वातावरण में सूक्ष्म तरंगे विद्यमान रहती हैं। व्यक्ति जिस प्रकार का आचार, विचार एवं व्यवहार करता है, उसके चारों तरफ उसी प्रकार का वातावरण बनता है। यह वातावरण अपने माध्यम से व्यक्ति को कभी उत्साह और कभी उमंग के रूप में महसूस होता है। ये चीजें किसी भी व्यक्ति की कार्यशक्ति के विकास में सहायक होती हैं। ऐसा वातावरण व्यक्ति के अनुकूल होता है।
इसके विपरीत अगर वातावरण प्रतिकूल हो तो व्यक्ति के अंदर निराशा, तनाव एवं क्रोध जैसे तत्व पैदा होते हैं जो व्यक्ति के मानसिक विकास को बाधित कर शारीरिक रूप से कमजोर करते हैं। इसलिए भवन निर्माण से पहले वातावरण को प्रभावित करने वाले तत्वों का विचार कर लेना चाहिए। मंदिर में व्यक्ति सुख में कम दुख में ज्यादा जाता है तथा भगवान के सामने अपने कष्टों को कहता है।
मंदिर में जब सत्संग होता है तो वहां अच्छा वातावरण बनता है परंतु जब दुखी व्यक्ति भगवान के समक्ष अपनी बात कहता है तो उसकी जो भावना उत्सर्जित होती है वह निराशा की तरंगें वातावरण में छोड़ती है जिसके परिणामस्वरूप वातावरण दूषित होता है।
ऐसे निराश एवं हताश लोगों को देखने से व्यक्ति के मन में निराशा का भाव जागृत होता है। ऐसे में यदि मंदिर के पास आपका घर होगा तो उसका प्रभाव घर पर पड़ेगा। घर में बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक सभी रहते हैं। बाल सुलभ मन में यदि कोई प्रभाव पड़ जाए तो उसका उपाय करना मुश्किल होता है। मंदिर में देवता का स्थान होता है तथा उसकी एक नियमित दिनचर्या होती है। मंगला से लेकर शयन आरती तक का समय निश्चित होता है। इसके विपरीत घर में चाहते हुए भी दिनचर्या व्यवस्थित नही हो पाती।
देवता और मनुष्य की दिनचर्या के परस्पर विरोधी होने के कारण घर में एक प्रकार का असंतुलन पैदा होगा जिसके परिणामस्वरूप घर के सदस्यों में तकरार, ऊंचे-ऊंचे संवाद होकर घर के सदस्यों में मनमुटाव या बातचीत बंद भी हो सकती है। इसलिए घर मंदिर के समीप नहीं होना चाहिए।
मंदिर यदि घर से दूर होगा तो वहां से आने वाली घंटियों की आवाज कर्णप्रिय लगेगी तथा आस-पास का वातावरण मधुर बनेगा। इसके विपरीत पास में मंदिर होने से ध्वनिप्रदूषण होगा। आज के समय में मंदिरों में नित्य प्रतिदिन उत्सवों, भजन, कीर्तन एवं कथाओं का आयोजन किया जाता है। इससे वहां लोगों का आवागमन लगा रहता है जिससे घर की सुरक्षा प्रभावित होती है।
मंदिर में लगातार होने वाले कार्यक्रमों के प्रभाव से वातावरण में शोर होने लगता है जिससे घर की शांति भंग होती है। शांति भंग होने से व्यक्ति की एकाग्रता में कमी आती है जिससे उसके निर्णय प्रभावित होते हैं। प्राचीन समय के मंदिर या तो पहाड़ों पर या नदी के किनारे अथवा वन के समीप बनाए जाते थे, जहां जाकर मनुष्य शांति का अनुभव करता था।
परंतु आज के समय में घर के समीप, काॅलोनी के भीतर मंदिरों का निर्माण होने से घरों में शांति के स्थान पर तनाव घुस आया है। इससे लोगों की सहन शक्ति कम हुई है तथा तनाव बढ़ गया है। इन सब कारणों को देखते हुए वास्तुशास्त्र में मंदिर के समीप घर बनाने का निषेध किया गया है।
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