चार धामों में से एक भगवान श्रीकृष्ण की नगरी जगन्नाथ पुरी अपनी महिमा और सौंदर्य दोनों के लिए जगत विख्यात है। श्रीकृष्ण यहां जगन्नाथ के रूप में अपने भाई बलराम एवं बहन सुभद्रा के साथ विद्यमान हैं। हर साल जून एवं जुलाई माह में आयोजित की जाने वाली रथयात्रा पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। पुरी के अनेक नाम हैं। इसे पुरुषोत्तमपुरी तथा शंखक्षेत्र भी कहा जाता है, क्योंकि इस क्षेत्र की आकृति शंख के समान है। शाक्त इसे उड्डियान पीठ कहते हैं। यह 51 शक्तिपीठों में से एक पीठ स्थल है, यहां सती की नाभि गिरी थी। पुरी के जगन्नाथ मंदिर का निर्माण 12 वीं शताब्दी में हुआ। मंदिर 40 लाख वर्ग फुट पर बना है। यहां स्थित अन्य मंदिरों की भांति, यह भी पारंपरिक उड़िया शैली में बना हुआ है। मंदिर के चार द्वार हैं- सिंह, अश्व, व्याघ्र एवं हस्ति। मंदिर के चारों ओर 20 फुट ऊंची चहारदीवारी की गई है। विश्व की सबसे बड़ी रसोई भी यहीं है, जहां रथ यात्रा उत्सव के दिनों में प्रतिदिन एक लाख लोगों के लिए भोजन बनता है और सामान्य दिनों में 25 हजार लोगों की रसोई तैयार होती है। कहा जाता है कि पहले यहां नीलाचल नामक पर्वत था जिस पर नील माधव भगवान की मूर्ति थी जिसकी आराधना देवता किया करते थे।
बाद में यह पर्वत भूमि में चला गया और भगवान की उस मूर्ति को देवता अपने लोक में ले गए। इसी की स्मृति में इस क्षेत्र को नीलाचल कहा जाता है। श्री जगन्नाथ जी के मंदिर के शिखर पर लगे चक्र को ‘नीलच्छत्र’ कहा जाता है। इस नीलच्छत्र के दर्शन जहां तक होते हैं वह पूरा क्षेत्र जगन्नाथपुरी कहलाता है। पुरी के उद्भव के विषय में कथा आती है कि एक बार द्वारिका में श्रीकृष्ण जी की पटरानियों ने माता रोहिणी जी के भवन में जाकर कृष्ण की ब्रज लीला के प्रेम-प्रसंग को सुनाने का आग्रह किया। माता ने इस बात को टालने का बहुत प्रयत्न किया मगर पटरानियों के आग्रह को वह टाल न सकीं। प्रेम प्रसंग सुनाते समय कृष्ण की बहन सुभद्रा का वहां रहना उचित नहीं था। इसलिए माता रोहिणी ने उन्हें द्वार के बाहर खड़े रहने का आदेश दिया ताकि कोई अंदर न आने पाए। सुभद्रा बाहर खड़ी ही थी कि इसी बीच श्रीकृष्ण और बलराम पधार गए। वह दोनों भाइयों के बीच में खड़े होकर दोनों हाथ फैलाकर उनको भीतर जाने से रोकने लगी। इस उपक्रम में बंद द्वार के भीतर से ब्रज प्रेम वार्ता बाहर भी सुनाई दे रही थी। उसे सुनकर तीनों के ही शरीर द्रवित होने लगे। उसी समय देवर्षि नारद वहां आ गए और तीनों के प्रेम द्रवित रूप देखकर उनसे इसी रूप में यहां विराजमान होने की प्रार्थना की। श्रीकृष्ण ने अपनी सहमति दे दी।
स्नान माहात्म्य: पुरी में महोदधि, रोहिणी कुंड, इंद्ऱद्युम्न सरोवर, मार्कण्डेय सरोवर, श्वेत गंगा, चंदन तालाब, लोकनाथ सरोवर तथा चक्रतीर्थ इन पवित्र आठ जल तीर्थों में स्नान का बहुत माहात्म्य माना जाता है।
प्रसाद माहात्म्य: श्री जगन्नाथ जी के महाप्रसाद की महिमा चारों ओर प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि इस महाप्रसाद को बिना किसी संदेह एवं हिचकिचाहट के उपवास, पर्व आदि के दिन भी ग्रहण कर लेना चाहिए। प्रसाद ग्रहण के विषय में एक घटना का उल्लेख भी मिलता है। आज से कई सौ साल पहले श्री बल्लभाचार्य महाप्रभु जब पुरी आए तो एकादशी के व्रत के दिन उनकी निष्ठा की परीक्षा करने के लिए किसी ने उन्हें मंदिर में ही महाप्रसाद दे दिया। बल्लभाचार्य ने महाप्रसाद हाथ में लेकर उसका स्तवन प्रारंभ किया और एकादशी के पूरे दिन तथा रात्रि में स्तवन करते रहे। दूसरे दिन द्वादशी में स्तवन समाप्त कर उन्होंने प्रसाद ग्रहण किया। इस प्रकार उन्होंने महाप्रसाद एवं एकादशी दोनों को समुचित आदर दिया।
रथयात्रा: श्री जगन्नाथ जी की रथयात्रा पुरी का प्रधान महोत्सव है जिसका आयोजन आषाढ़ शुक्ल की द्वितीया को किया जाता है। इस दौरान यहां के मंदिरों की साज-सज्जा कर उन्हें विशेष रूप दिया जाता है। रथ यात्रा के लिए तीन विशाल रथ सजाए जाते हैं। पहले रथ पर श्री बलराम जी, दूसरे पर सुभद्रा एवं सुदर्शन चक्र तथा तीसरे रथ पर श्री जगन्नाथ जी विराजमान रहते हैं। संध्या तक ये रथ गुंडीचा मंदिर (वृंदावन का प्रतीक) पहुंच जाते हैं। दूसरे दिन भगवान से उतरकर मंदिर में पधारते हैं और सात दिन वहीं विराजमान रहते हैं। दशमी को वहां रथ से लौटते हैं। इन नौ दिनो में श्री जगन्नाथ जी के दर्शन को ‘आड़पदर्शन’ कहते हैं। जगन्नाथ जी के इस रूप का विशेष माहात्म्य है। पुरी धाम के अन्य मंदिर एवं मठ: पुरी के आस-पास शंकराचार्य मठ और गंभीर मठ सहित अनेक मठ हैं। गुंडीचा मंदिर, कपाल मोचन, लोकनाथ, बेड़ी हनुमान, चक्र नारायण, कानवत हनुमान आदि मंदिर दर्शनीय हैं।
आसपास के दर्शनीय स्थल:
भुवनेश्वर: उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर देश के व्यवस्थित शहरों में से एक है, जो अपने प्राचीन मंदिरों और शिल्प-कला के कारण देश-विदेश के पर्यटकों के लिए मुख्य आकर्षण बना रहता है।
राज्य संग्रहालय: यह संग्रहालय एक नवीनतम डिजाइन की इमारत में बना हुआ है। यहां पुरातात्विक वस्तुओं का संग्रहालय है। यहां 12 वीं शताब्दी की बुद्ध की मूर्ति, संगीत के वाद्य यंत्र, हथियार एवं पारंपरिक वस्त्र आदि मुख्य हैं।
रवींद्र मंडप: यहां प्रतिदिन संगीत, नृत्य एवं नाटक संबंधी गतिविधियां आयोजित की जाती हैं।
वीर प्रतापपुर एवं गंगा नारायणपुरः नारियल के पेड़ों, धान के खेतों, झीलों, नदियों और छोटे-छोटे मंदिरों से घिरा यह खूबसूरत स्थल पुरी-भुवनेश्वर रोड से लगभग 10 से 13 किमी की दूरी पर स्थित है।
कोणार्क: विश्वप्रसिद्ध कोणार्क सूर्य मंदिर पुरी से 40 किमी उत्तर में स्थित है। यहां सात घोड़ों और 24 नक्काशीदार पहियों वाले रथ पर सूर्य देव सवार हैं।
चिल्का झील: यह एशिया की सबसे बड़ी झील है जो यहां आने वाले पर्यटकों और देश-विदेश के पक्षियों की पसंदीदा स्थली भी है। इनके अलावा राजा-रानी मंदिर, मुक्तेश्वर मंदिर, लिंगराज मंदिर, बिंदु सागर आदि दर्शनीय स्थल हैं।
कब जाएं:
रथयात्रा के समय जून, जुलाई, अक्तूबर से लेकर अप्रैल तक।
कैसे जाएं:
पुरी का निकटतम हवाई अड्डा भुवनेश्वर है। वहां से 56 किमी की दूरी पर पुरी है। भुवनेश्वर से नियमित रेल एवं बसें पुरी के लिए जाती हैं। पुरी रेलवे स्टेशन देश के बड़े शहरों से जुड़ा हुआ है।
कहां ठहरें:
पुरी में कई मठ हैं जहां यात्रियों के ठहरने की सुविधा है। इसके अलावा यहां सुविधासंपन्न होटलों की बहुतायत है जहां से पुरी के आसपास के नयनाभिराम दृश्य देखे जा सकते हैं।