आयुर्वेदिक दृष्टिकोण: कब्ज का तात्पर्य मल त्याग से है और मल त्याग मल की प्रवृत्ति पर निर्भर करता है। यदि मल अत्यंत शुष्क, कठोर और कठिनाई के साथ कम मात्रा में आये, पेट का निचला भाग सख्त और भारी प्रतीत हो, पेट में धीमा-धीमा दर्द रहने लगे, मल त्याग के लिए बार-बार किसी विरेचक औषधि का सहारा लेना पड़े, मल गांठों के रूप में आये तथा गुदा द्वार से गैस तक निकलने में कठिनाई महसूस हो, तो इसे ‘कब्ज’ रोग का लक्षण मानना चाहिए। कब्ज ग्रस्त रोगियों का मलाशय मल से ठसाठस भरा रहता है। मल संचय से मलाशय में सूजन आ जाती है। शास्त्रों में कब्ज ब्याख्या: आयुर्वेद शास्त्र में इस रोग को ‘वृहदांज प्रवाह’ कहते हैं।
इस रोग में मल विसर्जन तो होता है, पर वह संचित मल के नीचे एक पतली राह बनाकर बाहर आता है। संचित मल वैसा का वैसा ही रहता है। संचित मल रक्त शुद्धि में बाधक बनता है और कीड़े पैदा करता है। चरक संहिता में उल्लेख है कि मल संचय से क्षुधा नाश और कुस्वाद होता है। इससे मीठी और भारी चीजें देर से पचती हैं। भोजन के बाद छाती पेट में जलन, भोजन के पचने का अनुभव न होना, पैरों में सूजन, निरंतर शारीरिक शिथिलता पैदा होती है। परिश्रम से सांस फूल जाती है तथा पेट में मल का संचय होता रहता है। पेट का बढ़ना, पेट के आस-पास के हिस्सों में दर्द उत्पन्न होना, हल्का और अल्प मात्रा में भोजन करने के बाद भी पेट का तन जाना, नसों में उभार आदि अनेक व्याधियां जन्म लेती हैं अर्थात सभी रोगों का कारण कुपित मल ‘कब्ज’ है। कब्ज का उपचार: कब्ज का सबसे उत्तम उपचार परहेज है। स्वास्थ्य संबंधी नियमों में आहार-विचार-विकार को प्रमुखता दी गयी है।
अतः आहार से संबंधित नियमों का पालन करना चाहिए। मन की उत्पत्ति के लिए इस प्रकार के आहार की आवश्यकता होती है जिसमें रेशे की मात्रा अधिक हो, जैसे हरी साग सब्जियां, छिलके सहित फल, चोकर सहित अनाज, मोटा चावल, छिलके वाली दालें इत्यादि। इनके साथ ही मल नरम रखने के लिए दिन भर में पर्याप्त मात्रा में पानी तथा अन्य तरल पदार्थों का सेवन भी करना चाहिए, क्योंकि मल का अधिकतर भाग पानी ही होता है, जो इसे नर्म बनाए रखता है।
मल त्याग के लिए भारतीय शौचालय अधिक लाभकारी है क्योंकि इसमें पैरों के बल बैठना पड़ता हैं जिससे जंघाओं का दबाव पेट पर पड़ता है तथा मल त्याग में सहायता मिलती है। व्यायाम कब्ज का अचूक उपाय पेट की मांसपेशियों का व्यायाम भी कब्ज के लिए बहुत लाभकारी है। पेट की हल्की मालिश, पश्चिमोत्तासन, वज्रासन, धनुरासन, हलासन आदि का भी अभ्यास करने से आंतों पर विशेष प्रभाव पड़ता है जिससे कब्ज दूर हो जाती है। (योगासन किसी योगाचार्य की देख-रेख में करें अन्यथा हानि हो सकती है।
घरेलू उपायों से कब्ज मुक्ति: टमाटर, पालक, पत्ता गोभी, शलगम, मूली, गाजर, इन सब का सलाद या सूप बनाकर पीएं, भोजन के पहले। - पका हुआ पपीता रोज खाएं, कब्ज में अत्यंत लाभकारी है। - रात को मुनक्का या किशमिश या अंजीर पानी में भिगो दें। प्रातः उठकर उनको खूब मसलकर पानी मिलाकर पी लें। पुराने से पुराना कब्ज इससे ठीक हो जाता है। (नोट: रोग उपचार के लिए किसी रोग विशेषज्ञ से सलाह लें और सही दवा-दारू कर रोग में राहत पायें। खुद वैद्य न बनें)। कब्ज के ज्योतिषीय योग कब्ज आंतों में बसने वाला रोग है, जो पेट के निचले भाग में होता है। काल पुरुष की कुंडली में षष्ठ भाव पेट में स्थित आंतांे का है।
सभी रोग, जैसे कि ऊपर उल्लेख किया गया है कि आंतों में मल के रहने से उत्पन्न होते हैं। इसलिए षष्ठ भाव को रोग भाव भी कहते हैं। इसके साथ सप्तम भाव मलाशय का है जहां पर सारा मल संचित होकर विसर्जित होता है। आंतों के कारक ग्रह केतु और शुक्र हैं। कब्ज होने पर जातक की आंतों में रहने वाले मल में शुष्कता आ जाती है, जो सूर्य और चंद्र के दुष्प्रभाव से होता है। इसलिए लग्नेश, केतु, शुक्र, सूर्य, षष्ठ भाव, षष्ठेश और सप्तम भाव तथा सप्तमेश के दुष्प्रभावों में रहने के कारण ‘कब्ज’ से जातक पीड़ित रहता है।
रोग का समय उपर्युक्त ग्रहों की दशांतर्दशा और गोचर पर निर्भर करता है। विभिन्न लग्नों में कब्ज रोग
मेष लग्न: लग्नेश मंगल से युक्त सप्तम भाव में, शनि से दृष्ट षष्ठेश बुध और सप्तमेश शुक्र षष्ठ भाव में केतु से दृष्ट या युक्त हो, तो जातक कब्ज का रोगी होता है।
वृष लग्न: षष्ठेश और लग्नेश द्वादश भाव में सूर्य से अस्त हो, सप्तमेश मंगल षष्ठ भाव में केतु से युक्त या दृष्ट हो, चंद्र गुरु से दृष्ट या युक्त सप्तम भाव में हो, तो गुरु या मंगल की दशांतर्दशा में कब्ज रोग होता है।
मिथुन लग्न: लग्नेश बुध त्रिक भावों में सूर्य से अस्त हो, मंगल-चंद्र से युक्त षष्ठ भाव में, सप्तमेश गुरु शनि से युक्त या दृष्ट सप्तम भाव में दृष्टि दे, केतु षष्ठ या सप्तम भाव युक्त या दृष्ट हो तो कब्ज देता है।
कर्क लग्न: लग्नेश सूर्य से युक्त पंचम भाव में, बुध षष्ठ भाव में केतु से दृष्ट या युक्त हो, गुरु सप्तम भाव में, सप्तमेश शनि-शुक्र से दृष्ट या युक्त लग्न में हो तो जातक को कब्ज देता है।
सिंह लग्न: लग्न में शनि-बुध, द्वादश भाव में सूर्य, केतु षष्ठ भाव में, षष्ठेश शनि पर मंगल की दृष्टि हो, तो जातक को कब्ज से परेशानी होती है।
कन्या लग्न: लग्नेश तृतीय भाव में सूर्य से युक्त मंगल षष्ठ भाव में, षष्ठेश शनि की लग्न पर दृष्टि, केतु गुरु से युक्त, सप्तम भाव में शुक्र द्वितीय भाव में, हो तो जातक को कब्ज से परेशानी होती है।
तुला लग्न: गुरु लग्न में, लग्नेश शुक्र, केतु से युक्त सप्तम भाव में, सप्तमेश मंगल षष्ठ भाव में, सूर्य पंचम भाव में बुध से युक्त हो, तो जातक को कब्ज से परेशानी रहती है।
वृश्चिक लग्न: लग्नेश और षष्ठेश मंगल सप्तम् भाव में, बुध षष्ठ भाव में, शुक्र पंचम भाव में सूर्य से अस्त हो, केतु की दृष्टि षष्ठ, सप्तम या लग्न पर हो, तो जातक को कब्ज होती है।
धनु लग्न: षष्ठेश केतु से युक्त होकर लग्नेश पर दृष्टि दे, शनि षष्ठ भाव में, सूर्य-बुध सप्तम भाव में, बुध अस्त न हो, तो शुक्र की दशांतर्दशा में ‘कब्ज’ होती है।
मकर लग्न: लग्नेश शनि सूर्य से अस्त हो, गुरु सप्तम भाव में, सप्तमेश षष्ठ भाव में, षष्ठेश एवं शुक्र केतु से दृष्ट द्वितीय भाव में हो, तो जातक को ‘कब्ज’ रहती है।
कुंभ लग्न: लग्नेश शनि गुरु से युक्त होकर सप्तम भाव में हो और सूर्य लग्न में रहकर सप्तम भाव पर दृष्टि रखे, बुध अस्त हो, चंद्र केतु से युक्त या दृष्ट षष्ठ भाव में हो, तो जातक कब्ज रोगी होता है।
मीन: सूर्य बुध सप्तम भाव में, लग्नेश गुरु शनि से युक्त या दृष्ट षष्ठ भाव में, केतु की दृष्टि षष्ठ, सप्तम या लग्न पर रहे तो जातक को कब्ज रहती है। नोट: (रोग उपरोक्त ग्रहों की दशांतर्दशा और गोचर ग्रह स्थिति पर निर्भर करता है।)