाने वाले रक्षा सूत्र में भाई के प्रति बहन के असीम स्नेह और बहन के प्रति भाई के कर्तव्यबोध को पिरोया गया है। प्रेम व कर्तव्य का यही भाव भाई-बहन के संबंधों को आजीवन मजबूती देता है। इस दिन बहन अपने भाई के माथे पर तिलक लगाती है कलाई पर रक्षा सूत्र बांध उसकी आरती कर उसके दीर्घ जीवन की कामना करती है। भाई भी बहन की झोली उपहारों से भरते हुए संकट की हर घड़ी में सहायता के लिए तत्पर रहने का वचन देता है। शायद राखी की इसी भावना से प्रभावित होकर चित्तौड़ की रानी कर्णावती ने बहादुर शाह से अपनी रक्षा के लिए मुगल शासक हुमायूं को राखी भेज कर मदद की गुहार की होगी। इतिहास साक्षी है जब दुःशासन भरी सभा में द्रौपदी का चीरहरण कर रहा था तब द्रौपदी ने कृष्ण को अपनी रक्षा के लिए पुकारा तो वे नंगे पांव दौड़े चले आए और भरी सभा में उसकी लाज बचाई। भले ही कृष्ण और दौपदी के बीच सखा भाव का संबंध हो परंतु कहा जाता है कि द्रौपदी व कृष्ण पूर्व जन्म में भाई-बहन थे। उसकी राखी के प्रति अपनी वचनबद्धता को कृष्ण कैसे भूल सकते थे। भारतीय संस्कृति में कथा, पूजा एवं विभिन्न संस्कारों के समय रक्षा सूत्र बांधने का विशेष महत्व है। रक्षा के तीन सूत्र होते हैं जिन्हें तीन बार लपेट कर अधोलिखित मंत्र के साथ बांधा जाता है। ‘येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः। तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल।। इस का भावार्थ है कि जिस प्रकार लक्ष्मी जी ने राजा बली के हाथ में रक्षा सूत्र बांध कर अपने वचन से उन्हें बांध लिया उसी तरह मैं भी आपको अपनी रक्षा के लिए बांधती हूं। इस रक्षा मंत्र के मूल में जो कथा आती है वह इस प्रकार है- दैत्यराज राजा बली विष्णु का अनन्य भक्त था। एक बार देवराज इंद्र जब युद्ध में बली को नहीं हरा पाए तो वे मदद के लिए विष्णु भगवान के पास गए। विष्णु ने इंद्र व बली के बीच समझौता कराते हुए बली को इंद्र की ही तरह पाताल लोक का एकछत्र राज्य सौंपा और उसे अमरता का वरदान देते हुए पाताल लोक में उसके राज्य की रक्षा करने के लिए अपने वैकुंठ के राजपाट को छोड़कर स्वयं आने का वचन दिया। माता लक्ष्मी चाहती थीं कि विष्णु वैकुंठ वापस आ जाएं। इसी मंशा को लेकर माता लक्ष्मी भी एक ब्राह्मणी का वेश बनाकर राजा बली के पास गईं और उनसे अनुरोध किया कि मेरे पति किसी जरूरी काम से बाहर देश की यात्रा पर गए हैं। जब तक वह लौट नहीं आते, मैं आपकी शरण में रहना चाहती हूं। बली ने ब्राह्मणी का प्रस्ताव खुशी-खुशी स्वीकार कर लिया। श्रावण पूर्णिमा के अवसर पर लक्ष्मी जी ने बली की सुख समृद्धि की कामना के लिए उसकी कलाई में राखी बांधी। ब्राह्मणी का आत्मीय व्यवहार बली के अंतर्मन को छू गया और उसने मन से ब्राह्मणी को अपनी बहन स्वीकार कर लिया तथा राखी के बदले में उपहार स्वरूप कुछ मांगने को कहा। तब माता लक्ष्मी ने अपनी असली पहचान बताई और अपने वहां रुकने का कारण बताते हुए कहा कि वह अपने पति के साथ वैकुंठ वापस जाना चाहती है। बली ने उसी समय विष्णु से वैकुंठ जाने का अनुरोध कर अपनी बहन को दिए वायदे को पूरा किया। कहा जाता है कि इसी दिन से श्रावण पूर्णिमा के दिन बहनों को घर में आमंत्रित कर राखी बंधवाने का प्रचलन चल पड़ा। रक्षा बंधन की पावनता से यमलोक भी अछूता नहीं है। इस दिन मृत्यु के देवता यम को उनकी बहन यमुना ने राखी बांधी और अमर होने का वरदान दिया। यम ने इस पावन दिन के महत्व को अक्षुण्ण रखते हुए घोषणा की कि जो भाई इस दिन अपनी बहन से राखी बंधवाएगा और उसे रक्षा का वचन देगा वह हमेशा अमर रहेगा। महारानी कर्णावती की गाथा इतिहास में विख्यात है। जब गुजरात के शासक बहादुर शाह ने उसके राज्य पर आक्रमण किया, तो इस राजपूत रमणी ने तत्कालीन शासक हुमायूं को राखी भेज कर अपनी सहायता के लिए पुकारा था। यह एक कठिन परीक्षा थी, जब उसकी सेनाएं अफगानों पर विजय प्राप्ति में लगी थीं और करुणावती की सहायता करने पर उसे लड़ना भी अपने ही भाई मुस्लिम शासक से था। परंतु हुमायूं का मानव हृदय, कच्चे धागों (राखी) को प्राप्त कर, सजग हो गया था। हुमायूं एक हिंदू बहन द्वारा भेजी गयी राखी की मर्यादा की रक्षा करने के लिए सेना सजा कर मारवाड़ पहुंच कर ही रहा। यह एकता का मूल महामंत्र एवं संगठन शक्ति का प्रतीक है। यह जीवन को स्फूर्ति देने वाला, रोम-रोम में नवीनता का संचार करने वाला है। एक दूसरे को स्नेह, सद्भावना एवं कर्तव्य के सूत्र में पिरोने वाले इस त्योहार के पीछे यह भाव है कि समाज में रहने वाले लोग एक दूसरे के साथ मिलजुल कर रहें और जरूरत पड़ने पर एक दूसरे की रक्षा के लिए आगे आएं। यह त्योहार भाइयों को शक्तिशाली होने का बोध कराता है। कारगिल के युद्ध के समय देश भर से कई महिलाओं ने युद्ध के मोर्चे पर तैनात सैनिकों की मंगल कामना के लिए उन्हें राखियां भेजीं। यह त्योहार सर्वधर्म सम भाव का भी प्रतीक है। देश भर के हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सभी बहनें राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री व अपने मित्र बंधुओं को राखी बांधती हैं। जिन भाइयों की बहनें नहीं होतीं वे भी मुंहबोली बहन, चाहे वह किसी भी धर्म की हो, से बड़े प्रेम से राखी बंधवाते हैं। आज फ्रेंडशिप बैंड के रूप में राखी का आधुनिक स्वरूप भी नजर आ रहा है। फ्रेंडशिप बैंड को बांधने का अर्थ है एक-दूसरे के साथ भाई-बहन का सा बर्ताव कर आपसी रिश्तों की पावनता बनाए रखना। कुल मिलाकर इस त्योहार में भारतीय संस्कृति की अनूठी छवि के दर्शन होते हैं। सभी विश्व संस्कृतियों में केवल भारतीय संस्कृति ही ऐसी है जो पुरुषों को अपने विपरीतलिंगियों को मां और बहन की नजर से देखने की दृष्टि प्रदान करती है। इस भाव को सभी को नमन करना चाहिए।