पितृ दोष: क्या हो निदान?
पितृ दोष: क्या हो निदान?

पितृ दोष: क्या हो निदान?  

मदन टी. कौशिक
व्यूस : 5969 | जनवरी 2006

काल सर्प दोष की तरह ज्योतिष जगत में ‘पितृदोष’ भी सदैव चर्चा का विषय रहा है। जिस प्रकार ज्योतिष प्रेमियों का एक वर्ग कालसर्प दोष को कुछ ही वर्षों पूर्व पंडे पुजारियों द्वारा खड़ा किया गया एक ‘हव्वा’ मानता है उसी प्रकार समूह या वर्ग विशेष इस दोष (पितृदोष) अवधारणा से पूर्ण रूपेण सहमत नहीं है। इन दोनों दोषों में एक अन्य समानता और भी है वह यह कि इस दोष से पीड़ित जातक का भी जीवन भर कमोवेश वैसी ही स्थितियों का सामना करते रहना जैसी स्थितियों का सामना कालसर्प दोष से पीड़ित जातक को करना पड़ता है। जैसे कालसर्प दोष में भी राहु ही मुख्य भूमिका निभाता है उसी प्रकार इसमें भी राहु ही मुख्य या कारक ग्रह होता है।

हां, इसमें शनि भी एक अति महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। आइये ज्योतिष के परिपे्रक्ष्य में जानने का प्रयास करें कि वे कौन सी स्थितियां हैं जो किसी कुंडली में पितृदोष के होने अर्थात किसी जातक के पितृदोष से पीड़ित होने की सत्यता को सिद्ध करती हैं। जिस कुंडली में सूर्य राहु से युत हो तथा उस पर शनि की दृष्टि भी पड़ रही हो तो यह स्थिति पितृदोष की है। इसके पीछे कारण यह है कि सूर्य ही आत्मा का कारक है तथा सूर्य ही पितृकारक भी है। यदि सूर्य पंचम भाव में राहु के साथ बैठा हो और साथ में शनि भी हो या शनि की दृष्टि पड़ रही हो तो अवश्य ही पितृदोष जानें। इसी प्रकार सूर्य शनि से युत और राहु से दृष्ट हो (पंचम भाव में) तो अवश्य ही पितृदोष होगा।

इसके अतिरिक्त कुछ विद्वानों के अनुसार यह स्थिति दशम या नवम भाव में हो तो भी पितृदोष अवश्य ही होगा। सामान्यतया दशम भाव पिता का घर माना जाता है। परंतु दक्षिण में तथा कुछ विद्वानों के अनुसार नवम भाव ही वास्तव में पिता का घर है। कारण यह है कि पंचम भाव जातक के पुत्र का (लग्न से पंचम होने से) है और नवम भाव पंचम से पंचम है क्योंकि नवम से पंचम फिर अपना भाव अर्थात लग्न (प्रथम भाव) होता है। नवम भाव अपने पुत्र के पुत्र यानि प्रपौत्र के लिए भी देखा जाता है। अतः इन विद्वानों के मत से उपरोक्त प्रकार से नवम के पीड़ित होने से निश्चित ही पितृदोष होता है।


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यही स्थितियां चंद्र के संग बनें तो मातृदोष मातामही, पितामही से संबंधित ) होता है और दोनों के संग एक साथ ही बनें अर्थात सूर्य और चंद्र की युति तो हो ही साथ में ये दोनों ग्रह राहु से ग्रस्त और शनि से दृष्ट भी हों तो यह एक अति विचित्र (नकारात्मक) स्थिति बनती है। यह कोई मामूली पितृदोष नहीं अपितु एक महापितृदोष है जिसमें पूर्वजों की दुर्गति संबंधी विश्लेषण में जाएं तो उसमें एक ही पुरुष मात्र नहीं अपितु दो या तीन पुरुष पूर्वजों के साथ-साथ महिला पूर्वज भी अवश्य ही उद्योगति को प्राप्त होंगी और उस जातक को शायद ही किसी प्रकार का सुख, चैन, शांति या समृद्धि जीवन में मिले।

ध्यातव्य है कि सूर्य और चंद्र की युति मात्र अमावस्या को ही होती है और गणित ज्योतिष अथवा खगोल विज्ञान के अनुसार यही वह समय या स्थिति होती है जिसमें सूर्य, चंद्र का अंशात्मक मान शून्य अंक (00 ) होता है। जब सूर्य और चंद्र की अंशात्मक दूरी 1800 होती है तो पूर्णिमा होती है। यह भी एक अति विशिष्ट स्थिति होती है। सूर्य के साथ होने से चंद्र यों ही कमजोर (अस्त) हो जाता है और साथ में राहु उसे और अधिक कमजोर बना देता है। इस पर वायु कारक या वायु तत्व शनि की दृष्टि इसे और त्रासदायक बना देती है। इसके अतिरिक्त अमावस्या तिथि भी पितरों की ही मानी जाती है। अमावस्या के दिन जन्मे या निर्बल चंद्रमा वाले जातक (अमावस्या से शुक्ल पंचमी के बीच उत्पन्न जातक) जीवन भर संघर्षरत देखे गए हैं। हालांकि कालसर्प पीड़ित जातकों की तरह संघर्ष के बाद ये भी ‘कंुदन’ बनके निकलते हैं।

लेकिन अमावस्या के जन्म के साथ-साथ राहु की युति और शनि की दृष्टि अत्यधिक मात्रा में पितृदोष को दर्शाती है और जातक के जीवन में सभी बाधाओं, रोगों और कुंठाओं का कारण बनती है। इस स्थिति में किसी विद्वान आचार्य से पितृदोष निवारण करवाये बगैर इसकी पीड़ा से उबर पाना संभव नहीं है। भारतीय संस्कृति में पितरों को सदैव महान गौरव प्राप्त रहा है। यहां केवल जीवित माता-पिता को ही ‘मातृ देवो भव’ या ‘पितृ देवो भव’ कहके देवतुल्य सम्मान नहीं दिया गया अपितु उनकी मृत्य के बाद भी उन्हें सदैव सम्मान प्रदान करने हेतु अद्वितीय व्यवस्था हमारे आदि ऋषियों ने की है।

वह प्रावधान या व्यवस्था है श्राद्ध। इस पुनीत कार्य को भलीभांति करने हेतु एक पूरा पक्ष (पखवारा) ही सुनिश्चित किया गया है जिसे ‘श्राद्ध पक्ष’ कहते हैं। इसे ही ‘पितृपक्ष’ भी कहा जाता है। हालांकि शाब्दिक अर्थ की बात करें तो ‘पितृ’ का अर्थ ‘पिता’ होता है परंतु यहां पितृ पक्ष य ‘पितृ’ शब्द ‘माता-पिता’ दोनों का ही द्योतक है क्योंकि इस समय या इस पक्ष में माता-पिता (दिवंगत) दोनों का ही श्राद्धकर्म किया जाता है। ऊपर वर्णित पितृदोष कोई सामान्य पितृदोष की स्थिति नहीं है। इसका विद्वान आचार्यों द्वारा विशेष निवारण कराया जाना चाहिए। आइये, एक दृष्टि इस पर भी डालें कि किसी भी जातक या जातका के पितृ दोष ग्रस्त होने से उसे क्या कष्ट होता है या इसके क्या लक्षण हैं।

- ऐसा जातक हर कार्य में असफलता का सामना करता है, चाहे वह व्यवसाय हो, नौकरी हो या फिर कुछ और।

- ऐसा जातक हर स्थान पर भी असफलता ही पाता है, चाहे वह अपना स्थान परिवर्तन ही क्यों न कर ले।

- ऐसे जातक के घर में कभी भी बरकत नहीं होती, सदैव अभाव बना रहता है जो क्लेश का कारण बनता है।

- किसी-किसी जातक को विवाह के कई-कई वर्षोपरांत भी संतान प्राप्ति नहीं होती। ऐसे मामलों में डाॅक्टरी जांच में सब सामान्य पाया जाता है।


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- ऐसे जातक को सदैव कोई न कोई रोग घेरे रहता है।

विशेष कर उसे शरीर में भरीपन या जकड़न सी महसूस होती है। कोई भी दवाई या उपचार स्थायी रूप से प्रभावी नहीं होता और इस मामले में भी डाॅक्टरी जांच में सभी कुछ सामान्य पाया जाता है। घर में मांगलिक प्रसंग आ ही नहीं पाते हैं। जैसे संतानों की शादी नहीं होना या फिर उनकी शादी के बाद उनके संतान न होना। ऐसे मामलों में यह नियम सामान्यतया जातक के विवाहित पुत्र पर ज्यादा लागू होता है। जातक की पुत्री को विवाहोपरांत संतान हो सकती है। पितृ दोष से पीड़ित जातक का परिवार के सदस्यों के साथ मतभेद सदैव बना रहता है।

इसके अतिरिक्त जातक द्वारा किए गए किसी भी कार्य का सुपरिणाम समय पर नहीं मिलता। अच्छी खासी कमाई के बावजूद घर में बचत नहीं होती। किसी भी सुकार्य के पूरा होने में बार-बार रुकावट आती है। ऊपर वर्णित योग-स्थितियों के अलावा भी पितृ दोष कारक स्थितियां हो सकती हैं। यह एक पूर्ण सत्य है कि पितृदोष होता है और बहुत प्रभावी भी होता है। अब जरा इस महाकष्टदायक दोष के कुछ अनुभूत उपायों की भी चर्चा कर लें। प्रत्येक अमावस्या को पितृगणों के निमित्त यथाशक्ति अन्न और वस्त्र आदि दान करें। यह श्रद्धापूर्वक करें, लाभ अवश्य होगा। सूर्य देव की विधिपूर्वक नियमित आराधना करें (अघ्र्य आदि दें)। प्रत्येक अमावस्या को तर्पण करें या कराएं। श्राद्धपक्ष में अपने पितृगणों की नियत तिथि पर शुद्ध सात्विक चित्त वाले ब्राह्मण को भोजन कराएं और वस्त्रादि के साथ दक्षिणा देकर श्रद्धापूर्वक उनका आशीर्वाद लें।

बाकी भोजन (घर में बचे भोजन) को पितरों का प्रसाद मानकर श्रद्धापूर्वक ग्रहण करें। लाभ अवश्य होगा। श्राद्धपक्ष पूरे उत्तर भारत के अतिरिक्त शेष भारत में भी आश्विन कृष्ण पक्ष में आता है, केवल गुजरात और महाराष्ट्र में ‘भाद्रपद’ में आता है। ‘‘सर्वेभ्यो पितृभ्यो स्वधायैम्यो स्वधा नमः’’ का उच्चारण करते हुए स्नान करते समय सूर्य की ओर मुख करके उन्हें नियमित जलमात्र देने से वे तृप्त होते हैं।

अपने माता-पिता का नियमित आशीर्वाद लें। इतने उपायों में से कुछ उपाय भी यदि श्रद्धापूर्वक किए जाएं तो पितृदोष ग्रस्त जातक इससे मुक्ति पा सकता है। उपर्युक्त परिस्थिति में किसी विद्वान का मार्गदर्शन लें।



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