नैर्ऋत्य (दक्षिण-पश्चिम) में भारी निर्माण क्यों
नैर्ऋत्य (दक्षिण-पश्चिम) में भारी निर्माण क्यों

नैर्ऋत्य (दक्षिण-पश्चिम) में भारी निर्माण क्यों  

रश्मि चतुर्वेदी
व्यूस : 4162 | जुलाई 2006

प्रकृति के अंदर दो प्रकार की शक्तियां पायी जाती हैं, एक है सकारात्मक तथा दूसरी है नकारात्मक। इनमें से व्यक्ति के जीवन में सुख-समृद्धि प्राप्त करने में सकारात्मक शक्ति सहायता करती है। इसके विपरीत नकारात्मक शक्ति व्यक्ति के अंदर क्रोध एवं निराशा उत्पन्न करती है।

वास्तुशास्त्र में पंचमहाभूतों के तालमेल से एक ऐसे निर्माण की प्रक्रिया बतलाई गई है जो भवन के अंदर व्यवस्था बनाती है। इस शास्त्र में प्रत्येक कोण एवं दिशा में उसकी प्रकृति के अनुसार निर्माण करने पर जोर दिया गया है। विभिन्न दिशाओं में विभिन्न देवी-देवताओं का आधिपत्य होता है, अतः भूखंड के विभिन्न भागों में उस दिशा से संबंधित देवताओं का अधिकार होता है।

अतः भूखंड पर निर्माण कराते समय किस भाग में किस प्रयोजन हेतु कक्ष बनाया जाए यह निर्णय उस भाग के अधिकारी देवता की प्रकृति और स्वभाव को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए। वास्तुशास्त्र में नियम एवं सिद्धांत इस बात को ध्यान में रखकर ही बनाये गए हैं।

इनके अनुसार भवन निर्माण कराने से दिशा से संबंधित देवता प्रसन्न रहेंगे और भवन का उपयोग करने वालों को उत्तम आशीर्वाद प्राप्त होगा और भवन के निवासी सुख एवं शांति से युक्त जीवन व्यतीत करेंगे। यदि वास्तु के सिद्धांतों के प्रतिकूल निर्माण किया जाएगा तो संबंधित देवता कुपित होंगे और उनके कोप के कारण प्र भवन के निवासियों को अनेक प्रकार के कष्ट एवं दुख सहने पड़ेंगे और उनका अनिष्ट होगा।

परिणामस्वरूप जीवन में निराशा का साम्राज्य होगा। नैर्ऋत्य के स्वामी ग्रह राहु एवं केतु हंै तथा नैरुति देवता का अधिकार है। राहु एवं केतु स्वभाव से क्रूर ग्रह हैं। ये व्यक्ति के जीवन में समस्या एवं संकटों को उत्पन्न करते हैं। यदि नैर्ऋत्य कोण को खुला रखा जाए तो भवन में रहने वालों को प्रतिदिन संकटों का सामना करना पड़ेगा, जिसका परिणाम नकारात्मक होगा। अतः इन दोनों ग्रहों की क्रूरता से मिलने वाले परिणामों से बचने के लिए इस दिशा में कम खुला तथा अधिकतम निर्माण करना चाहिए। इस दिशा में खिड़की एवं दरवाजे कम से कम होने चाहिए।

नैर्ऋत्य कोण में सूर्य की किरणें अपने प्रचंड रूप में होती हैं। इस समय सूर्य से रक्ताभ किरणे निकलती हैं। ये किरणंे अपनी तीक्ष्णता के कारण भवन में रहने वालों के अंदर घबराहट, बेचैनी को उत्पन्न करती हैं जिसके परिणामस्वरूप आज की परिस्थिति में व्यक्ति का रक्त चाप उच्च हो सकता है। इन नकारात्मक प्रभावों से बचने के लिए इस दिशा में दीवार को भारी बनाना चाहिए। नैर्ऋत्य कोण में वास्तुपुरुष के पैर होते हैं अर्थात वास्तुपुरुष का आधार। पैरों से वजन को उठाया जा सकता है, यह प्रकृति का नियम है।

हमारे शरीर का वजन भी हमारे पैर उठाते हैं अतः उनका मजबूत होना आवश्यक है। वास्तु पुरुष के पैर होने के कारण भी इस दिशा में भारी निर्माण कर भवन को मजबूती प्रदान की जा सकती है। इस प्रकार नैर्ऋत्य कोण में भारी निर्माण करने से भवन को नकारात्मक शक्तियों के प्रभाव से बचाकर सकारात्मक शक्तियों का प्रवेश कराया जा सकता है। भवन के अंदर इन सकारात्मक शक्तियों के प्रभाव से एक अच्छा वातावरण तैयार होता है जिसमें रहकर व्यक्ति अपने लक्ष्य को आसानी से सिद्ध कर सकता है।

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