भवन निर्माण पूर्व आवश्यक है भूमि परीक्षण
भवन निर्माण पूर्व आवश्यक है भूमि परीक्षण

भवन निर्माण पूर्व आवश्यक है भूमि परीक्षण  

रश्मि चतुर्वेदी
व्यूस : 5599 | दिसम्बर 2006

किसी भी भूखंड पर भवन निर्माण से पूर्व उसकी मिट्टी का परीक्षण भलीभांति कर लेना चाहिए क्योंकि उस भवन का आधार वही भूखंड होता है। भवन का आधार दोषरहित होना चाहिए अन्यथा भवन में वास्तु दोष पैदा हो जाएंगे जिसके परिणामस्वरूप उस में रहने वाले प्राणियों को अनेक प्रकार के कष्ट मिलने की संभावना रहेगी। व्यक्ति आजीवन, सपरिवार सुखपूर्वक निवास की कल्पना करता है।

यह कल्पना हकीकत में तभी बदलेगी जब भूमि के गुण-दोषों का वास्तुशास्त्र में प्रतिपादित नियम एवं सिद्धांतों के अनुसार विवेचन कर उस पर भवन का निर्माण किया जाए। वास्तुशास्त्र में मिट्टी के परीक्षण संबंधी कुछ सिद्धांत एवं विधियां बतलायी गई हैं।

उनके अनुसार यदि मिट्टी सही पाई जाए तभी भवन का निर्माण करना चाहिए। यदि मिट्टी में कोई दोष हो, तो दोष का निवारण करने के पश्चात ही भवन का निर्माण करना उचित होगा। वास्तुशास्त्र में भूमि परीक्षण की कुछ विधियां इस प्रकार बतलायी गई हैं।

- भूखंड के मध्य में भूस्वामी के हाथ के माप के बराबर एक हाथ गहरा, एक हाथ लंबा तथा एक हाथ चैड़ा गड्ढा खोदकर उसमें से मिट्टी निकालने के पश्चात उसी मिट्टी को पुनः उस गड्ढे में भर देना चाहिए। ऐसा करने के पश्चात यदि मिट्टी शेष बचे तो भूमि उŸाम, यदि पूरी भर जाए तो मध्यम और यदि कम पड़ जाए तो अधम अर्थात हानिप्रद है। अधम भूमि पर भवन निर्माण नहीं करना चाहिए।

- भूखंड के मध्य में भूस्वामी के हाथ के माप के बराबर एक हाथ गहरा, एक हाथ लंबा तथा एक हाथ चैड़ा गड्ढा खोदकर उसमें जल भर देना चाहिए। फिर यह देखना चाहिए कि जल भरा रहता है या तत्काल शोषित हो जाता है। यदि जल तुरंत शोषित न हो, तो समझें कि भूमि उŸाम है जल तत्काल शोषित हो जाए, तो समझें कि भूमि अधम है अर्थात निर्माण योग्य नहीं है।

- जल भरते समय यदि जल स्थिर रहे तो वह सुख शांति का प्रतीक है। यदि जल दायीं ओर घूमे तो भूमि सुखदायी और यदि बायीं ओर घूमे, तो शोक एवं रोगकारक है।

- यदि गड्ढे में भरा हुआ जल दूसरे दिन प्रातःकाल तक बचा रहे, तो वह भूमि शुभ होती है। यदि जल न बचे तो वह मध्यम और यदि उसमें दरारें पड़ जाएं तो अशुभ होती है।

- भूमि की खुदाई में यदि हड्डी, खोपड़ी, कोयला आदि वस्तुएं निकलें, तो वह अनेक प्रकार के कष्टों को देने वाली होती है। यदि उसमें कौड़ी, रूई, जली हुई लकड़ी आदि वस्तुएं निकलें तो यह रोग एवं शोक प्रदान करने वाली होती है।

खुदाई करने पर यदि उसमें चींटी एवं दीमक के बिल या अजगर निकलें, तो उस पर मकान बनाने से उसका स्थायित्व प्रभावित होता है। अतः ऐसी भूमि पर निर्माण करना उचित नहीं है। किंतु यदि ऐसी भूमि पर निर्माण आवश्यक ही हो, तो उसका शुद्धीकरण करा लेना चाहिए।

- भूमि की खुदाई में कुछ गहराई पर यदि पत्थर निकले तो भूमि धनधान्य की वृद्धि करने वाली होती है और यदि ईंटें निकलें, तो आर्थिक रूप से लाभदायक व सुखदायी होती है। यदि तांबा निकले, तो समृद्धिदायक होती है।

- भूमि का परीक्षण बीज बोकर भी किया जा सकता है। बीजारोपण के उपरांत यदि उसका अंकुर सही समय पर निकले, तो वह भूमि उŸाम और अंकुरण नहीं हो, तो अशुभ होती है। जिस भूमि में अंकुर नहीं हो उस पर पर भवन का निर्माण नहीं करना चाहिए।

इस प्रकार विभिन्न विधियों के माध्यम से मिट्टी के शुभाशुभत्व का विचार किया जाता है। वास्तुशास्त्र में ठोस एवं चिकनी मिट्टी भवन निर्माण के लिए शुभ बतलायी गई है क्योंकि ऐसी भूमि पर गुरुत्वशक्ति के प्रभाववश निर्माण स्थायी होता है जबकि इसके विपरीत रेतीली एवं पोली भूमि पर बना भवन अस्थायी होता है। भूमि का परीक्षण करते समय दोषयुक्त भूमि का शोधन कर लेना चाहिए।

जीवन में जरूरत है ज्योतिषीय मार्गदर्शन की? अभी बात करें फ्यूचर पॉइंट ज्योतिषियों से!



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.