भारतीय समाज में व्यवस्था बनाने के लिए उसे पारिवारिक इकाइयों में व्यवस्थित किया गया है। मनुष्य जीवन में अकेला नहीं रह सकता है। जन्म से मृत्यु तक का समय वह परिवार में व्यतीत करता है। परिवार के सदस्य जीवन में आने वाले सुख एवं दुख साथ-साथ बांटते हैं और मन में आने वाले भावों का आदान प्रदान करते हैं।
इस प्रकार देखा जाए तो परिवार में लोग भावात्मक जुड़ाव एवं सुरक्षा दोनों ही प्राप्त करते हैं। अतिथि वह व्यक्ति होता है जिसके आने की तिथि तय नहीं होती है या दूसरे शब्दों में कहें तो जिसका आगमन अचानक होता है। वह किसी अन्य परिवार का सदस्य होता है।
अन्य परिवार से संबंध होने के कारण उसके आचार, विचार एवं व्यवहार भिन्न होते हैं। इसके विपरित एक ही परिवार में पले बढ़े होने के कारण पारिवारिक सदस्यों के आचार, विचार एवं व्यवहार में एकरूपता मिलती है। पारिवारिक सदस्यों की सबसे बड़ी विशेषता है उनका आपसी विश्वास जिसके कारण वे एक दूसरे से जुड़े रहते हैं।
अतिथि का निवास किसी भी भवन में अस्थायी होता है किंतु यदि यही अतिथि लंबे समय तक परिवार में रहता है तो परिवार के सदस्यों की निजता प्रभावित होती है। जिस कारण अतिथि का आदर सत्कार ढंग से नहीं हो पाता। अतिथि के सामने व्यवहार थोड़ा बनावटी एवं दिखावटी होता है। बनावट ज्यादा समय तक नही रहती है।
अतिथि का ज्यादा समय तक रहना परिवार के कुछ सदस्यों को अच्छा लगता है। तो कुछ सदस्यों को बुरा जिसके परिणामस्वरूप परिवार के सदस्यों में मतभेद उत्पन्न हो सकते हैं। ये मतभेद पारिवारिक सुख-शांति में बाधा उत्पन्न करते हैं। वास्तुशास्त्र में पारिवारिक व्यवस्था को बनाए रखने के लिए विभिन्न कक्षों की दिशा पर विशेष ध्यान दिया गया है।
भवन का वायव्य कोण वायु प्रधान क्षेत्र है। इस दिशा के स्वामी वायु देवता हैं तथा ग्रह चंद्रमा है। वायु की विशेषता है कि वह एक स्थान पर बंधकर नहीं रहती है। उसकी लगातार आवागमन होता रहता है। अतः वायव्य कोण भवन का वह क्षेत्र है, जहां परिवर्तन लगातार होता रहता है या दूसरे शब्दों में कहें तो जहां स्थायित्व का अभाव होता है।
इस कोण पर चंद्रमा का भी प्रभाव पड़ता है। चंद्रमा का संबंध मन से है। व्यक्ति के मन में भावों का संचार लगातार चलता है, जिससे इस स्थान में टिक नहीं पाता। अतः वायव्य कोण में अतिथि कक्ष बनाने से अतिथि कुछ समय तक रहता है तथा पूर्ण आदर-सत्कार प्राप्त करता है। अतिथि यदि प्रसन्न होकर जाता है तो वह समाज में मेजबान की प्रशंसा करता है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि वायव्य कोण में बना अतिथि कक्ष पारिवारिक व्यवस्था को सुचारु रूप से चलाने में तथा अतिथि को सम्मान दिलाने में सहायक होता है और ‘अतिथि देवो भव’ की भारतीय अवधारण का पालन भी आसानी से हो जाता है। वर्तमान समय में प्रत्येक व्यक्ति अपना काम जल्द से जल्द कर प्रशंसा प्राप्त करना चाहता है। ऐसे में वास्तुसम्मत स्थान व्यक्ति के मन के अनुकूल परिणाम दिलाने में सहायता कर सकते हैं।
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