संवत २०६३ का वर्षफल
संवत २०६३ का वर्षफल

संवत २०६३ का वर्षफल  

फ्यूचर समाचार
व्यूस : 7580 | अप्रैल 2006

संवंवंवत् 2063 का वर्षर्फर्फफल उमाधर बहुगुणा/लक्ष्मी शंकर शुक्ल ‘लक्ष्मेष’ हमारा विक्रम संवत् 30 मार्च 2006 को प्रारंभ होने जा रहा है। प्रधानमंत्री और उसके मंत्रिपरिषद की तरह आकाशीय मंत्रिपरिषद भी होती है इस बार विकारी नाम संवत्सर का राजा गुरु और मंत्री शुक्र जगत पिता ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को की थी अतः इसी पुनीत दिन को संवत्सर का आरंभ माना जाता है।

इस बार इस संवत्सर 2063 का प्रवेश चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तदनुसार 29 मार्च 2006 बुधवार को अपराह्न 3 बजकर 47 मिनट पर हो रहा है, किंतु इसका आरंभ 30 मार्च 2006 गुरुवार को प्रातः काल से माना जाएगा। इस बार यह संवत् श्री विष्णुजी के 13वें विकारी संवत् नाम पर है। उज्जैन के महाराजा विक्रमादित्य ने शकों को हराया और उसी विजय के उपलक्ष्य में समग्र राज्य को ऋण मुक्त करते हुए यह विक्रम संवत् प्रारंभ किया था।

इस शुभ दिवस का स्वागत परंपरानुसार सुंदर वस्त्राभूषण धारण करके किसी ब्राह्मण को बुलाकर विधिपूर्वक नवग्रहों की स्थापना करके ‘‘ऊँ संवत्सर रूपेण ब्रह्मणे नमः’’ मंत्र का जप और ब्रह्मा जी का आवाहन एवं पूजन करना चाहिए। ब्राह्मण के मुख से शुद्ध स्थिति में सपरिवार शांत बैठकर संवत्सर फल कथा सुने, इससे वर्ष सुख तथा शांतिपूर्वक बीतता है और धन धान्य की प्रचुरता रहती है। प्रतिपदा से रामनवमी तक नौ दिन दुर्गा जी का पूजन पाठ और व्रतादि करना भी शुभ होता है।

निरोग रहने के लिए नीम की मुलायम पत्तियों, पुष्पों, हींग, काली मिर्च, सेंधा नमक, अजवायन, जीरा और खांड आदि का पूरे वर्ष परिवार के सभी सदस्यों के साथ सेवन करंे। संवत्सर का अभिवादन अपने अपने भवनों को पुष्पांे से सुसज्जित करके स्वास्तिक युक्त ध्वजा फहरानी चाहिए। तभी सही अर्थों में महाराजा विक्रमादित्य द्वारा प्रवर्तित नूतन संवत् का अभिनंदन होगा। ‘‘विकारी’’ नाम के संवत्सर चंद्र के प्रभाव क्षेत्र में माना गया है। तदनुसार ब्राह्मणों की सुख समृद्धि में वृद्धि के योग बनेंगे। उपभोक्ता वस्तुओं में तेजी का वातावरण रहेगा।

चैत्र, वैशाख और ज्येष्ठ माहों में धान्यादि के भावों में तेजी रहेगी। आषाढ़ तथा श्रावण में भयंकर वर्षा होगी। भाद्रपद माह छिटपुट वर्षा होगी। आश्विन मास में विश्व में भय उत्पन्न करने वाली घटना घटेगी। कार्तिक और मार्गशीर्ष में उपभोक्ता वस्तुएं सस्ती होंगी महामारी पौष माह में की घटनाएं होंगी। फाल्गुन मास में धान्यादि में तेजी रहेगी।

नव विकारी संवत्सर की दशाधिकारी परिषद राजा गुरु - नव संवत्सर चैत्र शुक्ल प्रतिपदा काल के सूर्योदय की बेला गुरुवार को होने से वर्ष के राजा का पद गुरु सुशोभित करेगा। गुरु वर्ष का राजा हो तो सर्वत्र वर्षा होती है। दुग्ध का उत्पादन बहुत होता है। समूची पृथ्वी पर धान्यादि का उत्पादन संतोषप्रद होता है। सर्वत्र आनंद का वातावरण रहता है।

मंत्री शुक्र: भगवान भुवन भास्कर का मेष संक्रमण 14 अप्रैल 2006 शुक्रवार को प्रातः 6 बजकर 29 मिनट पर हो रहा है अतः वर्ष के मंत्री का पद शुक्र सुशोभित करेगा। संवत्सर के प्रधानमंत्री का पद शुक्र के पास होने से दुग्ध और धान्यादि का उत्पादन अधिक होता है। खाद्यान्न सस्ते होते हैं और फलों का उत्पादन अधिक होता है किंतु रोग आदि की अधिकता रहती है।

सस्येश सूर्य: सूर्य के सस्याधिपति होने से कहीं-कहीं पकी हुई खेती का नाश होगा। जनता में रोग तथा कष्ट की अधिकता होगी।

धान्येश शनि: वर्ष के धान्येश होने के फलस्वरूप धान की खड़ी फसल को ओला वृष्टि या किसी अन्य आपदा से हानि होती है। राजनेताओं में एवं सरकार में भय का वातावरण रहता है।

मेघेश गुरु: गुरु के वर्ष के मेघेश होने के फलस्वरूप वर्षा श्रेष्ठ होती है तथा धान्यादि खाद्य वस्तुओं का उत्पादन प्रचुर मात्रा में होता है। रसेश भौम: पृथ्वी पुत्र मंगल के वर्ष के रसाधिपति होने के फलस्वरूप चंदन, फल-फूल तथा रसीली वस्तुओं का उत्पादन कम होता है।

नीरसेश रवि: वर्ष के नीरसाधिपति सूर्य होने से तांबा, चंदन, खाद्यान्न माणिक्य इत्यादि की वृद्धि होती है।

फलेश बुध: बुध के फलेश होने से वर्ष में फल फूलों की अधिक वृद्धि होती है। अधिक वर्षा के योग बनते हैं। घास, कमल इत्यादि की उपज अच्छी होती है। जनता में सुख संतोष की वृद्धि होती है।

धनेश शनि: वर्ष का धनपति शनि हो तो व्यापारी वर्ग करारोपन से दुखी रहते हंै। ब्राह्मण वर्ग निंदा से दुखी रहते हैं। अपव्यय अधिक होता है राष्ट्रीय राजस्व की प्राप्ति में कमी आती है। शासन चिंतित रहता है।

दुर्गेश बुध: संवत्सर का दुर्गपति बुध है। अतः राष्ट्रीय सुरक्षा की स्थिति चिंतनीय रहेगी। आतंकवादी, अलगाववादी और उग्रवादी बार-बार संकट उत्पन्न करेंगे। चोरी, डकैती तथा अपहरण की घटनाओं में वृद्धि होगी।

इस प्रकार संवत्सर की परिषद के पांच स्थान सौम्य ग्रहों को तथा पांच उग्र ग्रहों को प्राप्त हुए हैं। अतः जनता को मिश्रित फल भुगतना पड़ेगा। संवत्सर के राजा और प्रधान मंत्री में नैसर्गिक शत्रुता होने से सत्ता में आपसी संघर्ष होगा जिससे राष्ट्र आक्रांत एवं भयभीत रहेगा और कष्ट तथा मानसिक तनाव झेलना पड़ेगा।

नव संवत्सर वर्ष प्रवेश 29/3/06 को विकारी संवत् 2063 के वर्ष प्रवेश लग्न का विश्लेषण करने से स्पष्ट होता है कि वर्ष लग्न सिंह है तथा लग्नेश सूर्य अष्टम भाव में 14 अंश पर स्थित है। लग्नेश सूर्य शत्रु क्षेत्र में बृहस्पति के स्वामित्व की मीन राशि में है। साथ में चंद्र और राहु की युति है। अग्नि तत्व के लग्न पर मंगल की पूर्ण दृष्टि होने से अशुभकारी योगों की वृद्धि होगी। दक्षिण के राज्यों में विषैले भोज्य से जनता में भय रहेगा।

प्रारंभ के 6 मासों के दौरान धान्यादि सस्ते रहेंगे। पश्चिमी राज्यों में फलों तथा उपभोक्ता वस्तुओं की अधिकता रहेगी और वे सस्ती रहेंगी। उत्तरी राज्यों में वर्षा जन्य महा विनाश होगा। उत्तरी राज्यों की राज व्यवस्था से शासन तथा जनता सुखी रहेंगे। पश्चिमी राज्यों की आर्थिक व्यवस्था सृदृढ़ होगी। मध्यप्रदेश तथा आस-पास के क्षेत्रों में नेताओं में आपसी शत्रुता और आपसी संघर्ष चरम सीमा पर होगा।

ग्रह योग के अनुसार राजा और प्रजा में असंतोष वर्ष भर रहेगा। आर्थिक नीतियां तथा सामाजिक समस्याएं विकराल रूप धारण करेंगी। लग्न पर मंगल की दृष्टि होने से झगड़े-फसाद, हत्याओं, लूट और चोरियों की घटनाओं में अप्रत्याशित वृद्धि होगी। जनता अपना मत शासन के विरुद्ध व्यक्त करेगी। राजनेता भी जालसाजी तथा धोखाधड़ी से जनता का धन-धान्य हरण करेंगे।

राहु से अशुभ योग होने से शासक वर्ग को भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा। फौज और पुलिस के अत्याचारों में वृद्धि होगी। गुरु के वक्री तथा शत्रु राशि में होने से राजनेताओं की गोली से हत्या हो सकती है। किसी राजनेता को बड़ी सजा या फांसी भी हो सकती है। लग्न पर बुध की पूर्ण दृष्टि होने से राष्ट्र का व्यापार-व्यवसाय बहुत सफल रहेगा। अन्य देशों से कूटनीतिक संबंध मजबूत होंगे। चंद्रमा के जल तत्व राशि में होने से वर्षा अत्यधिक होगी, कहीं-कहीं बाढ़ तथा बादल फटने जैसी घटनाएं होने से जनधन की भारी हानि होगी।

श्री विक्रम संवत्सर 2063 वैशाख प्रतिपदा को प्रातः 5.54 पर सूर्य वर्ष राशि चक्र को पूर्ण कर अश्विनी नक्षत्र तथा मेष राशि में प्रवेश करेगा। वर्षारंभ लग्न पर वर्ष के राजा बृहस्पति की पूर्ण दृष्टि है तथा लग्नेश मंगल पराक्रम भाव में स्थित है। लग्न भाव का कारक ग्रह सूर्य लग्न में ही स्थित है। धनेश तथा सप्तमेश शुक्र मित्र ग्रह की राशि में लाभ भाव में स्थित है। यह सब योग श्रेष्ठ रहेंगे।

राष्ट्र का मुद्राकोष बढ़ेगा और राष्ट्र की अंतर्राष्ट्रीय ख्याति में वृद्धि होगी। ईस्वी सन् 2006 में सूर्य अपनी संक्रांति योगों में एक अत्यंत दुर्लभ तथा विलक्षण योग निर्मित कर रहा है। 14 जनवरी, 2006 शनिवार को मंकर संक्रांति, 12 फरवरी, 2006, रविवार को कुंभ संक्रांति तथा 14 मार्च, 2006 मंगलवार को मीन संक्रांति आने से और उक्त तारीखों के दिन क्रमशः शनि, रवि, मंगल होने से खप्पर योग निर्मित होगा जो प्राणी मात्र महाकष्टकारी के माना गया है। महाभय तथा खाद्यान्न में अनायास तेजी की संभावना रहेगी। कृषि को हानि होगी।

वर्ष में मकर संक्रांति शनिवार और कर्क संक्रांति रविवार को होने से भी नाना प्रकार के अशुभ योग निर्मित होते हैं। आद्र्रा प्रवेश: भारत कृषि प्रधान राष्ट्र है। भारत की अर्थव्यवस्था का 80 प्रतिशत कृषि पर निर्भर है और कृषि उत्पादन की निर्भरता वर्षा पर होती है। वर्ष 2006 में 22 जून गुरुवार को प्रातः 9 बजकर 22 मिनट पर सूर्य आद्र्रा में प्रवेश करेगा। 2063 आषाढ़ कृष्ण द्वादशी गुरुवार को सूर्य पर्जन्यकारक आद्र्रा नक्षत्र में प्रवेश कर रहा है। द्वादशी तिथि को प्रवेश शुभकारी माना गया है।

फलस्वरूप अन्न का उत्पादन अधिक होता है। आद्र्रा प्रवेश दिन में होने के कारण खड़ी फसलों की हानि के योग बनेंगे। प्रवेश का वार गुरुवार होने के फलस्वरूप राष्ट्र की अर्थव्यवस्था में आत्मनिर्भता बढ़ेगी। आद्र्रा प्रवेश लग्न का विश्लेषण करें तो स्पष्ट होता है कि लग्न में जलीय तत्व राशि है तथा लग्नेश चंद्र केंद्र में स्थित है। गुरु से चंद्र भी केंद्र में शुभकारी है। इन योगों को देखने से स्पष्ट है कि वर्षा की स्थिति श्रेष्ठ रहेगी। लग्नेश तथा दशमेश का संबंध भी शुभकारी रहेगा।

पृथ्वी धान्यादि उत्पादनों से परिपूर्ण रहेगी। लाभेश शुक्र भी स्वराशि में लाभ भाव में होने से कृषि आधारित अर्थव्यवस्था की समृद्धि की ओर संकेत करता है। उत्तरी क्षेत्रों में भारी वर्षा से जन धन की भारी हानि की पूर्ण संभावना रहेगी। 29 मार्च को होने वाले सूर्य ग्रहण और नव संवत्सर, 15 अगस्त 1947 के अनुसार बने नए वर्ष फल तथा राष्ट्रीय जन्म कुंडली के ग्रह एवं विंशोत्तरी दशा और योगिनी दशा, नए वर्ष 31 दिसंबर, 2005 रात्रि 12 बजे के ग्रह एवं दशा के अनुसार उपभोक्तावाद, फैशन, महंगाई, अश्लीलता, मुद्रास्फीति आदि चरम सीमा पर होंगे।

हर जगह घरेलू कलह, स्त्रियों पर अत्याचार, शोषण आदि देखने को मिलेंगे। धान्येश शनि के कारण फसलों की कमी से कालाबाजारियों को अति लाभ होगा। चंद्र की राशि मंे शनि की स्थिति के कारण और जुलाई-अगस्त में सूर्य, बुध तथा शुक्र की युति के कारण विश्व में अशांति बढ़ेगी। पर्यावरण दूषित होगा। कई राज्य सरकारों के स्वरूपों में परिवर्तन होंगे और 2006-2007 में मध्यावधि चुनाव केंद्र में हो सकते हैं।

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