अष्टम भावस्थ शनि और शिक्षा
अष्टम भावस्थ शनि और शिक्षा

अष्टम भावस्थ शनि और शिक्षा  

एम. के रस्तोगी
व्यूस : 6740 | जनवरी 2006

जीवन में शिक्षा का स्थान महत्वपूर्ण है, विशेषकर आधुनिक समय में क्योंकि यह शिक्षा ही जीवन के आधार-व्यवसाय का निर्णय करती है। समय परिवर्तन से इस संसार का परिवेश बदला, नये मार्ग खुले तथा नये-नये व्यवसायों का निर्माण हुआ। इसके साथ ही नये-नये विषयों का अध्ययन प्रारंभ हुआ। माता-पिता की इच्छा अपनी संतान को अच्छी से अच्छी शिक्षा देने की होती है और इसके लिए वे हर संभव प्रयास भी करते हैं।

परंतु शिक्षा पूर्व जन्मों के संचित कर्मों के अनुसार ही मिल पाती है. जिसे हम व्यक्ति की जन्म कुंडली से जान सकते हैं। किसी भी जातक की कुंडली में उसके पूर्व जन्मों के कर्मों के अनुसार भिन्न-भिन्न भावों में ग्रहों की स्थिति उसकी शिक्षा, शिक्षा में रुचि, शिक्षा का संभावित क्षेत्र और उसकी बुद्धि की कार्य क्षमता को दर्शाती है। महर्षि पराशर के अनुसार विद्या, बुद्धि, ग्रंथ रचना, यंत्र, मंत्र आदि को पंचम भाव से देखना चाहिए। उत्तर कालामृत में कवि कालिदास का भी ऐसा ही मत है। ढंुढिराज ने जातकाभरणम् में लिखा है कि बुद्धि, ग्रंथ रचना, मंत्र, विद्या आदि का विचार पंचम भाव से किया जाना चाहिए। मानसागरी के रचयिता ने भी ऐसा ही लिखा है। फलदीपिका में मंत्रेश्वर ने विद्या व धन का द्वितीय भाव से विचार करने का मत दिया है। महर्षि जैमिनि के मतानुसार ज्योतिष में विद्या का प्रमुख स्थान पंचम भाव ही है।

परंतु उन्होंने कारकांश लग्न को महत्व दिया है। दक्षिण भारतीय ज्योतिष में चतुर्थ भाव को शिक्षा का भाव माना गया है। ऐसा माना जा सकता है कि शिशु काल की शिक्षा को द्वितीय भाव से, दसवीं कक्षा तक की शिक्षा को चतुर्थ भाव से तथा विश्वविद्यालय एवं व्यावसायिक शिक्षा को पंचम भाव से देखना चाहिए। इन भावों के साथ ही शिक्षा के कारकों का भी ध्यान रखना चाहिए। बृहस्पति मुख्य कारक है, बुध सहयोगी है और लग्नेश एवं लग्न तो सब बातों के लिए कारक हैं ही। प्राचीन दैवज्ञों ने एक मत से बुध एवं बृृहस्पति को विद्या, बुद्धि, विद्वत्ता आदि का कारक माना है। नक्षत्रों के अध्ययन कभी-कभी बहुत अच्छे संकेत देते हैं। दशाक्रम से शिक्षा में होने वाले परिवर्तन, असफलताएं, दावे तथा उपलब्धियों का आकलन किया जा सकता है।

शिक्षा के अंतर्गत शिक्षा कितनी और किस स्तर की होगी, शिक्षा के मूल विषय क्या होंगे, शिक्षा में निर्वाह कैसा होगा, क्या शिक्षा में कोई व्यवधान होगा, क्या शिक्षा में विषय परिवर्तन होगा, क्या शिक्षा घर से बाहर जाकर होगी अथवा विदेश में होगी, क्या शिक्षा निजी रूप से होगी अथवा विद्यालय में होगी, क्या कोई मनपसंद कार्य शिक्षा का आधार बनेगा और बाद में वही व्यवसाय का भी आधार होगा, क्या कोई अतिरिक्त कार्य शिक्षा के साथ चलेगा और जीवन में महत्व रखेगा आदि बातें जान सकते हैं। अध्ययन के आधार हैं - पंचम भाव तथा पंचमेश, द्वितीय तथा चतुर्थ भाव, कारक ग्रह बुध तथा बृहस्पति, जन्म समय दशा और दशाक्रम, नक्षत्र, गोचर आदि। कुछ कुंडलियों का अध्ययन इन्हीं आधारों पर यहां प्रस्तुत है।

उदाहरण 1ः जातक का जन्म लग्न मेष है जिसका स्वामी मंगल है। लग्न तथा लग्नेश दोनों अग्नि तत्व हैं। लग्न पर सिंह राशि (अग्नि) स्थित पंचम भाव से बृहस्पति की दृष्टि है। लग्नेश मंगल पर अष्टम भाव स्थित शनि की वृश्चिक राशि (स्वामी मंगल) से दृष्टि है। लग्न एवं लग्नेश बली हैं। सूर्य तथा चंद्र नक्षत्र परिवर्तन योग में हैं। बृहस्पति तथा शुक्र की परस्पर दृष्टि है तथा नक्षत्र परिवर्तन है। शनि मंगल की राशि में मंगल से दृष्ट है और स्वयं के नक्षत्र में है। दशम भाव में सूर्य, बुध तथा राहु की युति है तथा इन पर अष्टम भाव से शनि की दृष्टि है। जातक जुलाई, 1920 में रा/श/श की दशा में उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड गया। उसका पंचमेश सूर्य दशम भाव में राहु तथा बुध के साथ मकर राशि में है जिस पर अष्टम भाव से शनि की दृष्टि है। राहु, शनि तथा सूर्य पृथकतावादी ग्रह हैं। राहु तथा सूर्य की दृष्टि चतुर्थ भाव पर है।


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राहु और सूर्य दोनों चंद्र के नक्षत्र में हैं। अतः उसे देश छोड़कर बाहर जाना पड़ा। पंचमेश दशम भाव में है, पंचम भाव में बृहस्पति है परंतु पंचम भाव तथा पंचमेश दोनों ही शनि से पीड़ित हैं। पंचम भाव तथा बृहस्पति पर मंगल की भी दृष्टि है। इस कारण वह अपनी उच्च शिक्षा से जुड़े व्यवसाय में लगा नहीं रहा।

उदाहरण 2: जातक धनु लग्न में जन्मा है जिस पर पंचम भाव से बृहस्पति व केतु की दृष्टि है। सप्तम भाव से मिथुन राशि से सूर्य और शुक्र की दृष्टि है। लग्नेश बृहस्पति मेष राशि में पंचम भाव में केतु से युत है। बुध सप्तमेश तथा दशमेश है और मंगल के नक्षत्र में है। पंच भाव पर अष्टमस्थ शनि की दृष्टि है। शनि अपने ही नक्षत्र में है और स्वगृही चंद्र से युत है। अतः विज्ञान में उच्च शिक्षा तथा चिकित्सा संबंधी शिक्षा होनी चाहिए। जातक की प्रारंभिक शिक्षा बुध तथा केतु की महादशा में हुई और उसका जन्म भी बु/के की दशा में हुआ था। बुध सप्तमेश तथा दशमेश होकर षष्ठ भाव में है जो प्रतियोगिता में सफलता दे रहा है। केतु पंचम भाव में बृहस्पति के साथ है जो उच्च शिक्षा तथा अनुसंधान की ओर संकेत दे रहे हैं। जातक का एम.बी.बी.एस. में चयन 1994 में शु/शु की महादशा में हुआ। शुक्र सप्तम भाव में सूर्य के साथ मिथुन राशि (स्वामी बुध) में स्थित होकर लग्न को देख रहा है।

शुक्र षष्ठेश तथा एकादशेश है तथा षष्ठ भाव में स्थित बुध से राशि परिवर्तन योग कर रहा है। यह उच्च सफलता की निशानी है। बुध सप्तमेश और दशमेश होकर कर्म भाव को प्रभावित कर रहा है। शुक्र पर राहु की दृष्टि है और शुक्र राहु के नक्षत्र में है। जातक का 1999 में शु/चं की दशा में स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम में चयन हो गया। चंद्र स्वगृही होकर अष्टम भाव में शनि से युत है और शनि की दृष्टि कर्म भाव, धन भाव तथा शिक्षा भाव पर है। चंद्र के दोनों ओर सूर्य तथा मंगल हैं। अतः चंद्र पीड़ित है जो डाॅक्टर की पढ़ाई दर्शाता है। शु/मं की दशा में विशेष उच्च योग्यता तथा अनुसंधान के लिए अमेरिकन विद्यालय में चयन हुआ। मंगल पंचमेश व द्वादशेश होकर नवम भाव में सिंह राशि में स्थित है जिसका स्वामी सूर्य लग्न पर दृष्टि डाल रहा है।

मंगल की दृष्टि द्वादश, तृतीय तथा चतुर्थ भाव पर है, अतः घर से दूर रहकर परिश्रम करना होगा। शु/रा की दशा में जातक अमेरिका चला गया। राहु पृथककारी है और उसकी शुक्र पर दृष्टि है। शनि की दृष्टि बृहस्पति पर है जो चतुर्थेश है। मंगल की दृष्टि भी चतुर्थ भाव पर है। गोचर में शनि सप्तम भाव में है जो चतुर्थ भाव को प्रभावित कर रहा है।

उदाहरण 3: जातक का जन्म लग्न मीन है जिस पर नवम भाव स्थित सूर्य चंद्र से युत लग्नेश बृहस्पति की दृष्टि है। लग्नेश बृहस्पति परम शुभ भाग्य त्रिकोण नवम भाव में सूर्य चंद्र से युत होकर मित्र मंगल की वृश्चिक राशि में स्थित है। बृहस्पति शनि के नक्षत्र में है और लग्न, सूर्य तथा चंद्र बुध के नक्षत्र में हैं। बुध दशम कर्म भाव में बृहस्पति की धनु राशि में शुक्र और केतु के साथ स्थित है। बुध शुक्र के नक्षत्र में और शुक्र केतु के नक्षत्र में है। शनि, मंगल, राहु और केतु चारों पाप ग्रह उच्च के हैं। बुध चतुर्थेश तथा सप्तमेश है। बुध तथा बृहस्पति के प्रभाव से जातक ने बारहवीं कक्षा वाणिज्य के साथ पास की। स्नातक भी वाणिज्य में किया। 2002 में शु/रा/बु की दशा में मैनेजमेंट में प्रवेश लिया। शुक्र तथा बुध कर्म भाव में हैं और चतुर्थ भाव से राहु से दृष्ट हैं। पंचमेश चंद्र त्रिकोण नवम भाव में सूर्य तथा बृहस्पति से युत है। कर्म भाव पर शुक्र की तुला राशि के अष्टम भाव से द्वादशेश शनि की दृष्टि है। एकादशेश भी शनि है और इस भाव में नवमेश तथा द्वितीयेश मंगल स्थित है। ये सब स्थितियां एवं संबंध शिक्षा हेतु विदेश जाने का संकेत दे रहे हैं। चतुर्थ भाव राहु-केतु अक्ष पर है; घर से दूर होने का योग बनता है। जातक शु/रा/शु की दशा में मार्च, 2003 में लंदन चला गया।


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उदाहरण 4: जातक का जन्म लग्न मकर है जिस पर षष्ठ भाव से मंगल, सप्तम भाव से स्वराशि चंद्र तथा भाग्य भाव से राहु की दृष्टि है। राहु नवम भाव में बुध की कन्या राशि में बुध तथा सूर्य से युत है। मंगल और चंद्र का नक्षत्रेश बृहस्पति है और मंगल बृहस्पति से युत होकर षष्ठ भाव में है। बुध उच्च है और चंद्र स्वक्षेत्री है। अतः प्रारंभिक शिक्षा ठीक ही रही। लग्नेश शनि अष्टम भाव में है और शुक्र से युत होकर अपनी राशि कुंभ द्वितीय भाव पर दृष्टि डाल रहा है। शनि केतु के नक्षत्र में है जो बृहस्पति की राशि में तृतीय भाव में स्थित है। केतु पर भाग्य भाव से बुध, सूर्य तथा राहु की दृष्टि है। सूर्य तथा राहु चंद्र के नक्षत्र में हैं। शुक्र पंचमेश व दशमेश है तथा योग कारक होकर स्वयं के नक्षत्र में है। आगे की शिक्षा के लिए चतुर्थ भाव देखते हैं। जातक ने 1993 में श/मं./मं. की दशा में दसवीं कक्षा पास की तथा 1995 में श/रा/बृ की दशा में बारहवीं कक्षा पास की। शनि योगकारक व पंचमेश शुक्र से युत होकर अष्टम भाव में है और द्वितीय तथा पंचम भाव को प्रभावित कर रहा है।

शनि केतु के नक्षत्र में है जो बृहस्पति की राशि में है और उच्च के बुध से दृष्ट है। मंगल बृहस्पति के नक्षत्र में है तथा बृहस्पति से युत होकर बुध की राशि में षष्ठ भाव में है। राहु सूर्य तथा उच्च बुध से युत होकर नवम भाव में है। जातक ने 1995 में श/रा/श की दशा में बी.काॅम तथा सी.ए. फाउन्डेशन कोर्स में प्रवेश लिया। शनि पर बृहस्पति व बुध का प्रभाव है तथा उसका राशीश सूर्य भी बुध की राशि में उच्च बुध के साथ है, अतः काॅमर्स पढ़ना चाहा। जुलाई, 1997 में श/रा/शु की दशा सी.ए. में उत्तीर्ण नहीं हो पाया। क्योंकि पंचमेश शुक्र अष्टम भाव में शनि के साथ है अतः शिक्षा में व्यवधान आया। जातक ने इसी दशा में मैनेजमेंट में प्रवेश लिया। शनि का प्रभाव पंचम भाव तथा पंचमेश शुक्र पर होने से शिक्षा में बदलाव आया। श/बृ/के की दशा में 1998 में बी.काॅम. व मैनेजमेंट में उत्तीर्ण हुआ। तीनों दशानाथ बुध व बृहस्पति के प्रभाव में हैं

1999 में श/बृ/शु की दशा में एम.बी.ए. की तैयारी करने के लिए एक वर्ष परीक्षा नहीं दी। ऐसा प्रत्यंतर्दशानाथ शुक्र पंचमेश का अष्टम भाव में होने के कारण है। श/बृ/रा की दशा में एम.बी.ए. में प्रतियोगिता के आधार पर चयन हुआ। बृहस्पति के षष्ठ भाव में मंगल के साथ होने से परिश्रम द्वारा तथा राहु के भाग्य भाव में उच्च बुध के साथ होने से ऐसा फल प्राप्त हुआ। 2001 में बु/बु/रा की दशा में एम.बी.ए. उत्तीर्ण किया। बुध नवम भाव में उच्च का है और उसकी युति राहु के साथ है।

उदाहरण 5: जातक का जन्म लग्न कन्या है, जिसका स्वामी बुध है। लग्न में नवमेश तथा द्वितीयेश नीच का शुक्र स्थित है। लग्नेश बुध द्वादश भाव में सिंह राशि में चंद्र तथा केतु के साथ स्थित है। बुध तथा चंद्र दोनों केतु के नक्षत्र में हैं। चंद्र और केतु के संबंध के कारण जातक की मानसिकता अधिक उन्नत नहीं है और उसमें अस्थिरता है। द्वितीय भाव में दो केंद्रों चतुर्थ तथा सप्तम भावों का अधिपति बृहस्पति शत्रु शुक्र की राशि तुला में स्थित है और दोहरे केंद्राधिपति दोष से दूषित है।

द्वितीय तथा पंचम भाव नीच शनि से दृष्ट हैं। अतः प्रारंभिक शिक्षा साधारण रही। इस पर केतु की दृष्टि है और चतुर्थेश तथा विद्या कारक बृहस्पति चतुर्थ से एकादश भाव में शत्रु शुक्र की राशि में द्वितीय भाव में स्थित है। बृहस्पति अष्टम भाव में स्थित नीच शनि से दृष्ट है और मंगल (अष्टमेश व तृतीयेश) के नक्षत्र में है। जातक ने दसवीं कक्षा 1985 में शु/बृ की दशा में प्रथम श्रेणी से एक नंबर से पिछड़ कर द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण की। शुक्र भाग्येश व द्वितीयेश होकर लग्न में नीचस्थ है। दोनों गुरुओं बृहस्पति व शुक्र की दशावस्था में भी भाग्य शिक्षा में दुर्बल रहा क्योंकि दोनों ग्रह कम बली हैं।

जातक ने द्वादश कक्षा विज्ञान विषय में प्रथम श्रेणी में 1987 में शु/श की दशा में पास की। शु/श की दशा विशेष महत्व रखती है। शुक्र और शनि दोनों ही नीचस्थ हैं। शनि अष्टमस्थ है और बृहस्पति से दृष्ट है तथा पंचमेश है। अतः विज्ञान के अध्ययन के संकेत देता है। शनि और शुक्र दोनों सूर्य के नक्षत्र में हैं और सूर्य एकादश भाव में है अतः परिणाम में उच्चता है। उच्च शिक्षा के लिए पंचम भाव का अध्ययन करें। पंचम भाव पर एकादश भाव से मित्र राशि स्थित सूर्य तथा मंगल की दृष्टि है और ये दोनों बुध के नक्षत्र में हैं। पंचम भाव पर अष्टम भाव से नीच पंचमेश शनि की दृष्टि है। पंचम और अष्टम का संबंध अचानक परिवर्तन दर्शाता है-


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विशेषकर पंचमेश शनि के षष्ठेश होने पर। शनि तथा लग्न सूर्य के नक्षत्र में हैं जो उच्च शिक्षा में परिवर्तन, रुकावट, संघर्ष तथा परिश्रम का द्योतक है। मंगल और सूर्य का बुध के नक्षत्र में होना शिक्षा का संबंध पत्रकारिता व कानून से होना बताता है। 1988 में शु/श की दशा में जातक ने बी.एससी. की परीक्षा छोड़ दी तथा शिक्षा में व्यवधान रहा। 1990 में शु/बु की दशा में बी.ए. में प्रवेश लेकर इसी दशा में 1992 में बी.ए. पास किया। शुक्र लग्न में बुध की राशि कन्या में नीचस्थ है। इसी वर्ष बी.एड. में प्रवेश लेकर 1993 में सू/सू की दशा में बी.एड. किया। सूर्य द्वादशेश होकर एकादश भाव में स्थित होकर पंचम भाव पर दृष्टि डाल रहा है। 1995 में सू./बु. की दशा में एम.ए. (इतिहास) प्रथम श्रेणी में किया। एकादशेश चंद्र है जो केतु के नक्षत्र में है। सूर्य, चंद्र और केतु का प्रभाव उच्चता बताता है।

जातक ने अक्तूबर 2000 में चं/रा/बृ की दशा में पी.एचडी. में पंजीकरण कराया। चंद्र से पंचम भाव का स्वामी बृहस्पति है, राहु से पंचम भाव का स्वामी बुध है। बृहस्पति से पंचम भाव में शनि की राशि में राहु स्थित है। बृहस्पति, बुध, चंद्र और राहु का संयोग अन्वेषण कार्य के लिए उचित है। शनि की दृष्टि पंचम भाव पर है और चंद्र तथा बुध शनि से पंचम भाव में हंै। जातक 2001 में चं/रा/शु की दशा में पत्रकारिता विषय में प्रवेश लेकर 2002 में चं/बृ/बु की दशा में उत्तीर्ण हुआ।

उदाहरण 6: जातक का जन्म लग्न कन्या है जिस पर षष्ठ भाव से शनि राशि स्थित मंगल की दृष्टि है। मंगल तृतीयेश तथा अष्टमेश है और केतु के नक्षत्र में है और रा/के अक्ष पर है।

लग्नेश बुध दशम भाव का स्वामी होकर चतुर्थ भाव में सूर्य के साथ बृहस्पति की राशि में बुधादित्य योग बना रहा है। बुध बृहस्पति के नक्षत्र में है। शिक्षा के उच्च होने के योग हैं। बृहस्पति चतुर्थेश व सप्तमेश होकर द्वितीय भाव में शत्रु शुक्र की तुला राशि में है। बुध पर द्वादश भाव से केतु की दृष्टि है। बृहस्पति केतु के नक्षत्र में है और अष्टमस्थ नीच तथा वक्री शनि से दृष्ट है। पंचम भाव पर शनि की दृष्टि है जो पंचमेश है। शनि षष्ठेश भी है और सूर्य के नक्षत्र में है। यह शिक्षा में व्यवधान और दर्शाता है- जातक को परिवर्तन परिश्रम करना होगा। शनि तथा मंगल में षष्ठ तथा अष्टम में राशि परिवर्तन है। यह भी विषय परिवर्तन को बताता है।

जातक ने संगीत से विषय परिवर्तन कर हिंदी साहित्य में शिक्षा आगे बढ़ाई। यह चं/श की दशा में 1990 में हुआ। द्वादश भाव से केतु की दृष्टि चतुर्थ भाव में द्वादशेश सूर्य पर तथा बुध है जो केतु के नक्षत्र में है। चतुर्थ भाव में बुध तथा केतु का नक्षत्रेश शुक्र है जो ऐच्छिक रुचियों वाले तृतीय भाव में मंगल की राशि में है जो राहु के नक्षत्र में है और मंगल तथा राहु दोनों षष्ट भाव में शनि की राशि में हैं। अतः संगीत में रुचि व शिक्षा में व्यवधान हुआ। द्वितीय भाव में शुक्र की राशि में स्थित बृहस्पति जातक की शिक्षा में प्रवीणता दर्शाता है। पंचम भाव पर अष्टमस्थ शनि की स्वराशि पर दृष्टि, शनि का केतु के नक्षत्र में होना, अष्टमेश मंगल का नक्षत्रेश राहु होना, गहन अध्ययन तथा अन्वेषण कार्य की ओर जातक की प्रवृत्ति दर्शाता है।

जातक ने 1992 में चं./बु. की दशा में बी.ए. किया। चंद्र एकादशेश है और बुध लग्नेश है जो चतुर्थ भाव में सूर्य के साथ बुधादित्य योग में है। दोनों का नक्षत्रेश शुक्र है जो साहित्य में रुचि एवं दिखा रहा है। चं.शु. की दशा में एम.ए. तथा एम.फिल. किया (1994-95)। मं./बु. की दशा में, 2000 में पीएच.डी. किया। मंगल अष्टमेश है और राहु के साथ षष्ठ भाव में स्थित है। अष्टम भाव में शनि तथा चंद्र हैं। मंगल राहु के नक्षत्र में है और केतु से दृष्ट है। अतः अन्वेषण कार्य संपन्न हुआ।


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उदाहरण 7: जातक का जन्म कुंभ लग्न में हुआ जिस पर सप्तम भाव से चंद्र, मंगल और राहु की दृष्टि है। लग्नेश शनि अष्टम भाव में कन्या राशि में है और बुध दशम भाव में वृश्चिक राशि में सूर्य के साथ तप रहा है। बृहस्पति चंद्र, मंगल और राहु से युत होकर सिंह राशि में सप्तम भाव में है। द्वितीय भाव पर शनि तथा मंगल की दृष्टि है। द्वितीयेश बृहस्पति है जो मंगल और राहु से पीड़ित है। चतुर्थेश शुक्र है

जो एकादश भाव में शत्रु की राशि में स्थित है। चतुर्थ भाव पर सूर्य और बुध की दशम भाव से दृष्टि है। पंचम भाव पर शनि तथा केतु की दृष्टि है और पंचमेश बुध सूर्य से पीड़ित है। बुध राहु के नक्षत्र में और शुक्र मंगल के नक्षत्र में है। अतः शिक्षा से संबंधित सभी कारक शनि, राहु और सूर्य से प्रभावित हैं जिसके परिणामस्वरूप शिक्षा में व्यवधान आते रहे। जातक को चंद्र/शनि की दशा में ग्रेजुएशन करते समय रुक रुक कर पढ़ाई करनी पड़ी और चार वर्षों में ग्रेजुएशन कर पाया। चंद्र षष्ठेश है, शनि द्वादशेश होकर अष्टम भाव में है।

उदाहरण 8: जातक का जन्म लग्न तुला है जिस पर नवम भाव से केतु की दृष्टि है। लग्नेश शुक्र नवम भाव में स्वराशि बुध तथा केतु के साथ युति में है।

बुध तथा केतु राहु के नक्षत्र में हैं, शुक्र मंगल के नक्षत्र में है। बृहस्पति तृतीयेश तथा षष्ठेश होकर चतुर्थ भाव में शनि की राशि में है। बृहस्पति दशम भाव से चंद्र से दृष्ट है और चंद्र के नक्षत्र में है। द्वितीय भाव पर सूर्य और शनि की दृष्टि है। द्वितीयेश मंगल पंचम भाव में शनि की राशि में केतु तथा शनि से दृष्ट है। शिक्षा के लिए बलवान योग नहीं है। जातक को बु/के की दशा में पढ़ाई में समस्याएं आईं व व्यवधान हुआ। केतु के प्रभाव के कारण विदेशी भाषा का अध्ययन किया। बुध केतु से पीड़ित है और बुध और केतु दोनों राहु के नक्षत्र में हैं। सूर्य युत शनि पंचम भाव पर विघटनकारी प्रभाव डाल रहा है।

पंचम भाव में मंगल है जो लग्नेश शुक्र के नक्षत्र में है परंतु केतु से पीड़ित है।

उदाहरण 9: जातक का जन्म मेष लग्न में हुआ जहां केतु स्थित है। उस पर तुला राशि से बृहस्पति तथा राहु की दृष्टि है। लग्नेश मंगल अष्टम भाव में सूर्य तथा शनि के साथ है। द्वितीय भाव पर मंगल, सूर्य और शनि की दृष्टि है। द्वितीयेश शुक्र दशम भाव में शनि की राशि तथा सूर्य के नक्षत्र में है। चतुर्थ भाव पर दशम भाव से शुक्र की दृष्टि है तथा चतुर्थेश चंद्र षष्ठ भाव में कन्या राशि में है। पंचम भाव पर शनि तथा केतु की दृष्टि है, पंचमेश सूर्य शनि तथा मंगल के साथ अष्टम भाव में है। बृहस्पति सप्तम भाव में शत्रु राशि में राहु के साथ है और द्वादशेश है। बुध तृतीयेश तथा षष्ठेश होकर नवम भाव में केतु से दृष्ट है। शिक्षा के कारकों पर सूर्य, शनि, राहु आदि का विघ्नकारी प्रभाव है।

जातक ने 1978 में मं/सू की दशा में एम.एससी. प्रथम वर्ष में ही छोड़कर व्यवसाय शुरू कर दिया। पंचमेश सूर्य अष्टम भाव में मंगल तथा शनि के साथ है, पंचम भाव पर शनि तथा केतु की दृष्टि है। अतः सूर्य व शनि के अलगाववादी प्रभाव के कारण शिक्षा छोड़नी पड़ी।

उ10: जातक का जन्म लग्न कुंभ है जिस पर सप्तम भाव से चंद्र तथा बुध की दृष्टि है। चंद्र षष्ठेश है, बुध पंचमेश तथा अष्टमेश है। बुध का नक्षत्रेश सूर्य है जो सप्तमेश होकर अष्टम भाव में शनि तथा शुक्र के साथ है। चंद्र का नक्षत्रेश शुक्र है। लग्नेश शनि, सूर्य और शुक्र के साथ अष्टम भाव में है और उस पर द्वादश भाव से राहु की दृष्टि है। लग्न पर दशम भाव से तृतीयेश तथा दशमेश मंगल की दृष्टि है जो बुध के नक्षत्र में है। पंचमेश बुध है जो सप्तम भाव में चंद्र के साथ है और उस पर बृहस्पति की दृष्टि है। पंचम भाव पर सूर्य तथा मंगल की दृष्टि है।

जातक का चयन 1971 में चं/शु की दशा में एम.बी.बी.एस. में हुआ। चंद्र षष्ठेश होकर सप्तम भाव में बुध के साथ स्थित है। बुध सूर्य के नक्षत्र में और चंद्र शुक्र के नक्षत्र में है। शुक्र मंगल के नक्षत्र में होकर अष्टम भाव में सूर्य और शनि के साथ है। मंगल दशमेश है और सवराशि में है। षष्ठ भाव, मंगल, शनि, सूर्य और चंद्र के प्रभाव डाक्टरी शिक्षा को बताते हैं। जातक चं/सू की दशा में 1973 में प्रथम प्रोफेशनल में फेल हुआ। सूर्य अष्टम भाव में शनि से युत है। सूर्य और शनि के प्रभाव से असफलता मिली। जातक ने 1975 में मं/बृ की दशा में एम.बी.बी.एस. किया। मंगल स्वगृही तथा दशमेश है और बुध के नक्षत्र में है और लग्न पर दृष्टि डाल रहा है। वक्री बृहस्पति को यदि एक ग्रह पीछे मानें तो वह स्वराशि मीन से मंगल तथा दशम भाव पर दृष्टि डाल रहा है। शनि की दृष्टि दशम भाव तथा दशमेश मंगल पर है।


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उदाहरण 11: जातक का जन्म कर्क लग्न में हुआ। लग्न पर अष्टमेश शनि की राशि से शुक्र की दृष्टि है। पंचम भाव वृश्चिक राशि से कतु की दृष्टि है। लग्नेश चंद्र षष्ठ भाव में स्थित है। चंद्र शुक्र के नक्षत्र में और चतुर्थेश शुक्र चंद्र के नक्षत्र में है। पंचम भाव रा/के अक्ष पर है तथा बृहस्पति से दृष्ट है। बृहस्पति षष्ठेश है और मंगल के नक्षत्र में है। पंचम भाव पर अष्टमेश शनि की अष्टम भाव से दृष्टि है। शनि बृहस्पति के नक्षत्र में है। पंचम भाव में केतु स्थित है जो शनि के नक्षत्र में है। शनि, मंगल तथा केतु के प्रभाव से जातक ने 1985 में सू./बु. की दशा में गे्रजुएशन विज्ञान में किया। सूर्य तथा बुध दोनों भाग्य भाव में बृहस्पति की राशि में हैं, परंतु बुध अस्त है। इन पर पंचम भाव से केतु की दृष्टि है तथा पंचम भाव पर बृहस्पति की दृष्टि है। जातक सूर्य/केतु की दशा में आइ.आइ.टी तथा सिविल सर्विस की प्रवेश परीक्षा में असफल रहा। दशाओं के स्वामियों का संबंध षष्ठ भाव से नहीं है तथा पंचम भावस्थ केतु शनि से दृष्ट है। जातक का 1990 में चं/बृ/श की दशा में एम.बी.ए. में चयन हुआ। चंद्र लग्नेश होकर षष्ठ भाव में है, बृहस्पति और अष्टमेश शनि की पंचम भाव पर दृष्टि है। विषय परिवर्तन हुआ तथा सफलता मिली। चं/श की दशा में एम.बी.ए. पास किया।

उदाहरण 12: जातक का लग्न धनु है, जिस पर सप्तम भाव से चंद्र तथा नवम भाव से बृहस्पति और केतु की दृष्टि है। लग्न में मंगल तथा बुध स्थित हैं। लग्नेश बृहस्पति पंचम भाव में मंगल की राशि में केतु के साथ है। मंगल बृहस्पति राशि परिवर्तन योग में हैं और दोनों सूर्य के नक्षत्र में हैं। बुध सप्तमेश तथा दशमेश होकर लग्न में स्थित है और शुक्र के नक्षत्र में है। जातक का प्रवेश इन्जीनियरिंग में 1992 में बृ/बु की दशा में हुआ। शनि अष्टम भाव में चंद्र की राशि में स्थित है और पंचम भाव पर दृष्टि डाल रहा है। शनि बुध के नक्षत्र में है। शनि, मंगल और सूर्य के प्रभाव ने बृ/सू की दशा में जातक को इंजीनियर बनाया। सूर्य भाग्येश है और द्वितीय भाव में शनि की राशि में है और शनि से दृष्ट है। पंचम में बृहस्पति और केतु की स्थिति शिक्षा में उच्चता तथा शनि की दृष्टि परिश्रम और कठिनाई बताती है। बृहस्पति चतुर्थेश है अतः जातक की पढ़ाई के लिए माता को विशेष परिश्रम करना पड़ा। उपर्युक्त कुंडलियों के अध्ययन के कुछ निष्कर्ष निम्न हैंः

Û शुक्र का बुध और बृहस्पति पर शुभ प्रभाव अच्छी शिक्षा देता हैै।

Û बुध, सूर्य, बृहस्पति और केतु का प्रभाव विशेषरूप से पंचम भाव पर उच्च शिक्षा देता है।

Û दशानाथों पर बृहस्पति व बुध का प्रभाव शिक्षा में सफलता का द्योतक है।

Û अष्टम भाव, राहु और केतु के प्रभाव अन्वेषण कार्य की ओर इंगित करते हैं।

Û षष्ठ भाव, अष्टम भाव तथा शनि का संबंध शिक्षा में परिवर्तन का संकेत देता है।

Û राहु, सूर्य और शनि का शिक्षा के कारकों पर प्रभाव शिक्षा में व्यवधान या घर से बाहर शिक्षा का संकेत देता है।


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