प्लेट विवर्तन सिद्धांत के अनुसार पृथ्वी के वर्गीकृत आठ विशाल भूखंडों का क्षेत्र फाल्ट जोन कहलाता है। इन भूखंडों के आपस में टकराने या घर्षण से निकलने वाली ऊर्जा भूकंप के रूप में विनाशकारी होती है। कैरीबियन, अमेरिकन, अफ्रीकन, इंडियन, पैसेफिक, दक्षिण पूर्व एशियन, फिलीपिंस और एंटार्कटिक आठ भूगर्भ फाल्ट जोन के अंतर्गत आते हैं। अर्थात भूगर्भ के संतुलन में जब व्यतिक्रम (असंतुलन) होता है तब भूकंप आता है। ठीक-ठीक अक्षांश और देशांश बताते हुए निश्चित समय तथा स्थान विशेष की भविष्यवाणी करना तो संभव नहीं है कि किस रिक्टर पैमाने का भूकंप कब, कहां और किस समय आएगा, फिर भी देश अथवा प्रदेश की कुंडली का अध्ययन तथा सूर्य और चंद्र ग्रहण की स्थिति का विचार करके ज्योतिष के द्वारा भविष्यवाणी करने में सफलताएं मिली हैं। भू
बाढ़, आंधी, महामारी जैसी प्राकृतिक विपदाओं की भविष्यवाणी ज्योतिष की गणना के आधार पर प्रकाशित होने वाले प्रतिवर्ष के पंचांगों में होती रहती है। लेकिन वराह मिहिर द्वारा (2500 वर्ष पहले) दिए गए सूत्रों को विगत शताब्दी में ज्योतिष विज्ञान की कसौटी पर परख कर पूना, महाराष्ट्र के स्व. श्री एस. के. केलकर ने यह सिद्ध कर दिया कि ग्रहों की स्थितियों और सूर्य-चंद्र ग्रहण के कारण पृथ्वी पर असंतुलन होने से भीषण प्राकृतिक आपदाएं आती हैं। परंतु भूगर्भ वैज्ञानिक इस बात से सहमत नहीं हैं। खगोल वैज्ञानिक ग्रह और ग्रहगतियों तथा ग्रहों में होने वाली गतिविधियों, हलचलों पर निरंतर अन्वेषण और शोध कर रहे हैं, इसी तरह भूगर्भ वैज्ञानिक अपने आधार पर पृथ्वी की गतिविधियों पर नजर रखे हुए हैं लेकिन खगोल विज्ञानी तथा भूगर्भ वैज्ञानिक दोनों ही इस बात का पता लगाने में अभी तक असमर्थ हैं कि ग्रहों की हलचल का असर कब, कहां और किस पर पड़ेगा। इसे ज्योतिष की आंख से ही परखा और देखा जा सकता है, किंतु ज्योतिष की इस पहचान की दोनों ही पक्ष न केवल अनदेखी करते हैं, वरन वे ज्योतिष को ही हाशिये पर रख देते हैं।
भारतीय उपमहाद्वीप के हिमालय भूभाग पर आने वाली इस भयंकर आपदा के बारे में भूगर्भ वैज्ञानिक यद्यपि समझ तो पा रहे थे और उन्होंने वर्षों पहले यह चेतावनी भी दी थी कि भूकंप की दृष्टि से यह भाग संवेदनशील है, फिर भी यह आपदा कब आएगी यह वे नहीं समझ सके थे। खगोल शास्त्रियों ने सूर्य पर सूर्य ग्रहण के समय संतुलन में गड़बड़ी होने की पुष्टि की है। इस गड़बड़ी के फलस्वरूप भू-चंुबकीय क्षेत्रों में चट्टानों में उत्पन्न गंभीर दरकन एवं विस्फोट भूकंप का कारण बनते हैं। वराह मिहिर के उस मंतव्य पर चीन की प्रयोगशाला सहमत नहीं हो पाई कि भूकंप के समय पशुपक्षियों के व्यवहार में अंतर आता है।
अंतर आता है, पर लोग उसे समझ नहीं पाते। लेकिन चीन में भी ग्रह नक्षत्रों के कारण ही पृथ्वी पर विपदाएं आती हैं इस तथ्य को स्वीकारने में वे हिचक अनुभव नहीं करते। सांख्यिकीय गणनाओं के आधार पर हावर्ड विश्व विद्यालय के हार्लन टी स्ट्रेल्सन ने बताया कि 2000 भूकंपों में चंद्रमा की विशिष्ट स्थिति पाई गई। जाॅन ग्रिबिन और स्टीफन फ्लेग मेन के अनुसार सूर्य के संतुलन में गड़बड़ी पृथ्वी के संतुलन को डगमगा देती है। भूकंप या प्रकृति की हलचल में केवल मंगल-शनि की भूमिका बताकर ज्योतिषी अपनी भविष्यवाणी कर देते हैं, इससे वैज्ञानिक विश्वसनीयता खत्म होती है। सूर्य से अत्यंत निकट ग्रह बुध की जिसे फल ज्योतिष में संवेदनशील तथा स्नायविक विकारों का सूचक ग्रह कहा गया है, भूमिका अधिक होती है। पृथ्वी और पृथ्वीवासी सौर परिवार के सदस्य हैं। अतः आनुवंशिक आधार पर सौर जगत में जो हलचल होती है, उसका असर पृथ्वी पर पड़ेगा ही और उसके कारण हम सब (जनजीवन) भी प्रभावित होंगे ही। पृथ्वी भी एक ग्रह है।
इसे आर्ष ऋषियों (प्राचीन वैज्ञानिकों) ने माता के रूप में मान्यता दी है, इसे जीवंत तत्व के रूप में स्वीकार किया है। यह वैज्ञानिकों के लिए अचम्भे की बात होगी कि धरती सूर्य के निर्धारित अंशों पर सोती भी है, रुदन भी करती है। इतना ही नहीं धरती रजस्वला भी होती है जिसका पक्ष मुहूर्त ज्योतिष में अधिक देखने को मिलता है। चूंकि बुध ग्रह स्नायविक कमजोरियों का संबल प्रदान करता हैं, अतः उसके उदय-अस्त, वक्री या मार्गी होने अथवा सूर्य से आगे की स्थिति पर आ जाने से पृथ्वी के भीतर की परतों को झकझोरने जैसी भूमिका का निर्वाह करती है। यही कारण है कि अब धरती के मौसम में भयानक परिवर्तन होते हैं। यह भारी वर्षा, चक्रवात, तूफान, बादलों का फटना, आंधी अथवा भूकंप या समुद्री लहरों में बड़े स्तर पर कुछ भी हो सकता है। पूर्णिमा और अमावस को जब ज्वार-भाटा तथा मनोरोगियों की संख्या बढ़ती देखी जा सकती है, तो फिर ग्रहण के समय चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण बढ़ने से तो इसका बड़े स्तर पर असर सामने आता है, इस भूमिका में भी सूर्य (आत्मा), चंद्र (मन) तथा बुध (बुद्धि) की तंतु शिराएं शरीर को कम्पित-प्रभावित करती ही हैं।
बुध ग्रह की सौम्यता के साथ-साथ मंगल-शनि-राहु जैसे पाप ग्रहों का संयोग भी उतना ही विनाशकारी होता है, जितना कि शुभ ग्रहों की वक्री गति अथवा पाप ग्रहों की उन पर दृष्टि होती है। पिछले दशकों में चाहे वह लातूर का भूकंप (दिनांक 30-09-1993) हो, जबलपुर का भूकंप (दिनांक 22-05-1997) हो, कच्छ का भूकंप (दिनांक 26-01-2001) हो, सुनामी की लहर से विध्वंस हो अथवा भारत-पाकिस्तान-अफगान की सीमा पर कहर ढाने वाले भूकंप (दिनांक-8-10-2005) की घटना हो, इन सबके पीछे क्रमशः सूर्य-चंद्र ग्रहण के आसपास बुध के सूर्य की राशि से आगे निकल जाने की भूमिका होती है, तो मंगल-शनि की एक दूसरे पर दृष्टि भी। दिनांक 08-10-05 पर भी एक दूसरे पर दृष्टि ही नहीं वरन् बुध से मंगल के अंश पर सीधी-सीधी दृष्टि भी भारी प्राकृतिक विपदा की भूमिका में सहायक रही है।
भूकंप या प्राकृतिक आपदा के बारे में:
Û देश-प्रदेश की आधारभूत विश्वसनीय कुंडली।
Û धीमी गति के तेज ग्रहों (गुरु को छोड़कर) की चैथे और आठवें घरों पर दृष्टि।
Û कुंडली के पहले, चैथे, सातवें और आठवें घरों में पड़ने वाला ग्रहण।
Û ग्रहण के उपरांत पाप ग्रहों का संयोग।
Û एक से अधिक ग्रह गोचर में अपनी नीच राशियों में हों।
Û किसी ग्रहण के बाद बुध सूर्य से आगे निकल गया हो।
Û किसी ग्रहण के बाद मंगल और बुध एक साथ एक दूसरे की दृष्टि में हों। इन स्थितियों में महाविनाशकारी प्राकृतिक आपदा भूकंप से जनजीवन प्रभावित होता है। प्रश्न उठता है कि क्या भूकंप अथवा प्राकृतिक आपदा की भविष्यवाणी से आने वाले भूकंपों या आपदाओं से बचा जा सकता है? कदापि नहीं। भूकंप या आपदा तो आएगी ही उसे रोका तो नहीं जा सकता। परंतु बचने के हर संभव प्रयास तो किए जा सकते हैं।
अतः चेतावनी के प्रति सचेत रहने के लिये आपदा प्रबंध व्यवस्था और पूर्व सूचना तकनीक विकसित करने के लिए राज्य एवं केंद्र सरकारों के द्वारा ज्योतिष विज्ञानी, खगोल शास्त्री और भूगर्भ शास्त्री के सम्मिलित प्रयास, प्रशिक्षण एवं जागरूकता के इस तरह के मंच की आवश्यकता है ताकि जन कल्याणकारी उपाय सुनिश्चित किए जा सकें।