सनातन धर्म में श्राद्ध का बड़ा महत्व है। श्राद्ध कल्प के अनुसार मृत पितरों के उद्देश्य से जो प्रिय भोज्य पदार्थ ब्राह्मण को श्रद्धा पूर्वक प्रदान किये जाते हैं उस अनुष्ठान का नाम श्राद्ध है। कात्यायन स्मृति के अनुसार पितृ कर्म का ही दूसरा नाम श्राद्ध है। सिद्धांतशिरोमणि ग्रंथ के अनुसार चंद्रमा की ऊध्र्व कक्षा में पितृलोक है जहां पितर रहते हैं। तैत्तरीय उपनिषद 9/6/8/6 के अनुसार पितृ लोक मनुष्य लोक से चर्मचक्षुओं द्वारा दृष्ट नहीं है। विवेक चूड़ामणि के अनुसार जब जीवात्मा इस स्थूल देह से पृथक होता है उस स्थिति को मृत्यु कहते हैं। यह भौतिक शरीर 27 तत्वों के संघात से बना है। स्थूल पंच महाभूत एवं स्थूल कर्मेन्द्रियों को छोड़ने पर अर्थात मृत्यु को प्राप्त हो जाने पर भी 17 तत्वों से बना हुआ शरीर सूक्ष्म विद्यमान रहता है।
जीव मरने के बाद भी मोहवश अपने घर के आसपास घूमता रहता है। पितृ पूजा से धन, पद, प्रतिष्ठा प्राप्त होती है। जो गृहस्थ कन्यागत सूर्य में श्राद्ध नहीं करता वह पापी है। श्राद्ध का समय 11-45 से 12-45 के बीच उपयुक्त है। श्राद्ध कर्म से सूक्ष्म जीव को तृप्ति मिलती है इसलिए श्राद्ध कार्य किया जाता है। रामायण के अनुसार सीताजी को दशरथ की मृत्यु के बाद श्राद्ध के समय दिखाई दिये जब श्री राम फल-फूल से श्राद्ध कर रहे थे। भीष्म जी से शांतनु जी ने पिंड स्वयं ग्रहण किया जब वे पिता को पिंडदान कर रहे थे। श्राद्ध आश्विन में किये जाते हैं। अथर्ववेद के अनुसार शरद ऋतु में छठी संक्रांति कन्यार्क में जो अभिप्सित वस्तुएं पितरों को प्रदान की जाती हंै वह पितरों को प्राप्त होती है।
कन्या राशि पर जब सूर्य का प्रवेश होता है तब पितर अपने सत्पुत्रों के निकट पहुंचते हैं। भारतीय संस्कृति में तीन प्रकार के ऋणों का वर्णन है- देव ऋण, ऋषि ऋण, पितृ ऋण। पितरों के निमित तिल युक्त जल से तर्पण, ब्राह्मण भोजन, अग्नि करण, पिंडदान ये श्राद्ध के अंग हैं वैसे श्रद्धया दीयते यतत् श्राद्धम्। श्रद्धा से पितरों की संतुष्टि और प्रसन्नता के लिये किये जाने वाला कार्य ही श्राद्ध है। श्राद्धों के दिन सात्विक प्रवृत्ति के कारण भोजन शुद्ध बनाकर खिलायें, कौवे को, गाय को, कुत्ते को रोटी दें। सारे पितृ कार्य दक्षिण में करें। यदि कोई व्यक्ति गरीब है, श्राद्ध पक्ष में ब्राह्मण को भोजन नहीं करा सकता है तो किसी जलाशय पर जायें, कमर तक पानी में खड़ा होकर अंजुलि में जौ, तिल एवं दूध लेकर तर्पण करंे इससे भी पितृ प्रसन्न होते हैं।
श्राद्ध करने के अधिकारी कौन हैं- पुत्र, पत्नी, सहोदर, भाई आदि।
पितृ दोष शांति के उपाय
- गया जी में श्राद्ध, पिंडदान, तर्पण करें।
- हरिद्वार प्रेतशिला में पितृ पूजा करें।
- बद्रीनाथ ब्रह्म कपाली में पिंडदान, तर्पण करें।
- भागवत कथा करायें अथवा श्रवण करंे।
- गाय दान, भूमि दान करंे।
- एकादशी का व्रत करें।
- रोज गीता का पाठ करें।
- पीपल की पूजा करें।
- पितृ गायत्री जाप करवायें।
- गाय माता की रोज पूजा करें।
पितृ दोष शांति के लिए निम्नलिखित स्तोत्र का पाठ करना चाहिए:
1. विष्णु सहस्रनाम
2. गजेंद्र मोक्ष
3. रूद्राष्टाध्यायी
4. पुरुष सूक्त
5. ब्रह्म सूक्त
6. विष्णु सूक्त
7. रूद्र सूक्त
10. यम सूक्त
11. प्रेत सूक्त पितृ पूजा में दक्षिण दिशा मुख्य है, जौ, तिल, कुशा, दूध, शहद, गंगाजल, आदि मुख्य वस्तु रखें। तर्पण जरूर करंे। पितृ पूजा से धन, संतान यश आदि की प्राप्ति होती है।