अंक विद्या द्वारा जन्मकुंडली का विश्लेषण
अंक विद्या द्वारा जन्मकुंडली का विश्लेषण

अंक विद्या द्वारा जन्मकुंडली का विश्लेषण  

फ्यूचर पाॅइन्ट
व्यूस : 6003 | अप्रैल 2006

जन्मकुंडली की तरह ही 1 से 9 तक के सभी अंकों का ब्रह्मांड के सभी 9 ग्रहों से संबंध होता है और हर अंक का अपना एक अधिपति ग्रह होता है। कुंडली के 12 भावों पर अंकों और ग्रहों के पड़ने वाले प्रभावों का विश्लेषण कर किसी व्यक्ति के बारे में जानकारी प्राप्त की जा सकती है। एक जातक की जन्मकुंडली का अंक विद्या एवं ग्रहों के आधार पर विश्लेषण इस प्रकार है।

जातक की जन्मतिथि 30-8-1964 मूल अंक: 3$0 = 3 भाग्य अंक = 3$0$8$1$9$6$4 = 4 मूल अंक व भाग्य अंकों का योग 3$4 = 7 अंक स्वामी 3 गुरु 4 राहु 7 केतु जन्मकुंडली में अंक प्रभाव:

- 3, 4 तथा 7 अंक की कुंडली में भाव स्थिति तथा उन भावों पर ग्रहों का प्रभाव देखना।

- गुरु, राहु तथा केतु की कुंडली में स्थिति तथा इन पर ग्रहों का प्रभाव देखना।

- अंक 3 लग्न का स्वामी बना, परंतु उसमें राहु है जो अंक 4 का स्वामी है। तथा 7 अंक के स्वामी केतु का दृष्टि प्रभाव है।

- अंक 4 का स्वामी ग्रह राहु लग्न में है तथा अंक 4 धनेश है। ं

- अंक 7 का स्वामी केतु, गुरु की मूलत्रिकोण राशि में है तथा लग्न को पूर्ण दृष्टि से देख रहा है और अंक 7 पंचमेश होकर सप्तमेश है। भाव विश्लेषण

- राहु पंचम भाव (संख्या 7), सप्तम भाव (गुरु) तथा भाग्य भाव को पूर्ण दृष्टि से देख रहा है। राहु जहां बैठता है वहां से दशम भाव पर पूर्ण नियंत्रण रखता है।

- केतु सप्तम भाव में बैठकर लाभेश, लग्नेश तथा पराक्रमेश को प्रभावित कर रहा है।

- लग्न, पंचम, सप्तम तथा दशम भाव एवं गुरु पूर्ण रूप से प्रभावित हैं। कुंडली में दशमेश द्वादेश है अर्थात् कर्म का देरी से उदय होना दर्शाता है। मूल और भाग्य अंक की युति चांडाल योग बना रही है तथा केतु का पूर्ण प्रभाव भी है।

अंकों के स्वामी ग्रहों का जीवन पर प्रभाव अंक 3: गुरु - धन और संतान का देरी से प्राप्त होना। अंक 4: राहु - जल्दी-जल्दी कार्य करना, परंतु निर्णय क्षमता में कमी। अंक 7: केतु - असफल प्रेम संबंध, विवाह में देरी, जोड़ों में दर्द। केतु के कारण उपर्युक्त जातक की दो संतानों की मृत्यु हुई। राहु और केतु के कारण गुरु के कारक तत्व विशेष रूप से प्रभावित हो रहे हैं।

दशा विश्लेषण: भाग्य अंक 4: राहु की दशा 1983 से 2001 तक रही। इस दशा में जातक ने नौकरी की, जिसमें उसे कोई विशेष लाभ प्राप्त नहीं हुआ। व्यापार किया परंतु उसमें धन की क्षति हुई।


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मूल अंक 3: गुरु की दशा सन् 2001 से चल रही है। परंतु अभी तक जातक जीवन में सफल होने का प्रयास कर रहा है।

नक्षत्र विश्लेषण: गुरु (संख्या-3) सूर्य के नक्षत्र में और राहु मंगल के नक्षत्र में है। चूंकि मिथुन लग्न में मंगल को एक अशुभ ग्रह कहा गया है और मंगल लग्न में ही बैठा है, राहु का मंगल के नक्षत्र में होने के कारण राहु दशा फल अच्छा नहीं रहा था। केतु (संख्या-7) अपने ही नक्षत्र में होने के कारण पूर्ण बली है, उसने जातक को पूर्ण अशुभ फल प्रदान किए। अभी जातक के जोड़ों में दर्द रहता है। निष्कर्ष: अंक विद्या में ग्रहों तथा जन्मकुंडली के ग्रहों का लघुतम लें तो राहु का स्थान सर्वप्रथम आता है। अर्थात राहु भाग्य अंक का स्वामी भी है तथा लग्न में भी है और कुंडली को प्रभावित कर रहा है।

उपाय: भैरव उपासना, मां सरस्वती की पूजा तथा राहु से संबंधित वस्तुओं का दान करना चाहिए और गोमेद रत्न जीवन भर धारण करना चाहिए। केतु की वस्तुओं का दान भी करना चाहिए। गुरु, ब्राह्मण तथा बड़ों का आदर-सम्मान करना चाहिए ताकि गुरु को बल प्राप्त हो सके।

जातक की जन्म तिथि: 18-7-1963 मूल अंक: 9 (स्वामी ग्रह मंगल) भाग्य

अंक: 8 (स्वामी ग्रह शनि) मूल और भाग्य अंक का योग: 8 मूलअंक 9: जातक का लग्नेश मंगल है (संख्या 9) धनेश भाव का स्वामी है परंतु केतु वहां उपस्थित है। मंगल शत्रु राशि में विराजमान है। भाग्यअंक 8: अंक 8 लग्न का स्वामी बना तथा शनि अपनी ही राशि में है।

जातक पर प्रभाव:

- मंगल के कारण जातक में काफी क्रोध है।

- शनि के कारण प्रत्येक कार्य में रुकावट आती है। दशा प्रभाव: जातक का जन्म मंगल की दशा में हुआ तथा जन्म नक्षत्र मृगशिरा है। जातक पर 5-12-2000 से शनि की दशा प्रभावी है। मूल और भाग्य अंक की युति का प्रभाव: मंगल तथा शनि की युति अशुभ मानी गई है जो चोट इत्यादि को दर्शाती है। शनि की दशा में जातक की टांग पर प्लास्टर चढ़ा। अंकों के स्वामी ग्रहों तथा जन्मकुंडली के आधार पर जातक पर अन्य ग्रहों का प्रभाव स्पष्ट दिख रहा है।

जातका की जन्म तिथि: 6-3-1982 मूल अंक: 6 भाग्य अंक 2: मूल और भाग्य अंक का योग: 8 6, 2 तथा 8 अंकों के स्वामी क्रमशः शुक्र, चंद्र और शनि हैं।

मूल अंक 6: इस अंक का स्वामी ग्रह शुक्र है जो लग्न का स्वामी बना। लग्नेश राहु से दृष्ट है। अंक 6 कुंडली में द्वादश भाव का स्वामी बना, जिसमें संख्या 8 का स्वामी शनि विद्यमान है। भाग्य अंक 2: इस अंक का स्वामी ग्रह चंद्रमा है और जन्मकुंडली से देखें तो जातका की राशि कर्क है जिसके स्वामी चंद्रमा है। संख्या 8: शनि द्वादश भाव में है। मूल और भाग्य अंक के आधार (युति) पर जातका सुंदर तथा कोमल हृदय वाली है

परंतु शनि के प्रभाव के कारण कार्य सफल करने में स्वयं को असमर्थ महसूस करती है। उपाय: भगवान शिव की आराधना करना तथा पीपल के वृक्ष पर जल चढ़ाना शुभ रहेगा। इससे राशि और भाग्य अंक को बल प्राप्त होगा तथा शनि की वस्तुओं का दान करने से शनि दोष दूर होगा। निष्कर्ष: यदि किसी जातक की जन्म तिथि हो परंतु जन्म समय ज्ञात न हो तो तिथि के आधार पर फल कथन किया जा सकता है।


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