मंगल
मंगल

मंगल  

शिव प्रसाद गुप्ता
व्यूस : 11435 | जनवरी 2011

मंगल का अर्थ शुभता, मांगलिकता, मधुरता, अनुकूलता से है। यह पराक्रम शौर्य, बल व साहस का प्रतीक है। यदि मंगल बली एवं शुभ प्रभाव में हो तो यह शक्ति, सामर्थ्य, भूसंपत्ति एवं वैभव देता है और व्यक्ति को तेजस्वी, बलवान, निपुण, आत्मनिर्भर, स्वाभिमानी, स्पष्ट व्यवहारवादी, पराक्रमी, नायक बनाता है। यदि मंगल निर्बल व अशुभ प्रभाव में हो तो जातक को क्रोधी, आलसी, धोखेबाज, मूर्ख, हठी, झगड़ालू, कुकर्मी बनाता है और जातक अपनी इन आदतों से अपना नुकसान कर जीवन को कष्टमय बना लेता है। सौर मंडल में सभी ग्रह सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाते हैं। हमारी पृथ्वी का परिभ्रमण पथ मंगल और शुक्र ग्रहों के बीच है। परिभ्रमण के दौरान मंगल ग्रह कभी पृथ्वी के बहुत निकट (लगभग 487 लाख मील की दूरी) और कभी काफी दूर (लगभग 2333 लाख मील की दूरी) पर चला जाता है।

इसलिए यह कभी छोटा और कभी बड़ा दिखाई देता है। यह लगभग 687 दिनों में सूर्य की प्ररिक्रमा करता है। मंगल का व्यास लगभग 4221 मील है। सूर्य से दूर होने के कारण यह आकाश में सरलता से देखा जा सकता है। मंगल उदित होने के लगभग 10 माह बाद वक्री होता है फिर लगभग दो माह के बाद मार्गी होता है और उसके लगभग दस माह बाद अर्थात् उदय होने के लगभग 22 माह बाद अस्त हो जाता है। मंगल का अंगार समान लाल, उष्ण प्रकृति, अग्नि तत्व तथा तमोगुणी प्रवृति है। मेष एवं वृश्चिक राशि तथा मृगशिरा, चित्रा, धनिष्ठा नक्षत्रों का यह स्वामी है। मेष राशि इसकी मूल त्रिकोण राशि भी है।

सूर्य, चंद्र व गुरु इसके मित्र हैं जबकि बुध से इसकी शत्रुता है। मकर राशि में यह उच्च का और कर्क में नीच प्रवृति का होता है। आकाशीय संसद में सूर्य को राजा एवं मंगल को सेनापति का पद दिया गया है। मंगल उदर से पीठ, पुट्टे, नाक, कपाल, स्नायु, जननेंद्रियों के बाह्य भाग का कारक माना गया है। यह कुष्ठ रोग, रक्त विकार, ज्वर, व्रण, चोट, रक्तस्राव, विषपान, नेत्र रोग आदि का भी कारक है। भाई, पृथ्वी, पुत्र सुख, निर्माण कार्य, झगड़ा, ससुराल, आग आदि इसके प्रभावाधीन आते हैं। मंगल घोर स्वाभिमानी, अनुशासनप्रिय, अत्याधिक कठोर, एवं क्षत्रिय (सेनापति) स्वभाव का ग्रह है। ऐसा स्वभाव सामान्य रूप में असहनीय होता है और इसलिए मंगल को क्रूर पापी स्वभाव का पुरुष प्रकृति ग्रह माना गया है।

जन्मकुंडली में मंगल अपने स्थान से चतुर्थ, सप्तम एवं अष्टम स्थान को देखता है। चतुर्थ स्थान सुख का, सप्तम स्थान जीवनसाथी एवं भागीदार का तथा अष्टम स्थान आयु व नाश का है जो जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। मंगल क्रोध उत्तेजना एवं आवेश का द्योतक है। क्रोध उत्तेजना की स्थिति में विवेक का साथ छूट जाता है और जातक सुख से वंचित हो जाता है और जीवनसाथी व सहयोगी से अनबन या वैचारिक मतभेद से उनका साथ व सहयोग छूट जाता है जिससे उसका जीवन कष्टमय बन जाता है और उसकी जीवन शक्ति का ह्रास होता है।

मंगल जन्मकुंडली के तीसरे और छठे भाव का कारक ग्रह हैं यदि मंगल अपनी राशि में या उच्च का होकर केंद्र भाव में स्थित हो तो रूचक नामक योग बनता है जिसमें उत्पन्न जातक शरीर का मजबूत, आकर्षक बलवान, धनी, राजा या उसके समकक्ष होता है।

कुंडली 1: महान पराक्रमी एवं लोकप्रिय सम्राट पृथ्वीराज चैहान की जन्मकुंडली में मंगल लग्नेश होकर सप्तम भाव में स्थित होकर लग्न को पूर्ण दृष्टि से देख रहा है। मंगल पर दशमेश (राज्येश) व एकादशेश (लाभेश) शनि की तृतीय उच्च दृष्टि मंगल को और बल प्रदान कर रही है। पराक्रम स्थान (तृतीय भाव) में उच्च के राहु भी मंगल को पंचम दृष्टि से देख रहे हैं। पराक्रमेश बुध, धनेश शुक्र एवं भाग्येश गुरु दशम भाव (राज्य स्थान) में विराजमान हैं और उन पर लग्नेश मंगल की चतुर्थ उच्च दृष्टि ने उनको और बल प्रदान किया जिसके फलस्वरूप जातक महान पराक्रमी एवं योग्य शासक बने।

कुंडली 2: प्रसिद्ध दस्यु मानसिंह की है। यहां लाभेश मंगल अष्टम भाव में है। अष्टमेश बुध उच्च के होकर एकादश भाव में नीच शुक्र के साथ है जिन पर मंगल की चतुर्थ दृष्टि है। मंगल की मूल त्रिकोण राशि मेष में षष्टम भाव में राहु है जिस पर शनि (पराक्रमेश) की तृतीय नीच दृष्टि है जिसके कारण राहु का शनि युक्त प्रभाव मंगल ने अर्जित किया। मंगल की सप्तम दृष्टि द्वितीय (धन) भाव तथा अष्टम उच्च दृष्टि तृतीय (पराक्रम) भाव पर पड़ रही है और दूषित मंगल षष्टेश होकर षष्टम से षष्टम अर्थात् एकादश भाव को भी चतुर्थ दृष्टि से देख रहा है। फलस्वरूप जातक ने अपने पराक्रम एवं बाहुबल को लाभ अर्जन एवं धन संचय हेतु डकैती, हिंसा व आतंक का सहारा लिया। शनि की दशम दृष्टि, लग्नेश स्थित गुरु पर पड़ने से बुद्धि बल का दुरूपयोग हुआ और जातक के जीवन की दिशा सद्मार्ग से भटक गई।

कुंडली 3: नाथूराम गोडसे की है। जन्मकुंडली में मंगल षष्टेश व एकादशेश (षष्टम से षष्टम) का स्वामी है और दोनों भाव हिंसा प्रधान है। मंगल लग्न में है जिस पर नीच शनि की तृतीय दृष्टि व केतु की नवम दृष्टि है जो उसके पाप प्रभाव को और बढ़ा रही है। दूषित मंगल की चतुर्थ दृष्टि चंद्रमा (मन) एवं गुरु (बुद्धि) को भी दूषित कर रही है। मंगल बुध की राशि में लग्न में है जिससे लग्न व लग्नेश बुध दूषित हो रहे हैं। लग्नेश बुध द्वादश भाव में हैं जो मंगल से तो दूषित है ही, एक ओर शनि व दूसरी ओर मंगल होने से पापकर्तरी योग में भी है। बुध स्वयं भी सूर्य व राहु के साथ है। इस प्रकार मन, बुद्धि व विवेक के दूषित होने से जातक (नाथूराम गोडसे) द्वारा महात्मा गांधी जैसे महापुरूष की हत्या का दुष्कर्म किया गया। मंगल अपने स्वभाव, स्थिति एवं बल अनुसार फल देता है। मंगल का सूर्य से संबंध दो उष्ण प्रकृति वाले ग्रहों का संबंध है जो प्रबल ऊर्जा का स्रोत है। इस पर शुभ प्रभाव जातक को साहसी, सृजनात्मक कार्यों में संलग्न (सर्जन, डाॅक्टर, अभियंता, सेना, पुलिस अधिकारी आदि) भूमिपति आदि बना सकता है वहीं अशुभ प्रभाव दुष्कर्म हिंसा व अराजकता की ओर ले जा सकता है। मंगल का चंद्र से संबंध अग्नि एवं जल तत्वों का संबंध है जिससे वाष्प उत्पन्न होती है जिसकी सकारात्मक शक्ति इंजन चला सकती है वहीं नकारात्मक दिशा में वह सर्वनाश भी कर सकती है अर्थात चंद्र मंगल पर शुभ प्रभाव जातक को ऊंचाईयों पर पहुंचा सकता है वहीं अशुभ प्रभाव उसके जीवन को नारकीय बना सकता है। मंगल का बुध से संबंध साहस और विवेक का संबंध है। अगर यह शुभ एवं सकारात्मक हो तो जातक अपने कार्यों से बहुत उन्नति एवं ख्याति अर्जित कर सकता है वहीं अशुभ एवं नकारात्मक प्रभाव उसको विनाश के कगार पर खड़ा कर सकता है। मंगल और गुरु का संबंध साहस एवं ज्ञान धर्म अर्थात बल बुद्धि का संबंध है।

अगर यह शुभ है जो जातक अच्छा विद्वान, शिल्पी, ज्योतिषी, नेता, वरिष्ठ अधिकारी व संपन्न व्यक्ति बनकर प्रसिद्धि अर्जित करता है किंतु अशुभ प्रभाव जातक की ऊर्जा को गलत दिशा की ओर मोड़ देंगे जिससे जातक दुष्प्रवृति का हो जाएगा। शुक्र कामशक्ति व सौंदर्य का प्रतीक है फलस्वरूप मंगल एवं शुक्र का संबंध जातक को अतिशय कामी बना देता है। इस पर अशुभ प्रभाव जातक को मर्यादाहीन, व्यसनी, व्यभिचारी बना सकता है। शुभ प्रभाव जातक को व्यापार में कुशलता एवं वाहन सुख की बहुलता भी देता है। मंगल और शनि का संबंध दो तमोगुणी किंतु शत्रु ग्रहों का है तथा अग्नि एवं वायु तत्वों का संयोग है जिसके फलस्वरूप मंगल की प्रखरता में कुछ कमी तो आती है किंतु उसके प्रभाव का दायरा बढ़ जाता है।

इन पर अशुभ प्रभाव जातक को व्यापार में धूर्त, कपटी व अविश्वासी बना देता है। मंगल राहु की युति सामान्यतः मंगल के अशुभ प्रभाव में और योगदान देती है वहीं मंगल केतु की युति मंगल की अशुभता में कमी कर उसके शुभत्व को बढ़ाती है। यहां यह ध्यान में रखने योग्य है कि राहु केतु जिस राशि में होते हैं उसके स्वामी ग्रह के गुणों को आत्मसात कर परिणाम देते हैं।

कुंडली 4: जर्मनी के तानाशाह शासक हिटलर की है। यहां मंगल स्वराशि का सप्तम (केंद्र) स्थान में स्थित होकर रूचक योग बना रहा है। उच्च के सूर्य (एकादशेश-लाभेश) बुध (नवमेश भाग्येश) व शुक्र (लग्नेश) के साथ होने से मंगल बली है। गुरु अपनी राशि धनु में तृतीय (पराक्रम) भाव में है जहां दशमेश (राज्येश) चंद्र भी विराजमान है। उच्च राशि (धनु) स्थित केतु गुरु एवं चंद्र के बल में अतिशय वृद्धि कर रहे हैं। फलस्वरूप जातक एक साधारण सैनिक से जर्मनी का शासक एवं पराक्रमी योद्धा बना। मंगल पर शुभ प्रभाव के अतिरिक्त अशुभ प्रभाव भी है। मंगल पर शनि की दशम नीच दृष्टि है तथा केतु की पंचम दृष्टि है। मंगल पर अष्टमेश शुक्र व द्वादशेश बुध का भी प्रभाव है। इन अशुभ प्रभावों ने उसके पराक्रम एवं बुद्धि को दूषित किया और उस पर विध्वंसकारी प्रभाव कर दिया। फलस्वरूप जातक की विचारधारा एवं प्रवृत्ति तानाशाह शासक की हो गई और उसकी निष्ठुरता व विनाशकारी प्रवृत्ति उसे पतन की ओर ले गई।

कुंडली 5: योगिराज अरविंद घोष की है जिसमें पंचमेश व दशमेश मंगल लग्न में नीच के हैं जहां गुरु (षष्टेश व भाग्येश) उच्च के होकर विराजमान है। फलस्वरूप मंगल का नीचत्व भंग हो गया और उसे गुरु का शुभत्व भी मिला। चंद्र (मन) और गुरु (ज्ञान) की प्रतिनिधि है क्योंकि गुरु चंद्रमा की राशि कर्क एवं चद्रमा गुरु की राशि धनु में है जो श्रेष्ठ फलदायक होकर मन से ज्ञान प्राप्ति की स्थिति दर्शाती है। लग्न में स्थित गुरु नवमी दृष्टि से नवम (भाग्य एवं धर्म) स्थान को स्वक्षेत्रीय दृष्टि से तथा पंचम दृष्टि से पंचम (बुद्धि) भाव को देख रहा है। फलस्वरूप जातक की ऊर्जा, कर्म व बुद्धि धर्म और ज्ञान की ओर उन्मुख हो गई और उन्होंने महान योग शक्ति प्राप्त की।

कुंडली 6: एक सफल वकील जो बाद में उच्च न्यायालय के न्यायाधीश भी बने, की है। यहां लग्नेश मंगल चतुर्थ भाव में बुध (पराक्रमेश एवं षष्टेश) के साथ है जो दशम स्थान (कर्म भाव) को देख रहे हैं। फलस्वरूप कर्म, बुद्धि व साहस का संयोग बना। धनेश शुक्र पंचमेश सूर्य से युक्त है और उन पर भाग्येश गुरु की पंचम दृष्टि है। चतुर्थेश चंद्र व दशमेश लाभेश शनि की पंचम (बुद्धि) भाव में युति है और उन पर गुरु (भाग्यश) की दृष्टि है जिसके फलस्वरूप पंचम भाव (बुद्धि स्थान) और बलवान हो गया। लग्नेश मंगल व षष्टमेश बुध की युति ने विधि (दंड) संबंधी व्यवसाय को दर्शाया वहीं कर्म, भाग्य व बुद्धि के संयोग ने उसमें अतिशय प्रगति की। फलस्वरूप जातक ने एक सफल विधि व्यवसायी (विशेषकर आपराधिक मामलों में) बनकर ख्याति व समृद्धि अर्जित की और न्यायाधीश के गरिमामय पद को भी सुशोभित किया।

कुंडली 7: एक सफल महिला चिकित्सक की है। यहां मंगल गुरु की राशि धनु में सूर्य (द्वादशेश) व राहु के साथ चतुर्थ (सुख) भाव में स्थित है और उन पर शनि (पंचमेश व षष्टमेश) की दृष्टि है। लग्न में चतुर्थेश व सप्तमेश गुरु कुंडली की शुभता एवं बल प्रदान कर रहे हैं। शनि पंचमेश व षष्टमेश होकर दशम स्थान में है जो सूर्य मंगल से दृष्ट है और चिकित्सा क्षेत्र में सफलता को दर्शाता है। लग्नेश दशमेश बुध वृश्चिक राशि का होकर तृतीय (पराक्रम) भाव में है जो साहसी, निपुण एवं कार्य कुशल होने का परिचायक है। लाभेश चंद्रमा का लाभ स्थान में स्वगृही होना, श्रेष्ठ धन लाभ का संकेत देता है। जातिका एक प्रसिद्ध शल्य चिकित्सक है जिसने अपनी दक्षता एवं साहस से कई जटिल मामलों में सफल आपरेशन कर धन और यश प्राप्त किया। चतुर्थ भाव में मंगल पर राहु केतु व शनि का पाप प्रभाव, शुक्र की षष्टम भाव में उपस्थिति व राहु की उस पर नवम दृष्टि, सप्तम भाव पर मंगल व शनि की दृष्टि ने इनके गृहस्थ जीवन में कई परेशानियां पैदा की किंतु सप्तम स्थान पर कारक गुरु की स्वक्षेत्रीय दृष्टि ने इनके गृहस्थ जीवन को टूटने से बचा लिया।

कुंडली 8: एक जातिका की है। चतुर्थ स्थान में लग्नेश मंगल नीच के होकर चतुर्थेश चंद्र के साथ है जहां दशमेश व लाभेश शनि भी वक्री होकर विराजमान है जिसके फलस्वरूप लग्न (तनु) एवं चंद्र (मन) दोनों में दूषित प्रभाव आ गया। सप्तम भाव में स्वराशि तुला के शुक्र पर राहु की पंचम दृष्टि व दूषित मंगल की चतुर्थ दृष्टि ने शुभ मालव्य योग को भी नगण्य बना दिया। पति कारक गुरु वक्री होकर षष्टम स्थान में है जिन पर वक्री शनि की तृतीय दृष्टि है। मंगल की शुक्र पर चतुर्थ दृष्टि ने जातिका को वासनामयी बना दिया। मन कारक चंद्रमा व लग्नेश मंगल की क्रूर पापी वक्री ग्रह शनि से युति ने इस मानसिकता में और बुद्धि की जिसके फलस्वरूप जातिका के संबंध कई व्यक्तियों से बने किंतु उनकी परिस्थिति विवाह के रूप में नहीं हो पाई। द्वादश भाव पर द्वादशमेश गुरु की स्वक्षेत्रीय दृष्टि तथा सप्तमेश के स्वराशिस्थ होने से जातिका को अस्थाई रूप से शैय्या सुख तो मिला किंतु पतिकारक गुरु एवं चतुर्थ व सप्तम पर अशुभ प्रभाव ने उसे विवाह एवं गृहस्थ सुख से वंचित रखा।

कुंडली 9: जन्मकुंडली एक सफल उद्यमी इंजीनियर की है जिसने अपना उद्योग स्थापित कर आशातीत प्रगति की। यहां मंगल चतुर्थ भाव में उच्च के शनि के साथ है। मंगल पंचमेश व दशमेश होने से योग कारक है और दशम (व्यवसाय) व एकादश (लाभ स्थान) को देख रहा है। भाग्येश गुरु पंचम (बुद्धि) भाव में स्थित होकर भाग्य (नवम), लाभ (एकादश) एवं लग्न को देख रहा है। लग्नेश चंद्र की नवमेश गुरु से युति पंचम (त्रिकोण) भाव में होने से चंद्र के नीचत्व का अशुभ प्रभाव नगण्य हो गया। शनि मंगल का संबंध इंजीनियरिंग उद्योग को इंगित करता है। उच्चस्थ शनि की धनेश सूर्य पर तृतीय दृष्टि व लग्न पर दृष्टि जातक को उद्योग द्वारा धन प्राप्ति का योग दर्शाती है। लाभेश शुक्र की तृतीयेश व द्वादशेश बुध के साथ सप्तम (व्यापार) भाव में युति आयात-निर्यात या विदेश व्यापार से लाभ इंगित करती है। दशमेश मंगल की लाभेश शुक्र एवं लाभ भाव पर दृष्टि, भाग्येश गुरु की लग्न, भाग्य व लाभ भाव पर दृष्टि लाभ में कर्म एवं भाग्य का प्रबल सहयोग बताता है। लग्नेश चंद्रमा का भाग्येश गुरु के साथ पंचम भाव में युति पूर्व जन्म के पुण्य फल व शुभत्व का संकेत देती है। जातक एक इंजीनियर एवं सफल उद्यमी है जिसका व्यवसाय देश विदेश में फैला हुआ है। इसका जीवन धन, सुख, स्वास्थ्य, धर्म एवं सम्मान से परिपूर्ण है।



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