जैसा कि हम सब जानते हैं कि भारत वर्ष पर्वों त्योहारों की संस्कृति का देश है जिसमें अनेकों धर्म के लिए अनेक प्रकार के त्योहार मनाए जाते हैं। हम पर्व की बात करें तो हम ज्योतिषियों के लिए तो हमारे संवत्सर पर्व से बड़ा और कोई पर्व हो ही नहीं सकता है। इसी दिन सृष्टि का प्रारंभ माना गया है। ऐसे कहें कि हमारे संसार की उत्पत्ति इसी संवत्सर के दिन हुई थी। यह पर्व चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को मनाया जाता है। इसी दिन ब्रह्मा ने सृष्टि का आरंभ किया था, मत्स्यावतार भी इसी दिन हुआ था तथा इसी दिन सतयुग का प्रारंभ भी हुआ था। इसी महत्व को मानकर राजा विक्रमादित्य ने अपने संवत्सर का आरंभ आज से 2070 वर्ष पूर्व किया था जिसे हम विक्रम संवत् के नाम से जानते हैं। शालिवाहन शक और विक्रम संवत ही सर्वोत्कृष्ट या मान्य हैं। परंतु शक् विशेषकर गणित में उपयोगी होता है और विक्रम संवत् का उपयोग फलित, गणित व लोक व्यवहार मुहूर्त आदि में किया जाता है। जन्म पत्रिका लेखन में प्रारंभ में विक्रम संवत्सर और शालिवाहन शक् लिखने की परंपरा है। मुहूर्त कार्यों में भी संवत, शक संवत्सर का नाम उच्चारण किया जाता है। जब ब्रह्मा ने सृष्टि का आरंभ किया तो उस समय इसे ‘प्रवरा’ (सर्वोत्तम) तिथि नाम दिया गया। इस तिथि में धार्मिक, सामाजिक, व्यावहारिक और राजनीतिक आदि कार्यों का प्रारंभ किया जाता है। इसी संवत्सर से पंचांगों का प्रारंभ, नवरात्रि का उदय, घटस्थापन, ध्वजारोपण, वर्षेशादि का फल पाठ तथा लोकाचार, परंपरानुसार कार्यों का प्रारंभ किया जाता है। इसे लोग गुड़ी पड़वा के नाम से भी जानते हैं। ज्योतिष शास्त्र अनुसार संवत्सर के सौर, सावन, चंद्र, बृहस्पति और नक्षत्र ये पांच भेद हैं। श्रुति कहती है- द्वादश मासाः संवत्सरः । बारह महीने का ‘विशेषकाल’ संवत्सर है। चंद्र मास से अधिमास सहित 13 मास होते हैं। ऐसा होने से संवत्सर 12 मास का नहीं रहता है। इसका समाधान बादरायण ने अधिमास को 30-30 दिन के दो माह नहीं मानकर 60 दिन का एक माह माना है। चैत्रमास का प्रारंभ शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से होता है। यदि चैत्र मास में अधिमास हो तो द्वितीय चैत्र में प्रारंभ करना चाहिए। इसमें ‘सम्मुखी’ प्रतिपदा का ग्रहण किया जाता है। ज्योतिष अनुसार जिस दिन संवत्सर प्रारंभ हो और जो वाराधिपति हो उसी के अनुसार वर्ष का राजा होता है। प्रत्येक संवत्सर का अपना एक नाम होता है। यह संवत्सर 60 प्रकार के होते हैं। इस दिन ब्रह्मा का पूजन किया जाता है। पंचांग पूजन करके, नवरात्रि प्रारंभ घट की स्थापना, ध्वजारोहण, अखंड ज्योति आदि प्रज्ज्वलित की जाती है और प्रत्येक वर्ग के व्यक्ति को नवसंवत्सर की शुभकामनाएं दी जाती हैं और कामना की जाती है कि नव संवत्सर कृषि, व्यापारी वर्ग, जन के लिए शुभ व मंगलकारी सिद्ध हों। इसी के साथ हम नवसंवत्सर को एक विस्तृत पर्व त्योहार के रूप में मनाते हैं।