किसी व्यक्ति की जन्मकुंडली आकाश में ग्रहों की उस समय की स्थिति का विवेचन है जिस समय उसने जन्म लिया। सभी ग्रह सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करते हैं किंतु चंद्रमा पृथ्वी का एक उपग्रह होने के कारण पृथ्वी का चक्कर 27.324 दिनों में पूरा करता है और एक राशि पर औसतन 2. 273 दिन रहता है। इस प्रकार चंद्रमा को किसी राशि का एक अंश पार करने में दो घंटे से भी कम का समय लगता है। तीव्रगति एवं पृथ्वी से निकटतम होने के कारण चंद्रमा का मानव जीवन पर प्रभाव बहुत ही महत्वपूर्ण है। चंद्रमा श्वेत रंग, शीतल प्रकृति, जल तत्व, स्त्री स्वभाव एवं सतोगुणी ग्रह है और मन का कारक है।
चंद्रमा सूर्य से जितनी दूर होगा उतना ही प्रभावी, बलशाली एवं शुभ होगा किंतु इसके विपरीत जितना निकट होगा उतना ही क्षीण एवं पापी स्वभाव का होगा। यही कारण है कि पूर्णिमा एवं उसके आस-पास चंद्र पूर्ण बलशाली एवं शुभत्व प्रभाव का होता है जबकि अमावस्या एवं उसके आस-पास क्षीण और पापी स्वभाव का होता है। चंद्र कर्क राशि का स्वामी है। यह वृषभ राशि में उच्च का तथा वृश्चिक में नीच का माना गया है। मंगल रक्त वर्ण, उष्ण प्रकृति, अग्नि तत्व, पुरुष स्वभाव एवं तमोगुणी ग्रह है। इसे राशि चक्र पूरा करने में लगभग 17 वर्ष 6 माह लगते हैं। यह मेष एवं वृश्चिक राशियों का स्वामी है।
मेष राशि इसकी मूल त्रिकोण राशि है। मकर राशि में यह उच्च का एवं कर्क राशि में नीच का माना गया है। मंगल बल, साहस और सामथ्र्य का प्रतीक है। बलवान एवं शुभ स्थिति में वह बल व सामथ्र्य का उपयोग सकारात्मक (अच्छी) दिशा में कराता है किंतु निर्बल एवं पाप प्रभाव में होने पर नीच कार्यों एवं नैतिक पतन की ओर ले जाता है। मंगल चंद्र का मित्र है। चंद्र मंगल की युति जल एवं अग्नि का योग है। जल और अग्नि के मिलने पर भाप बनती है। भाप की शक्ति जहां रेलगाड़ी चला सकती है वहीं जलाकर विनाश लीला भी कर सकती है। इसका अभिप्राय यह है कि यदि चंद्र मंगल का यह योग शुभ प्रभाव में हो तो वरदान और अशुभ (पाप) प्रभाव में हो तो अभिशाप हो सकता है।
चंद्रमा मन का कारक है। इसलिए मंगल का प्रभाव जातक को क्रोधी स्वभाव का बनाता है। पाप प्रभाव में दूषित होने से मन अस्थिर एवं अनिश्चयात्मक हो जाता है और बुरे विचारों की ओर रुझान होने पर चरित्र पतन की ओर भी ले जाकर कुकर्मों में लिप्त करा सकता है। अस्तु अशुभ एवं पाप प्रभाव में चंद्र और मंगल का योग जातक को चरित्रहीन बनाता है। ऐसा जातक अनैतिक एवं अपवित्र कार्यों से धन अर्जित करता है। चंद्रमा मन और बुद्धि का कारक है और मंगल बल एवं सामथ्र्य का। बल और बुद्धि से ही व्यक्ति धन सम्पत्ति अर्जित करता है। अतः किसी व्यक्ति की वित्तीय स्थिति सुदृढ़ बनाने में चंद्र मंगल-योग का योगदान महत्वपूर्ण होता है। यदि यह योग शुभ प्रभाव में है तो उचित माध्यमों से संपत्ति अर्जित होगी किंतु यदि अशुभ प्रभाव में है तो अनुचित एवं अनैतिक माध्यमों से संपत्ति अर्जन होगा।
शुभ प्रभाव में चंद्र-मंगल योग जातक को प्रतिभावान, बुद्धिमान एवं धनवान बनाता है।
कुंडली सं. 1 भारत की एक बड़ी भूतपूर्व रियासत के महाराज की है जो लंबे समय तक सांसद एवं भारत सरकार में ख्यातिप्राप्त मंत्री रहे। इस कुंडली में चद्र-मंगल योग चतुर्थ भाव में मकर राशि में बन रहा है जहां मंगल उच्च का है। इस योग पर शुभ गुरु की पंचम दृष्टि है। चंद्र मंगल योग शुभ स्थान पर एवं शुभ प्रभाव में होने से जातक को जन्म से ही वैभव, संपन्नता एवं सभी सुख साधन मिले। वहीं उत्तम बुद्धिमत्ता और साहस के कारण वे एक कुशल प्रशासक और लोकप्रिय नेता साबित हुए।
कुंडली सं. 2 में चंद्र-मंगल का योग बारहवें भाग में शत्रु ग्रह बुध की मिथुन राशि में बन रहा है। इस योग में सूर्य की युति, शनि की दशम एवं राहु की पंचम दृष्टि है जो इस योग को पाप प्रभावी बना रहे हैं। यह कुंडली एक ऐसे व्यक्ति की है जो महिलाओं के अनैतिक व्यापार एवं अन्य अनुचित गतिविधियों में लिप्त होकर दुष्चरित्र रहा। एकादशेश (लाभेश) की द्वितीय भाव में केतु के साथ उपस्थिति के कारण वह आर्थिक रूप से संपन्न तो हुआ किंतु चंद्र और मंगल पर पाप प्रभाव ने उसे मानसिक संताप भी बहुत दिए तथा उसे नेत्र ज्योति भी खोनी पड़ी। मंगल स्त्री जातकों के लिए कामकारक भी है। इसलिए मंगल और चंद्र पर पाप प्रभाव वैवाहिक संबंधों में भी व्यवधान डालता है। ऐसी स्थिति में विवाह नहीं होना, विवाह में अप्रत्याशित विलंब, पति के साथ असामंजस्यता, विवाह विच्छेद, अन्य पुरुषों से संबंध जैसी स्थितियां भी बन सकती हैं। विशेष रूप से यदि मंगल इनसे संबंधित भाव लग्न, द्वितीय, पंचम, सप्तम, अष्टम, नवम और द्वादश में से किसी का स्वामी हो।
कुंडली सं. 3 एक ऐसी महिला की कुंडली है जो आजीवन अविवाहित रही। उसके संबंध अपने सहकर्मी से भी बने किंतु उनकी परिणति विवाह के रूप में नहीं हो पाई जिससे वह मनोरोगी भी हो गई। इस कुंडली में बारहवें भाव में उच्च के मंगल के साथ चंद्र का योग है जिस पर शनि की तृतीय दृष्टि एवं गुरु की नीच दृष्टि है। पतिकारक गुरु यद्यपि उच्च का है किंतु वह षष्ठ स्थान में है और उस पर मंगल की सप्तम एवं । 1 2 11 10 9 8 7 4 5 3 6 12 कुंडली सं. 2 गु. शु. के. चं. मं. सू. बुराराहु की नवम दृष्टि है। पति भाव (सप्तम) पर मंगल की अष्टम और शनि की दशम दृष्टि है। चतुर्थ भाव में स्वक्षेत्री शुक्र एवं शय्या सुख स्थान (द्वादश भाव) में उच्च के मंगल ने उसे सहकर्मी के साथ सुख तो प्रदान किया किंतु अलगाववादी पापी ग्रहों के प्रभाव के कारण उसमें स्थायित्व नहीं आ सका और वह अनैतिक एवं अमर्यादित रहा जिससे उसे तिरस्कार और अपमान झेलना पड़ा और भयंकर मानसिक संताप का सामना करना पड़ा।
कुंडली सं. 4 एक ऐसी महिला की है जिसका विवाह विच्छेद शादी के तुरंत बाद हो गया। इस कुंडली में चंद्र-मंगल का योग गुरु की राशि धनु में राहु के साथ बन रहा है। गुरु चंद्र एवं मंगल का मित्र ग्रह है जो एकादश भाव में उच्च का है। चंद्र-मंगल योग पर पापी ग्रह शनि की तृतीय और केतु की सप्तम दृष्टि एवं राहु का संयोग है। सप्तम (पति) भाव पर मंगल की चतुर्थ दृष्टि तथा पति भाव (सप्तम) के स्वामी एवं कारक गुरु पर मंगल की अष्टम दृष्टि और शनि की दशवीं दृष्टि होने से पाप प्रभाव है। उच्च के गुरु ने शादी तो करा दी किंतु पति भाव (सप्तम), सप्तमेश एवं कारक गुरु तथा चंद्र-मंगल योग पर पापी ग्रहों के अलगाववादी प्रभाव के कारण विवाह विच्छेद हो गया और जातका को मानसिक क्लेश और प्रताड़ना भी मिली।