सामान्यतः भूखंडों में दिशाएं भूखंड के समांतर होती हंै परंतु ऐसे बहुत से भूखंड हैं जिनकी दिशाएं कोणों में स्थित होती हैं। जिस भूखंड में चुंबकीय किरण उसके बीचों बीच गुजरने की बजाय भूखंड के अक्ष पर 450 का कोण बनाती हुई गुजरे तो वह भूखंड कोणों वाला या ‘विदिशा’ भूखंड कहलाता है। दिशाओं में स्थित भूखंड में पंचमहाभूत तथा प्राकृतिक शक्तियों का संतुलन होने के कारण यह ऊर्जावान होता है तथा इस भूखंड में निर्मित भवन में निवास करने वालों को प्राकृतिक ऊर्जा का लाभ प्राप्त होता है।
इसके विपरीत कोणों में स्थित भूखंड पंचमहाभूत एवं प्राकृतिक शक्तियों के असंतुलन से दोषयुक्त होता है। विदिशा भूखंडों में ईशान, आग्नेय, नैऋत्य एवं वायव्य दिशा में मार्ग हो सकते हैं। परंतु इनमें ईशान दिशा में मार्ग वाले भूखंड मध्यम श्रेणी के होते हैं तथा नैर्ऋत्य दिशा में मार्ग वाले भूखंड का मुख्य द्वार नैऋव्य दिशा में नहीं रखना चाहिए। इस भूखंड का उपयोग व्यावसायिक दृष्टि से कर सकते हैं।
विदिशा भूखंड पर भवन निर्माण: विदिशा भूखंडों में निर्माण दिशा के समांतर नहीं करना चाहिए। प्रत्येक निर्माण भूखंड की भुजाओं के समांतर होना चाहिए। विदिशा भूखंडों का उपयोग इस प्रकार करना चाहिए: ईशान दिशा में मार्ग वाले भूखंड आवास, मंदिर, विद्यालय एवं दुकान के लिए श्रेष्ठ हैं।
आग्नेय दिशा में मार्ग वाले भूखंड होटल, कारखाने, ब्यूटी पार्लर, रेस्टोरेंट एवं बिजली से संबंधित व्यवसाय के लिए श्रेष्ठ हैं। नैऋत्य दिशा में मार्ग वाले भूखंड अस्पताल, हार्डवेयर, टायर कारखानों के लिए श्रेष्ठ हैं। वायव्य दिशा में मार्ग वाले भूखंड गैराज, शोरूम, कारखानों एवं खेती करने के लिए श्रेष्ठ हैं।
निर्माण के लिए वैकल्पिक दिशाए कक्ष निर्धारित दिशा वैकल्पिक दिशा पूजा ईशान पूर्व, उत्तर, ईशान एवं पूर्व के बीच, उत्तर एवं ईशान के बीच। स्नान घर पूर्व ईशान एवं पूर्व के बीच, पश्चिम, शयनकक्ष के साथ होने पर उसकी दिशा में। रसोईघर आग्नेय आग्नेय एवं दक्षिण के बीच, आग्नेय एवं पूर्व के बीच, वायव्य एवं उत्तर के बीच एवं पूर्व। शयनकक्ष दक्षिण वायव्य एवं उत्तर के बीच, पश्चिम एवं नैऋत्य के बीच, आग्नेय एवं दक्षिण के बीच।
शौचालय नैऋत्य एवं दक्षिण पूर्व को छोड़कर स्नानघर की दिशा के बीच पूर्व में, ईशान एवं पूर्व के बीच, आग्नेय एवं दक्षिण के बीच, पश्चिम एवं वायव्य के बीच तथा उत्तर एवं वायव्य के बीच बोरिंग पूर्व, उत्तर एवं ईशान निर्धारित दिशा के आस-पास तथा पश्चिम द्वार पूर्व एवं उत्तर वास्तुचक्र के अनुसार चारों दिशाओं में, राशि के अनुसार, वर्ण के अनुसार एवं आय के अनुसार दिशा में।
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