आज के वैज्ञानिक युग में यदि मशीनीकरण हो रहा है एवं चिकित्सा शास्त्र में उन्नति हो रही है तो शिशु जन्म प्रक्रिया में भी अनेक अंतर आए हैं। आज शिशु का जन्म शल्य चिकित्सा द्वारा अपने मनचाहे समय पर करवा सकते हैं और इस प्रकार ज्योतिष विधान के अनुसार उसका भविष्य अपने हाथों निर्मित कर सकते हैं। क्या यह संभव है या एक कल्पना की उड़ान है? ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ईश्वर ने हमें कर्म करने के लिए कुछ अवसर दिए हैं और इन अवसरों का सही उपयोग कर हम अपने भविष्य को सुधार सकते हैं। वेदांत में भी अपने भविष्य को प्रयत्नपूर्वक सुधारने के लिए कहा गया है।
किसी भी शुभ कर्म के लिए हम मुहूर्त देखते हैं। इसके मूल में छिपी भावना यही है कि शुभ समय में कार्य करेंगे तो उसका भविष्य भी शुभ ही होगा। इसी प्रकार से हम वर वधू का कुंडली मिलान करते हैं। इसके पीछे भी हमारी यही धारणा है कि यदि दो जातकों के विचार एकमत होंगे तो उनका भविष्य सुखमय रह सकेगा।
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यदि हम मुहूर्त के द्वारा किसी कार्य का भविष्य बदल कर उसे शुभ कर सकते हैं या मिलान द्वारा दो व्यक्तियों का भविष्य शांतिमय एवं आनंदमय बना सकते हैं तो जन्म समय निर्धारण कर होने वाले शिशु का भविष्य भी अवश्य ही स्वास्थ्यमय, सुखमय एवं शांतिमय बना सकते हैं।
प्रथमतः विचारणीय है कि जन्म समय किसे कहते हैं - शिशु के बाहर निकलने के समय को, नाल काटने के समय को या उसके पहली सांस लेने के समय को? शिशु के प्रथम सांस लेने का समय ही ज्योतिष के अनुसार उसका जन्म समय है। यही समय उसके सर्वप्रथम रोदन का समय होता है।
अधिकांशतः शिशु के जन्म समय निर्धारण हेतु हमें केवल कुछ दिनों का ही समय चयन के लिए मिलता है और उसमें से ही सर्वोत्कृष्ट समय का निर्धारण करना होता है। इस अवधि में चंद्र को छोड़ लगभग सभी ग्रह उसी राशि में रहते हैं। उनमें केवल कुछ अंश या कला का ही अंतर आता है। लेकिन एक दिन में सभी 12 लग्न घूम जाते हैं, अतः जन्म समय का निर्धारण निम्न बिंदुओं को ध्यान में रखकर किया जा सकता है ।
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- सर्वप्रथम चार पांच दिनों में तिथि का चयन करने के लिए चंद्र के नक्षत्र को देखें। चंद्र कहीं मूल नक्षत्र में तो नहीं है? विशेष रूप से मूल के अशुभ पाद में तो नहीं है, क्योंकि मूल के अशुभ पाद में शिशु के जन्म होने से वह अपने मां-बाप, भाई-बहन, नाना-नानी या दादा-दादी के लिए भारी हो सकता है।
- यदि जन्म सामान्य हो अर्थात शल्य चिकित्सा आवश्यक नहीं हो तो ऐसा लग्न निर्धारण करें ताकि उससे अगला या पिछला लग्न भी शुभ हो, क्योंकि कई बार सामान्य प्रसव में चार से छह घंटे का समय ही लगता है और सटीक जन्म समय का निर्धारण डाॅक्टर के हाथ में नहीं होता।
- यदि शल्य चिकित्सा द्वारा जन्म समय का निर्धारण होना हो तो लग्न के साथ नवांश भी निर्धारित किया जा सकता है जिसकी अवधि केवल दस से पंद्रह मिनट होती है। ऐसे में चलित कुंडली का ध्यान अवश्य रखें। ऐसा न हो कि कुछ ग्रह चलित कुंडली में छठे, आठवें या बारहवें भाव में जा रहे हों।
- लग्न का चयन शिशु को आप अपने इच्छानुसार बनाने के लिए भी कर सकते हैं। यदि आपको ज्ञानवान संतति चाहिए तो लग्न ऐसे चयन करें ताकि पंचम भाव में अधिक ग्रह हों। यदि ख्यातिवान संतति चाहिए तो लग्न में अधिक ग्रह चयन करें और यदि भाग्यशाली चाहिए तो नवम में। कर्मशील के लिए दशम में एवं धनवान या संपत्तिवान संतति के लिए ग्रहों को दूसरे और चैथे स्थान में स्थापित करें। आकर्षक व्यक्तित्व के लिए बलयुक्त चंद्र को लग्न में स्थापित करें।
- लग्न निर्धारण में ग्रहों को शुभ स्थान जैसे केंद्र या त्रिकोण में स्थापित करना चाहिए एवं अशुभ स्थान जैसे छठे, आठवें या बारहवें को रिक्त रखने का प्रयास करना चाहिए। अशुभ या क्रूर ग्रहों को तीसरे, छठे या ग्यारहवें भाव में भी रखा जा सकता है।
- यदि सभी ग्रह केंद्र या त्रिकोण में किसी भी लग्न में नहीं आ रहे हों तो कोशिश करें कि छठे, आठवें या बारहवें में कोई ग्रह न हो एवं आठवां घर तो अवश्य ही रिक्त हो। लग्न में या चैथे, पांचवें, नौवें या दसवें भाव में ग्रह उत्तम फल ही देते हैं।
- लग्न चयन करने के साथ दशा का भी आकलन कर लें ताकि भविष्य में आनेवाली दशाएं शुभ ही हों। यदि जन्म अशुभ दशा से ही प्रारंभ हो रहा हो तो जन्म समय को एक दिन बाद उसी समय लेने से वह दशा समाप्त हो जाएगी एवं अगले नक्षत्र अथवा ग्रह की दशा शुरू हो जाएगी।
व्यवहार में ऐसा देखने में आया है कि उपर्युक्त सूत्रों के अनुसार जिन जातकों का जन्म समय निर्धारित होता है वे अत्यंत ही स्वस्थ, संुदर, ज्ञानवान एवं आकर्षक होते हैं और अपना जीवन सुख शांतिपूर्वक व्यतीत करते हैं। ज्योतिष शास्त्र में तो केवल जन्म समय निर्धारण का ही नहीं अपितु जन्म अवधि निर्धारण का भी प्रावधान है। प्राचीन काल में तो राजघरानों में गर्भाधान का भी समय निर्धारित किया जाता था। जन्म समय निर्धारण के आधार पर ज्योतिष द्वारा इस संसार को एक स्वस्थ एवं ज्ञानवान समाज देकर मानव जाति का कल्याण किया जा सकता है।
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